सोमवार, 13 जनवरी 2020

किस देव् की उपासना करूँ

कई बार पाठकों ने प्रश्न किया है कि गुरुजी कौन से भगवान अधिक पावरफुल हैं,,मुझे किस देवता को अपना आराध्य मानना चाहिए,,,,,शास्त्र किसकी उपासना करता है...अब मेरे जैसे सनातनी वैदिक ब्राह्मण से इसका उत्तर पाने की उम्मीद करना यह पूछना हो गया कि जीने के लिए क्या जरूरी है...या राजमा अच्छी दाल है या मलका,,,,सेब अच्छा फल है कि केला...आप ही बताइए कि ये तुलनाएं कैसे संभव हैं,,,ऐसे ही भला देवताओं की तुलना कैसे संभव है,,,एक ही शक्ति है जो भिन्न भिन्न रूपों में पूजी जाती हैं,,,सब का स्त्रोत एक ही है..जिसका कोई आकार नही,,कोई रंग नही,,कोई व्याख्या नही..
          बात जब वेदों की आती है तो हम देखते हैं कि ऋग्वेद अधिकतर इंद्र की स्तुति से भरा हुआ है,,,तीन चौथाई से अधिक मंत्र इंद्र को समर्पित हैं,,,बाकी में अग्नि वरुण व सूर्य का जिक्र है.…यजुर्वेद में भी कमोबेश यही स्थिति देखने को मिलती है.…व बाकी के अन्य वेद भी इसी स्थिति से गुजरते दिखाई देते हैं..फिर समय आता है पुराणों का...जहां शक्तियों को रूप में देखा गया है,,,पुराण में शिव,,विष्णु,,,कृष्ण,,आदि साकार रूप उपस्थित हैं,,तो एनेर्जी के रूप में सूर्य व अग्नि उपस्थित हैं...बड़ी हैरानी है कि वेदों में अग्रपूजनीय होने वाले इंद्र पुराणों में उपेक्षित हो चले हैं.... बाद के पुराणों में तो उनकी छवि भी कुछ दोषपूर्ण होती चली गयी है..ऐसा क्यों हुआ मेरे पास जवाब नही.….आज के पूजा पद्धति में  हम कह सकते हैं कि लगभग इंद्र को भुला ही दिया गया है,,उनका जिक्र नही के बराबर ही होता है..किन्तु एक शक्ति ऐसी है जो जितना प्रभाव वेदकालीन दौर में रखती थी,,उतनी ही महत्ता उसे पुराणों में भी प्राप्त है,,व आज के कर्मकांडों में भी उन्होंने अपना महत्व बनाये रखा है,,,वो हैं अग्नि व सूर्य....इनमे भी प्रत्यक्ष दिखाई देने के कारण सूर्य का अपना महत्व है..वे बड़ी प्रतिष्ठा के साथ आकाश पटल पर कायम हैं,,,व ज्योतिष व संसार संबंधी बहुत से नियमो को संचालित करते हैं....ऐसे के सूर्य की उपासना बेहतर रिजल्ट देने में सक्षम है ऐसा मेरा मानना है....तो कहिये जय हो सूर्य महाराज की....आप सभी को नवरात्रे की शुभकामनाएं...भगवती आप सभी के परिवारों की रक्षक रहें..(आजकल बद्रीनाथ जी मे पाठ में व्यस्त हूँ अतः आप लोगों से संवाद नही बना पा रहा हूँ,,क्षमा करेंगे)

दशम का सूर्य

..******  दशम का सूर्य****..
-----------------//-----------------//-----
    पहले स्वास्थ्य ,,पश्चात कार्यालय की व्यस्तता के कारण बहुत समय से आप लोगों की सेवा में उपस्थित नहीं हो पाया ,,जिस हेतु क्षमा प्रार्थी हूँ .ज्योतिष निरंतर शोध का विषय है,,,आप पुराने सूत्रों पर कुंडली मारकर ,वर्तमान में उन सूत्रों को किसी कुंडली से फलित करने की कोशिश करेंगे ,तो गच्चा खाने की संभावनाएं अधिक प्रबल हो जाती हैं ..अतः सूत्रों को नए वातावरण में ,नए नजरिये से परिभाषित करना बेहद आवश्यक हो जाता है..... 
         ग्रहों के राजा सूर्य को लेकर अमूमन बहुत सी किवदंतियां व भ्रांतियां चलन में हैं ......कालपुरुष में ये लग्न में उच्च व पंचम में स्वराषि होकर बेहद सम्मान पाकर प्रभावी माना जाता है ,और अमूमन इसी सूत्र को लेकर फलित किया जाता है .......थोड़ा पीछे जाने का प्रयास कीजिये ,,,ज्योतिष का आरम्भ वैदिक राजतंत्र काल में हुआ है ..ये वो कालखंड था जब राजा का बेटा राजा होता था व सामान्यतः  जातक का जन्म ही उसके कुल को तय करता था .....बृहस्पति के रूप में ब्राह्मणो को सम्मान तो बहुत प्राप्त था ,किन्तु  परोक्ष रूप से सत्ता में उनका दखल नहीं था ...सीधे सीधे कहें तो अपने पालन पोषण के लिए गुरु स्वयं सूर्य पर निर्भर था  ...ऐसे में लग्न का सूर्य ये निर्धारित करने में सक्षम था कि जातक अपने पूर्वजों के सम्मान से पोषित होकर राजकुल में जन्म ले रहा है ,,,तथा पंचम का सूर्य आपकी कुल परंपरा को आगे ले जाने वाला है ....यहाँ शिक्षा ,,नेतृत्व ,,ज्ञान आदि के बहुत मायने नहीं थे ....किसी सामान्य कुल के सस्दस्य द्वारा बहुत बड़ा आंदोलन कर ,,राजतंत्र को पलटने के किस्से सामान्यतः नहीं मिलते हैं ...अतः सूर्य निर्विध्न रूप से अपनी पितृसत्तामक सत्ता को कायम करके चलता था ....कालान्तर में [द्वापर बीत जाने के बाद ]  हम बृहस्पति चाणक्य द्वारा नन्द सूर्य को सत्ताहीन करने का एक बड़ा उदाहरण पेश कर सकते हैं ,,ऐसे कई और उदाहरण मिल सकते हैं ...ये सूर्य के प्रभावहीन होने का समय काल था ..सूर्य स्वाभाविक रूप से पूर्व दिशा का स्वामी है ..सूर्य के कमजोर होते ही पूरब पर अन्य दिशाओं से आक्रमण बढ़ने लगे ...विशेष रूप से सूर्य के नैसर्गिक शत्रु शनि की पश्चिम दिशा से ऐसे आक्रमणों की अधिकता देखन में आती है ,,,वह यूनान से सिकंदर हो अथवा ब्रिटिश सेनाएं ...देश के विभाजन के बाद पश्चिम से किंचित राहत सूर्य को प्राप्त हुई तथा पूर्व तथा उत्तर के सपोर्ट से पुनः सूर्य को अपना सामार्ज्य स्थापित करने में सहायता प्राप्त हुईं .उत्तर से आये नेहरू व पूर्व से आये राजेंद्र प्रसाद जी के रूप में पूर्व स्थापित इस राष्ट्र को अपना संविधान प्राप्त हुआ ... किन्तु पश्चिम के इतने वर्षों के आक्रमण का फल ये हुआ की सूर्य अपना नैसर्गिक बल अथवा कहें कार्यप्रणाली भूल गया ..वह पश्चिम के क़दमों पर चलने लगा .....आज भी भारत की राजनीति को आप यूरोप ,,अमेरिका के पदचिन्हों पर चलने का प्रयास करते देखेंगे अथवा पश्चिमी दिशा में बसे  पाकिस्तान के इर्द गिर्द ही इसे घूमता पाएंगे ...यहीं से सूर्य के कार्य करने के तरीके के अंतर आने लगा..धीरे धीरे भारत मे प्रजातंत्र मजबूत होने लगा व राजशाही का लगभग अंत हो गया,,,अब सूर्य तो राजा है,,राजशाही का अंत हुआ तो भला सूर्य स्वयं का वजूद कैसे स्थापित करता...अतः सूर्य राजतंत्र को त्याग राजनीति की ओर अग्रसर हुआ,,किन्तु एक राजा के रूप में नही,अपितु एक सेवक के रूप में..शनि का प्रभाव अभी तक सूर्य पर स्पष्ट देखा जा सकता है..जैसा कि ज्योतिष के जानकार जानते हैं कि शनि भृत्य(नौकर )का स्थान रखता है...ऐसे में जनसेवक कहलाने वाले नेता ही प्रजातंत्र के राजतंत्र में वास्तविक अधिकारी बन बैठे..सत्ता का केंद्र भी दिल्ली (पश्चिम) बन बैठा...ऐसे में सूर्य जो कि मेष में उच्च होते थे,,वे मेष के बदले मकर में बल पाने लगे..पाठकों को भली भांति ज्ञात है कि जो सम्मान मकर की संक्रांत को प्राप्त है वह मेष की संक्रांत को नही है..अतः लग्न व पंचम के सूर्य के मुकाबले दशम का सूर्य अधिक प्रभावी होने लगा...कुंडली विवेचन के दौरान नए अभ्यासी ज्योतिषियों बंधुओं को देखने मे आएगा कि दशम का सूर्य परोक्ष व अपरोक्ष रूप से सरकार से जातक को जोड़ता आया है..अगर इसी सूर्य को शनि का बल भी प्राप्त हो रहा हो,,तो छत्रभंग का निर्माण करते हुए यह तय करता है कि यदि जातक परिवार अथवा  पिता से दूर रह पाएगा तो सत्ता में सीधे पैठ बना पाने के सक्षम होगा,,जितना जातक अपने भीतर भृत्य(सेवक) होने की भावना प्रबल करेगा,,उतनी तीव्रता से वह सत्ता की शक्ति प्राप्त करेगा...जितना अधिक वह अपने नैसर्गिक राजा होने के भाव को प्रदर्शित करेगा,,सत्ता व राजतंत्र से दूर होता जाएगा....इसी अनुपात में  हम देखें तो पंचम पिता की हानि है..यह दशम से अष्ठम पड़ने वाला भाव है..पिता के लिए दुर्योग उत्पन करने वाला...ऐसे में पंचम का सूर्य पिता के साथ कोई बड़ी दुर्घटना तय कर देता है,,किन्तु स्वयं का भाव होने से ये भी देखने मे आता है कि जातक पिता के विभागों में पिता के बाद जुड़ जाता है..इस सूर्य पर किसी पाप ग्रह का प्रभाव हो तो पिता के साथ कई बार बड़ी दुर्घटनाएं भी होती देखी गयी हैं..
           दशम से किसी भी प्रकार सूर्य का संबंध बन रहा हो तो सूर्य का रत्न माणिक धारण करने से बचना चाहिए..इसका प्रभाव शनि को प्रभावित करता है,,परिणास्वरूप जो लाभ शनि के भाव दशम में बैठा सूर्य दे रहा होता है वह गड़बड़ाने लगता है....पंचम में सूर्य हो तो माणिक धारण करना शुभ फलदायी होता है..
        लेख के प्रति आपकी अमूल्य राय से अवश्य अवगत कराएं..शीघ्र नए लेख के साथ प्रस्तुत होने के वचन के साथ विदा लेते हुए आप सभी सुधि पाठकों के श्री चरणों मे मेरा प्रणाम पहुंचे..

क्यों प्रभावित है रोजगार

*** ---क्यों प्रभावित है रोजगार..**
---------------------/------------------/------------
       कर्म भाव से संबंधित सिद्धांत बहुत  से नियमों के अधीन होकर कार्य करते हैं..विवाह हेतु कुंडली मिलान करते समय ,जिम्मेदार गणक के लिए यह भी एक विशेष पहलू है,जिसे ध्यान में रखना अति आवश्यक है..सामामयतः देखा गया है कि जातक अपने कर्मेश(दशम भाव अधिपति),अथवा उसे प्रभावित कर रहे ग्रह के सहयोग से ही अपने कार्य व्यवसाय में सफलता पाता है..किन्तु यहां ध्यान दिए जाने वाला सूत्र यह है कि  जातक के जीवनसाथी का भाव अर्थात सप्तमेश अमूमन उसके नवमेश का शत्रु होता है..कितना अचंभा है कि विवाह हेतु सप्तम भाव को पुष्ट करने हेतु षोडशवर्ग के जिस भाव ,नवांश को इतना अधिक महत्व दिया जाता है,,जन्म लग्न चक्र में ये दोनों (सप्तमेश व नवमेश) सामान्यतः एक दूसरे के सहयोगी नही होते हैं...वहीं दूसरी ओर सप्तमेश व दशमेश(कर्म भाव का अधिपति) सामान्यतः एक दूजे को सहयोग करने को तैयार होते हैं...क्या यही कारण होता होगा कि जिन जातकों ने अपने जीवन साथी को अपने कार्यालय अथवा कार्य व्यवसाय में अधिक इन्वॉल्व कराया,,उन्होंने सफलता की सीढ़ियां सहजता से लांघी..और जिन्होंने जीवन साथी को भाग्य का पूरक मानकर ,,घर मे बैठाया,,,उन्हें किंचित संघर्ष अधिक सहना पड़ा...
             सामान्यतः मेरे देखने मे आया है कि जातक के विवाह के बाद जातक की दशमांश कुंडली के आपरेट करने के तरीक़े में आश्चर्यजनक बदलाव आने लगते हैं...ऐसे में कई बार प्रश्न आता है कि मेरा कार्य व्यवसाय ठीक से नही चल रहा,, अथवा मेरे धंधे में बरकत रुक गयी है,,,जबकि जातक की ग्रह दशा उसके अनुकूल चल रही होती है,,फौरी तौर पर देखने मे किसी प्रकार की कोई समस्या कुंडली मे नही दिखाई दे रही होती...ऐसे में जातक के जीवन साथी की कुंडली देखना आवश्यक हो जाता है...बहुत बार देखने मे आता है कि धर्मपत्नी जी के सप्तमेश को नेगेटिव रूप से प्रभावित कर रहे ग्रह की दशा अंतर्दशा में ,जातक के अपने धंधे प्रभावित होने लगते हैं,, जबकि उसकी अपनी दशाएं बहुत अधिक विपरीत संकेत नही दे रही होती हैं...ऐसे में अगर ज्योतिषी जातक के जीवन साथी की कुंडली प्राप्त नही कर पाता,, तो उसका संशय स्वयं की गणनाओं पर होने लगता है... वह अपने सूत्रों को बार बार खंगालता है,,,बार बार अपने क्लाइंट के लिए किए जा रहे उपायों में बदलाव करता है,,किन्तु मनमाफिक रिजल्ट नही पाता...परिणामस्वरूप क्लाइंट व ज्योतिषी,,दोनो का विश्वास ज्योतिष से डगमगाने लगता है..
     पुरुष व स्त्री विवाह के पश्चात अर्धनारेश्वर का रूप माने गए हैं...ऐसा संभव नही कि यदि स्त्री की कुंडली मे सप्तमेश गोचरवश पीड़ित हो रहा हो तो पुरूष का जीवन सहजता से चल रहा हो..ऐसा होना कतई संभव नही ...अतः ज्योतिष बंधुओं को चाहिए कि जातक के कर्म भाव को फलित करने से पूर्व ,,एक दृष्टि जातक के जीवनसाथी की कुंडली पर भी डाल लें..तब ये प्रश्न करने की आवश्यकता नही होगी कि जातक की कुंडली मे कोई समस्या पकड़ में नही आ रही,,तब भी उसका व्यवसाय क्यों चौपट हुआ जा रहा है...

कुम्भ लग्न में कौन सा रत्न धारण करें

**** -- कुम्भ लग्न में कौन सा रत्न --**
-------/-------/--------/------------/-----------
                कल मुझे एक अनजान ज्योतिषी (?) का फोन आया,,वो जानना चाहता था कि कुछ समय पूर्व मैंने कुम्भ लग्न की एक कुंडली की विवेचना के दौरान एक क्लाइंट को कोई भी रत्न न पहनने की सलाह दी थी...संयोग से वह क्लाइंट इन ज्योतिष महोदय का भी परिचित है तो कभी कहीं किसी बैठक में दोनों की चर्चा चल पड़ी...क्लाइंट ने बताया कि उसे कोई भी रत्न न पहनने की सलाह मेरे द्वारा मिली है,,तो ज्योतिष महोदय का प्रश्न था कि कौन ऐसा मूर्ख पंडित है जो ऐसी सलाह दे रहा है,,और बाकायदा वो ये बात फोन पर मुझे कह रहे थे....दो मिनट की चर्चा के दौरान ही मेरे लिए ये भांपना काफी था कि ये फ़ेसबुक विश्वविद्यालय व व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से पढ़े हुए वो शौकिया सज्जन हैं ,,जिनके पुस्तकालय में 50 रुपये की आओ ज्योतिष सीखें ,नामक पुस्तक रखी होगी,,और उसी बूते पर ये महाशय इतना फड़फड़ा रहे हैं...नित्य ही ऐसे कई शौकिया ज्योतिषी देखता ही रहता हूँ...पर आश्चर्य होता है  जब वो अपनी उटपटांग थिओरी उस इंसान पर लादते हैं जो ज्योतिष का विधिवत आचार्य होकर पिछले पंद्रह सत्रह वर्षों से पचासों विद्यार्थियों को ज्योतिष की शिक्षा दे चुका है,,,अनगिनत लेख दे चुका है....जिसकी सलाह से लाभान्वित होकर अनेकों क्लाइंट देश विदेश से समय समय पर आभार व्यक्त करते रहे हैं..अब समय का अभाव कहें या हिम्मत हारना,,किन्तु ऐसे लोगों से बहस की मेरी कोई इच्छा नही होती..क्यों समय खपाया जाय..खैर जाने दीजिए....
           कुम्भ लग्न पर अपने ब्लॉग में पूर्व में भी चर्चा कर चुका हूं...ये शुक्र को मास्टर प्लेनेट के रूप में आपरेट करने वाला लग्न है..अब शुक्र जैसा कि आप सुधि पाठक जानते हैं भौतिक सुख सुविधा प्रदान करने वाला ग्रह है तथा भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति के लिए धनः की आवश्यकता होती है..धनः ,,जैसा कि ज्योतिष के जिज्ञासु जानते हैं,,कुम्भ लग्न में ये गुरु के अधीन का विषय होता है..और सामान्य मैत्री चक्र में गुरु व शुक्र नितांत शत्रु ग्रह माने गए हैं..अब भला अपने भावों से प्राप्त धनः(?) को गुरु क्योंकर शुक्र के हवाले करने लगा..
             वास्तव में धनः का अभिप्राय जो लोग करेंसी से लगाते हैं,,उनके गच्चा खाने का चांस अधिक होता है..धनः एक विस्तृत विषय है जिसके अधीन बहुत से कारक होते हैं..हर ग्रह के लिए धनः का अभिप्राय भिन्न होता है...मंगल के लिए धनः का अर्थ भूमि है,,,बुध के लिए इसे पैसे के रूप में देखा जाता है,,,गुरु के लिए ये मानसिक शांति को अभिरूपित करने वाला विषय है..सूर्य के लिए ये सत्ता की प्राप्ति है व शनि के लिए विषय विशेष में दक्षता हासिल करना ही धनवान होना है..
                  जिन सज्जन का जिक्र ऊपर किया था मैंने,,वे नगर निगम में इंस्पेक्टर हैं,,,जिनके पास एक  सुंदर धर्मपत्नी जी व पुत्रियों का भरा पूरा संसार है..शानदार मकान व वाहन की प्राप्ति है...कुम्भ लग्न की कुंडली मे ,,योगकारक शुक्र पंचम त्रिकोण में बैठकर पूर्ण बली है ,,व नवांश में भी बेहद सकारात्मक है...इस सकारात्मकता का परिणाम हम जातक के सुखी जीवन के रूप में देख सकते हैं.....अब ज्योतिष महोदय उन्हें डायमंड पहनाना चाहते हैं....मैंने पूछा मित्रवर,,इससे क्या हासिल होगा...डायमंड से आप क्या बदलाव लाना चाहते हैं..तो महाशय बोलते हैं कि इससे इनकी लक्सरी में बढ़ोतरी होगी....अरे भाई,,लक्सरी में बढ़ोतरी के लिए स्वाभाविक रूप से धनः चाहिए....जो जातक सरकारी नौकरी में है,,उसे अचानक धनः कैसे प्राप्त होने वाला है भला??उसे तो सालाना आधार पर फिक्स इंक्रीमेंट आदि प्राप्त होने हैं...हाँ वो कोई व्यापारी होता,,अम्बानी अडानी जैसा,,तो हम उसके व्यापार में अभूतपूर्व उछाल की कामना कर सकते थे...किन्तु एक सरकारी नौकर जो महीने की पगार पर निर्भर है,,वो भला कहाँ से अधिक धनः प्राप्त करेगा...स्वाभाविक रूप से आप उसे ऊपरी कमाई के लिए उकसाना चाहते हैं...शानदार बीवी के अलावा आप उसे विवाहोत्तर संबंधों की ओर धकेलना चाहते हैं....एक जातक जो समाज मे मान सम्मान के साथ जी रहा है,,आप उसे अधिक भोगी प्रवृति की ओर धकेलना चाहते हैं...एक मिठाई जो हलवाई द्वारा पहले ही एक संतुलित आकार व स्वाद प्राप्त कर चुकी है,,आप उसमें और मीठा डालकर उसका बेड़ा गर्क करना चाह रहे हैं..
         कुम्भ एक ऐसा लग्न है,,जिसमे रत्न धारण हेतु बहुत से समीकरणों को ध्यान में रखना पड़ता है..इसमें गलती की कतई गुंजाइश नही हो सकती...यहां धनः को मजबूत करने के लिए यदि आप जातक को पुखराज धारण करा रहे हैं,,तो वास्तव में आप उसे वैराग्य के लिए उकसा रहे हैं,,,पारिवार की ओर से लापरवाह कर रहे हैं..सामान्यतः आप कुम्भ लग्न के जातकों को धीर गंभीर,,,सेल्फ ओरिएंटेड ,,रिज़र्व नेचर का,,, कम बोलने बतियाने वाला,,एक शांत आचार व्यवहार का जातक देखते हैं....कारण वही है,,आय व धनः दोनो  का गुरु से प्रभावित होना...और गुरु के लिए धनः का अर्थ मानसिक शांति है..यही कारण है कि गुरु की मीन राशि मे शत्रु होकर भी शुक्र उचत्व को प्राप्त होते हैं...भोग विलास को लगाम लगती है व वह सात्विकता पाता है,,वहीं मित्र बुध की राशि कन्या में शुक्र नीच का प्रभाव देने लगता है..शुक्र सबसे काइयां ग्रह है,,सबसे शातिर.... इसी कारण एक आंख वाला ग्रह है...सामान्य व्यवहार में एक आंख बंद करना,,शातिरपने की निशानी माना गया है...देखिए न जिस गुरु से खुलेआम दुश्मनी निभाता है,,उसके घर (मीन) में आते ही चोला बदल संत बन जाता है...इससे अधिक शातिरपन भला और कहां देखने को मिल सकता है...
          रत्नों में बहुत शक्ति होती है मित्रों....ये जातक को अर्श व फर्श दोनो पर ले जा सकते हैं....अतः मात्र सुनी सुनाई बातों कि केंद्र त्रिकोण का रत्न धारण करना शुभ होता है,,इन बातों से परहेज करना चाहिए..ये बहुत बेसिक बातें हैं जो समझाने के लिए पुस्तकों में लिखी होती हैं..किन्तु इसका अर्थ गूढ़ होता है...बुखार में पैरासिटामोल खाया जाता है,,ये अमूमन हर कोई जानता है,,किन्तु मरीज की आयु देखकर इसकी मियाद घटाई बढ़ाई जाती है,,,,कई रोगों में पैरासिटामोल से परहेज किया जाता है,,इसकी अधिकता लिवर को खराब कर सकती है..ये बात एक चिकित्सक बेहतर तरीके से जानता है,,इसी कारण बिना मरीज देखे,,दवा नही लिखता..इसी प्रकार फर्जी पुस्तकें पढ़कर ,,रत्न संबधी सलाह देने से बचना चाहिए...ज्योतिष आपके लिए शौक का विषय हो सकता है किंतु जातक का जीवन आपकी एक गलत सलाह से बर्बाद हो सकता है..अतः बेशक इसका शौकिया अध्ययन कीजिये,,किन्तु यदि आप ज्योतिष के विधिवत विद्यार्थी नही हैं तो आपसे हाथ जोड़कर विनती है कि औरों को सलाह देने से बाज आइये..
         अपने विचारों से अवश्य अवगत कराइये...नववर्ष आपके लिए भगवती के आशीर्वाद से नई सौगातों से भरपूर हो,,ऐसी कामना के साथ आप सभी पाठकों के श्री चरणों मे मेरा प्रणाम पहुंचे.... सादर प्रणाम..