सदा से ये प्रश्न हर इंसान के मन में विवध रूपों में दस्तक देता रह
ता है.आइये इसी प्रश्न का ज्योतिषीय हल जानने का प्रयास करते हैं. कुंडलीशास्त्र के सिधांतानुसार ग्यारहवां भाव आय व द्वितीय भाव धन का होता है.वहीँ दूसरी ओर दशम भाव कार्य व नवम भाग्य का होता है.अब किसी जातक की कुंडली में धन के योगों का मजबूत होना ,मांग करता है की आय-कर्म-व भाग्य स्थान के स्वामी किसी प्रकार का सम्बन्ध अवश्य बनाते हों. यदि साथ ही इनमे नैसर्गिक व तत्कालिक मित्रता भी हो जाये तो सोने पे सुहागा.जातक जो भी कार्य व्यवसाय करेगा उसमे शीघ्र सफलता प्राप्त होगी.
अब इस का पता कैसे लगाया जाय की किस रोजगार में हमें अपने ग्रह नक्षत्रों की सहायता प्राप्त होने वाली है?सामान्यतः जातक का कार्य व्यवसाय दशम भाव से सम्बंधित ही होता है.उसके रूप अथवा तरीके में थोड़ी भिन्नता संभव हो जाती है,जबकि कोई अन्य ग्रह भी दशम भाव को प्रभावित कर रहा हो.दसमेश की उपस्तिथि भी थोडा प्रभावित करती है.उदाहरण देकर समझाता हूँ.तुला लग्न की बात करते हैं.इस लग्न में दशम भाव का अधिपति चंद्रमा होते हैं.सामान्यतः जातक अपने जीवन काल में जल से संबंधित कार्य नौकरी आदि करता है,जैसे टुल्लू पम्प ,खनन,बिजली आदि से सम्बंधित.चंद्रमा कला का प्रतिनिधि भी है.यदि इसी चंद्रमा का सूर्य के साथ योग हो जाय,तो सूर्य के रूप में इसे राजा अर्थात सरकार की भी निकटता प्राप्त हो जाती है.जातक सरकारी नौकरी करता है.इस योग को अथवा दशम भाव को गुरु,शुक्र भी प्रभावित करने लगें,तो जातक शिक्षा के छेत्र से जुड़ता है.अब इन कार्य-व्यवसायों -नौकरी में वह किस हद तक सफलता प्राप्त करने वाला है इसका निर्णय मंगल और सूर्य करेंगे ..
अतः यदि अपने तमाम प्रयासों के बाद भी आप सफलता प्राप्त नहीं कर पा रहे तो जरा देखने का प्रयास करें की कहीं आप अपने दसमेश की नैसर्गिक प्रवृत्ति के प्रतिकूल कार्य व्यवसाय में तो नहीं हैं.दसमेश की उपस्तिथि कहाँ है और किन ग्रहों द्वारा वह प्रभावित हो रहा है?यदि सब कुछ प्रतिकूल है तो नवमेश ही अंतिम सहारा बनता है.भाग्य को बड़ाने का प्रयास होना चाहिए.तो क्या भाग्य नियंत्रित किया जा सकता है? नियंत्रित नहीं किया जा सकता किन्तु सीधा सा सिद्धांत है की दो जन के झगडे में तीसरा स्वतः ही मजबूत अवस्था में होता है.कार्येष -आयेश-धनेश के आपसी खींचतान में भाग्येश को वोट देकर देखें.शायद विजय प्राप्त हो जाये. .