...कई बार मन मे ये प्रश्न जिज्ञासु ज्योतिषी भाइयों के आया होगा कि यदि चतुर्थ माँ का भाव है ,,तो इससे पूर्व तृतीय भाव भला सहज(भाई बहन) का भाव कैसे है ..आपने देखा होगा कि चतुर्थ माँ का भाव है,,,किन्तु तृतीय भाव को सहज(सहोदर) का भाव कहा गया है,,क्यों भला,,,,,क्या माँ पहले हासिल हुई अथवा सगे भाई बहन...कायदे से माँ का भाव पहले आना चाहिए,,तत्पश्चात सहज भाव की कल्पना होनी चाहिए,,,
किन्तु होता इसका उलट है......चतुर्थ माँ का आँचल है पाठक वृन्द,,,,किन्तु तृतीय माँ का गर्भ है,,,,,तृतीय में पला डिम्ब ही चतुर्थ में आकार पाता है,,माँ की कोख ही वह स्थान है जहां अपने सहोदरों के साथ जातक रहा है,,इसी कारण ये सहज भाव है,,,,किन्तु वास्तव में चतुर्थ के लिए भूमि है,,,चतुर्थ नामक वृक्ष इसी भूमि पर अंकुरित हुआ है,,,कोई भी भाव अपने से अगले भाव के लिए भूमि का आधार समान कार्य करता है,,,या कहें कोई भी भाव अपने से पिछले भाव का फल है....
इसी प्रकार दशम पिता की गोद है,,किन्तु नवम पिता का वीर्य है,,,,नवम का अंकुरित बीज ही फल के रूप में दशम है...यूं समझिए कि एक पर्दे के पीछे का हिस्सा है व एक वो चलचित्र है जो सामने दिखाया जाता है...हर भाव के आपरेट करने के कई प्रकार होते हैं,,,,बीज- भूमि -फल...ये ही रिश्ता हर भाव का अपने आगे पीछे के भाव से राहत है....आशा है अपनी बात आप तक पहुंचा पाया ....प्रणाम
किन्तु होता इसका उलट है......चतुर्थ माँ का आँचल है पाठक वृन्द,,,,किन्तु तृतीय माँ का गर्भ है,,,,,तृतीय में पला डिम्ब ही चतुर्थ में आकार पाता है,,माँ की कोख ही वह स्थान है जहां अपने सहोदरों के साथ जातक रहा है,,इसी कारण ये सहज भाव है,,,,किन्तु वास्तव में चतुर्थ के लिए भूमि है,,,चतुर्थ नामक वृक्ष इसी भूमि पर अंकुरित हुआ है,,,कोई भी भाव अपने से अगले भाव के लिए भूमि का आधार समान कार्य करता है,,,या कहें कोई भी भाव अपने से पिछले भाव का फल है....
इसी प्रकार दशम पिता की गोद है,,किन्तु नवम पिता का वीर्य है,,,,नवम का अंकुरित बीज ही फल के रूप में दशम है...यूं समझिए कि एक पर्दे के पीछे का हिस्सा है व एक वो चलचित्र है जो सामने दिखाया जाता है...हर भाव के आपरेट करने के कई प्रकार होते हैं,,,,बीज- भूमि -फल...ये ही रिश्ता हर भाव का अपने आगे पीछे के भाव से राहत है....आशा है अपनी बात आप तक पहुंचा पाया ....प्रणाम
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