शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

Business... किस कार्य व्यवसाय से होगा धन प्राप्त

सदा से ये प्रश्न हर इंसान के मन में विवध रूपों में दस्तक देता रहता है.आइये इसी प्रश्न का ज्योतिषीय हल जानने का प्रयास करते हैं. कुंडलीशास्त्र के सिधांतानुसार ग्यारहवां भाव आय व द्वितीय भाव धन का होता है.वहीँ दूसरी ओर दशम भाव कार्य व नवम भाग्य का होता है.अब किसी जातक की कुंडली में धन के योगों का मजबूत होना ,मांग करता है की आय-कर्म-व भाग्य स्थान के स्वामी किसी प्रकार का सम्बन्ध अवश्य बनाते हों. यदि साथ ही इनमे नैसर्गिक व  तत्कालिक मित्रता भी हो जाये तो सोने पे सुहागा.जातक जो भी कार्य व्यवसाय करेगा उसमे शीघ्र सफलता प्राप्त होगी.
                                 अब इस का पता कैसे लगाया जाय की किस रोजगार में हमें अपने ग्रह नक्षत्रों की सहायता प्राप्त होने वाली है?सामान्यतः जातक का कार्य व्यवसाय दशम भाव से सम्बंधित ही होता है.उसके रूप अथवा तरीके में थोड़ी भिन्नता संभव हो जाती है,जबकि कोई अन्य ग्रह भी दशम भाव को प्रभावित कर रहा हो.दसमेश की उपस्तिथि भी थोडा प्रभावित करती है.उदाहरण देकर समझाता हूँ.
                               तुला लग्न की बात करते हैं.इस लग्न में दशम भाव का अधिपति चंद्रमा होते हैं.सामान्यतः जातक अपने जीवन काल में जल से संबंधित  कार्य नौकरी आदि करता  है,जैसे टुल्लू पम्प ,खनन,बिजली आदि से सम्बंधित.चंद्रमा कला का प्रतिनिधि भी है.यदि इसी चंद्रमा का सूर्य के साथ योग हो जाय,तो सूर्य के रूप में इसे राजा अर्थात सरकार की भी निकटता प्राप्त हो जाती है.जातक सरकारी नौकरी करता है.इस योग को अथवा दशम भाव को गुरु,शुक्र भी प्रभावित करने लगें,तो जातक शिक्षा के छेत्र से जुड़ता है.अब इन कार्य-व्यवसायों -नौकरी में वह किस हद तक सफलता प्राप्त करने वाला है इसका निर्णय मंगल और सूर्य करेंगे ..
                          अतः यदि अपने तमाम प्रयासों के बाद भी आप सफलता प्राप्त नहीं कर पा रहे तो जरा देखने का प्रयास करें की कहीं आप अपने दसमेश की नैसर्गिक प्रवृत्ति के प्रतिकूल कार्य व्यवसाय में तो नहीं हैं.दसमेश की उपस्तिथि कहाँ है और किन ग्रहों द्वारा वह प्रभावित हो रहा है?यदि सब कुछ प्रतिकूल है तो नवमेश ही अंतिम सहारा बनता है.भाग्य को बड़ाने  का प्रयास होना चाहिए.तो क्या भाग्य नियंत्रित किया जा सकता है? नियंत्रित नहीं किया जा सकता किन्तु सीधा सा सिद्धांत है की दो जन के झगडे में तीसरा स्वतः ही मजबूत अवस्था में होता है.कार्येष -आयेश-धनेश के आपसी खींचतान में भाग्येश को वोट देकर देखें.शायद विजय प्राप्त हो जाये. .

रविवार, 8 जनवरी 2012

भाग्य बड़ा या कर्म

सदैव से ये द्वन्द समाज में  चला आया है की  इंसान का कर्म बड़ा होता है या उसका भाग्य.कर्म के धुर समर्थक एवं  कई बुद्धिजीवी सदा से कर्म के महत्त्व को बताते रहे हैं.शायद सही भी हों.गीता का एक श्लोक इनका बड़ा पसंदीदा श्लोक मन जाता है."कर्मण्ये वाधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन ,माँ कर्म ..................'अर्थात कर्म मैं ही गति है.कहते हैं की एक दिन यही  श्लोक कृष्ण भगवन ने कुंती जी को सुना दिया.उस समय पांडव वनवास भोग रहे थे.कुंती ने पलट   कर कृष्ण को जवाब दिया" भाग्यम फलती सर्वत्र,न विद्या न च पौरुषम ,शुराशकृत विद्याशच वने तिस्तंथी में सुता"अर्थात हे कृष्ण भाग्य ही हर जगह फलित होता है,विद्या और पराक्रम उसके आगे तुच्छ  हैं  .सारी विद्याओं में परिपूर्ण व बल में सर्वश्रेष्ट मेरे पुत्र जंगल की खाक छान रहे हैं और दुर्योधन हस्तिनापुर का राज्य भोग रहा है.भला भाग्य का इससे बड़ा उदहारण और क्या होगा? बात तो सही है भाई.कभी सोचा है की अभी कुछ दिनों पहले अमिताभ जी के घर पोती का जन्म हुआ.ऐश्वर्या जी माँ बनी,उसी समय दुनिया के अलग अलग हिस्सों में कई बच्चों ने जन्म लिया होगा .अब  उनमे से कई को श्याम को पेट भर दूध भी नसीब नहीं हुआ होगा.कोई झोपड़ी में हुआ होगा.कही किसी ने ऐसे ही अरबपति घराने में जन्म लिया होगा.जिसे शायद जीवन में कभी विपन्नता का मुह न देखना पड़े और किसी के जीवन का अंतहीन संघर्ष पैदा होते ही शुरू हो गया होगा.क्या नए जन्मे बच्चे का कोई बस है इस अवस्था को नियंत्रित करने में .क्या अपने जन्म के लिए इच्छित समाज,वातावरण,परिवार चुनने में कोई ताकत हासिल है उसे?नहीं,कदापि नहीं,बल्कि कुदरत ने उसके पूर्वजन्म  के कर्मों के आधार पर उसके लिए ये सब बातें निश्चित की हैं .इसे ही प्रारब्ध या भाग्य कहा जाता है ज्योतिष की भाषा में. पैदायशी रूप से शरीर में कोई विषमता होना,आँखों ,हाथ पैर से लाचार होना सब विधि का लेखा है भैया .तो यहाँ मैं ये निष्कर्ष निकल पाता हूँ की होता सब भाग्य से ही है.और आपका भाग्य आपको कैसा मिलने वाला है,इसका निर्णय आपके द्वारा किये कर्म करते हैं.विधि किसी के साथ पक्षपात नहीं करती.उसके हाथ तो बंधे होते हैं कर्मानुसार भाग्य का निर्धारण करने को.अत: कर्मों की शुद्धता रखें एवम कुदरत की नवाजिशें पायें.आज नहीं तो कल,कल नहीं तो परसों, परसों नहीं तो अगले जन्म में ,भाग्य मेहरबान जरूर होगा.   आमीन.