रविवार, 27 मई 2018

राहु....

*****राहु *********
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          राहु एक क्रिया का नाम है..इसे आप किसी रूप में खोजेंगे तो निराशा हाथ लगेगी...ये हर जगह है ,किन्तु कहीं नहीं है..आम का वो स्वाद जिसे आप परिभाषित नहीं कर सकते..राहु ही है..बहुत तेज प्यास के बाद पानी से जो तृप्ति प्राप्त हुई वो राहु है...किसी लाचार को देखकर जो दया आई वो राहु ही है...सचिन के सेंचुरी मारते हुए देखने पर जो आनंद प्राप्त हुआ वो राहु है...दवा का जो कड़वा स्वाद है वो राहु है...अतः ऐसा कुछ भी जिसकी कोई सीमा नहीं,कोई माप नहीं वो राहु है...शरीर में  आभास के रूप में   इसे खोजने का प्रयास करें तो इसके दो रूप हैं..एक विक्रम और एक बेताल...एक सकारात्मक और एक नकारात्मक....
            जातक के अंदर किसी भी कला के लिए जो तकनीक है वो राहु है..मशीन के  अंदर तकनीक राहु है...शरीर द्वारा बिना सोचे समझे किये गए कार्य राहु हैं...बिजली का तार छूते ही उसका बिना ये देखे कि बच्चा है या बूढ़ा या जवान,करंट का झटका देना राहु है...कुछ भी अप्रत्याशित होना राहु है...और जहाँ भी राहु को संतुलन देने का प्रयास किया जाता है,किसी भी प्रकार से,किसी के भी द्वारा..वो केतु है..बिजली का झटका आते ही ट्रिप हो जाना केतु है..सचिन की सेंचुरी के बाद भी भारत का हार जाना उस ,,,ख़ुशी को थामने का कार्य करेगा..ये केतु की श्रेणी में रखा जाएगा..राहु आकाश है अर्थात सिर है..केतु पाताल है अतः पैर है..दोनों का मेल है तो विक्रम बेताल है..वरना बिना ताल के यानी बेताल है..विक्रम है तो हर बात क्रम से है..सही है...इसलिए यदि विक्रम(विवेक)जीवित है तो  बेताल को भी ताल प्राप्त है..वो सुर में है...अतःक्रिया के संतुलन के रूप  में केतु की कीमत है..ज्योतिषियों को चाहिए कि जातक को उनके वास्तवकि राहु केतु से परिचित कराए,,न कि आकाशीय पिंड का हौवा बनाकर बेसिर की बातें उड़ाए....जागरूक ज्योतिषी को सीमाओं को लांघने हेतु तत्पर रहना चाहिए....घिसी पिटी लकीर पर चलकर वास्तविक ज्योतिष आपको समझ में आएगा,,इसमें संशय है..आशा है पाठक सहमत.. होंगे..

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