मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

Higher education ..... किस विषय से करें शिक्षा प्राप्त

  आजकल के प्रतिस्पर्धात्मक युग में हर माता पिता की कोशिश होती है कि अपनी संतान को ऐसे विषय की पढाई कराईं जाय जो कल उसके कर्रिएर में उसे सहायक हो.उसे कम लोगों के बीच में से कोम्पिटीसन् करना पड़े.सहज ही सफलता हासिल हो जाए.कई बार देखने में आता है कि अच्छे विषय अच्छे इंस्टिट्यूट से पढ़ने के बाद भी जब नौकरी की बात आती है तो जातक स्वयम्‌ को सहज महसूस नहीं कर पाता. उसे लगता है कि जो हुनर उसके पास है उस अंदाज़ में वह तरक्की नहीं कर पा रहा.या समाज को लगता है कि फलाना मन लगा कर काम नहीं कर रहा .दोनो हालातों में अमूमन देखने में आता है कि जातक ने अपने पंच्मेश के अनुसार शिक्षा हासिल नहीं की होती. हम जानते ही हैं कि पाँचवाँ भाव उत्पत्ति का भाव है,पैदा करने का भाव है .आय भाव से सातवाँ भाव अपने अनुसार दी गयी शिक्षा से आने वाले समय में आय प्राप्त कराता है.आजकल चारों ओर एक दूसरे कि देखा देखी होड़ सी लगी हुई है ऊँचे ऊँचे संस्थानों से ऊँची ऊँची डिग्रियाँ प्राप्त करने की.बिना ये देखे बिना ये जाने कि बच्चे का झुकाव किस विषय की ओर हो रहा है.
          याद होगी आपको कुछ समय पहले
अमीर खान जी कि इस विषय पर आयी फ़िल्म.अरे वही वाली जिस में यह गीत भी था "अन्धेरे से डरता हूँ मै माँ "
ये अंधेरा वो अंधेरा है जो उसके मन की आँखें भाँप पा रही हैं.आने वाले समय का अंधेरा.क्योंकि माता पिता बच्चे को अपनी पसंद के विषय की पढाई करना चाह रहे हैं लेकिन बच्चे का मन जनता है कि इस विषय से आने वाले समय में उस के लिए अंधेरा ही रहने वाला है ,इसीलिये वो डरता है और कहता है कि अन्धेरे से डरता हूँ माँ .शिक्षा ज्ञान में मूलभूत अंतर होता है.मैं दावे के साथ कहता हूँ कि जीवन में सदा उन्हीं लोगों ने अधिक सफलता प्राप्त कि है जिन्होने ज्ञान प्राप्त किया है.शिक्षा जिन्होंने पायी वो अपनी मंज़िल के लिए अधिकतर भटकते ही देखे गए.अन्तर ये रहा कि अपने मूलभूत ग्रह के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने वालों ने ज्ञान हासिल किया और बिना सोचे समझे समाज की देखा देखी करने वालों ने मात्र शिक्षा प्राप्त की .आज जो भी डिग्रियाँ प्रचलन में हैं वो आज से तीस साल पहले नहीं थीं.आज अपने अपने क्षेत्र में सफल जातको ने शायद ही इन में से कोइ डिग्री प्राप्त की है .वहीं दूसरी ओर आज से बीस साल बाद जो भी डिग्रियाँ जायेंगि वो आज के छात्रों के पास नहीं होंगी.तो क्या मान लिया जाय कि वो सफल नहीं होंगे?मान लीजिये कि यदि तेंडुलकर एक डॉक्टर होते तो क्या होता ,या बच्चन साहब कहीं प्रोफेसर होते ,मनमोहन जी ने यदि अर्थशाश्त्र के बजाय इतिहास पढ़ा होता.सहारा के राय जी यदि बैंक में क्लर्क होते?ये आज सफल है क्योंकि इन्होने अपना क्षेत्र उस ग्रह से संबंधित किया जो पंच्मेश दशमेश कि प्रवृत्ति से मेल खाता था.पंच्मेश यदि यदि किसी प्रकार से निर्बल या अस्त हो तो पंचम भाव पर दृष्टि रखने वाले ग्रह,पंच्मेश से युति वाले ग्रह ,लगान या लग्नेश से युति करने वाले सम स्वभाव के ग्रह के अनुसार भी शिक्षा प्राप्त की जा सकती है.नीचे बने चार्ट से आपको यह जानने में सुविधा होगी कि कौन सा विषय किस ग्रह से संबंधित हो सकता है ;----
1.सूर्य: लोक प्रशासन ,राजनीति ,अर्थशास्त्र,गणित ,मौसम ,वनस्पति विज्ञान ,पशु चिकित्सा ,दवा संबंधी युद्ध संबंधी विषय आदि.
2.चंद्र : गृह विज्ञान,साहित्य,पशुपालन ,मनोविज्ञान ,नर्सिंग ,जल संबंधी,साज़ सज्जा ,शहद , छोटे बच्चों की देखभाल संबंधी विषय भोज्य पदार्थ संबंधी विषय , वस्त्र आदि से संबंधित.
3.मंगल : खनिज संबंधी ,ऑटो मोबाइल ,सेना ,पुलिस ,धातु ,पेट्रोलियम ,शारीरिक शिक्षा,व्यायाम ,फिजियोथेरेपी,धरती के अंदर होने वाले कार्यों से संबंधी आदि विषय.
4.बुध : बैंकिंग ,
संचार , त्वचा संबंधी ,पत्र्कारिक्ता,शिक्षा,साँस संबंधी विषय,अर्थशास्त्रकर्मकांड,पैसे संबंधी ,टैक्स आदि से संबंधित विषय.
5.गुरु: शिक्षा ,ज्योतिष ,क़ानून ,चिकित्सा ,व्याकरण,देखभाल ,
प्रबंधन आदि संबंधित ..
6. शुक्र : फ़िल्म ,शरीर कि सुंदरता संबंधी ,नाटक ,एनिमेशन ,वस्त्र ,भोजन संबंधी वा लगभग वो सभी विषय जो चंद्र से भी जुड़े होते हैं .
7.शनि :इतिहास ,कृषि ,लेब टेस्ट आदि से संबंधी ,चमड़ा ,सिविल ,कंप्यूटर,अस्पताल ,एरोनाटिकल,विधि शाश्त्र ,कैंसर ,प्रबंधन ,मनोविज्ञान ,बाज़ार से संबंधी विषय.
8.राहूपुरातत्व ,विषाणु संबंधीदूरसंचार , इंजीनियरिंग ,जादू टोना ,रहश्य्मय विषय ,बॉयोटेक्नोलॉजी ,तकनीकी काम,रेडियोलॉजी  आदि

                 अपने विषय में आपको नए नए विचार सदा आते है जो आपको आम भीड़ से अलग कर सफलता के मुकाम तक पहुँचाते हैं,किन्तु अन्य विषयों पर आप रटी हुई थ्योरी पर चलते हैं.आपके विचारों को आकाश नहीं मिलता. अतः आपका हुनर ढका रह जाता है.अपने मौलिक विषय से ही आप सफलता का स्वाद चख सकते हैं. तब शायद ये गाना गाने कि आवश्यकता ही ना हो "अन्धेरे से डरता हूँ माँ "
   ( आपसे प्रार्थना है कि  कृपया लेख में दिखने वाले विज्ञापन पर अवश्य क्लिक करें ,इससे प्राप्त आय मेरे द्वारा धर्मार्थ कार्यों पर ही खर्च होती है। अतः आप भी पुण्य के भागीदार बने   )
 

 

 

सोमवार, 11 मार्च 2013

Rajyog..... राज योग जो कम प्रचलित हैं

"लग्नाधिपति: केंद्रे बलपरिपूर्ण: करौती नृपतुल्यम
 गोपाल$कुलपि
जातम किम पुंरिह नृपतिसम्भूतम "
अर्थ : बलवान होकर लग्न का स्वामी केन्द्र में हो तो राजयोग होता है.चाहे जातक का जन्म ग्वालिये के घर ही क्यों ना हुआ हो .
 
शफ्रीयुगले कर्कत्मारूदोह वाक्पतिशच धनुर्धरम
शुक्र:कुम्भे यदा शक्त्स्दा राजा भवेदिह
अर्थात :मीन का चंद्रमा ,कर्क का गुरु कुंभ का शुक्र यदि कुंडली में विराजमान हो तो जातक को राजयोग का सुख मिलता है . 

                      

शशिसहिते केंद्रस्थे शनेश्चरे भवति जारजाततस्तु
राजा भुवि गजतुरंगग्राम धनैर्वध्रितश्रीक
अर्थात :चंद्रमा शनि कि युति यदि केन्द्र में हो तो जातक यदि माता पिता कि नैसर्गिक संतान ना भि हो तो धन गाड़ी सम्मान आदि के सुख को बढ़ाने वाला होता है.  


जायते$भिजिति  : शुभकर्मा   भुपतिर्भवति तो तुलवीर्य:
नीचवेश्मकुलजो$पि नरों$स्मिन राजयोग इति ना व्यप्देशे .
अर्थात :अभिजीत नक्षत्र में जन्मा जातक बलशाली राजा होता है.वह नीच कुल में भी जन्म ले तब भी इसमें कोइ संशय नहीं.
 

लग्न से या किसी भी स्थान से यदि समस्त ग्रह क्रम से बैठे हो अर्थात बीच में कोई भी भाव रिक्त ना हो .भले ही सारे ग्रह सात भावों में लगातार विराजमान हों तो ये एकावलि नामक राजयोग होता है.
 

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शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

सफलता

आज के युग में शायद ही कोई माता पिता हों या शायद ही कोई विद्यार्थी ,जो परीक्षाओं में अंकों को लेकर परेशान न होते हों .कोई बच्चे की बेहतर खुराक की और ध्यान देता है तो कोई कोचिंग क्लासेस को अधिक महत्त्व देता है।कई बार देखने में आता है की जो छात्र साल भर बेहतरीन विद्यार्थियों में गिनती होते रहे वो वार्षिक परीक्षाओं में चूक गए ,या मनमाफिक परिणाम हासिल नहीं कर पाए,वहीँ दूसरी और जो साल भर औसत छात्रों में गिनती होते रहे वो बाजी मारने में कामयाब रहे। कभी सोचा है इस का कारण ?आईये देखते हैं की ज्योतिष भला इस बारे में क्या कहता है?
                           सामान्यतः हम जानते ही हैं की गुरु को शिक्षा का स्थाई कारक व पंचमेश को टेम्पररी कारक माना जाता है।पंचम भाव में बैठे व प्रभावित करने वाले ग्रह भी इस में अपना रोल निभाते हैं।कई बार ऐसा होता है और स्वयं आप में से भी कई सज्जनों ने इस बात को परखा होगा की रात दिन जाग जाग कर पढने के बाद भी परीक्षा में वही सवाल आये जिन्हें आप नजरंदाज कर गए थे।वहीँ कई बार मात्र मॉडल पेपर या प्रश्न कुंजी पढ़ कर जाने वाले छात्रों के हाथ वो ही सवाल लगे जो उन्होंने रटे हुए थे।मजा आ जाता है न?
                                               अचानक जो जीरो था उसे हीरो समझा जाने लगता है।माँ अपने लाल को देख कर मंद मंद मुस्कुराती है,पिता मोहल्ले वालों व ऑफिस वालों के साथ मजाक करने ,बोलने बतियाने लगते हैं। पड़ोस की लड़की का आपको देखने का तरीका थोडा बदल सा जाता है।आप भी अब कभी कभी बिन मांगी सलाह औरों को देने लगते हैं।ये सब अधिक अंक आने का प्रताप होता है भैय्या .अगली दफा जब फेल होने की नौबत आ जाती है या शहीद होते होते बचते हो तो फिर से सब कुछ बदल जाता है।पिता जी की टुर्र -फूर्र  फिर से शुरू हो जाती है ,माँ गाहे- बगाहे धोती के कोने से आँखें पोंछने लगती हैं।पडोसी लड़की अब आपको देख कर छत पर नहीं आती।दोस्तों के बाप उन्हें तुम से दूर रहने की सलाहें देने लगते हें,व जो कभी तुम से टिप्स लेने में नहीं चूकते थे वे अब कुछ कहते ही गरियाने लगते हैं।
                                                   आइये इस का कारण ढूँढने का प्रयास करते हैं।जिस छात्र ने परीक्षा देनी है पहले उसकी कुंडली का अवलोकन किया जाय। जिस दिन परीक्षा होनी है उस दिन जातक का पंचमेश किस अवस्था में है ये देखा जाना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।साथ ही उस दिन या कहूँ परीक्षा शुरू होने के समय कौन सा लग्न पड़ रहा है ये देखा जाना चाहिए।अब देखने वाली बात यह है की परीक्षा के दिन का पंचमेश जातक के वास्तविक पंचमेश का मित्र है या शत्रु? साथ ही दोनों पंचमेश (उस दिन का और जन्म का )किस भाव में विराजमान हैं।उनका आपस में कैसा सम्बन्ध  हो रहा है?उन पर किन किन ग्रहों की दृष्टि पड़ रही है?वक्री हैं या मार्गी ,कहीं अस्त तो नहीं हो रहे। समझने में थोडा दिक्कत हो रही है, इसे क्रम में लिखकर बताता हूँ।
                             1. यदि दोनों (दोनों का अर्थ हर बार परीक्षा शुरू होने के समय काल  का पंचमेश व जन्म का पंचमेश पढें )आपस में मित्र हैं तो बहुत संभव है की आपको आपकी मेहनत के हिसाब से अंक प्राप्त हो जायेंगे।
2.यदि दोनों कहीं केंद्र या त्रिकोण में हैं तो आपका ग्राफ कहीं ऊपर जा सकता है।
3. यदि लग्न का पंचमेश मजबूत स्थिति में है किन्तु समय काल का पंचमेश कमजोर पड़ रहा है तो हो सकता है किसी परीक्षा के दौरान आपको पैन रुक जाने या अचानक तबियत ख़राब हो जाने ,या किसी अन्य प्रकार की परेशानी से दो चार होना पड़ सकता है।रिसल्ट पर थोडा बहुत प्रभाव अवश्य पड़ता है।
4.यदि दोनों पंच्मेशों से किसी प्रकार भाग्येश का सम्बन्ध हो जाता है तो बहुत संभव है की आपकी परीक्षा भी बहुत अच्छी हो व आपकी कापी भी निरीक्षण के लिए किसी ऐसे अध्यापक के पास जाए जो अंक देने के मामले में खुला हाथ रखता हो।
5.यदि दोनों पंचमेश आपस में शत्रुता रखते हों तो आप के सामने प्रश्नपत्र पर कुछ ऐसे सवाल हो सकते है जिन्हें आप गलती से मिस कर गए हैं.
6.यदि जन्म लग्नेश जन्म कुंडली में ही कमजोर अवस्था में हो किन्तु उस विशेष दिन स्वयं पंचमेश बन कर अपने भाव में ही हो या कहीं से दृष्टि डाल रहा हो तो आप पढ़ाई में कमजोर होने के बावजूद उस ख़ास दिन अपने रटे हुए जवाबों के बल पर आशा से अधिक चमत्कार दिखाने में कामयाब हो सकते हैं।  
                                यहाँ एक बात स्पष्ट कर दूं की मैं कहीं से भी इस बात का विरोध नहीं कर रहा की किसी छात्र को मेहनत नहीं करनी चाहिए। अपितु साधारण भाषा में लिखे इस लेख का वास्तविक मंतव्य उन मेघावी छात्रों को दिलासा देना है जो अपनी कमर तोड़ मेहनत  से भी मन माफिक अंक नहीं प्राप्त कर पाते।कोई बात नहीं,हिम्मत न हारो दोस्तों .हो सकता है की इस बार बदकिस्मती से योग आपके विपरीत चला गया हो किन्तु अगली दफा आप अपने मुकाम पर अवश्य होंगे।मैं खासकर  उन बच्चों की बात कर रहा हूँ जो इंजीनियरिंग,मेडिकल आदि कठिन विषयों की पढाई के बीच में ही हिम्मत हार कर कोई गलत कदम उठा लेते हैं।आप यदि काबिल न होते तो इन विषयों की कठिन एंट्रेंस को भी तो पास नहीं कर पाते।आपका यहाँ होना ही आपके काबिल होने की गारंटी है।अततः किसी एक समस्टर के खराब होने मात्र से आपकी काबिलियत पर प्रश्नचिन्ह नहीं लग जाता . वहीँ दूसरी ओर उन नौजवानों को भी सन्देश देना चाहता हूँ  जो सफल होने के लिए सदा शोर्टकट की तालाश में रहते हैं .मेहनत का कोई विकल्प नहीं है।तुक्का एक बार ही चलता है भैय्या .हर बार योग आपके अनुकूल नहीं होने वाला।
                                               अब उपाय क्या हो? सबसे सरल उपाय है ग्रहों के देव सूर्य देव की उपासना करना।और सूर्यदेव की उपासना का अर्थ है प्रातः सुबह उठ कर उगते हुए सूर्य की रौशनी के सानिध्य में पढ़ना .उगते सूर्य के नित्य दर्शन कुंडली में किसी भी प्रकार के दोष को काटने का सामर्थ्य रखते हैं।बुजुर्ग तभी तो सुबह पाठ कंठस्त करने को कहते थे। साल भर जितना अध्ययन प्रातः करोगे वो परीक्षाओं में उतना लाभ देगा। 
                        प्रस्तुत लेख पर आपकी राय की अमूल्य राय की प्रतीक्षा में रहूँगा।सभी विद्यार्थियों को शुभकामनाएं .