शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

बुध,अस्थमा,तुलसी व चिकित्सा

आज  फिर से बात करता हूँ  उस ग्रह की जिस के बारे में ज्योतिष में सबसे कम जिक्र होता है.यानि की बुध .नाम के ही अनुसार बुध वाणी और बुद्धि का प्रतिनिधि ग्रह माना गया है.चीजों को बैलेंस करने का कार्य बुध ही करता है.रोगों का इलाज भी बुध ही के पास होता है.बुध की तासीर गर्म होती है.यह सूर्य के सर्वाधिक नजदीक का ग्रह है,अततः सूर्य के प्रभाव में सबसे ज्यादा रहता है व जाहिर तौर पर सूर्य की गर्मी को सबसे ज्यादा सहन करता है.
                                                      शरीर में श्वांस का कारक बुध ही है.गुरु शरीर में प्राण डालता है,किन्तु उन प्राणों को चलाने वाली वायु का कारक बुध ही है.प्राण को जीवित रखना बुध ही का कार्य है.देखा होगा आपने की सूर्य की रौशनी में पौधों द्वारा अपना भोजन बनाने की प्रक्रिया( जिसे की विज्ञान की भाषा में फोटोसिन्थेसिस कहते हैं )के साथ साथ हरे रंग के पौधे आक्सीजन पैदा करने का कार्य भी करते हैं.इस दौरान वो बुध ग्रह से प्राप्त रश्मियों को अपने पत्तों द्वारा सोख कर तने की सहायता से पौधे के अन्दर भेजते हैं.हरे रंग के पत्ते पौधे की त्वचा हैं.इसी प्रकार शरीर में त्वचा को बुध से जोड़ा जाता है.त्वचा से सम्बंधित सभी समस्याएं बुध से जुडी मानी जाती हैं.ध्यान दें की रात के समय पेड़ों के नीचे सोने से मना करने का अर्थ यही होता है की रात में पौधों को बुध की सहायता प्राप्त नहीं होती प्राण वायु बनाने हेतु.  
                                                      बुध की मिथुन राशि पर सूर्य के आते ही गर्मी अपने चरम पर पहुँच जाती है,व सूर्य के चंद्रमा की जलीय राशि पर आते ही भरपूर बरसात होने लगती है.(ऋतुओं का संवाहक सूर्य ही है.)अपनी राशि पर प्रवेश कर सूर्य धरती में समा रहे जल को अपनी प्रचंड गर्मी से खराब कर उसमे विकृतियाँ पैदा करने लगता है.(जरा गौर करें की इन दिनों पानी से होने वाली बीमारियाँ बढ जाती हैं.)व सूर्य के फिर से बुध की कन्या राशि पर आते आते त्वचा से सम्बंधित रोगों में बेतहाशा वृधि हो  जाती है
                                                 बुध प्राण वायु का संवाहक है.इसी कारण अस्पतालों में आपरेशन आदि के समय डाक्टरों द्वारा हरी चादरों ,हरे मास्क आदि का उपयोग किया जाता है.यहाँ वे जाने अनजाने बुध के प्रभाव को ही बढाने का प्रयत्न करते हैं.क्योंकि उनका मुख्य मकसद रोगी के प्राणों की रक्षा करना ही होता है.साथ ही बुध चीजों को बैलेंस करने का कार्य करता है.  किसी भी शल्य क्रिया के दौरान मुख्य रूप से दो ग्रह ओपरेट करते हैं.एक उग्रता और जल्दबाजी देने वाला रक्त का कारक मंगल व एक चीड फाड़ का कारक शनि. आप्रेसन में यदि मंगल अधिक प्रभावी हुआ तो चिकित्सक जल्दबाजी में गलत निर्णय ले सकता है और यदि शनि प्रभावी हुआ तो आपरेशन में जरुरत से ज्यादा समय लग सकता है,दोनों कारणों से रोगी की जान के लाले पड़ सकते हैं ,इस अवस्था को नियंत्रित करने के लिए हरे रंग की वस्तुओं यानि बुध के प्रभाव को ही उपयोग में लाया जाता है.ध्यान दें की लाल रंग में यदि काला मिला दिया जाय तो हरा रंग ही बनता है.बरसात के मौसम में जब हरियाली अपने चरम पर आ जाती है तो बुध पूर्ण प्रभावी होकर त्वचा से सम्बंधित रोगों को फ़ैलाने लगता है.
                                                 बुध जब भी वक्री होता है अर्थात धरती के अधिक नजदीक होता है तो आप यकीन मानिए उस दौरान पैदा होने वाले जातकों को सांस से सम्बंधित रोग जैसे अस्थमा आदि होने की संभावनाएं बहुत ज्यादा होती हैं.त्वचा के रोग ऐसे लोगों को अधिक होते हैं.बरसात के मौसम में जब चारों तरफ हरियाली ही हरियाली होती है तो अस्थमा के रोगियों की समस्या बढ़ जाती है.जिस दिन भी दोपहर में बादल लग जाते हैं तो बुध से आने वाली रश्मियाँ पूरी तरह से धरती पर नहीं पहुँच पाती व पौधों द्वारा प्राणवायु(ऑक्सीजन) के निर्माण में कमी आ जाती है.परिणामस्वरूप रक्तचाप के मरीजों व अस्थमा के मरीजों की समस्या बढ़ जाती है.आज समझ में आता है की सालों पहले मेरे पूज्य दादाजी क्यों आसमान में बादल देखते ही बैचैन होने लगते थे.क्यों उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने लगती थी.
                                          पौधों में सबसे ज्यादा पारा तुलसी के पौधे में पाया जाता है.इसी कारण बुध के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए तुलसी की सेवा की जाती है.तुलसी के पौधे के संपर्क में आप जितना ज्यादा रहते हैं अस्थमा की समस्या में उतनी राहत पाते हैं.तुलसी की चाय पीने से सांस पर किसी भी प्रकार का अवरोध पैदा कर रहा कफ़ बलगम आदि तुरंत समाप्त हो जाता है.तुलसी का लेप सभी प्रकार की त्वचा की बीमारियों पर राहत पहुँचाने का काम करता है.इसलिए आमतौर पर आपने बुध की शांति हेतु पंडित जी को तुलसी पर जल चढाने की सलाह देते सुना होगा.वाणी पर नियंत्रण होने के कारण जब भी बुध दूषित होता है तो तोतलापन ,या किसी विशेष शब्द के उच्चारण में असुविधा जातक में देखी जा सकती है.तो देखा आपने जिस ग्रह को सबसे कम महत्ता प्राप्त है वो ही वास्तव में कितना महत्वपूर्ण है.
                                        शास्त्र बुध के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए हरी वस्तुओं का दान व पन्ना धारण करने की सलाह देता है.बुआ की सेवा करना भी बहुत लाभकारी माना गया है. जानवरों को हरा चारा ,चिड़ियों को हरे मूंग की दाल आदि देने का चलन काफी पुराना है.

13 टिप्‍पणियां:

  1. Respected sir pranam,

    pandit ji my friend dob 24/01/1981 at 6.25 am Place Delhi is very mentally distrubed and facing mentally attack from time to time. Kindly observed and provide the solution to escape this acute problem. we will be very grateful of you.

    Akash Kumar

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    1. ऐसा कोई बहुत बड़ा योग तो कुंडली में नहीं दिखायी पड़ रहा ,किन्तु सूर्य द्वारा बनाने वाला ग्रहण योग व रोगेश का लग्न को प्रभावित करना इस के कारण के रूप में देखे जा सकते हैं.जरा ये बताएं कि क्या ये आपने बाल छोटे छोटे रखते हैं?

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    2. पंडित जी पहले ये बाल लम्बे रखता था पर अब मध्यम ही रखता हे. पंडित जी इनके पिताजी ने जब एक ज्योतिष को पत्री दिखाई तो उनोहोने बताया था काल शार्प दोष हे अष्टम का रहू मृत्यु दे सकता हे. आप बताये क्या ऐसा हे

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    3. क्या इन्होने घर में कुत्ता पाल रखा है जिसे ये कभी कभी छत में बाँध कर रखते हैं .

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  2. नहीं पंडित जी ये कुत्ता नहीं पालते हे

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    1. पंडित जी आपके उतर की प्रतीक्षा हे कृपया करे

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    2. मकर लग्न की कुंडली बनती है व राहु की उपस्थिति अष्टम में न होकर सप्तम भाव में प्रमाणित होती है. मारक होकर सूर्य देव लग्न में है व चंद्रमा अष्टम भाव में बैठ कर उनसे षडास्तक दोष बनाते हैं .राहु लग्न को प्रभावित कर रहे हैं .समस्या फरबरी 12 से अधिक महसूस हुई होगी .किसी भी प्रकार के गहरे रंग के वस्त्रों से परहेज करें .प्रातः सूर्य को अर्ध्य दें व सुबह की ओस पर नंगे पैर चलें .किसी भी प्रकार का तामसी भोजन न करें .सोते समय सिर दक्षिण दिशा की ओर हो. फिरोजा या ओपल रत्न धारण करें . सोमवार के व्रत रखें . सिर में रक्त का प्रवाह अधिक हो रहा है जो संतुलन बिगाड़ रहा है. इन उपायों को नियम से करें साथ की डाक्टरी .चिकित्सा में कदापि लापरवाही न करें .भैरव नाथ की कृपा से सब कल्याण होगा.

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  3. गुरुदेव प्रणाम, गुरुदेव एक बच्चा मानव जिसका जनम १७.०१.२०१३ तो समय ११.४८ p M डेल्ही में मूल नक्षत्र के स्वाति प्रथम में हुआ था जिसकी इसके माता पिता ने विधिवत पूजा भी करा ली थी परन्तु ये लगातार बीमार रहता हे और अब इसकी बीमारी ज्यादा बढती जा रही हे. कारन और उपाय दोनों बताने की कृपया करे.

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    1. प्रबल अकारक मंगल की पंचम भाव में लग्नेश व द्वादशेश से युति उदर रोग के कारण के रूप में देखि जा सकती है .एक बार बालक को लीवर या किडनी की जांच को भॆजिये .बालक का हाथ लगाकर हर मंगलवार मीठा दान कराएँ .तुलसी की पत्ती का लेप बनाकर बालक को माथे व नाभि में गोल टीका लगायें .प्रभु की कृपा से सब शुभ होगा . बालक का जन्म नक्षत्र स्वाति न होकर रेवती का प्रमाण मिलता है .

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  4. नाम भुवनेश
    जन्म तिथि 12 /04 /1986
    जन्म समय 2 :31 PM

    पण्डित जी मेरा एक प्रशन है मेरे जीवन में अभी तक बहुत परेशानी आती रही है। और आज भी जॉब (नौकरी) नहीं मिल पाई है २ साल हो गए है क्या मेरा जीवन यू ही परेशानी में चलेगा ?
    Q 1 नौकरी कब मिलेगी ? अच्छी नौकरी का योग कब बनेगा ?
    Q 2 शादी का योग कब से है पत्नी कैसी होगी ?
    कृपया उत्तर अवस्य प्रदान करे !!

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