मेल -फ़ोन द्वारा कई बार बार पाठकों की डिमांड रहती है की पंडित जी कोई ऐसा मन्त्र बताइये जो सहज रूप से पढ़े जा सकें व जिन के उच्चारण से मन को सुकून प्राप्त हो .कुछ मन्त्र आप लोगों को बता रहा हूँ जिनका जाप सामान्यतः अपने दैनिक जीवन में आप लोग रोज कर सकते हैं ,साथ ही ये मन्त्र आपको मन की शुद्धि में सहायक होते हैं .
प्रातःकाल सूर्य देव को हाथ जोड़कर इन मन्त्रों का जाप किया जा सकता है :--
१ . " ॐ अहिं सूर्यो सहस्त्रांशों तेजो राशे: जगत्पते
अनुकम्पय्माम भक्त्याम ग्रहानाग्र्यम दिवाकरो ".
२ . " एक चक्रों राथोस्य दिव्य कनक विभूषितः
समे भवतु सुग्रीतः पदम्हस्तो दिवाकरः "
.(ये दोनों मन्त्र मनुष्य के भीतर बड़ी तेजी से शक्ति का संचार करते हैं )
पूजा स्थल पर सामान्य रूप से हाथ जोड़कर नवग्रहों की उपासना इस मन्त्र के द्वारा की जा सकती है :---
१. " ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी ,भानु शशि भूमिसुतो बुधस्य्ह
गुरुस्य शुक्रो शनि राहु केतु ,कुरुवन्तु सर्वे मम सुभ्प्रभातम "
२. "सूर्यः शौर्य मथेन्दु रुच्च पदवीं ,संमंगलम मंगल: सदबुद्धिम च बुधो , गुरूशच गुरुताम शुक्रः सुखं सम शनि
राहुर्बाहुबलं करोतु विपुलं ,केतु कुलस्योउन्नति ,नित्यं प्रीती करा भवन्तु भवतां ,सर्वे प्रसन्ना ग्रहा: "
(पाठक यकीन करें की इस मन्त्र से स्वयं मैंने अपने जीवन में बहुत कुछ प्राप्त किया है .ग्रहों की कृपा मुझ पर सदा रही ,हर बुरी परिस्थिति से मैंने पार पाया .जब भी स्वयं को अकेला पाया ,जब भी मन निराशा से भरा इस मन्त्र ने सदा उबारा )
अपने बच्चों के माथे पर तिलक करते समय इस मन्त्र को पढ़ा जा सकता है ,जो सदा उसकी रक्षा करेगा .
१ . " ब्रह्मा विष्णु श्च रुद्रश्च लोकपाल दिधॆश्वरह
रक्षन्तु सर्व दात्रानी ,लालाटेति लकीक्रिते "
मन्त्रों के सम्बन्ध में सदा से कुछ साजिशों के तहत,( विशेषकर उस वर्ग द्वारा जो संस्कृत भाषा पर अपना एकाधिकार समझता रहा व स्वयं को विशेष मानते रहने के भ्रम तले ,खुद की सत्ता को बनाये रखने हेतु उसने आम जनता को कई कई बहानो द्वारा ईश्वर की स्तुति से दूर रखा )उच्चारण सम्बन्धी कुछ नियम तय किये गए हैं,जिनका मैं सदा विरोधी रहा व इसी कारण अपने जात भाइयों से भी भली बुरी सुनता रहा हूँ .प्रभु की उपासना ,उसकी भक्ति ,उसकी शरण के लिए यदि कोई नियम तय होता है ,यदि कोई स्तर लागू होता है तो वो मात्र श्रद्धा का होता है ,मन की पवित्रता का होता है .इसके सिवा कुछ नहीं .भला जिसने अक्षरों का ज्ञान प्राप्त न किया हो ,जिसे प्रभु ने वाणी ही न दी हो क्या वो प्रभु भक्ति के अपने नैसर्गिक अधिकार से वंचित हो जाना चाहिए ?कदापि नहीं ,ऐसा कहना ,सोचना भी मैं पाप मानता हूँ .शबरी जटायु कई उदहारण ऐसे हैं जो इन बातों को प्रमाणित करते हैं .अतः मन की पवित्रता के साथ हर मनुष्य का अधिकार है की वो चाहे जिस भाषा में ,चाहे जिस अंदाज से चाहे जिस अवस्था में वह प्रभु की वंदना करे ,उसे पुकारे ,उस का आभार प्रकट करे .मरा -मरा रटने वाले वाल्मीकि देव ऋषि का पद पाने में सफल हुए . इसी के साथ आज्ञां दीजिये ......जय श्री राम ..........