मनुष्य को एक बात सदा जेहन में रखनी चाहिए की ग्रह कभी आसमान से नीचे नहीं
आते हैं.वो ऊपर से ही अपना प्रभाव देते हैं और धरती पर उनसे सम्बंधित
लोग,पेड़-पौधे,जानवर,धातुएं व रत्न आदि उनकी शक्तियों को हम तक पहुँचाने का
काम करते हैं.अब लग्न निर्धारित करता है की किन रिश्तों,रंगों ,धातुओं
,जानवरों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण किरदार होने वाला है.लग्न के हिसाब
से आकारक भावों के अधिपति हमारे लिए कुछ महत्व नहीं रखते,ये थेओरी ही गलत
है.कई अच्छे-अच्छे ज्योतिषियों को इस विषय पर भ्रमित होते हुए देखता
हूँ.अगर इस बात को ही आधार मान लिया जाये तो जातक के जीवन में आधे ग्रहों
का कोई रोल नहीं रहने वाला है.क्या ऐसा होना संभव है? शायद नहीं.
कारक भावों का अधिपति होने का अर्थ वास्तव में ये होता है की इन के द्वारा जातक को जन्म जात सपोर्ट मिलता है,वहीँ दूसरी और कुछ अकारक भावों के अधिपतियों को अपने पक्ष में करने के लिए हमें हाथ पैर चलाने पड़ते हैं.अब यदि तृतीय भाव के स्वामी को हम अकारक मानकर उसकी परवाह नहीं कर रहे हैं व वह स्वयं कहीं कमजोर हो रहा है.तो क्या हम अपने पराक्रम का उचित फल पा पाएंगे? उदाहरण के लिए समझ लो की ये हमारे अपने ही परिवार के सदस्य हैं जो किन्ही कारणों से हमसे नाराज चल रहे हैं,अब हमें अपने सुखी जीवन के लिए शास्त्रोसम्मत इन्हें अपने पक्ष में करके अपनी समस्यों का निवारण करना है.वहीँ दूसरी ओर जो ग्रह कारक होकर शुभ अवस्था मैं हैं उन से अधिक छेड़-छाड़ की आवश्यकता नहीं है,और जो कारक होकर कमजोर हो रहे हैं उनका रत्न आदि धारण करके अन्य उपचार करते रहने चाहियें.
अकारक ग्रहों से संबंधित नाते-रिश्तेदारों से जब हम किसी कारणवश दूरियां बना लेते हैं तो ये ग्रह अधिक दुःख दाई होने लगते हैं.उदाहरण के लिए देखने में आता है की यदि कुंडली में बुध (जो की बुआ का प्रतिनिधि है)जब सूर्य से एक घर आगे निकल जाता है तो जातक के पिता अथवा दादा की कोई बहन या तो घर छोड़ कर चली गयी होती है या उसकी अकाल मृत्यु हो जाती है या किसी कारणवश अपने भाइयों से उसका सम्बन्ध ख़राब हो गया होता है.बुआ को दिशा -ध्यानी का पद प्राप्त होता है.वह जिस दिशा में होती है जातक के लिए उस दिशा की रखवाली करती है.ऐसे में जातक को कभी भी उस दिशा से सहायता प्राप्त नहीं होती.बुध वाणिज्य -व्यवसाय का कारक है ,अततः बुआ की ओर से इस प्रकार का कोई दोष आने से जातक को अपने काम धंदे में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है.वहीँ दूसरी ओर यदि बुध सूर्य से पीछे रह जाता है तो कई बार जातक का अपनी किसी बुआ या बुआ के बच्चों से सम्बन्ध सही नहीं रह पता है.ऐसी हालत में जब भी बुध की दशा या अंतर दशा आती है तो वह उस ग्रह व उस से संबंधित भाव को जिससे की वह कैसा भी योग बना रहा होता है,ख़राब करने का प्रयास करता है.ऐसे में बुआ से सम्बन्ध सही या तुलसी की सेवा या बुध के व्रत शुभ फल देने में समर्थ होते हैं.
ऐसे ही कई अन्य उदाहरण भी हैं.मसलन गले में हल्दी की गाँठ बांधने या जेब में लाल रंग का रुमाल लेकर चलने के जो टोटके होते हैं वो यूँ ही नहीं हैं.इनको मात्र अंधविश्वास मान कर नकार देना हठधर्मिता है .अगले लेख में किसी और ग्रह पर प्रकाश डालने का प्रयत्न करूँगा.इस लेख के प्रति आपकी अमूल्य राय की प्रतीक्षा में रहूँगा.
कारक भावों का अधिपति होने का अर्थ वास्तव में ये होता है की इन के द्वारा जातक को जन्म जात सपोर्ट मिलता है,वहीँ दूसरी और कुछ अकारक भावों के अधिपतियों को अपने पक्ष में करने के लिए हमें हाथ पैर चलाने पड़ते हैं.अब यदि तृतीय भाव के स्वामी को हम अकारक मानकर उसकी परवाह नहीं कर रहे हैं व वह स्वयं कहीं कमजोर हो रहा है.तो क्या हम अपने पराक्रम का उचित फल पा पाएंगे? उदाहरण के लिए समझ लो की ये हमारे अपने ही परिवार के सदस्य हैं जो किन्ही कारणों से हमसे नाराज चल रहे हैं,अब हमें अपने सुखी जीवन के लिए शास्त्रोसम्मत इन्हें अपने पक्ष में करके अपनी समस्यों का निवारण करना है.वहीँ दूसरी ओर जो ग्रह कारक होकर शुभ अवस्था मैं हैं उन से अधिक छेड़-छाड़ की आवश्यकता नहीं है,और जो कारक होकर कमजोर हो रहे हैं उनका रत्न आदि धारण करके अन्य उपचार करते रहने चाहियें.
अकारक ग्रहों से संबंधित नाते-रिश्तेदारों से जब हम किसी कारणवश दूरियां बना लेते हैं तो ये ग्रह अधिक दुःख दाई होने लगते हैं.उदाहरण के लिए देखने में आता है की यदि कुंडली में बुध (जो की बुआ का प्रतिनिधि है)जब सूर्य से एक घर आगे निकल जाता है तो जातक के पिता अथवा दादा की कोई बहन या तो घर छोड़ कर चली गयी होती है या उसकी अकाल मृत्यु हो जाती है या किसी कारणवश अपने भाइयों से उसका सम्बन्ध ख़राब हो गया होता है.बुआ को दिशा -ध्यानी का पद प्राप्त होता है.वह जिस दिशा में होती है जातक के लिए उस दिशा की रखवाली करती है.ऐसे में जातक को कभी भी उस दिशा से सहायता प्राप्त नहीं होती.बुध वाणिज्य -व्यवसाय का कारक है ,अततः बुआ की ओर से इस प्रकार का कोई दोष आने से जातक को अपने काम धंदे में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है.वहीँ दूसरी ओर यदि बुध सूर्य से पीछे रह जाता है तो कई बार जातक का अपनी किसी बुआ या बुआ के बच्चों से सम्बन्ध सही नहीं रह पता है.ऐसी हालत में जब भी बुध की दशा या अंतर दशा आती है तो वह उस ग्रह व उस से संबंधित भाव को जिससे की वह कैसा भी योग बना रहा होता है,ख़राब करने का प्रयास करता है.ऐसे में बुआ से सम्बन्ध सही या तुलसी की सेवा या बुध के व्रत शुभ फल देने में समर्थ होते हैं.
ऐसे ही कई अन्य उदाहरण भी हैं.मसलन गले में हल्दी की गाँठ बांधने या जेब में लाल रंग का रुमाल लेकर चलने के जो टोटके होते हैं वो यूँ ही नहीं हैं.इनको मात्र अंधविश्वास मान कर नकार देना हठधर्मिता है .अगले लेख में किसी और ग्रह पर प्रकाश डालने का प्रयत्न करूँगा.इस लेख के प्रति आपकी अमूल्य राय की प्रतीक्षा में रहूँगा.
pandit jee sadar namashkar.main aapki baat se purntah sahmat hoon.mera khud apni bua se rishta theek nahi nhai,va mera kaam bhi tab se theek nahi chal raha hai.kripaya koi upaay batayen
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