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भ्रमनचक्र का अष्टम लग्न मैं व्यक्तिगत रूप से सर्वाधिक प्रबल लग्न मानता
आया हूँ.कारण इसमें अधिकतर ग्रहों का करक होना है

.लगभग सभी ग्रह इस लग्न के
जातक को सदा सहायक रहने का प्रयास करते हैं.ऐसे में उन ग्रहों का जरा भी
अच्छी स्थिति में होना सोने पर सुहागे का काम करता है.इसी कारन अमूमन
वृश्चिक लग्न के जातक अन्य जातकों की अपेक्षा अधिक कार्यकुशल ,संभावनाओं
से भरपूर व भाग्यशाली होते हैं .ग्रह-नक्षत्र कदम कदम पर उनका साथ देते
हैं,इसी कारण चीजें उनके लिए सहज होती हैं.बचपन से ही किसी प्रकार का अभाव
इन्हें नहीं मिलता,परिणामस्वरूप ये बहुत ज्यादा लापरवाह हो जाते हैं.किसी
भी अवस्था में न घबराना और स्थिति को कुछ ज्यादा ही सहज रहकर निबटने की
प्रवृत्ति इन्हें लापरवाह बना देती है,और इसी कारण ये सुनहरे मौकों को चूक
जाते हैं.सदा आगे रहने की इच्छा ,अपने ज्ञान पर जरूरत से ज्यादा विश्वास
इन्हें ले डूबता है.
इस कुंडली में
ज्ञान का नैसर्गिक ग्रह ब्रहस्पति यदि भाग्य भाव में विराजमान हो जाता है
तो ये अपने आप में ही कई योगों की रचना करने में सक्षम हो जाता है.कर्क
राशि गुरु की उच्च की राशि है,साथ ही यहाँ से गुरु की पंचम दृष्टी लग्न पर
अपनी मित्र राशि पर पड़ती है.जरा गौर करें की जिस राशि में गुरु उच्च हैं
लग्न में उस उच्च राशी स्वामी की नीच राशि होती है , साथ ही भाग्य भाव में
(लग्नेश मंगल के मित्र होने के बावजूद) लग्नेश की नीच राशि होती है.इस
प्रकार यह लगभग एक प्रकार का नीच भंग (मैं लगभग कह रहा हूँ)योग व राशि
परिवर्तन योग जैसा ही कुछ समीकरण बनने लगता है.ब्रहस्पत्ति दो द्विस्वभाव
राशियों के स्वामी होते हैं,ऐसे में जब ये उच्च के होकर लग्न को प्रभावित
करने लगते हैं तो जातक के अन्दर अपने आयु वर्ग के अन्य जातकों की तुलना में
तिगुना ज्ञान पनपने लगता है.इसी कारण वह शुरूआती शिक्षा में तेजी से आगे
बढता है,अपने मुकाबले उसे बड़े भाई बहनों की पुस्तकें अधिक आकर्षित करने
लगती हैं.अपने स्तर से ऊँची किताबें वह पड़ना चाहता है.समझ लीजिये बिजली
की हाईटेंसन की लाइन से वह सीधा अपने घरेलु उपकरण के लिए बिजली प्राप्त
करने लगता है,जिसके कारण सर्किट उड़ने लगते हैं.बीच में कोई ट्रांसफार्मर
नहीं,कोई रेगुलेटर नहीं.
ऐसे ही गुरु का ज्ञान बिना उचित
अवरोध के जातक के दिमाग को भ्रमित कर देता है.हर विधा में वह अपना दखल रखने
की कोशिश करता है.ऐसे में यदि गुरु को बुध का साथ मिल जाता है तो धन के
लिए तो ये प्रचंड योग का निर्माण करता ही है साथ ही जातक का भाषा पर भी
असाधारण अधिकार होने लगता है. किस्से कहानियां सुनाना , भाषणबाजी करना
,गप्पें मारना उसका पसंदीदा शगल होता है. यदि इस अवस्था में जातक को सही
घरेलु माहौल व सही मार्ग दर्शन मिल जाये तो दुनिया में कुछ भी उसके लिए
असंभव नहीं रहता वरना यही योग उसे राह से भटकाकर पीछे कर देता है.ऐसे जातक
शुरू में टॉपर होते हैं किन्तु नवी -दशमी के स्तर पर आते आते उनका ग्राफ
गिरने लगता है.फेल होने की नौबतें आने लगती हैं.
इस लग्न में दशम भाव में ग्रहों
के राजा सूर्यदेव की सिंह राशि होती है.अब यदि सूर्यदेव स्वराशी में
विराजमान हो जाते हैं तो जातक के अन्दर जन्मजात राजा के गुण आ जाते हैं.वह
कक्षा में पीछे नहीं बैठ सकता,जीवन में छोटे स्तर की नौकरी नहीं कर
सकता.यदि क्लास में उसके अलावा किसी और को मोनिटर बना दिया तो उसके लिए
असहनीय हो जाता है,वह हाथ धोकर उस के पीछे पड़ जाता है. नौकरी के दौरान अपने
सीनिअर्स से ,व अधिकारीयों से उसकी नहीं पट पाती,क्योंकि वह तो जन्मजात
राजा है.अब भला उस पर किसी का हुक्म कैसे चल सकता है?
लग्नेश की युति कहीं पर भी शुक्र
के साथ हो जाती है तो जातक को मूत्र स्थान से सम्बंधित रोग होने लगते
हैं.अत्यधिक कामुकता उस पर हावी होने के आसार बन जाते हैं.महिला मित्र
ज्यादा होने लगती हैं .जिस कारण लग्नेश व व्ययेश की युति के कारण जातक
शौक़ीन मिजाज़ हो जाता है.अच्छा पहनना ,खुश्बू,आदि के पीछे वह अधिक खर्चा
करने लगता है.अपनी चादर से ज्यादा पैर पसारने की आदत जीवन में बैंक बैलेंस
को सदा ही निल रखती है.
चंद्रमा इस लग्न में बड़ा महत्त्व
रखता है,क्योंकि भाग्य भाव का स्वामी होता है.लग्न में चन्द्रमा की नीच
राशि होती है अततः यदि चंद्रदेव जरा भी बुरे प्रभाव में आते हैं तो जातक का
अपनी माता से सम्बन्ध सामान्य नहीं रह पाते,सदा खट-पट बनी रहती है.और
जितना अधिक जातक का अपनी माता से वैचारिक मतभेद बढने लगता है उतना ही भाग्य
उसके साथ छल करने लगता है.इसी अवस्था के कारण जातक कई शानदार मौके जीवन
में चूक जाता है.अततः पूर्ण प्राण-प्रतिष्ठा के साथ साथ सदा मोती धारण करे
रहना शुभ फलदायक होता है.
अगले लेख में कभी किसी और लग्न पर चर्चा करने का प्रयास करूँगा.इस लेख पर अपनी राय अवश्य दें.
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अतः आप भी पुण्य के भागीदार बने )