शुक्रवार, 3 जून 2016

घर में कलह क्लेश:क्या है कारण

सामान्यतः आने वाले प्रश्नो में इस प्रकार के प्रश्नो की अधिकता रहती है..हमारे घर में सब कुछ होकर भी शान्ति नहीं,,वे हर समय चिढ़ते रहते हैं..बच्चे भी बात नहीं मान रहे..मेरा मन भी बेचैन रहता है..ये सामान्य प्रश्न हैं जो अमूमन गृहणियों द्वारा पूछे जाते हैं..क्या आप जानते हैं कि आपके घर परिवार में क्लेश करवाने के पीछे मुख्यतः राहु का हाथ माना जाता है ......अपने पनपने के लिए राहु घर के कुछ विशेष स्थानों  वस्तुओं का चयन करता है ...... आइये देखें कि ये राहु अपनी शरारत कहाँ से आरम्भ करता है .......घर में रसोई वह स्थान है जो राहु का निवास है.... अपने नकारात्मक प्रभाव को देने के लिए राहु रसोई में रखे जूठे बर्तनों ,गंदे हो रहे एग्जॉस्ट पंखे ,टपकते हुए नल ,मैले हो रहे दाल ,मसालों आदि के डिब्बों का सहारा लेता है .......रात्रि में खाये भोजन के जूते बर्तन यदि सुबह तक  रखे हैं तो समझ लीजिए कि आप इसे अपना नकारात्मक प्रभाव दुगना करने का निमंत्रण दे रहे हैं ..... इससे बचें ...
                                   घर का शौचालय इसका दूसरा ठिकाना है .....यकीन मानिए यदि आपके वाश बेसिन में गन्दगी दिख रही है ,अथवा साबुन इत्यादि अपने  उचित स्थान पर नहीं हैं तो सुबह सुबह आप घर में होने वाले घपले के लिए तैयार बैठिए ....
      तीसरा और सर्वाधिक महत्व्पूर्ण ठिकाना राहु का अगर माना जा सकता है तो वो आपका ड्रेसिंग अर्थात श्रृंगार टेबल है। यदि वस्तुएं यहाँ बेतरतीब रूप से बिखरी पड़ी हैं ,अथवा कंघी में बाल झूल रहे हैं तो समझ लीजिएगा कि क्लेश का डंडा लेकर राहु महाराज वहीँ विराजमान हैं ......
                            

बुधवार, 30 मार्च 2016

Paisa.... कहाँ है पैसा

वास्तव में हम एकादश व चतुर्थ भाव के ऑपरेटिंग फंक्शन में कंफ्यूज हो जाते हैं। ... जिस मकान वाहन आदि की बात आप कर रहे हैं ये मानसिक सुख का कारक हैं। .. भौतिकता भी तभी सुख देगी जब मन शांत होगा। .. लाल किताब या लाकपुरुष की बात करें तो  चतुर्थ भाव सुख का भाव है। ये चन्द्रमा के आधीन विषय है ,,,एक झोपडी में भी भी आप वही भौतिक सुख का एहसास कर सकते हैं जो आपको  लाखों खर्च किए हुए बंगले में भी नहीं आये। .. २८ बंगले होकर भी विजय माल्या आज भगोड़ा घोषित है। क्योंकि उसने सुख को एकादश से पाने का प्रयास किया ,,,एकादश भाव चतुर्थ सुख के लिए मारक आठवां भाव होता है ....जैसे ही आपने अपने सुख को भौतिकता में खोजा आपने अपने सुख को ही समझ लीजिए आग लगा दी। एकादश भाव काल पुरुष में शनि का स्थान है व वायुकारक प्रभाव  लिए होता है। ... शनि त्याग ,विछोह का कारक है व वायु का कोई आकार नहीं .. वायु में कोई स्थिरता  नहीं ,,,, फिर भला यहाँ से प्राप्त आधार स्थाई सुख का कारक कैसे होगा ??फिर ये तो अंत से एक कदम पहले का भाव है .... यहाँ से प्राप्त आधार द्वादश मोक्ष को प्राप्त करने की सीढ़ी के रूप में देखा जाता है ,और जाहिर रूप से मोक्ष प्राप्ति के लिए चतुर्थ  ,भौतिक सुख (एकादश से छठा ) शत्रु है ..... पैसे से प्राप्त बड़े बड़े भौतिक सुखों को त्यागकर हमने कई लोग अंत में अध्यात्म की तलाश में भटकते देखे ... बड़े बड़े लोगों को वृद्धाश्रम में पाया ....बड़ी बड़ी अभिनेत्रियों को फांसी खाते देखा .... कारण वही एकादश के पीछे की अंधी दौड़ ,,,, और इस दौड़ में वो नहीं दिखा जो सहज रूप से चतुर्थ में हासिल था ,,,चन्द्रमा का ठिकाना ,,मानसिक सुख का आधार,,,, ज्योतिष में हर ग्रह की १०८ गतियां हैं व हर भाव १०८ तरीके से प्रभाव देने के लिए माना जाता है ,,,,,,  हाँ अगर कई पाठक पैसे को ही आधार मान कर प्रश्न कर रहे हैं तो सामूहिक रूप से जवाब देकर बताने का प्रयास करता हूँ। .... धन (पैसा )कमाने के आधार प्रत्येक कुंडली में अलग अलग होते हैं ...   साधन अलग अलग होते हैं ,,,,, भाव भी अलग अलग होते हैं...,,, मात्र एक भाव को ही प्राप्ति के लिए देखा जाना सही निर्णय का आधार किसी भी गणक के लिए नहीं बन सकता ,,,धन यानि ध +न ,,,,, कुंडलियों में सामान्यतः धन का आगमन वहीँ से होता है जहाँ वृश्चिक व धनु राशि होती है ....आठवें के रूप में वृश्चिक राशि से पैसा कमाने के साधनों पर रिस्क लिया जाता है ,,वो रिस्क शरीर का हो ,धन का हो ,ज्ञान का हो किसी भी चीज का हो सकता है ,,,रिस्क आयेगा तो स्वयं को साबित करने के लिए नवम भाग्य के रूप में धनु राशि को आपरेट करना ही होगा ,,,... जब रिस्क लिया जाएगा तभी भाग्य को अपनी हैसियत दिखाने का मौका मिलेगा ,,,,,,अब अगर हम आय (पैसा )  एकादश में ही सुख तलाश कर रहे हैं तो देखिये कि ये एकादश आठवें भाव का सुख (चतुर्थ ) भाव है। ..काल पुरुष के अनुसार आठवां यानि रिस्क का भाव ,,,,आठवां यानि वृश्चिक राशि ,,,, कर्म अर्थात दशम इस रिस्क का पराक्रम (तीसरा)तथा एकादश अर्थात इस आठवें का सुख (चतुर्थ),,,,, अतः ज्योतिषी व जातक दोनों को चाहिए कि पैसा खोज रहे हैं तो भाव से भ्रमित न होकर एकादश के त्रिकोण को खंगालें ,,,एकादश का त्रिकोण जाहिर रूप से इसे उत्पादन का सहयोग (पंचम का प्रभाव )देने के लिए तृतीय तथा इस तृतीय (पराक्रम )को उत्पादन (पंचम का प्रभाव) देने के लिए सप्तम को पकड़ें (सम्भवतः अब पाठक समझें कि सातवें दाम्पत्य भाव के लिए क्यों कहा जाता है कि जातक अपनी लक्ष्मी घर लाया है ) सीधी सी बात है कि सप्तम भाव एकादश का भाग्य भाव है। इस त्रिकोण की तलाश के बाद कालपुरुष का प्रभाव लिए वृश्चिक व धनु को खंगालने हेतु जो जातक  व गणक ज्योतिष के महासागर में गोता लगाएगा ,वो शर्तिया खाली हाथ नहीं लौटेगा .......प्रणाम                         

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

Rahu -ketu राहु और केतु

 राजनीति,नौकरी,व्यापार ,जीवन में सफलता चाहते हैं ....तो राहु को जानिये.......
                 आज की आपाधापी के पीछे अगर ज्योतिषीय कारण जानने की कोशिश करें तो सबसे पहले और मुख्य रूप से राहु का रूप सामने आता है..आप जीवन के किसी भी क्षेत्र की कल्पना राहु के बिना नहीं कर सकते...राहु आकाश है....विस्तार है ,सीमायें है..व मुख्य रूप से नशा है..जूनून है .....किसी भी वस्तु का किसी भी चीज का नशा..धन का,रूप का,ताकत का,राजनीति का,गुस्से का,हवस का,दिखावे का....नशा नियंत्रित न किया जा सके तो नाश का रूप ले लेता है ..कर्म की अपनी एक गति होती है या कहें एक एक्शन होता है...एक्शन होता है तो जाहिर रूप से उसका एक रिएक्शन होता है..रिएक्शन केतु को माना जा सकता है..अतः सामान्य रूप से कहें तो केतु राहु द्वारा किये कर्म का रिजल्ट है....
        मन को चंद्रमा माना गया है....अगर मन में विचार नहीं तो वो किसी काम का नहीं..विचार अगर हों भी और उन्हें
 एक सीमा विशेष में बाँध दिया जाय तब भी उस मन की कोई हैसियत नहीं..अब सीमा तो राहु है...आम गणना के अनुसार तो राहु चंद्र ग्रहण योग बना लेंगे,फिर मन अर्थात चंद्रमा को अपनी गति, अपना विस्तार बिना राहु के कैसे हासिल होगा??ऊपर आपको बताया कि राहु आकाश है...फिर भला बिना आकाश के चंद्रमा की क्या बिसात??बुध पैसा कहा गया है...अब अगर पैसे को विस्तार नहीं मिल पाये तो बरकत कैसे होगी..व्यापार अगर राहु का विस्तार हासिल नहीं करेगा तो पनपेगा कैसे??
              सूर्य नाम है,यश है,पद है,सम्मान है,....लेकिन चमकेगा तो आकाश में ही न...आकाश राहु की श्रेणी में आता है...राहु सूर्य तो आपस में सामान्य गणना के अनुसार सूर्य ग्रहण बना लेंगे...किन्तु बिना आकाश के सूर्य की क्या औकात भला??
                        पाठक जानते हैं कि राहु व केतु आपस में सदा 180 डिग्री का अंतर बना कर कार्य करते हैं..राहु सोच है तो केतु उस सोच को अमली जामा पहनाने वाला धड़.....इसी सम्बन्ध को कायम रख ये मनुष्य के कर्मो को गति प्रदान करते हैं..
सम का अर्थ है समान,व बंध का अर्थ होता है बंधन...अर्थात जिस डोर से एक बंधा है उसके दूसरे छोर पर दूसरा..जोर दोनों पर बराबर लगने वाला है...आप सामने वाले से जितना कटना चाहेंगे,वो भी उसी गति से आपसे दूर भागेगा...आप किसी के प्रति द्वेष की भावना रखेंगे,वो नकारात्मक ऊर्जा उतनी तेजी से आपका नाश करेगी..आप जितना सम्मान दूसरे को देंगे उतना वो आपके लिए समाज से और अर्जित करेगा...
        राहु को आप धनुष मानिए तो केतु उसमे लगा तीर है....जितना धनुष की कमान खिंचेगी उतना दूर तक तीर जाएगा...किन्तु ध्यान दीजिये कि कमान ने तीर को अपने से दूर फेंकने (असल में अपने स्वयं के कारक प्रभाव को बढ़ाने के लिए,अपनी शक्ति दिखाने के लिए इस्तेमाल किया ) के लिए तीर को अपनी तरफ अंदर खींचा था..अपना घनिष्ट ,अपना प्रेम का पात्र बनाने का प्रयास किया था (या कहें ऐसा आभास दिया था)..जितना अधिक से सम्बन्ध बना उतना दूर तक तीर गया...उतनी वाहवाही धनुष को मिली,उन्हें थामने वाले हाथों को मिली,किन्तु दूरी तो तीर ने तय करी थी बन्धु..उस तीर ने जिसका कोई नामलेवा भी नहीं होता..अपना सर्वस्व झोंक दिया तीर ने ,दूरी को अधिक से अधिक नापने के लिए अपनी अंतिम सांस तक समर्पित कर दी,ताकि उसे फेंकने वाले के समक्ष ब्रह्माण्ड शीश नवाये...उसके सामर्थ्य के गीत गाए...उसकी जयजयकार हो...इस प्रयत्न में तीर स्वयं के प्राणों का बलिदान कर देता है..क्यों कर देता है भला??ये प्रश्न आया होगा आपके दिमाग में???
   जवाब सीधा है मित्रो...उस खिंचाव के लिए जिसके द्वारा धनुष ने तीर को अपने निकट खींचा था..उस प्रेम के लिए जिससे डोर ने अंतिम चुम्बन तीर को किया था...हाँ प्रेम ही तो है सब त्याग का कारण...
        नशा करो मित्रो..सफलता का करो,किन्तु  इस सफलता के नशे में उन्हें मत भूलो जो आपके लिए समर्पित हो गए....  राजनीति का करो....किन्तु इस नशे में उन संबंधों का नाश मत करो जो आपके पीछे आपके नाम पर अपना वोट डाल आये थे.. ज्ञान का करो किन्तु अपने ज्ञान के नशे में उस गुरु का अपमान न करो जिसने तुम्हारे मासूम हाथों में कलम पकड़ना सिखाया है...हुनर का करो ..किन्तु इस  नशे में उस अनजान केतु का मत करो जो तुम्हारे एक एक करतब पर तालियां बजा बजा कर तुम्हारा उत्साह बढ़ा रहा था.. धन का नशा करो किन्तु  उन मजदूरों को मत बिसराओ जिन्होंने तुम्हारे लिए अपना खून पसीना एक किया है...रूप का करो किन्तु उन माँ पिता को न भूलो जिनके कारण तुम्हारा अस्तित्व है..नशे को खुमारी बने रहने दो नाश मत बनने दो..
           ग्रहों का अस्तित्व हमारे शरीर के भीतर ही है....अगर राहु को सही गति, सही दिशा मिलती है तो ये सब कुछ आपमें सामर्थ्य में करता है ,अन्यथा नाश करता है...बिना राहु के किसी ग्रह की कोई हैसियत नहीं, किन्तु बिना केतु राहु कुछ भी नहीं...
   होली आने को है...राहु इस समय काल में अपने पूर्ण रूप से अवतरित हो जाता है..चारों ओर नशा है..खेतों में पकने को तैयार फसल मदमस्त होकर झूम रही है... नए फूल नए पत्ते अपने आगमन से पेड़ों को नशे में डुबो रहे हैं...फाल्गुन का नशा सम्पूर्ण सृष्टि को मदहोश किये देता है..बिद्यार्थी नयी कक्षाओं के  नशे में हैं....व्यापारी साल के अंत (मार्च अंत को फाइनेंसियल इयर के रूप )में लाभ गिनने के नशे में हैं...आप भी मन का मैल त्यागकर उन्हें गले लगाइये जिनसे किसी कारण मनमुटाव चल रहा है....किसी कारण कोई द्वेष पल रहा है...सबसे अपने स्नेह का प्रमाण दीजिये..उन्हें अपनी ओर खींचिए...देखिये भविष्य में ये तीर आपके लिए कितनी दूर तक जाएगा ..आप स्वयं यकीन नहीं कर पाएंगे....लेख के प्रति आपकी बहुमूल्य राय अवश्य दें...मात्र लाइक कर देने से लगता है कि आप बिना पढ़े केवल संबंधों की खातिर फॉर्मेलिटी कर रहे हैं...खींचिए..शायद कभी मैं भी आपकी खातिर स्वयं को प्रस्तुत कर दूँ....स्नेह सहित... राजनीति,नौकरी,व्यापार ,जीवन में सफलता चाहते हैं ....तो राहु को जानिये.......
                 आज की आपाधापी के पीछे अगर ज्योतिषीय कारण जानने की कोशिश करें तो सबसे पहले और मुख्य रूप से राहु का रूप सामने आता है..आप जीवन के किसी भी क्षेत्र की कल्पना राहु के बिना नहीं कर सकते...राहु आकाश है....विस्तार है ,सीमायें है..व मुख्य रूप से नशा है..जूनून है .....किसी भी वस्तु का किसी भी चीज का नशा..धन का,रूप का,ताकत का,राजनीति का,गुस्से का,हवस का,दिखावे का....नशा नियंत्रित न किया जा सके तो नाश का रूप ले लेता है ..कर्म की अपनी एक गति होती है या कहें एक एक्शन होता है...एक्शन होता है तो जाहिर रूप से उसका एक रिएक्शन होता है..रिएक्शन केतु को माना जा सकता है..अतः सामान्य रूप से कहें तो केतु राहु द्वारा किये कर्म का रिजल्ट है....
        मन को चंद्रमा माना गया है....अगर मन में विचार नहीं तो वो किसी काम का नहीं..विचार अगर हों भी और उन्हें
 एक सीमा विशेष में बाँध दिया जाय तब भी उस मन की कोई हैसियत नहीं..अब सीमा तो राहु है...आम गणना के अनुसार तो राहु चंद्र ग्रहण योग बना लेंगे,फिर मन अर्थात चंद्रमा को अपनी गति, अपना विस्तार बिना राहु के कैसे हासिल होगा??ऊपर आपको बताया कि राहु आकाश है...फिर भला बिना आकाश के चंद्रमा की क्या बिसात??बुध पैसा कहा गया है...अब अगर पैसे को विस्तार नहीं मिल पाये तो बरकत कैसे होगी..व्यापार अगर राहु का विस्तार हासिल नहीं करेगा तो पनपेगा कैसे??
              सूर्य नाम है,यश है,पद है,सम्मान है,....लेकिन चमकेगा तो आकाश में ही न...आकाश राहु की श्रेणी में आता है...राहु सूर्य तो आपस में सामान्य गणना के अनुसार सूर्य ग्रहण बना लेंगे...किन्तु बिना आकाश के सूर्य की क्या औकात भला??
                        पाठक जानते हैं कि राहु व केतु आपस में सदा 180 डिग्री का अंतर बना कर कार्य करते हैं..राहु सोच है तो केतु उस सोच को अमली जामा पहनाने वाला धड़.....इसी सम्बन्ध को कायम रख ये मनुष्य के कर्मो को गति प्रदान करते हैं..
सम का अर्थ है समान,व बंध का अर्थ होता है बंधन...अर्थात जिस डोर से एक बंधा है उसके दूसरे छोर पर दूसरा..जोर दोनों पर बराबर लगने वाला है...आप सामने वाले से जितना कटना चाहेंगे,वो भी उसी गति से आपसे दूर भागेगा...आप किसी के प्रति द्वेष की भावना रखेंगे,वो नकारात्मक ऊर्जा उतनी तेजी से आपका नाश करेगी..आप जितना सम्मान दूसरे को देंगे उतना वो आपके लिए समाज से और अर्जित करेगा...
        राहु को आप धनुष मानिए तो केतु उसमे लगा तीर है....जितना धनुष की कमान खिंचेगी उतना दूर तक तीर जाएगा...किन्तु ध्यान दीजिये कि कमान ने तीर को अपने से दूर फेंकने (असल में अपने स्वयं के कारक प्रभाव को बढ़ाने के लिए,अपनी शक्ति दिखाने के लिए इस्तेमाल किया ) के लिए तीर को अपनी तरफ अंदर खींचा था..अपना घनिष्ट ,अपना प्रेम का पात्र बनाने का प्रयास किया था (या कहें ऐसा आभास दिया था)..जितना अधिक से सम्बन्ध बना उतना दूर तक तीर गया...उतनी वाहवाही धनुष को मिली,उन्हें थामने वाले हाथों को मिली,किन्तु दूरी तो तीर ने तय करी थी बन्धु..उस तीर ने जिसका कोई नामलेवा भी नहीं होता..अपना सर्वस्व झोंक दिया तीर ने ,दूरी को अधिक से अधिक नापने के लिए अपनी अंतिम सांस तक समर्पित कर दी,ताकि उसे फेंकने वाले के समक्ष ब्रह्माण्ड शीश नवाये...उसके सामर्थ्य के गीत गाए...उसकी जयजयकार हो...इस प्रयत्न में तीर स्वयं के प्राणों का बलिदान कर देता है..क्यों कर देता है भला??ये प्रश्न आया होगा आपके दिमाग में???
   जवाब सीधा है मित्रो...उस खिंचाव के लिए जिसके द्वारा धनुष ने तीर को अपने निकट खींचा था..उस प्रेम के लिए जिससे डोर ने अंतिम चुम्बन तीर को किया था...हाँ प्रेम ही तो है सब त्याग का कारण...
        नशा करो मित्रो..सफलता का करो,किन्तु  इस सफलता के नशे में उन्हें मत भूलो जो आपके लिए समर्पित हो गए....  राजनीति का करो....किन्तु इस नशे में उन संबंधों का नाश मत करो जो आपके पीछे आपके नाम पर अपना वोट डाल आये थे.. ज्ञान का करो किन्तु अपने ज्ञान के नशे में उस गुरु का अपमान न करो जिसने तुम्हारे मासूम हाथों में कलम पकड़ना सिखाया है...हुनर का करो ..किन्तु इस  नशे में उस अनजान केतु का मत करो जो तुम्हारे एक एक करतब पर तालियां बजा बजा कर तुम्हारा उत्साह बढ़ा रहा था.. धन का नशा करो किन्तु  उन मजदूरों को मत बिसराओ जिन्होंने तुम्हारे लिए अपना खून पसीना एक किया है...रूप का करो किन्तु उन माँ पिता को न भूलो जिनके कारण तुम्हारा अस्तित्व है..नशे को खुमारी बने रहने दो नाश मत बनने दो..
           ग्रहों का अस्तित्व हमारे शरीर के भीतर ही है....अगर राहु को सही गति, सही दिशा मिलती है तो ये सब कुछ आपमें सामर्थ्य में करता है ,अन्यथा नाश करता है...बिना राहु के किसी ग्रह की कोई हैसियत नहीं, किन्तु बिना केतु राहु कुछ भी नहीं...
   होली आने को है...राहु इस समय काल में अपने पूर्ण रूप से अवतरित हो जाता है..चारों ओर नशा है..खेतों में पकने को तैयार फसल मदमस्त होकर झूम रही है... नए फूल नए पत्ते अपने आगमन से पेड़ों को नशे में डुबो रहे हैं...फाल्गुन का नशा सम्पूर्ण सृष्टि को मदहोश किये देता है..बिद्यार्थी नयी कक्षाओं के  नशे में हैं....व्यापारी साल के अंत (मार्च अंत को फाइनेंसियल इयर के रूप )में लाभ गिनने के नशे में हैं...आप भी मन का मैल त्यागकर उन्हें गले लगाइये जिनसे किसी कारण मनमुटाव चल रहा है....किसी कारण कोई द्वेष पल रहा है...सबसे अपने स्नेह का प्रमाण दीजिये..उन्हें अपनी ओर खींचिए...देखिये भविष्य में ये तीर आपके लिए कितनी दूर तक जाएगा ..आप स्वयं यकीन नहीं कर पाएंगे....लेख के प्रति आपकी बहुमूल्य राय अवश्य दें...मात्र लाइक कर देने से लगता है कि आप बिना पढ़े केवल संबंधों की खातिर फॉर्मेलिटी कर रहे हैं...खींचिए..शायद कभी मैं भी आपकी खातिर स्वयं को प्रस्तुत कर दूँ....स्नेह सहित...

गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

दोहे

(कुछ दोहे जो मनुष्य जीवन  अनुकरणीय हैं,आपको  भी कुछ याद आएं  तो बाटें हमारे साथ ) ... ..... ....


 मान सहित विष पी के शम्भू भयो जगदीश
 बिना मान अमृत पियो ,राहू कटायो शीश
       रहिमन बात अगम्य की ,कहन सुनन की नाहिं
       जे जानत ते कहत नहीं ,कहत ते जानत नाही 
जहाँ न जाके गुण लहें ,तहा न ताको ठाँव
धोबी बस के क्या करे ,दिगंबर के गाँव
         सबहु सहायक सबल के , कोउ न निबल सहाउ
         पवन जगावत आग तें अरु दीपक देत बुझाउ