***** (मात्र उन्ही प्रश्नों के उत्तर दे पाऊंगा जो,,स्पष्ट भाषा मे,,पूर्ण डाटा द्वारा पूछे गए हों,,यथासंभव प्रयास के बाद भी यदि किसी का प्रश्न नही ले सका,, तो रुष्ट न होइएगा,,ये प्रार्थना है)******
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ज्योतिष के विद्यार्थी सामान्यतः जानते हैं कि शुक्र को द्वादश भाव में ,तथा द्वादश राशि मे उच्च माना जाता है....अधिकतर ज्योतिषीय ग्रंथों में इस योग का बड़ा गुणगान होता आया है...विवेचना के स्तर पर नए ज्योतिष विद्यार्थियों को कई बार इसी भ्रम में ,इसका परिणाम तय करते हुए देख कर पीड़ा होती है ...........संभवतः पाठकों को ज्ञात हो कि शुक्र सामान्यतः अन्य ग्रहों की अपेक्षा अपने लैप में उल्टी दिशा में घूमता है....ऐसे में वो एक प्रकार से वापस आता हुआ ग्रह है......अपने सिद्धान्त के विपरीत शुक्र मीन में अपने स्वभाव के अपोजिट सात्विक प्रभाव देने वाला हो जाता है.........
कारण वास्तव में बहुत गूढ़ है....द्वादश भाव में मोक्ष का भाव है..महानिर्वाण का भाव है..ऐसे में कालपुरुष में ये भाव देवगुरु के आधीन है...सामान्य मित्र चक्र में देवगुरु के नितांत शत्रु होते हुए भी इस भाव में शुक्र उच्च पद पा जाते हैं.....क्योंकि भोगी अपना स्वरुप बदलकर योगी बन जाता है...शुक्र जो भी क्रिया देते हैं,,जो भी कर्म करवाते है ,वो मोक्ष के लिए होता है...ये भाग्य को सुख देने का भाव है...सामान्यतः शुक्र भोग विलास के कारक हैं...यहाँ ये भोग विलास सात्विक हो जाता है..अतः पूजनीय हो जाता है..कालपुरुष में षष्ठम भाव रिपु भाव माना गया है...अतः भोग विलास जब सांसारिकता का भाव ग्रहण कर लेता है तो यही भोग विलास के कारक शुक्र मित्र बुध की कन्या राशि होते हुए भी नीच मान लिए जाते हैं.............
भोग विलास के कारक का उच्च होना वास्तव में भोग की प्रवृत्ति को लगाम लगाना है......राम की,,, गौतम बुद्ध की कुंडली मे शुक्र उच्च हो सकते हैं,,,,किन्तु एक रईस शेख की कुंडली मे इन्हें नीच में आना ही होता है ,,,अपना वास्तविक प्रभाव देने के लिए.....इतिहास गवाह है कि जातक को सांसारिक सुख का जितना लाभ कन्या के शुक्र ने प्रदान किया है,, वो मीन का शुक्र नही दे पाया..........ये बारहवें मोक्ष (जीवन के पश्चात सुख) का कारण बन सकता है,,,,किन्तु जब तक मनुष्य पृथ्वी पर ,सांसारिकता से बंधा है,,तब तक नीच शुक्र ही एकलौती आशा की किरण है भैया.....मैं व्यक्तिगत रूप से इस बात का पक्षधर हूँ कि यदि जातक मरने के बाद मोक्ष की आस नही रखकर,,जीते जी भोग विलास का अनुयायी है,,,तो ऐसी अवस्था मे कन्या का शुक्र आपके लिए अधिक सौभाग्य का कारक है...
प्रोफेशनल ज्योतिषी कई बार शुक्र को उच्च का पाकर भी जातक की स्थिती डांवाडोल देखेंगे,,,,और नीच का शुक्र होते हुए भी जातक को मौज में देखेंगे..............कारण वही है,,,शुक्र का सामान्य से विपरीत दिशा को भ्रमण........अब कृपया कोई पाठक ऐसा बोल कर कुतर्क न करे ,कि हमने तो ऐसा कहीं लिखा नही देखा..............(जैसा एक सज्जन मेरे पिछले लेख में बोल रहे थे) ,,,मित्रवर हर बात लिखी हुई ही मिल जाती ,तो शौकिया ज्योतिषी और विधिवत आचार्य में भला क्या अंतर रह जाता........ ये सूत्र निरंतर कुंडली अध्ययन ,,,,,,पेशे के प्रति आपकी आस्था,,,स्वयं को प्रयासों की भट्टी में झोंककर ,,तपाकर प्राप्त हुआ कुंदन है... आपके द्वारा स्वयं को ज्योतिष सागर में डुबोकर प्राप्त होने वाले मोती हैं,,,,इनके लिए समुंदर के तल में उतरना होता है....किनारे बैठ कर अपने पैरों को पानी मे भिगो कर ,,समुद्र का गोता मारने का भ्रम रखने वाला गणक इन बातों को समझने में सक्षम हो पायेगा,,ऐसा मानना ज्योतिष शास्त्र के साथ अन्याय है....और इन्ही सूत्रों की जानकारी ,एक प्रोफेशनल ज्योतिषी व एक शौकिया ज्योतिषी के मध्य का भेद तय करती है.......अतः यहां बेकार तर्क करने से बेहतर है कि भविष्य में कुंडली अवलोकन करते समय,,इसे संज्ञान में रखकर प्रक्टिकली समझें.............हर बात के लिए पुस्तकों के भरोसे मत रहिये,,,,,,,,,अन्यथा हाल उस छात्र की तरह हो जाता है जो निबंध गाय पर रटकर गया था और परीक्षा में बैल का आ गया...........बंदे ने उपाय ये किया,,कि निबंध वही रखा,,,,, बस गाय के बदले बैल लिखता गया.......आशा है पाठक सहमत होंगे...आज किंचित फुरसत में हूं,,, अतः पाठक चाहें तो अपना प्रश्न करें,,,,,,,जितनी इजाजत समय देगा,मात्र उतने ही प्रश्नों के उत्तर दे पाऊंगा,,एक मेहरबानी कीजियेगा,,कृपया प्रश्न स्पष्ट रखियेगा.....
इनबॉक्स में प्रश्न न करें,,चाहे गरिया लें,चाहे अपशब्द कहे लें किन्तु हर बार की भांति स्पष्ट बता दूं ,मैं प्रोफेशनल ज्योतिषी हूँ,, फीस लेता हूँ ,क्योंकि इसी कार्य से मेरे परिवार का भरण पोषण होता है..........प्रणाम
www.astrologerindehradun.com
Rightsunshineforu.blogspot.com
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ज्योतिष के विद्यार्थी सामान्यतः जानते हैं कि शुक्र को द्वादश भाव में ,तथा द्वादश राशि मे उच्च माना जाता है....अधिकतर ज्योतिषीय ग्रंथों में इस योग का बड़ा गुणगान होता आया है...विवेचना के स्तर पर नए ज्योतिष विद्यार्थियों को कई बार इसी भ्रम में ,इसका परिणाम तय करते हुए देख कर पीड़ा होती है ...........संभवतः पाठकों को ज्ञात हो कि शुक्र सामान्यतः अन्य ग्रहों की अपेक्षा अपने लैप में उल्टी दिशा में घूमता है....ऐसे में वो एक प्रकार से वापस आता हुआ ग्रह है......अपने सिद्धान्त के विपरीत शुक्र मीन में अपने स्वभाव के अपोजिट सात्विक प्रभाव देने वाला हो जाता है.........
कारण वास्तव में बहुत गूढ़ है....द्वादश भाव में मोक्ष का भाव है..महानिर्वाण का भाव है..ऐसे में कालपुरुष में ये भाव देवगुरु के आधीन है...सामान्य मित्र चक्र में देवगुरु के नितांत शत्रु होते हुए भी इस भाव में शुक्र उच्च पद पा जाते हैं.....क्योंकि भोगी अपना स्वरुप बदलकर योगी बन जाता है...शुक्र जो भी क्रिया देते हैं,,जो भी कर्म करवाते है ,वो मोक्ष के लिए होता है...ये भाग्य को सुख देने का भाव है...सामान्यतः शुक्र भोग विलास के कारक हैं...यहाँ ये भोग विलास सात्विक हो जाता है..अतः पूजनीय हो जाता है..कालपुरुष में षष्ठम भाव रिपु भाव माना गया है...अतः भोग विलास जब सांसारिकता का भाव ग्रहण कर लेता है तो यही भोग विलास के कारक शुक्र मित्र बुध की कन्या राशि होते हुए भी नीच मान लिए जाते हैं.............
भोग विलास के कारक का उच्च होना वास्तव में भोग की प्रवृत्ति को लगाम लगाना है......राम की,,, गौतम बुद्ध की कुंडली मे शुक्र उच्च हो सकते हैं,,,,किन्तु एक रईस शेख की कुंडली मे इन्हें नीच में आना ही होता है ,,,अपना वास्तविक प्रभाव देने के लिए.....इतिहास गवाह है कि जातक को सांसारिक सुख का जितना लाभ कन्या के शुक्र ने प्रदान किया है,, वो मीन का शुक्र नही दे पाया..........ये बारहवें मोक्ष (जीवन के पश्चात सुख) का कारण बन सकता है,,,,किन्तु जब तक मनुष्य पृथ्वी पर ,सांसारिकता से बंधा है,,तब तक नीच शुक्र ही एकलौती आशा की किरण है भैया.....मैं व्यक्तिगत रूप से इस बात का पक्षधर हूँ कि यदि जातक मरने के बाद मोक्ष की आस नही रखकर,,जीते जी भोग विलास का अनुयायी है,,,तो ऐसी अवस्था मे कन्या का शुक्र आपके लिए अधिक सौभाग्य का कारक है...
प्रोफेशनल ज्योतिषी कई बार शुक्र को उच्च का पाकर भी जातक की स्थिती डांवाडोल देखेंगे,,,,और नीच का शुक्र होते हुए भी जातक को मौज में देखेंगे..............कारण वही है,,,शुक्र का सामान्य से विपरीत दिशा को भ्रमण........अब कृपया कोई पाठक ऐसा बोल कर कुतर्क न करे ,कि हमने तो ऐसा कहीं लिखा नही देखा..............(जैसा एक सज्जन मेरे पिछले लेख में बोल रहे थे) ,,,मित्रवर हर बात लिखी हुई ही मिल जाती ,तो शौकिया ज्योतिषी और विधिवत आचार्य में भला क्या अंतर रह जाता........ ये सूत्र निरंतर कुंडली अध्ययन ,,,,,,पेशे के प्रति आपकी आस्था,,,स्वयं को प्रयासों की भट्टी में झोंककर ,,तपाकर प्राप्त हुआ कुंदन है... आपके द्वारा स्वयं को ज्योतिष सागर में डुबोकर प्राप्त होने वाले मोती हैं,,,,इनके लिए समुंदर के तल में उतरना होता है....किनारे बैठ कर अपने पैरों को पानी मे भिगो कर ,,समुद्र का गोता मारने का भ्रम रखने वाला गणक इन बातों को समझने में सक्षम हो पायेगा,,ऐसा मानना ज्योतिष शास्त्र के साथ अन्याय है....और इन्ही सूत्रों की जानकारी ,एक प्रोफेशनल ज्योतिषी व एक शौकिया ज्योतिषी के मध्य का भेद तय करती है.......अतः यहां बेकार तर्क करने से बेहतर है कि भविष्य में कुंडली अवलोकन करते समय,,इसे संज्ञान में रखकर प्रक्टिकली समझें.............हर बात के लिए पुस्तकों के भरोसे मत रहिये,,,,,,,,,अन्यथा हाल उस छात्र की तरह हो जाता है जो निबंध गाय पर रटकर गया था और परीक्षा में बैल का आ गया...........बंदे ने उपाय ये किया,,कि निबंध वही रखा,,,,, बस गाय के बदले बैल लिखता गया.......आशा है पाठक सहमत होंगे...आज किंचित फुरसत में हूं,,, अतः पाठक चाहें तो अपना प्रश्न करें,,,,,,,जितनी इजाजत समय देगा,मात्र उतने ही प्रश्नों के उत्तर दे पाऊंगा,,एक मेहरबानी कीजियेगा,,कृपया प्रश्न स्पष्ट रखियेगा.....
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