......**...नवम भाव मे राहु गुरु युति..****
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नवम भाव के गुरु पर जैमिनी,,वशिष्ट,,गर्ग व नारद आदि कई ऋषियों द्वारा बहुत कुछ कहा गया है....यह मृत्यु के बाद का भाव है,,अतः बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है ....यह मृत्यु के बाद की यात्रा भी है,,,व देवलोक की यात्रा में देवगुरु से बेहतर सारथी भला और कौन हो सकता है..
नवम के गुरु को ज्योतिष में बहुत बड़ा स्थान प्राप्त है...वैसे भी नवम,दशम व एकादश का गुरु बुलंदियां देने वाला कहा गया है..यहां से मेरे पाठकों द्वारा कई बार मुझसे यह प्रश्न किया गया है कि नवम के गुरु की यदि राहु से युति हो जाय तो क्या परिणाम आते हैं...
सामान्य दृष्टि से ये युति गुरु चांडाल दोष का सृजन कर देती है...किन्तु मेरे विद्वान पाठक जानते हैं कि नवम भाव मंदिर भी कहलाता है,,क्योंकि धर्म का स्थान है,,धर्म का भाव है...ऐसे में कभी आपने मंदिर में धातु के बने हुए नागों की मूर्ति को देखा है..किंतने पूज्य हैं वे....कई बार शिवलिंग के ऊपर भी स्थापित किया जाता है,,,कई मूर्तियों में विष्णु के साथ स्थापित हैं....बड़ी श्रद्धा से इनकी उपासना की जाती है....बस यही स्थान नवम में सिंहिका के पुत्र राहु को प्राप्त हो जाता है..राहु देवता ग्रह है..ये अमरत्व को प्राप्त है...यह मर नही सकता,,अतः अस्त नही होता...आप ध्यान दें कि इसे देवगुरु की ही दृष्टि प्राप्त है...अमरत्व की दृष्टि..अतः नवम का राहु बिना प्रयास ,अकारण ही मोक्ष प्राप्त करा देता है..यहां से लग्न ,,तृतीय व पंचम पर संयुक्त दृष्टि इन तीनो भावों को अतिशय बलदायी कर देती है,,इसमे संदेह नही....अतः नवम को गुरु चांडाल दोष नही लगता है,,ऐसा प्रमाणित है...शेष फिर कभी...प्रणाम....
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नवम भाव के गुरु पर जैमिनी,,वशिष्ट,,गर्ग व नारद आदि कई ऋषियों द्वारा बहुत कुछ कहा गया है....यह मृत्यु के बाद का भाव है,,अतः बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है ....यह मृत्यु के बाद की यात्रा भी है,,,व देवलोक की यात्रा में देवगुरु से बेहतर सारथी भला और कौन हो सकता है..
नवम के गुरु को ज्योतिष में बहुत बड़ा स्थान प्राप्त है...वैसे भी नवम,दशम व एकादश का गुरु बुलंदियां देने वाला कहा गया है..यहां से मेरे पाठकों द्वारा कई बार मुझसे यह प्रश्न किया गया है कि नवम के गुरु की यदि राहु से युति हो जाय तो क्या परिणाम आते हैं...
सामान्य दृष्टि से ये युति गुरु चांडाल दोष का सृजन कर देती है...किन्तु मेरे विद्वान पाठक जानते हैं कि नवम भाव मंदिर भी कहलाता है,,क्योंकि धर्म का स्थान है,,धर्म का भाव है...ऐसे में कभी आपने मंदिर में धातु के बने हुए नागों की मूर्ति को देखा है..किंतने पूज्य हैं वे....कई बार शिवलिंग के ऊपर भी स्थापित किया जाता है,,,कई मूर्तियों में विष्णु के साथ स्थापित हैं....बड़ी श्रद्धा से इनकी उपासना की जाती है....बस यही स्थान नवम में सिंहिका के पुत्र राहु को प्राप्त हो जाता है..राहु देवता ग्रह है..ये अमरत्व को प्राप्त है...यह मर नही सकता,,अतः अस्त नही होता...आप ध्यान दें कि इसे देवगुरु की ही दृष्टि प्राप्त है...अमरत्व की दृष्टि..अतः नवम का राहु बिना प्रयास ,अकारण ही मोक्ष प्राप्त करा देता है..यहां से लग्न ,,तृतीय व पंचम पर संयुक्त दृष्टि इन तीनो भावों को अतिशय बलदायी कर देती है,,इसमे संदेह नही....अतः नवम को गुरु चांडाल दोष नही लगता है,,ऐसा प्रमाणित है...शेष फिर कभी...प्रणाम....
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