शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

कैसे बनाता है भाग्य चित्रगुप्त

जन्म के साथ ही मिलने वाली शारीरिक अक्षमताएं- विषमतायें ,परिवेश ,आर्थिक- मानसिक स्थितियां सभी के लिए भिन्न क्यों होती होंगी भला?कई बार ऐसे सवाल ,ऐसी जिज्ञासाएं मन को मथ देती हैं.  सब प्रकार से संपन्न जातक क्या ईश्वर से किसी विशेष प्रकार के सम्बन्ध रखने वाला होता है और विपन्नताओं (सभी प्रकार की) में जन्मने वाला जातक क्या किसी ईश्वर विरोधी गुट से ताल्लुक रखता होगा भला? फिर जन्मकालीन विषमतायें इतनी अधिक क्यों देखने को मिलती हैं.यह प्रश्न कुछ कुछ मुझे उस प्रश्न से मिलता जुलता लगता है जो एक नादान विद्यार्थी द्वारा रिसल्ट निकलने के बाद पूछा जाता है.
                                             कम व अधिक अंक हासिल करने का पैमाना वह अध्यापक से निकटता अथवा उसकी व्यक्तिगत चाहत से तोलने लगता है.वह यह नहीं जानता की अध्यापक स्वयं मजबूर है विद्यार्थी द्वारा उत्तरपुस्तिका में लिखे जवाबों के अनुसार अंक देने हेतु.यहाँ अध्यापक की व्यक्तिगत पसंद-नापसंद कोई अर्थ नहीं रखती.रिसल्ट बनाते गुरूजी के लिए सभी एक सामान हैं.अंक अधिक या कम उनका स्वयं के कर्मों का प्रतिफल है.
                                       इसी प्रकार जन्मजात हासिल अवस्थाएं देने हेतु भाग्य के अपने हाथ बंधे हैं,वह बाध्य है हमारे कर्मानुसार हमारा जीवन बनाने के लिए.यहाँ मैं दो परस्पर विरोधी सूक्तियों को एक ही  सूत्र से बांधने का प्रयास कर रहा हूँ.
१.     जीवन में जो कुछ भी मिलता है भाग्य से मिलता है.
२.     जीवन में जो कुछ भी मिलता है कर्म से मिलता है.
                               " जहाँ तक बात मेरी समझ में आई है वह ये की जीवन में सब कुछ भाग्य से मिलता है और भाग्य कर्मों के अनुसार बनने हेतु बाध्य होता है."
       कभी किस्से कहानियों में चित्रगुप्त का नाम तो जरूर सुना होगा आप सब ने.चित्रगुप्त का नाम सुनते ही दिमाग में तस्वीर बनने लगती है किसी क्लर्क की,जो हमारे कर्मों का लेखा जोखा हमें बताने हेतु अपनी पोथियाँ  लेकर खड़ा रहता है.असल में हमारे द्वारा गुप्त रूप से किये गए अच्छे-बुरे कर्मों को ही चित्रगुप्त कहा गया है,चित्रगुप्त अर्थात गुप्तचित्र.हमारे द्वारा छुपा कर किये गए कर्मों का रिकार्ड ही हमारे अगले जन्म में  भाग्य निर्धारण का मुख्य कारक बनता है.  
                                      ध्यान दीजिये की गुप्त दान को ही सबसे बड़ा दान कहने के पीछे क्या कारण रहा होगा ?सामाजिक रूप से किये हमारे हर शुभ अशुभ कर्म का फल हमें इसी जन्म में प्राप्त होने लगता है.यहाँ भी महत्वपूर्ण हो जाता है की किसी धार्मिक या सामजिक कृत्य को करते समय हमारे मन में वास्तव में कौन सा विचार था.हम चेहरे के भाव बदल कर , भाषा शैली को लच्छेदार बनाकर ,समाज को तो ठग सकते हैं किन्तु जो गुप्त रूप से हमारे मन में छिपा बैठा देख रहा है उसे ठगना असंभव है.  यही हमारे कर्म के आधार पर अंक देने वाला हमारा गुरु है. यही गुप्त रूप से हमारे सभी कर्मों का हिसाब रखने वाला चित्रगुप्त है, जिसकी दी गयी रिपोर्ट पर आगे का भविष्य निर्भर है.
                    बड़े बड़े भंडारे कराकर, मंदिरों में सोने चांदी का छत्र चढ़ाकर,घर में बड़ा सा हवन कराकर , हम समाज को तो       अपने धार्मिक होने का संदेशा तो  दे देते हैं किन्तु मन में बैठा विश्लेषक जानता है की वास्तव में इसके पीछे हमारी क्या नीति काम कर रही है.भंडारे के वास्तविक हकदारों (गरीब -मजदूर -भिखारी  ) को तो हमने शुरू से ही दुत्कारने का काम किया क्योंकि नेताजी के आने का समय हो रहा था,कहीं गन्दगी न हो जाये.कार में बैठ कर हमारे आत्मीय बंधू आये,किसी तरह दो पूरी उदरस्थ की,हमारे शानदार इंतजाम की तारीफ़ की,नेताजी में भी काफी अनुकूल भाव दिखाया.बस बन गया काम.यहाँ हमने क्षणिक रूप से अपने लिए व्यवस्था अनुकूल भले ही कर दी हो किन्तु इसका किसी और प्रकार का फल बाद में हमें  मिलने वाला है ,यह सोचना मूर्खता है.  क्योंकि गुप्त रूप से इस कार्य के पीछे हमारी आस्था नहीं अपितु लालसा काम कर रही थी और वही लालसा हमारे मन के चित्रगुप्त ने नोट कर ली है.
                                                       निस्वार्थ भाव से किया काम ,दान पुन्य ,व किसी काम को करते वक्त हमारी अंतर्मन की दशा ही हमारे अगले जन्म में हमारे भाग्य का निर्धारण  करती है.  और हमारा मन .हमारा अन्तकरण सब बातों का सच्चा साक्षी बनता है.इसे धोखा  नहीं दिया जा सकता.   मेरी प्रिय लेखिका स्वर्गीय शिवानी जी की एक कहानी की एक पंक्ति यहाँ  याद आ रही है.  "संसार की अदालत को धोखा देकर भले ही हम बच निकलें,किन्तु मन की अदालत को धोखा नहीं दिया जा सकता,इंसान के अन्तकरण की अदालत कभी उसे माफ़ नहीं करती,"      

28 टिप्‍पणियां:

  1. प्रणाम गुरुदेव...........
    मैं आपके लेख कई दिनो से पढ़ रहा हूँ . मेरे मन में भी मेरे जीवन को लेकर कुछ जिज्ञासा हे ...... क्या मैं आप से कोई प्रश्न कर सकता हूँ
    धन्यवाद.............

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    1. सदा जय हो आपकी. अगर मैं आपकी जिज्ञासाओं को शांत कर पाया तो अपना सौभाग्य समझूंगा,प्रतीक जी.

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  2. जय तो उस मुरली वाले की और आपकी हो प्रभु...
    मेरी माता जी मेरे विवाह को लेकर चिंतित रहती हैं ... क्या आप मेरी कोई मदद कर सकते हैं ....आप की बड़ी कृपा होगी .....
    जन्म दिनांक :- 26\02\1986
    जन्म समय :- 8:19 am [जन्म समय मैं थोडा सा संशय हे अगर आप इसे संशोधित कर सके तो बड़ी कृपा होगी .....]
    जन्म स्थान :- झाबुआ [मध्य प्रदेश ]

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    1. प्रतीक बाबु ,दो वर्ष पहले ही विवाह हो जाना चाहिए था,अभी थोडा समय बाकी है लगभग 18 महीने।फिर भी सवा सात रत्ती का पन्ना धारण करें पूर्ण विधिविधान के साथ .ईश्वर ने चाहा तो मई 2013 तक विवाह संभव हो जाएगा।गाय को हरा चारा भी डालते रहें।

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    2. अपना अमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद प्रभु.........
      पन्ना धारण करने की विधि किस प्रकार होगी..... अगर बता दें तो बड़ी कृपा होगी......

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    3. प्रतीक जी ,सवा साथ रत्ती से अधिक वजनी पन्ना अष्टधातु में पूर्ण विधिविधान अवम अभिमंत्रित करके धारण करना शुभ रहता है।इसमें आपने कुछ नहीं करना है बल्कि किसी जानकार ज्योतिषी से संपर्क करें।सुनार के भरोसे नहीं रहें।इस प्रक्रिया में होरा,राहुकाल,तिथि व नक्षत्र से सम्बंधित काफी लम्बा काम कांम होता है।यदि कहीं से समझ न आये तो आप बेहिचक हमसे संपर्क कर सकते हैं।हामारे मेल आई डी पर आप अपना पता सूचित कर यहाँ से पन्ना (अंगूठी )प्राप्त कर सकते हैं।

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  3. साथ ही प्रभु अगर आप मेरी कुंडली का विवेचन कर पायें...... तो आप की बहुत मेहरबानी होगी ......
    छोटा मुह और बड़ी बात ये तो सूरज को दीपक बताने के समान बात होगी परन्तु फिर भी जो भी आप का पारिश्रमिक होगा आपके चरणों में अर्पित कर दूंगा...........
    शायद आप की कृपा हो जाये तो मेरा जीवन धन्य हो जाये......
    धन्यवाद................

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    1. आप अपना सवाल हमारी मेल आई डी पर भेजें।सेवा शुल्क की कोई समस्या नहीं है।

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  4. पूज्य गुरुदेव प्रणाम गुरूदेव मैने आपको email भी भेजा है ।पर मै समझ सकता हूं कि आपके पास समय की व्यस्तता है। फिर भी मैं पुनः पूज्य गुरूदेव से प्रार्थना करूंगा कि मेरा मार्गदर्शन करें। गुरुदेव मेरा विवाह कब तक होगा कृपया मुझे बतलाने की कृपा करें। मेरी जन्म तिथी है--18-07-1985. 08:45 AM pauri garhwal uttrakhand ।गुरुदेव मैं प्रतीक्षा करूंगा ।

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    1. राम सिंह जी,सप्रेम नमस्कार .द्वितीयेश में सप्तम भाव पर दृष्टी रखने वाले ग्रह की अन्तर्दशा शाश्त्रानुसार विवाहकाल का समय माना गया है।मई 2013 से नवम्बर 2013 के मध्य आपका विवाह होते हुए देख रहा हूँ। मूंगा सवा पांच रत्ती धारण कर लें

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  5. respected sir, please tell me and oblige that she girl is Inauspicious for her parants as one astrologer told us. dob: 22/03/2013 time: 04.30 am Place Delhi

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  6. Any chilld on earth is a precious gift of God .The girl having "Punarwashu" nakshatr will bring the name of her family to the height.Keep my words.

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  7. प्रणाम गुरु जी,

    गुरु जी मेरी जन्म तारीख 27-11-1980, time:-5:00 PM है मेरा बीता हुआ समय और भविष्य बताने की कृपा करे . आप मुझे ये बताये की मुझे सरकारी नौकरी मिलेगी तो किस झेत्र में मिलेगी और कब मिलेगी .यदि मैं कोई व्यापार करना चाहू तो कोन सा व्यापार करू.

    धन्यवाद्

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    1. जन्म स्थान भी बताएं विजय ,और अपना प्रश्न स्पष्ट रूप से एक ही पूछें ,

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  8. पूज्य गुरुदेव प्रणाम गुरूदेव मैने आपको email भी भेजा है ।पर मै समझ सकता हूं कि आपके पास समय की व्यस्तता है। फिर भी मैं पुनः पूज्य गुरूदेव से प्रार्थना करूंगा कि मेरा मार्गदर्शन करें। गुरुदेव मेरा विवाह कब तक होगा कृपया मुझे बतलाने की कृपा करें। मेरी जन्म तिथी है--17-12-1981. 13:20 Baraut (U.P) ।गुरुदेव मैं प्रतीक्षा करूंगा ।

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  9. hello sir, my daughter's details are as follows name riddhi, dob = 22/11/2002 time 3.50am, place= mulund, mumbai. i will be obliged if u tell me are there any problems in her futuer related to her character, being a mother i am very much worried and concerned. hope u will understand my situation. waiting for your reply.

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  10. कन्या की कुंडली में राहू व चंद्रमा की युति माँ को इसी प्रकार के संशय के लिए मानी जा सकती है.अन्यथा तो कुंडली बेहतर ग्रहों के पूर्ण लाभ की ओर इशारा कर रही है,हाँ आयु बढने के साथ साथ आपको कन्या को अति आत्मविश्वास से बचाना बेहतर होगा ,अन्यथा शिक्षा प्रभावित हो सकती है.

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    1. Shriman Lalit ji, dhanyawad.... agar aapko meri kanya ki kundli jankar sambhavya sankaton ke likye jo bhi upay jaan padte hain to kripaya muze unki jankari dein ! Sada aabhari maa !

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  11. pranam guruji-- jab jab bhi dil vyathit hota hai, aur apne liye kuch rahat aur asha ki kirne dhudhne ke liye jyotish ko net sarfing se khangalne ki koshish karta hai. to jab jab koi dil ko chhune vali chije milti hai, mera aesa yakin hai, maine aesa atishyoktivash apki tarif karne ke liye nahi kah raha hu,balki vastvikta me 90% bar apki post hi samne aati hai. dil ko chuti hai apki post. apme dusro ke liye sarlata, sahjta aur samta hai. ap kuch bhi durav chipav nahi karte. gyan ko unmukt, vishudh pathko se sajha kar dete hai..ishwar ham sab pathko ki khub khub duaao se apko nawaje.....ap jaise gyani, saral,parhit katar vyktivo ki es vashudhra ko bahut bahut jarurat hai..jo apni nischhal, nishwarthta se har insan ka dil jit lete hai...aur uske dukh ko apna maan use dukh se niklne ka marg bhi batlane ka yathasambhav praytn bhi karte hai....guruji apki sundar posto ko pakhar mere dil apko aabhar dene ke liye swyam swisfurt ho gaya..guruji mere jiwan bhi es samay had se jyada behad dukhmay ho chuka hai...jiwan ki sari achchaiyo ki aur jane ke baad bhi dukh aur bad badkar mil raha hai.behad sharirik aur mansik santap hai. es jawani ki chadti bela me. jiwan ka har sukh behad kamjor hone lag gaya hai. apke kuch margdarshan ke liye bhi lalayit hai.taki es tutte, chalakte dil ko bhi kuch rahat mil jaye- mera nam- Rupesh devray, janm dinak- 03/03/1983,janm samay- 3.00am, esthan-barwani m.p. ----------dil ki asim bhavnao ke sath apko hamara dher saran prem aur sneh guruvar...aur rangpanchmi parv ki bhi apko aur apke pure parivar ko hardik shubhechhaye........

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  12. Plz, guruji mera thoda sa margdarshan kar de apka aabhari rahunga..

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  13. रुपेश जी ,बड़े ही मार्मिक अंदाज में आपने अपनी बात कही ,बहुत दिनों संभवतः जवाब का इन्तजार भी किया। भाग्यवश कल ही बदरीनाथ भगवान के चरणो में दिल्ली के अपने एक प्रिय क्लाइंट के पितृ दोष की शान्ति करा कर लौटना हुआ व आज कंप्यूटर महोदय ने जो पहला प्रश्न चयनित किया वो आपका ही है. धन व सफलता के विषय में यदि आपका प्रश्न है तो मैं इस प्रश्न को ख़ारिज करता हूँ। क्योंकि शनि का एकादश व गुरु का द्वादश होना इस कुंडली में अथाह धन के समीकरणों को पुष्ट करता है साथ ही शुक्र मंगल की दशम भाव पर दृष्टि आपको जीवन में उच्च पदस्थ करती है ,ऐसा प्रमाण प्रदस्त पृष्टभूमि से मिलता है। फिर दुःख क्यों भला ? रिश्तेदारी में विवाह आदि किसी प्रकार के आयोजन में शामिल होकर आएं हैं ,जहाँ सभी लोगों से काफी आत्मीयता बढ़ गयी ,व अब जब उनसे अलग होने का समय आया तो भावनाएं कचोटने लगीं।जरा अपनी माताजी के विषय में कोई जानकारी दे सकते हैं क्या? योगों को यदि भली भांति समझ पा रहा हूँ तो आप गर्भ में कस्तूरी छिपाए उस मृग के समान हैं जो कस्तूरी की सुंगंध की तलाश में न जाने कहाँ कहाँ भटकता है ,प्रमाण के लिए बताता हूँ की आप नाक सम्बन्धी किसी रोग ,एलर्जी से प्रभावित हैं। जिस समय आपने ये प्रश्न किया होगा वो पतझड़ के बाद का मौसम था व ऐसे में इस तरह की कुंडली वाले जातक थोड़े भावुक हो जाते हैं। फिर बीच में आप स्वयं ही व्यवस्थित हो गए होंगे किन्तु अब फिर से ये बैरन बरखा आपको व्यथित करने आ गयी है। समस्या क्या है जानते हैं? समस्या यही है की कोई समस्या ही नहीं है। बस आपकी भावुक प्रवृति ने आपकी मानसिक स्थिति को डिप्रेशन की और धकेलना आरम्भ कर दिया है। वक्री शनि की लग्न पर दृष्टि व विष योग का सृजन करना अकेलेपन का एहसास कराता है.सितम्बर से समय अनुकूल आ रहा है। उससे पूर्व ही पुखराज धारण करें पूर्ण प्राणप्रतिष्ठा के साथ। अकेले अधिक समय न गुजारें। चन्द्र-शनि का उपचार करें।अन्यथा भविष्य में अपने सुनहरे मौकों को मिस कर जाएंगे। हर किसी के दिल जीतने व बदले लाडला होने की आशा रखने की प्रवृत्ति पर लगाम लगाएं। भविष्य उज्ज्वल है। मायूस होने की आवश्यकता नहीं है। प्रभु आपके सहायक हों।

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  14. pranam guruji
    mer ek prasna hai .kripaya uttar dein to man mein santi ayegi.
    prasna yeh hai ki guruji jab saadi ke bad hamein bache ki jarurat hotihai to sastromein yeh lekh di gayihai ki sambhogh karne keliye kaunsa nakhyatra ,tithi aur samay hona chahiye.
    mera yeh prasna hai kya late relience owner mr dhirubhai ambani jo khud itne padhelikhe nahin the itne achhe bache kya kismatse prapt hue ya esehi manliyajaye.

    jo jitgaye is duniyanmein wo boltehein ki humne kiyahai aur jo na jitpaye wo dardarki thokar khakar ye samjhneki kosish karraheheinki kya ehi hamari manjilhai ,isse achha hum aur kuch kar nahin sakte.

    bahut log kuch bhala karneki soch rakhte hue bhi kuch nahin kar patehein. to meri yeh prasna hai apse ki jab bhagyako kisne dekha nahinhai to kaise koi maanleki wo bahut jyada ki ichha kar raha hai jabki kaha yeh jata hai ki chandki paaneki umeed rakhoge to hi kuch age jaoge agar jamin ki taraf umeed rakhogeto kuchbhi nahi paoge.

    mein kahin apko guruji uljhato nahin rahahun magar hamari hindun sanskutimein jyadatar do tarafkahi baat kahagayahai, jab bhagban gitamein ye kahtehein ki karm karo aur fal ki asha na karo jabki hum agar jyotish ki sahara leke kahin jyada falki asha nahin karrahehein?


    margdarshankarneki kripa karein . mein bahut ulajh gayahun in batomein. nikalna chahta hun kintu barbar ye meri mamein wapas ahijatehein ki hamari soch uparuthneki saari kosish nahin karni chahiye?

    pranam

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    1. आपका प्रश्न पूरी तरह से समझ नहीं आया। फिर भी जो अंदाजा लगा सका हूँ ,उसी के आधार पर आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा हूँ। जातक को जीवन देने के लिए आपके द्वारा किया जाने वाला प्रयास व्यर्थ है ,क्योंकि अपने जन्म का समय जातक अपने आगमन से पूर्व तय कर चुका है ,या कहें विधि द्वारा उसके लिए निर्धारित किया जा चुका है। कैसे किया जा चुका है ??ये प्रश्न जटिल है। शाश्त्र कहता है कि "रोगं शोकं दुःखं बन्धनम् व्यस्नानी च ,आत्मपराध वृक्षयस्य फलनेतानी तेहिनाम् "अर्थात आज हम जो भी दुःख सुख ,अच्छा बुरा देखते हैं ,ये हमारे ही लगाए वृक्षों का परिणाम फल है। आपने अम्बानी जी का उदाहरण दिया ,तो आपके प्रश्न का उत्तर स्वयं आपका ही प्रश्न है। उनके जन्म के लिए भला किसने आधार चुना था.…किसी ने नहीं अपितु स्वयं उन्होंने ही .... अब प्रारब्ध में मिलकर आपके आज के कर्म नीतियों को तय करते हैं। है कि कोई करना चाहता है किन्तु उसके पास सामर्थ्य नहीं है तो वो क्या करे। मेरा जवाब यही है कि वो करना ही इसलिए चाहता है क्योंकि उसके पास नहीं है … होता तो वो स्वयं को कहीं और ही उलझा कर रखता। क्या सेवा- धर्म- पुण्य मात्र धन द्वारा ही सम्भव है ,किसी लाचार बच्चे को दिन में आधा घंटा पढ़ा लेना पुण्य नहीं है ?? क्या किसी सार्वजनिक स्थान पर गर्मियों की दोपहर में पानी का एक घड़ा रख देना पुण्य नहीं है ??किसी विद्यालय में पढ़ने वाले गरीब बच्चों को दिन घंटा मुफ्त ज्ञान दे आना पुण्य नहीं है ?? पड़ोस में रहने वाले निस्सतान बुजुर्ग दम्पति का बिजली का बिल लेजाकर स्वयं जमा कर देना आप पुण्य नहीं मानते ?? सड़क में लाचार वघूम रही गाय को पानी पिला देना पुण्य नहीं है ?? क्या एक घायल लावारिस कुत्ते को सरकारी अस्पताल पहुंचा देना पुण्य नहीं माना जाएगा ?? वास्तव में पुण्य करने की इच्छा रखकर आप अंदरखाने स्वयं को संपन्न करने की लालसा रखते हैं और कुछ नहीं। ये और कुछ नहीं अपनी अंतरात्मा को धोखा देना है बस। अपने आसपास की सफाई रखना क्या पुण्य नहीं दिलवाता ??आपका अर्थ लम्बे चौड़े भंडारे कराकर अपनी सम्पन्नता का ढिंढ़ोरा पीटना ही पुण्य की श्रेणी में आता है मात्र ?मंदिर में सोने का छत्र दान करना ही पुण्य का काम है ??अपने बक्से में सड़ते ऊनी वस्त्र ठण्ड से ठिठुरते बालक को दे देना क्या आपको परमात्मा का प्रिय नहीं बनाता ??? शंकाएं मात्र इसीलिए हैं क्योंकि हमारी अंटी में दमड़ी नहीं है। । जिस दिन हो जाएगी ये प्रश्न गौण हो जाएंगे। अंतरात्मा को उल्लू बनाने का प्रयास हमें संपन्न नहीं होने देता .... मन शुद्ध कीजिये … जिस दिन ईश्वर आपको इस लायक समझ लेगा कि आप दान करने योग्य हैं उस दिन स्वयं आपकी झोली भर देगा।

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  15. Sir me rajpal chouhan mera janam tejpur Assam hua he 21.49 par 26.3.1997 ko mera prsan he ki me army me lieutenant banana chahta hu kya me bann sakta hu

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  16. Sir, Please let me know if there is any yog of government job in my birth chart.I have been trying hard for the past few years.
    My birth details -
    19.05.1990
    07:20AM
    Cuttack,Odisha.

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    1. मीडिया,जर्नलिज्म,फैशन,अथवा अध्यापन से सम्बंधित क्षेत्र आपके लिए शुभ हैं,,

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    2. मीडिया,जर्नलिज्म,फैशन,अथवा अध्यापन से सम्बंधित क्षेत्र आपके लिए शुभ हैं,,

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