शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

Kalsarp Dosh and remedy... कालसर्प दोष

काफी समय से कालसर्प योग की सत्यता को लेकर गुरुजनों में मतभेद चल रहा है.कोई इसकी सत्यता पर ही सवाल उठा रहा है,कोई इसके पक्ष में खड़ा है.वास्तव में यह सही है की हमारे प्राचीन शाश्त्रों में ऐसे किसी योग का उल्लेख नहीं मिलता.किन्तु ऐसे कई तथ्य हैं की जिन चीजों की जानकारी हमें पहले नहीं थी तथा उनकी ख़ोज बाद में हुई.अब आप उन तथ्यों को यह कहकर नकार नहीं सकते की पहले के ग्रंथों में इनका उल्लेख नहीं मिलता.ब्लॉग पहले नहीं होता था,ईमेल पहले नहीं होती थी.लैपटॉप का पहले कहीं जिक्र नहीं मिलता.
                 कहने का तात्पर्य यह है की यदि विद्वान् गुरुजनों ने किसी तथ्य की खोज बाद के काल में की है ,तो उस पर पूर्ण अध्ययन किये बिना उसे नकार देना हठधर्मिता है.कालसर्प योग पर अधिक ध्यान दिया जाना आवश्यक है.कई अवस्थाओं में यह योग कुंडली में मौजूद होते हुए भी निष्क्रिय होता है.कई बार इसके दुष्परिणाम भी दिखाई पड़ते हैं.कालसर्प योग बारह प्रकार के माने गए हैं.जो अधिकतर राहू की दशा-अन्तर्दशा में फलित होते हैं.इनका अधिक दुष्प्रभाव तब भी दिखाई पड़ता है जब चंद्रमा कमज़ोर हो रहे हों व राहू केतु पंचम भाव को प्रभावित करते हों तो  अपनी  १५-१६ वर्ष की आयु के दौरान जातक का ध्यान शिक्षा की और से डगमगाने लगता है,जबकि इस से पूर्व वह बेहतरीन छात्र के रूप में जाना जाता है.पातक (कई जगह इसका उच्चारण घातक भी किया गया है)कालसर्प योग के फलस्वरूप मैं स्वयं कई कुंडलियों में यह अध्ययन कर चुका हूँ की जातक सदैव अपने काम धंधे के प्रति सदा शंका में रहता है.काफी उम्र बीत जाने पर भी वह स्थाई नहीं हो  पाता.यदि इसमें कहीं दशम भाव शनि महाराज की उपस्तिथि या दृष्टि से प्रभावित हो जाये तो नौकरी छूटने या किसी मामले में नाम फंसने से सजा तक की नौबत आ जाती है.३६ वर्षायु तक यह योग मैंने अधिक कष्टकारी होते देखा है.पश्चात कई दशाओं में यह योग स्वतः ही शांत होते देखा है मैंने.आपको सुन कर हैरानी होगी की कई कुंडलियों में मैंने कोई महत्वपूर्ण योग न पाकर भी जातक को सफलता के शिखर पर पाया.किन्तु वहां कालसर्प योग विद्यमान था.ऐसा मैं कई कुंडलियों में देख चुका हूँ.अत: अपने अनुभव से यह पाया है की  यदि किसी कुंडली में ब्रहस्पति व सूर्य बली हों तो कालसर्प योग एक आयु के पश्चात स्वयम राज योग में परिवर्तित होता है.कई ऐसे जातक जिनकी जन्म कुंडली में काल सर्प योग है वो सफलता के सर्वोत्तम शिखर पर पहुंचे हैं.राजनीतिज्ञों की कुंडली में यदि अन्य सहायक योग मौजूद हों तो यही कालसर्प योग राजयोग बन जाता है.अभी इस विषय पर और शोध करने का प्रयास कर रहा हूँ .कोई नयी अनोखी बात पता चलेगी तो बांटने का  प्रयास करूँगा .यदि  ऐसे में कभी आप को संशय हो की हमारी कुंडली में ऐसा कोई दोष मौजूद है तो उपाय  स्वरुप द्वादश ज्योतिर्लिंग मन्त्र का नियमित जाप करें.शिव नागों के देव हैं.शिव मंदिर में बेल पथरी अर्पित करें.बैल को हरी घास खिलाएं और चमत्कार अनुभव करें.

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गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

शुगर (मधुमेह) और गणेश पूजा

भगवान् गणेश की किसी भी तस्वीर के सामने सदा ही आपने लड्डू व मिष्ठान का थाल लगा देखा होगा.मूषक महाराज सामने हाथ बांधे खड़े रहते हैं.मूषक इच्छाओं  का  प्रतिनिधि है.गणेश जी स्वयं मधुमेह से पीड़ित हैं.सामने लड्डुओं का भरा थाल होकर भी अपनी इच्छाओं को कैसे नियंत्रित किया जाता है,ये शिक्षा हमें गणेश जी से प्राप्त होती है.अपनी लालसा को चूहे के समान अपने सामने छोटा बने रहने दो.उसे हावी मत होने दो.
            शाश्त्रों में उल्लेख मिलता है की  मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति को सदा गणेश जी की उपासना कर उन्हें चढाया  गया भोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से इस रोग  में आराम मिलता है.आप सोच रहे होंगे की मीठा खाना तो सुगर की बीमारी में जहर के समान है,फिर ये क्या बात हुई? वास्तव में मीठे का भोग गणेश जी को नहीं लगता है.ये क्रम कैसे शुरू हो गया पता नहीं.
                         शाश्त्रों में गणेश जी की उपासना का जो मन्त्र प्रचलित है जरा उस पर ध्यान दें  "गजाननमभूत गनादिसेवितम  कपिथ्जम्बू फल चारू भक्षणं ,उमासुतं शोक विनाश्काराम ,विघ्नेस्वर पद पाद पंकजम"   अर्थात  गजानन को कैथ और जामुन का फल भोग के रूप में और स्वयं प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए.अब आप सब को पता है की जामुन और कैथ को सदा ही मधुमेह में  लाभकारी माना गया है.श्लोक में जो उमासुत का उल्लेख  आता है वह गणेश न होकर समस्त मनुष्यों के लिए प्रयोग हुआ है.उमा जगद्जननी हैं और पृथ्वी के समस्त मनुष्य उसकी संतान हैं.अत:  अर्थ यह हुआ की जो भी इस विधि से गणेश जी की उपासना करता है,उसके समस्त रोगों का निवारण होता है.

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