सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

Remedies of Pitra Dosh... -पितृ दोष है क्या उपाय

सर्वप्रथम तो पितृ दोष का अर्थ जानना आवश्यक है.क्या है यह पितृ दोष ? पितरों द्वारा लगा हुआ कोई दोष,या हमारे द्वारा पितरों को लगा कोई दोष,या पितरों का कोई दोष जिसका भुगतान अभी तक नहीं हो पाया है?और जिस कुंडली में ये दोष विराजमान है वह किस अवस्था,किस परिमाण में व कितना है?
                               कानपुर की एक मोहतरमा ने मुझे सचेत किया की आपकी लेखनी बहुत साधारण किस्म की है . शब्दों का चयन उम्दा नहीं करते आप.तो सुलोचना जी आदर सहित अर्ज है की मैं अपने ब्लॉग को एक आम पाठक को ध्यान में रखकर लिखता हूँ.किसी साहित्यिक कृति की मेरी कोई मनसा नहीं है. .भाषा को जटिल बनाकर अपने शब्दजाल में पाठक को उलझा देना एक हुनर हो सकता है,किन्तु इसका कोई हासिल नहीं.कम से कम मेरी दृष्टि में तो नहीं.बात का अर्थ ही समझ में नहीं आया तो क्या फायदा.अब आप हिंदी भाषी हो सकती हैं,मैं हो सकता हूँ किन्तु हर पाठक हिंदी भाषा पर पकड़ रखे ,यह मुमकिन नहीं.अततः शब्दों के चयन में मुझे भी विशेष सतर्कता बरतनी होती है.पाठकों से अनुरोध है की अपनी किसी भी जिज्ञासा को ब्लॉग के माध्यम से ही पूछें .मैं मेल के जरिये अधिक सवालों का जवाब नहीं दे पता हूँ.और जवाब न देना की अवस्था में कई लोगों के कोप का भाजन भी बनना पड़ता है. थोडा मुद्दे से भटक गया मैं,माफ़ी अर्ज के साथ ही वापस पटरी पर लौटता हूँ .अस्तु.
                                    लग्नेश,सूर्य व चन्द्र का पाप प्रभावित होना ही साधारणतया पितृ दोष कहलाता है. इसके कई कारण हो सकते हैं.पिछले जन्म में माता पिता का किया गया अपमान.माता पिता या दादा दादी द्वारा गौ,कुत्ते या बिल्ली की हत्या,या इसी प्रकार के किसी कृत्य में उनका जाने अनजाने भागीदार होना, या परिवार में जातक के जन्म से पूर्व किसी की अल्प मृत्यु होना व उसका विधिवत संस्कार न होना.कारण कोई भी हो किन्तु यह स्पष्ट है की इसमें जातक के इस जन्म के कर्मों का कोई रोल नहीं है.ये दोष उसके जन्म से ही उसके साथ आया है,क्योंकि कुंडली उसके जन्म समय में ही बन चुकी है. 
                                         एक उदाहरण देता हूँ ,यदि किसी कुंडली में चंद्रमा ६-८-१२ भाव में है व सूर्य ग्रहण दोष दशम भाव में बना रहा है,या सूर्य की युति दशम भाव में शनि के साथ हो रही है(चंद्रमा का पाप प्रभावित 
होना आवश्यक है)तो बहुत संभव है की जातक के जन्म से पूर्व उसके परिवार में किसी स्त्री की अल्पमृत्यु हुई हो व उसका संस्कार विधिवत न हो पाया हो(बहुत संभव है की वह जातक के पिता की पहली स्त्री हो) .ऐसे जातक का स्वयम का स्वास्थ्य व संतान पक्ष प्रभावित होता है.एक अन्य उदहारण ले .यदि द्वादश में चन्द्र अथवा सूर्य पाप प्रभावित हो रहे हों व साथ ही नवम भाव दूषित हो तो जातक के घर में सब कुछ होते हुए भी शांति नहीं होती.
                    यदि जीवन में निरंतर समस्याएं आ रही हैं एवम कुंडली में किसी प्रकार का पितृ अथवा अन्य दोष नहीं हो रहा है,मसलन संतान का अचानक शिक्षा से ध्यान हट रहा है,या कन्या के विवाह के पश्चात उसके साथ समस्याएँ बढती जा रही हैं(जबकि कुंडली में लगभग २६ गुण जुड़ रहे थे ),या अचानक अब घर में पालतू जानवर जीवित नहीं रह पा रहे हैं,तो बहुत संभव है की अपने घर में होने वाली पूजा इत्यादि (श्राद आदि ) में जातक अपने गोत्र का सही उच्चारण नहीं कर रहा है.या तो उसे अपने गोत्र का सही ज्ञान नहीं है,या पहले से ही उसका गोत्र गलत निर्धारित हुआ है,व इस प्रकार कोई भी पितृ दान अपने सही गंतव्य पर नहीं जा रहा है,परिणामस्वरूप पितृ श्राद आदि से तृप्ति प्राप्त नहीं कर पा रहे.विवाह में अनावश्यक देरी ,मशीनों का अचानक बिगड़ जाना ,घर में पुत्र संतानों का न होना,इसके लक्ष्ण हैं .
                                  इसके उपचार हेतु नारायण बलि ,गया में पिंड दान,व कई अन्य उपाय शाश्त्रों में  वर्णित हैं,जो की कुंडली देख कर ही बताना उचित होता है.फिर भी सामान्यावस्था में अपने खाने के पहले तीन कौर निकालने चाहिए ,पितृ पक्ष में उचित दानादि करना चाहिए.मनुष्य के जीवन में पितरों का बड़ा महत्त्व है,अततः इस दोष को मात्र ढकोसला कह कर अनदेखा करना  कदापि उचित नहीं.याद रखें की अनहोनियाँ हमें ब्रह्माण्ड की अन्य शक्तियों का अहसास कराने के लिए ही होती हैं.
                                               " पितृ देवो भव:"

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