गुरुवार, 4 जुलाई 2013

Grahan Dosh... . कुंडली में ग्रहण दोष

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कई बार पाठकों ने अनुरोध किया है की आप ग्रहण दोष पर भी कुछ कहें .इसी क्रम में आज कुछ चर्चा करते हैं .सामान्यतः ग्रहण का शाब्दिक अर्थ है अपनाना ,धारण करना ,मान जाना आदि .ज्योतिष में जब इसका उल्लेख आता है तो सामान्य रूप से हम इसे सूर्य व चन्द्र देव का किसी प्रकार से राहु व केतु से प्रभावित होना मानते हैं . .पौराणिक कथाओं के अनुसार अमृत के बंटवारे के समय एक दानव धोखे से अमृत का पान कर गया .सूर्य व चन्द्र की दृष्टी उस पर पड़ी और उन्होंने मोहिनी रूप धरे विष्णु जी को संकेत कर दिया ,जिन्होंने तत्काल अपने चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया .इस प्रकार राहु व केतु दो आकृतियों का जन्म हो गया . अब राहु व केतु के बारे में एक नयी दृष्टी से सोचने का प्रयास करें .राहु इस क्रम में वो ग्रह बन जाता है जिस के पास मात्र  सिर है ,व केतु वह जिसके अधिकार में मात्र धड़ है .
                  अब ग्रहण क्या होता है ?राहु व केतु का सूर्य या चन्द्र के साथ युति करना आमतौर पर ग्रहण मान लिया जाता है .किन्तु वास्तव में सूर्य ग्रहण मात्र राहु से बनता है व चन्द्र ग्रहण केतु द्वारा .ज्योतिष में बड़े जोर शोर से इसकी चर्चा होती है .बिना सोचे समझे इस दोष के निवारण बताये जाने लगते हैं .बिना यह जाने की ग्रहण दोष बन रहा है तो किस स्तर का और वह क्या हानि जातक के जीवन में दे रहा है या दे सकता है .बात अगर आकड़ों की करें तो राहु केतु एक राशि का भोग १८ महीनो तक करते हैं .सूर्य एक माह एक राशि पर रहते हैं .इस हिसाब से वर्ष भर में जब जब सूर्य राहु व केतु एक साथ पूरा एक एक महीना रहेंगे तब तब उस समय विशेष में जन्मे जातकों की कुंडली ग्रहण दोष से पीड़ित होगी .इसी में चंद्रमा को भी जोड़ लें तो एक माह में लगभग चन्द्र पांच दिन ग्रहण दोष बनायेंगे .वर्ष भर में साठ दिन हो गए .यानी कुल मिलाकर वर्ष भर में चार महीने तो ग्रहण दोष हो ही जाता है .यानी दुनिया की एक तिहाई आबादी ग्रहण दोष से पीड़ित है .अब कई ज्योतिषियों द्वारा राहु केतु की दृष्टि भी सूर्य चन्द्र पर हो तो ग्रहण दोष होता है .हम जानते हैं की राहु केतु अपने स्थान से पांच सात व नौवीं दृष्टि रखते हैं .यानी आधे से अधिक आबादी ग्रहण दोष से पीड़ित है .अब ये आंकड़ा कम से कम मुझे तो विश्वसनीय नहीं लगता भैय्या .इसी लिए फिर से स्पष्ट कर दूं की मेरी नजर में ग्रहण दोष वहीँ तक है जहाँ राहु सूर्य से युति कर रहे हैं व केतु चंद्रमा से .इस में भी जब दोनों ग्रह  एक ही अंश -कला -विकला पर हैं तब ही उस समय विशेष पर जन्म लेने वाला जातक वास्तव में ग्रहण दोष से पीड़ित है ,और इस टर्मिनोलॉजी के अनुसार संसार के लगभग दस प्रतिशत से कम जातक ही ग्रहण दोष का कुफल भोगते हैं .हाँ आंकड़ा अब मेरी पसंद का बन रहा है. अन्य प्रकार की युतियाँ कुछ असर डाल सकती है जिनके बारे में आगे जिक्र करूँगा।किन्तु किसी भी भ्रमित करने वाले ज्योतिषी से सावधान रहें जो ग्रहण दोष के नाम पर आपको ठग रहा है .दोष है तो उपाय अवश्य है किन्तु यह बहुत संयम के साथ करने वाला कार्य है .मात्र  तीस सेकंड में टी .वी पर बिना आपकी कुंडली देखे ग्रहण दोष सम्बन्धी यंत्र आपको बेचने वाले ठगों से सचेत रहें ,शब्दों पर पाठकों से थोडा रिआयत चाहूँगा ,बेचने  वाले नहीं अपितु भेड़ने वाले महा ठगों से बचना भैय्या .एक पाठक का पैसा भी बचा तो जो भी प्रयास आज तक ब्लॉग के जरिये कर रहा हूँ ,समझूंगा काम आया .   जैसा की हमें ज्ञात है सूर्य हमारी कार्य करने की क्षमता का ग्रह है,हमारे सम्मान ,हमारी प्रगति का कारक है .राहु के साथ जब भी यह ग्रहण दोष बनाता है तो देखिये इसके क्या परिणाम होते हैं .राहु जाहिर रूप से बिना धड का ग्रह  है ,जिस के पास स्वाभाविक रूप से दिमाग का विस्तार है .यह सोच सकता है,सीमाओं के पार सोच सकता है .बिना किसी हद के क्योंकि यह बादल है ..जिस कुंडली में यह सूर्य को प्रभावित करता है वहाँ जातक बिना कोई सार्थक प्रयास किये ,कल्पनाओं के घोड़े  पर सवार रहता है .बार बार अपनी बुद्धि बदलता है .आगे बढने के लिए हजारों तरह की तरकीबों को आजमाता है किन्तु एक बार भी सार्थक पहल उस कार्य के लिए नहीं करता, कर ही नहीं पाता क्योंकि प्लान को मूर्त रूप देने वाला धड उसके पास नहीं है .अब वह खिसियाने लगता है .पैतृक  धन  बेमतलब के कामों में लगाने लगता है .आगे बड़ने की तीव्र लालसा के कारण चारों तरफ हाथ डालने लगता है और इस कारण किसी भी कार्य को पूरा ही नहीं कर पाता .हाथ में लिए गए कार्य को (किसी भी कारण) पूरा नहीं कर पाता ,जिस कारण कई बार अदालत आदि के चक्कर उसे काटने पड़ते हैं .सूर्य की सोने जैसी चमक होते हुए भी धूम्रवर्णी  राहु के कारण उसकी काबिलियत समाज के सामने मात्र लोहे की रह जाती है. उसकी क्षमताओं का उचित मूल्यांकन नहीं हो पाता .अब अपनी इसी आग को दिल में लिए वह इधर उधर झगड़ने लगता है.पूर्व दिशा उसके लिए शुभ समाचारों को बाधित कर देती है .पिता से उसका मतभेद बढने लगता है .स्वयं को लाख साबित करने की कोशिश भी उसे परिवार की निगाह में सम्मान का हक़दार नहीं होने देती .घर बाहर दोनों जगह उसकी विश्वसनीयता पर आंच आने लगती है .वहीँ दूसरी और केतु (जिस के पास सिर नहीं है ) से सूर्य की युति होने पर  जातक बिना सोचे समझे कार्य करने लगता है .यहां वहां मारा मारा फिरता है .बिना लाभ हानि की गणना किये कामों में स्वयं को उलझा देता है .लोगों के बहकावे में तुरंत आ जाता है . मित्र ही उसका बेवक़ूफ़ बनाने लगते हैं 
                     इसी प्रकार जब चंद्रमा की युति राहु या केतु से हो जाती है तो जातक लोगों से छुपाकर अपनी दिनचर्या में काम करने लगता है . किसी पर भी विश्वास करना उसके लिए भारी हो जाता है .मन में सदा शंका लिए ऐसा जातक कभी डाक्टरों तो कभी पण्डे पुजारियों के चक्कर काटने लगता है .अपने पेट के अन्दर हर वक्त उसे जलन या वायु गोला फंसता हुआ लगता हैं .डर -घबराहट ,बेचैनी हर पल उसे घेरे रहती है .हर पल किसी अनिष्ट की आशंका से उसका ह्रदय  कांपता रहता है .भावनाओं से सम्बंधित ,मनोविज्ञान से सम्बंधित ,चक्कर व अन्य किसी प्रकार के रोग इसी योग के कारण माने जाते हैं . चंद्रमा यदि अधिक दूषित हो जाता है तो मिर्गी ,पागलपन ,डिप्रेसन,आत्महत्या आदि के कारकों का जन्म होने लगता हैं .चंद्रमा भावनाओं का प्रतिनिधि ग्रह होता है .इसकी  राहु से युति जातक को अपराधिक प्रवृति देने में सक्षम होती है ,विशेष रूप से ऐसे अपराध जिसमें क्षणिक उग्र मानसिकता कारक बनती है . जैसे किसी को जान से मार देना , लूटपाट करना ,बलात्कार आदि .वहीँ केतु से युति डर के साथ किये अपराधों को जन्म देती है . जैसे छोटी मोटी चोरी .ये कार्य छुप कर होते है,किन्तु पहले वाले गुनाह बस भावेश में खुले आम हो जाते हैं ,उनके लिए किसी ख़ास नियम की जरुरत नहीं होती .यही भावनाओं के ग्रह चन्द्र के साथ राहु -केतु की युति का फर्क होता है. ध्यान दीजिये की राहु आद्रा -स्वाति -शतभिषा इन तीनो का आधिपत्य रखता है ,ये तीनो ही नक्षत्र स्वयं जातक के लिए ही चिंताएं प्रदान करते हैं किन्तु केतु से सम्बंधित नक्षत्र अश्विनी -मघा -मूल दूसरों के लिए भी भारी माने गए हैं .राहु चन्द्र की युति गुस्से का कारण बनती है तो चन्द्र - केतु जलन का कारण बनती है .(यहाँ कुंडली में लग्नेश की स्थिति व कारक होकर गुरु का लग्न को प्रभावित करना समीकरणों में फर्क उत्पन्न करने में सक्षम है).जिस जातक की कुंडली में दोनों ग्रह ग्रहण दोष बना रहे हों वो सामान्य जीवन व्यतीत नहीं कर पाता ,ये निश्चित है .कई उतार-चड़ाव अपने जीवन में उसे देखने होते हैं .मनुष्य जीवन के पहले दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण  ग्रहों का दूषित होना वास्तव में दुखदायी हो जाता है .ध्यान दें की सूर्य -चन्द्र के आधिपत्य में एक एक ही राशि है व ये कभी वक्री नहीं होते . अर्थात हर जातक के जीवन में इनका एक निश्चित रोल होता है .अन्य ग्रह कारक- अकारक ,शुभ -अशुभ हो सकते हैं किन्तु सूर्य -चन्द्र सदा कारक व शुभ ही होते हैं .अतः इनका प्रभावित होना मनुष्य के लिए कई प्रकार की दुश्वारियों का कारण बनता है . अतः एक ज्योतिषी की जिम्मेदारी है की जब भी किसी कुंडली का अवलोकन करे तो इस दोष पर लापरवाही ना करे .उचित मार्गदर्शन द्वारा क्लाइंट को इस के उपचारों से परिचित कराये .किस दोष के कारण जातक को सदा जीवन में किन किन स्थितियों में क्या क्या सावधानियां रखनी हैं ताकि इस का बुरा प्रभाव कम से कम हो , इन बातों से परिचित कराये . कोशिश करूँगा की कभी भविष्य में इन योगों को कुंडलियों का उदाहरण देकर बताऊँ .....आशा है लेख आपको पसंद आएगा ..... नमस्कार ....   
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गुरुवार, 20 जून 2013

केदारनाथ धाम में प्रलय . क्या वास्तव में कहीं चूक हो गयी ?

कुछ भी लिखने से पहले स्पष्ट कर दूं की मैं न तो किसी पर आरोप लगा रहा हूँ न ही किसी को दोषी करार दे रहा हूँ .ज्योतिष का एक साधारण सा छात्र होने के नाते जो कुछ भी जाना है बस उसी आधार पर मन में संशय आ रहा है ,जिस को बयान कर रहा हूँ .थोडा बहुत यदि ज्योतिष की किसी शाखा में स्वयं को सहज पाता  हूँ तो वह  फलित है .अतः लगन -मुहूर्त आदि के विषय में किसी भी पंचांग गणक के सामने खुद को अज्ञानी की श्रेणी में रखता हूँ .
       किन्तु इस विषय  पर जहाँ तक समझ पाया हूँ १४ मई सन २०१३   को प्रातः काल ०७ :१५ पर विधिविधान के साथ ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग ,देश के महान तीर्थस्थलों में शामिल श्री केदारनाथ जी के कपाट आम जनता के लिए दर्शनार्थ खोल दिए गए .मिथुन राशि में चंद्रमा अपने परम शत्रु  राहु के आद्रा नक्षत्र को भोग कर अपनी राशि से द्विदाशक बना रहा था।लग्न में मारक होकर गुरु विराजमान थे .कोई  भी पंचांग में इस दिन को लेकर किसी प्रकार के शुभ मुहूर्त का जिक्र नहीं कर रहा था .सामान्य परिस्तिथियों में हम जानते हैं की  देवादिदेव महादेव  की पूजा अर्चना से सम्बंधित कोई भी कार्य आद्रा नक्षत्र में किया जा सकता है .किन्तु पंचांग अभी दिन के काफी समय तक भद्रा का काल इंगित कर रहा था .मुहूर्त शाश्त्र के जानकार जानते हैं की किसी भी शुभ कार्य हेतु सदा भद्रा से बच कर चलने का प्रमाण शाश्त्रों से मिलता है .फिर भला जब किसी भी प्रकार का मुहूर्त गणनाओं में नहीं था तो क्यों ऐसी चूक हो गयी समझ नहीं आया .फिर से स्पष्ट कर दूं की ये मात्र जिज्ञासा है ,कोई आरॊप नहीं .जिसका निवारण विद्वान गुरुजन ही कर सकते हैं .वार का स्वामी उस समय विशेष में द्वादश भाव पर था  तो क्या इसका कोई महत्त्व मुहूर्त पर नहीं होता.सूर्यदेव स्वयं द्वादश में केतु  से पीड़ित हो रहे थे ,क्या इस की गणनाओं का महत्त्व मंदिर के किवाट खुलने का समय तय करने वाले जिम्मेदार ज्ञाताओं  की निगाह में कुछ नहीं था .ज्योतिष के सिद्धांतानुसार त्रिबल शोधन में लग्नं विशेष में सूर्य का द्वादश में होना भी शुभ संकेत नहीं माना जाता . मात्र ये प्रकृति का कहर है या वास्तव में मंदिर के द्वार खोलने को तय किये गए मुहूर्त को किसी विशेष कारण से बहुत हलके में ले लिया गया . क्या ये मात्र मेरा भ्रम है या वास्तव में कहीं कोई चूक हो गयी है .पाठकों की राय व गुरुजनों के मार्गदर्शन का इस विषय पर  मैं प्रार्थी हूँ .  जय भोले शंकर -जय नीलकंठ महादेव .

सोमवार, 22 अप्रैल 2013

Chandr Kundli क्या महत्व है चन्द्र कुंडली का








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  मनुष्य के जन्म समय में पूर्व दिशा में जिस राशि का उदय हो रहा होता है वह राशि जातक की जन्म लग्न राशि कहलाती है. प्रथम भाव में उसी राशि को लिख कर लग्न बनाया जाता है .उस समय विशेष में चंद्रमा जिस भी राशि में भ्रमण कर रहा होता है वो ही  जातक की जन्म राशि कहलाती है. लग्न कुंडली के बाद जिस राशि में चंद्रमा होता है उसे लग्न मानकर एक और कुंडली का निर्माण होता है जो चन्द्र कुंडली कहलाती है. अब लग्न कुंडली और चन्द्र कुंडली में क्या अंतर होता है ये एक ऐसा विषय है जिस पर विद्वान ज्योतिषियों को मतभेद रह सकता है. मेरा मत यह है की जन्म कुंडली जातक के लिए ईश्वर द्वारा निर्धारित फैसलों का प्रतिबिम्ब होती है .उन विशेष परिस्थितियों ,उन विशेष नियमों से जातक को मिलना ही होता है .इस पर जातक का कोई नियंत्रण नहीं होता .ये पूर्वार्ध है. आपके किये गए कर्मों का लेखा जोखा .किन्तु चन्द्र कुंडली वो है जिसकी सहायता से जातक  उन नियमों ,सिद्धांतों ,उन पूर्व निर्धारित फैसलों में लूप होल खोजने का प्रयास करता है. यहाँ से हम देखते हैं की कहाँ और कैसे किस ग्रह  के साथ कोई डील की जा सकती है.कैसे ले- दे कर अपना काम  चलाया जा सकता है .कैसे अपनी रुकी हुई गाडी को गतिवान किया जा सकता है. यकीन कीजिये मैंने कई बार समस्या को लग्न कुंडली से पकड़कर ,उपचार चन्द्र कुंडली द्वारा करने  का प्रयास किया और सफलता पाई .कई ज्योतिषियों को चन्द्र कुंडली को अनदेखा करते पाया है. यकीन मानिए  एक बार चन्द्र कुंडली को लग्न मान कर फलित करने का प्रयास कीजिये ,मजा आ जाता है. ऐसे ऐसे तथ्य जातक के बारे में मालूम होने लगते हैं जिसकी कल्पना भी नहीं की होगी आपने .
         आइये इसे दूसरी तरह से कहने का प्रयत्न करते हैं.किन्तु कहूंगा सामान्य भाषा में ही . बावजूद इसके कि  एक बार मेरी एक पाठिका ने और अभी कुछ दिन पहले मेरे एक क्लाइंट ने मुझसे एक ही शिकायत की .दोनों का कहना था की आप की भाषा शैली कहीं से भी पंडितों वाली नहीं है .मैं फिर स्पष्ट कर देना चाहूँगा की मेरा ब्लॉग उस आम जिज्ञासु पाठक के लिए है जो ज्योतिष का रुझान रखता है या जो अपनी किसी समस्या को मुझ से साझा करना चाहता है. मेरे किसी भी लेख को किसी प्रकार की प्रतियोगिता  में भेजने की मेरी कोई मंशा नहीं है .ये मात्र मेरे पाठकों के लिए है  .अपने इसी साधारण अंदाज से मैंने उनका स्नेह -आदर प्राप्त किया है।भाषा के भ्रमजाल में उलझाकर मैं अपने पांडित्य का झूठा आभामंडल तो रच सकता हूँ ,अपने गैरजरूरी हव्वे को भी  बुन सकता हूँ ,जिस  की आड़ में आराम से अपनी फीस बढ़ा सकता हूँ ,लेकिन अपने  पाठक  के स्नेह से वंचित हो जाउंगा ,उसके विश्वास को खो बैठूँगा ,उस आस को तोड़ दूंगा जिस आस के साथ वो बेहिचक मेरे पास अपनी व्यथा कहने का अधिकार पाता है,कुसमय में मेरे काँधे को तलासने के लिए चुपके से देखता है. मैं इस सुख से ,इस गर्व के एहसास से वंचित नहीं होना चाहता ,इसलिए अपना अंदाज अपनी भाषाशैली नहीं बदल सकता . थोडा भावुक हो गया तो विषय से ही भटक गया .क्या करूँ आखिर साधारण मनुष्य ही तो हूँ .खैर वापस विषय पर आता हूँ .
                    समस्त ग्रहों में सर्वाधिक अस्थिर या कहें गतिशील  चंद्रमा ही होते हैं .अततः जल्दी से किसी परिवर्तन की आस इन्ही के दरबार से की जा सकती है. अपनी समस्त सोलह कलाओं का जादू बिखेरकर ये नित्य नयी अवस्था, नए रूप में हमारे सामने होते हैं  .पूरे माह में हम किसी भी दिन इन्हें समान  रूप में नहीं पाते . अतः ये निरंतर बदलाव का प्रतीक हैं . इसी लिए तो मन के कारक हैं .ये सन्देश देते हैं की स्थितियों में परिवर्तन संभव है .यही कारण है की लग्न कुंडली के बाद चन्द्र कुंडली अपना विशेष स्थान रखती है.हर रोज अपने आश्रित स्थान से इनका प्रभाव हर ग्रह  पर अलग होता है.तत्व के जानकार जानते ही हैं की सारा खेल मन का है. मन यानि चंद्रमा .  नवग्रहों में चंद्रमा को धरती के सर्वाधिक निकट माना गया है .इसी कारण सबसे अधिक उपचार चन्द्र को लेकर ही किये जाते हैं .इसी कारण इसे माँ का कारक कहा गया है.जातक के जन्म से लेकर उसके जीवन भर सर्वाधिक निकट यदि कोई है तो माँ ही है. पहला स्पर्श ,पहला सम्बन्ध ,पहला प्रभाव इंसान के ऊपर माँ का ही है .माँ का है अर्थात चन्द्र का है. हर समस्या हर परेशानी का निदान माँ है. इसी प्रकार जातक के जीवन की हर समस्या का निदान चंद्रमा के पास है. तभी तो शिव के माथे का अलंकार है. कुछ सूत्र इसी क्रम में बताता हूँ जिस जातक की भी कुंडली में चंद्रमा दूषित हों वह इन्हें आजमाए व इनका चमत्कारिक असर देखें .
1 . सोमवार के व्रत करें 
2.  माँ से चांदी का कोई जेवर लेकर अपने पास रखें .
3 . यदि संभव हो तो पूर्णिमा की रात माँ के चरणों में सिर रखकर सोयें किन्तु ध्यान दें की आपके पैर माँ के सिर  को न छुएँ . दिशा में परिवर्तन करें .
4 . जिस भी दिन रोहिणी नक्षत्र हो उस दिन शिव मंदिर में एक मॊर पंख अर्पित करें .  
5 . गाय के दूध से बने घी की हलके हाथों से मालिश  माँ के सिर पर करें .
                  लेख के विषय पर आप की अमूल्य राय की आशा है 
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