सोमवार, 16 जुलाई 2012

ज्योतिष और धर्म

कई विद्वान गुरुजनों व अन्य लोगों को भी मेरी इस बात से असहमति हो सकती है किन्तु मैं सदा से धर्म व ज्योतिष को अलग अलग विषय मानता आया हूँ.धर्म व्यक्तिगत होता है,व्यक्ति विशेष के साथ इसका अर्थ, इसकी सीमायें इसकी कट्टरता बदलती रहती है.किन्तु ज्योतिष सब के लिए सामान है.इसका किसी विशेष धर्म,किसी विशेष जाति से  कोई सम्बन्ध नहीं है. सूर्य सबको समान प्रकाश देता है,चंद्रमा सभी को अपनी शीतलता प्रदान करता है.बुध गुरु आदि अन्य ग्रह भी समस्त प्राणियों को सामान रूप से प्रभावित करते हैं.
                            ज्योतिष किसी के साथ पक्षपाती नहीं होता इसका सामान्य सा उदाहरण है की स्वयं भगवान का अवतार होकर भी प्रभु श्री राम व श्री कृष्ण  ग्रहों से बने योगों से स्वयं को बचा नहीं पाए.मेरे गुरु जी कहा करते हैं की भाग्य में लिखा तो भोगना ही पड़ता है,चाहे मनुष्य हो चाहे मनुष्य भेष में भगवान.जिस प्रकार गणित में दो और दो हर जाति धर्म के लिए चार ही होता है,अथवा डेंगू या मलेरिया जैसे बीमारियाँ सभी प्राणियों के लिए एक समान ही कष्टकारी होती हैं,वैसे ही ज्योतिष से सम्बंधित योग सभी प्राणियों के लिए समान रूप से प्रभावी हैं.ये सूर्य के पूर्व में उगने के समान शाश्वत सत्य है.किसी धर्म या किसी देश से इसे जोड़कर इसके विस्तार को सीमित करना मूर्खता है.   
                                                    आपकी आस्था, आपकी शिक्षा आपका वातावरण धर्म का स्वरुप आपके लिए हर आयु में अलग अलग हो सकता है किन्तु यकीन मानिए ग्रहों का प्रभाव सदा एक ही रूप में रहने वाला है.अब आप शाश्त्रोसम्मत उपायों से इन्हें स्वयं के अनुकूल या कहूँ दुर्योगों से अपना बचाव उसी प्रकार कर सकते हैं जिस प्रकार किसी रोग के लिए आप दवा खाकर  राहत पाते हैं.दवा की वो गोली आपके पेट में घुसकर आपकी जाति ,आपके देश को टटोलने का प्रयास नहीं करती.वो सीधा वो कर्म करती है जिस हेतु बनी होती है.इसी प्रकार धूप से बचने के लिए छाता लगाना सब देशों में समान असर देता है.सर्दी भगाने के लिए गरम कपडे पहनना या अन्य उपाय सब देशों ,सब शरीरों ,सब जातियों को समान तौर से बचाव करता है ,ठीक उसी प्रकार सूर्यादि नवग्रहों से होने वाले अनुकूल-प्रतिकूल प्रभावों को उन्ही से सम्बंधित उपायों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है.इसके लिए किसी विशेष देश या धर्म में पैदा होने की आवश्यकता नहीं है.ज्योतिष के समान रूप से संसार के सभी हिस्सों में लोकप्रिय न होने का एक कारण यह भी रहा की इसे सदा हिन्दू धर्म से जोड़कर देखा जाता रहा है.
                                                    जिस प्रकार एक डाक्टर बनने के लिए किसी भी देश ,किसी भी जाति किसी भी धर्म की कोई बाध्यता नहीं होती उसी प्रकार एक ज्योतिषी बनने हेतु भी इस तरह की कोई नियमावली नहीं है.हर वो इंसान जो विधिवत इसकी शिक्षा ग्रहण कर सकता है,जो इस पर सम्पूर्ण श्रद्धा रखकर इसे जानने का प्रयास कर सकता है वो निसन्देह एक शानदार ज्योतिषी हो सकता है.प्राचीन ऋषियों द्वारा मनुष्य मात्र की भलाई हेतु इस शाश्त्र की रचना हुई है .अततः क्षुद्र  मानसिकता में न बंधकर  इसके रहस्य से परिचित हो इसका लाभ उठाने की कोशिश सर्वत्र होनी चाहिए.                 

2 टिप्‍पणियां:

  1. पंडितजी सादर प्रणाम , आज से आपके लेख पढना शुरू किया है ...दिल से और सच कह रहा हूँ ...आपके लेख बहुत ही बढ़िया है ...और पहेली बार इतनी सुलझी हुई बाते आपके लेखो द्वारा पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है ....धन्यवाद्

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