बुधवार, 7 दिसंबर 2016

याज्ञवल्कय के अनुसार नई दुल्हन विवाह होने के प्रथम वर्ष के भीतर ज्येष्ठ ,आषाढ़ व मलमास में यदि अपने ससुराल में निवास करती है तो क्रमश अपने जेठ ,सास ससुर व स्वयं का नाश करती है . इसी प्रकार यदि कन्या चैत्र मॉस में मॉस में अपने पिता के घर निवास करती है तो पिता की हानि होती है.
    

सोमवार, 8 अगस्त 2016

Mangalik Dosh --- मांगलिक दोष

अपने ब्लॉग ,वेब साईट,मेल्स व अन्य साधनो से प्राप्त प्रश्नो में सर्वाधिक प्रश्न जो मुझे प्राप्त होते हैं,उनका सम्बन्ध परोक्ष -अपरोक्ष रूप से मंगल से ही होता है...अब समयाभाव के कारण प्रत्येक प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाता... इसलिए साधारण भाषा में आज मंगल के दोष,उनका निवारण ,व उनके प्रभाव आदि के विषय में चर्चा करेंगे,,,,
         अमूमन मंगल की चर्चा तब अधिक होने लगती है जब लड़का या लड़की विवाह योग्य होने लगते हैं व उनकी कुण्डलियाँ मिलान के लिए निकाली जाने लगती हैं...यकीन मानिए कन्या के पिता के पैरों के नीचे से तो जमीन ही खिसक जाती होगी,जब बेटी मांगलिक निकल आती होगी तो...कुछ लोग इस दौरान कुण्डलियाँ ही बदल देते हैं तो कुछ स्वयं को इंटेलेक्चुअल घोषित करते हुए डंके की चोट पर कह देते हैं कि हम इस सब बकवास को नहीं मानते।।.
                 वर्षों बीत गए मंगल पर चर्चा करते हुए ,हजारों टीकाएँ ग्रंथों के आधार पर लिखी गई ,सैकड़ों लोगों ने इस पर नए नए विचार प्रस्तुत किये....इसे हौव्वा बताया .....किन्तु आज भी विवाह सन्दर्भ में चर्चा चलते ही सबसे अधिक खौफ अगर किसी ग्रह का है तो वो मंगल ही है....ज्योतिष को सिरे से नकारने वाले सज्जन भी अपने लिए बहु लाते समय दबी जुबान मांगलिक दोष की तरफ से शंका मिटाना नहीं चूकते..
                                क्या है ये मंगल और क्यों इसका इतना खौफ जनमानस पर हावी है ??सामान्य  गणना  के अनुसार हम जानते हैं कि किसी भी पुरुष व स्त्री की कुंडली में चौथे ,सातवें ,आठवें ,बारहवें व लग्न भाव में मंगल होने से  उन्हें मांगलिक मान लिया जाता है। वास्तव में देखने में आया है (मेरी व्यक्तिगत सोच है ) कि मंगल की उपस्थिति से अधिक इसका चौथा व आठवां दृष्टि प्रभाव दाम्पत्य पर अधिक प्रतिकूल असर देता है...... ऐसे में मेरा मानना  है कि मंगल की चौथे व बारहवें भाव की उपस्थिति दाम्पत्य के लिए अधिक घातक परिणाम प्रस्तुत करती है .....सातवें व आठवें भाव में बैठा मंगल दाम्पत्य  कडुवाहट उत्पन्न करता है ,किन्तु मैं व्यक्तिगत रूप से इसे जीवनसाथी के लिए मारक नहीं मानता हूँ ...मेरे  पिछले दस -बारह साल के अध्ययन व क्लाइंट्स के साथ अपनी काउंसलिंग में मैंने सप्तम -अष्ठम मंगल को तलाक दिलाते ,वैचारिक मतभेद बनाते अधिक देखा है किन्तु चतुर्थ व द्वादस्थ भौम मारक होते हुए हर बार पाया है ....जबकि बदनामी सप्तम व अष्ठम मंगल के हिस्से में अधिक आती है प्रभाव के रूप में कहें तो मंगल की चौथी व आठवीं दृष्टि जलीय प्रभाव लिए हुए होती हैं ,,,,,भौम जो कि अग्नि का कारक ग्रह है व जिसका काम शरीर-व जीवन रुपी भाव - भट्टी को ईंधन उपलब्ध कराना है ,,उसे कार्य  करने के लिए ऊर्जा प्रदान करना है ,अपने चौथे व आठवें जलीय प्रभाव में अपना नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न कर उस आग को ,उस भाव के प्राणों की अग्नि को बुझा देता है ...संभवतः इसी कारण मंगल को चौथी राशि कर्क में नीच माना जाता  है व  इसकी स्वयं की आठवीं वृश्चिक राशि इसकी नकारात्मक राशि मानी गई है ....
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अब प्रश्न ये आता है कि भला मंगल  अपना  घातक प्रभाव कैसे व कितनी ताकत से देता है ??तो इसका जबाब यह है  कि ये कुछ बातों पर निर्भर करता है ...  सर्वप्रथम तो ये कि मंगल किस ग्रह की ,क्या प्रभाव लिए हुए कौन सी राशि में बैठा है व  दूसरा यह कि जहाँ प्रभाव दिया जा रहा है वह किस प्रकार के ग्रह की कौन सी राशि है .....
                                उदाहरण के लिए समझिये कि वृष राशि में बैठा चतुर्थ भाव का मंगल अपनी चौथी जलीय दृष्टि से सप्तम में सूर्य केए अग्नि राशि को बुझा देगा ,यहाँ आप अग्नि कि समाप्ति देख् सकते हैं .....किन्तु यहीं से कर्क का मंगल सप्तम में तुला के वायुप्रधान स्वभाव को गर्जना बारिश का रूप देगा ,जिसे हम दाम्पत्य में झगड़ा ,मारपिटाई,हल्ला आदि के रुप में पायेंगे ....यहीं चतुर्थ भाव में तुला में बैठा मंगल ,,सप्तम में मकर के पृथ्वीतत्वीय प्रभाव को तूफान ,पेड़ों के उखडने, बाढ़ आदि के रुप में संबंध को तबाह करेगा, किन्तु मृत्यु कारक नहीं होगा....... आशा है पाठक समझ रहे होंगे ...भविष्य  में इस चर्चा को आगे ले जायेंगे ये वादा है आपसे ....सावन कि शुभकामनाओं सहित ,आपका अपना भाइ ....