अलग अलग पंथों के अनुयायियों द्वारा अपने अपने आराध्य की महिमा के गुणगान
में कई कथाओं ,कई ग्रंथों कई चमत्कारों का उल्लेख किया जाता रहा है.कई
आश्रमों ,कई मठों,कई संस्थाओं का निर्माण भी भक्तों द्वारा किया जाता है और
वास्तव जिनमे से कई के द्वारा जरुरतमंदों की कई प्रकार से सहायता -सेवा भी
की जाती है.धर्म के प्रति लोगों की आस्था ही संसार को टिकाये रख पायी है.
कई बार मेरे ह्रदय में ये सवाल कौंधता रहता है की कौन सा ईश्वर अधिक शक्तिमान है ,किस के चमत्कारों के किस्से अधिक प्रभावी हैं और किस की शरण में जाकर समस्या का सही और तुरंत उपाय मिलना संभव है.
कई बार चिंतन करने के बाद जो कुछ समझ में आता है वह यही की जैसा गुरुजन सदा से बताते आये हैं की प्रभु तो एक ही हैं ,बस स्थान ,भाषा,भौगोलिक परिस्तिथियों के अनुसार उनके रूप एवम चमत्कारों में भिन्नता आती जाती है.जैसे अग्नि का एक रूप हमें चूल्हे में भोजन बनाते समय दिखता है तो एक रूप दावानल में.ईंट के भट्टों में भी अग्नि है व बिजली के अन्दर से भी निकलने वाली अग्नि है.पेट्रोल अग्नि का ही परिवर्तित रूप है व मोमबत्ती को गलाने वाली भी अग्नि ही है.इसी प्रकार ईश्वर अलग अलग रूपों में है किन्तु उसका मूल एक ही तो है.जैसे माचिस की अलग अलग तीलियों में भी अग्नि का अंश मौजूद है ,और दूर कहीं जलने वाली कोयले की भट्टियों में भी अग्नि मौजूद है ठीक इसी प्रकार प्रभु भी एक साथ अलग अलग रूपों में हर स्थान पर हैं.बस उनका रूप ,उनकी शक्तियां ,उनके द्वारा किये जाने वाली लीलाएं ,उनके चमत्कार अलग अलग हैं.इनमे कोई चमत्कार एक-दूसरे से छोटा या बड़ा नहीं है न ही कोई रूप किसी से कमजोर या शक्तिमान.भगवान् को छोटा बड़ा साबित करने की कोशिश करने वाले लोग उन्ही मूर्खों के समान हैं जो इस गुत्थी को सुलझाने में व्यस्त है की चार चवन्नियों से बना हुआ रूपया बड़ा है की दो अठन्नियों से बना हुआ.
हिमालय से सटे प्रदेशों में हमें शिव के उपासकअधिक मिलते हैं .शिव की ही उपासनाएं व शिव के ही मंदिरों की बहुतायत यहाँ मिलती है.कारण इन प्रदेशों के लोगों का अधिकतर जीवनयापन पहाड़ो की कृपा पर ही निर्भर है .शिव का निवास पहाड़ों पर ही बताया गया है.अततः इन क्षेत्रों में शिव की आराधना का अर्थ अपरोक्ष रूप से प्रकृति के उस अंश को बचाना ही है जिस पर इनका जीवन टिका है. इनके जानवरों के लिए भोजन,इनके लिए ईंधन और लगभग हर वो वास्तु जिस पर इनका जीवन निर्भर है,वो पहाड़ों से ही प्राप्त है. सांकेतिक रूप से पहाड़ों की उपासना यानि शिव की उपासना ही जीवन को बचाए रखने के लिए सर्वप्रथम शर्त है.
इसी प्रकार आप दक्षिण का रुख करें.शायद ही किसी को इस पर संदेह होगा की दक्षिणभारतीय लोगों के जीवन का मुख्य आधार समुद्र ही है.इसके बिना इनके जीवन की कल्पना करना ही असंभव है.यही कारण है की क्षीर सागर में शेषनाग की शय्या पर विराजमान विष्णु जी यहाँ सर्वत्र पूजित हैं. आशय यही रहा होगा की जितना तुम समुद्र का ध्यान रखोगे उतना वह तुम्हारी आजीविका का ,तुम्हारी सम्पन्नता का ध्यान रखेगा. विष्णु के ही भिन्न भिन्न अवतारों की उपासना यहाँ देखने को मिलती है.
राजस्थान गुजरात आदि प्रदेशों में धरती अधिकतर रेतीली होती है जिसमे बहुत अधिक फसल आदि नहीं उगाई जा सकती.वहां के लोगों का मुख्य आहार ,जीवन रस दूध व दूध से बने पदार्थ ही हैं.क्या हैरानी है की वहां गली गली में बांसुरी बजाते कृष्ण मुरारी के मंदिर मिलते हैं.गैय्या के सेवा करोगे,दूध देने वाले जानवरों की सेवा करोगे तो अपनी और अपनी संतानों का पालन पोषण ढंग से कर पाओगे.यही प्रकृति यही जरुरत कृष्ण को वहां पूजनीय बनाती है.
बस भावों का अंतर है भैया वरना कुदरत के लिए तो सभी देव बराबर है ,ये तो हम अज्ञानी मनुष्य हैं जो ईश्वर को बड़ा छोटा कहते हैं.सदा से ही उत्तर भारत की धरती ने बाढ़ आदि के कारण अपने लोगों का पलायन रोजगार की तलाश में अन्य दिशाओं की ओर होते देखा है.यही लोग जब दक्षिण दिशा की ओर गए तो अनजान देश में अपने अस्तित्व की पहचान बचाए रखने के लिए विभिन्न भाषाओँ में ,विभिन्न देशों में ,इन्ही लोगों के द्वारा उत्तर के एक नायक अवध के श्री राम की दक्षिण के एक राजा पर विजय का किस्सा अत्याधिक लोकप्रिय हुआ .समय के साथ साथ वहां के लोगों की श्रद्धा भी इस पर जगाने के लिए राम को विष्णु का अवतार मान लिया गया.अब कोई ताकत रामायण को भारत का सर्वाधिक विश्वसनीय व लोकप्रिय ग्रन्थ बनने से नहीं रोक सकती थी.अब अगर वहां की आबादी उस राजा की पक्षधर होती तो कथाओं में उस राजा को शिव का अनन्य भक्त बता दिया गया .वो शिव जो वहां से सुदूर उत्तर दिशा में ही अधिक लोकप्रिय थे.अब उनका बोलबाला दक्षिण में भी हो गया. उत्तर के लोगों का प्रतिनिधि किन्तु दक्षिण के लोगों के अराध्य विष्णु के अवतार श्री राम के किस्से बाली,सुमात्रा, जावा,मालद्विप आदि कई देशों में कई रूपों में समान रूप से प्रिय हैं.बाद में अपने अपने आराध्यों के प्रति अपनी भावना के तहत शिव के उपासकों ने राम को रामेश्वरम में शिव की उपासना कर ज्योतिर्लिंग की स्थापना करते हुए दर्शा दिया,तो विष्णु के उपासकों ने राम के परम भक्त व सदा उनके चरणों में विराजने वाले हनुमान जी को शिव का अवतार बताया. किन्तु इस एक अकेले चरित्र जिसने की समान रूप से सर्वदा भिन्न संस्कृतियों को ,दो भिन्न दिशाओं को जिस मजबूती से एक सूत्र में पिरोया ,उतना कोई अन्य पौराणिक चरित्र नहीं कर पाया.यही कारण है की राम समान रूप से सबके हैं .सभी के अराध्य व सभी के प्रिय हैं .
मेरी मनसा किसी की भावनाओं को दुखाना या किसी के विश्वास को किसी भी प्रकार की चुनौती देने की नहीं है.मैं स्वयं एक धर्मभीरु इंसान हूँ,जिसकी श्रद्धा सभी देवों पर समान है.मैं जितना आनंद कृष्ण के भजनों में प्राप्त करता हूँ उतना ही आनंद मुझे मानस की चौपाइयों में आता है.मैं शिव रात्री,जन्माष्टमी व राम नवमी के व्रत समान श्रद्धा से लेता हूँ.
कहने का तात्पर्य यह है की ईश्वर की महिमा को को कम ज्यादा कर के आंकने की कोशिश हमें उस मार्ग से दूर कर देती है जिस पर चलकर हम परमात्मा के प्रिय बनते हैं. धर्म के प्रति समान आस्था और सभी की आस्थाओं के प्रतीकों को समान मानने की भावनाओं के कारण ही धर्म रंग,भाषा,भौगोलिक परिस्तिथियों की इतनी असमानता होते हुए भी आज हम एकता के तौर पर दुनिया के लिए एक मिसाल हैं.यही कारण है की हमारी ही भूमि से निकले बौद्ध धर्म का आज सुदूर उत्तर के देशों में अनुशरण किया जाता है. यही कारण है की अपने को हम से श्रेष्ट कहने वाले आज यहाँ आकर राम और कृष्ण के रंगों में ढले मिलते हैं.हजारों सालों से बाहरी ताकतों द्वारा हमारा शोषण करने ,हमें मिटा देने की कोई कसर नहीं छोड़ी गयी.फिर भी क्या कारण है की इतने सदियों की गुलामी के बाद भी आज हम पर राज करने वाले देश मिटने की कगार पर है और हम दिनोदिन महाशक्ति बनते जा रहे हैं.दुनिया की निगाह आज हम पर है.कारण वही है बंधुओ ,अपने धर्म पर अपने देवताओं पर हमारा अखंड विश्वास .इन्ही शक्तियों ने हमारे अस्तित्व को बचाए रखा और यदि हमें आगे भी खुद को यूँ ही श्रेष्ट बनाये रखना है तो उसकी एक मात्र शर्त धर्म के नाम पर हमें बांटने वालों,भाषा के नाम पर, रंग रूप के नाम पर हमें गुमराह कर अपना उल्लू सीधा करने वालों से सावधान रहना है.
कहाँ से लिखना शुरू किया था और सूत्र कहाँ आकर पहुंचा.आप कहेंगे की मुद्दे से भटक गया,किन्तु मैं जानता हूँ की मैं बह गया.प्रभु का स्मरण ही मुझे कहीं से कहीं ले गया.लेख के विषय में आप की राय की प्रतीक्षा रहेगी.
कई बार मेरे ह्रदय में ये सवाल कौंधता रहता है की कौन सा ईश्वर अधिक शक्तिमान है ,किस के चमत्कारों के किस्से अधिक प्रभावी हैं और किस की शरण में जाकर समस्या का सही और तुरंत उपाय मिलना संभव है.
कई बार चिंतन करने के बाद जो कुछ समझ में आता है वह यही की जैसा गुरुजन सदा से बताते आये हैं की प्रभु तो एक ही हैं ,बस स्थान ,भाषा,भौगोलिक परिस्तिथियों के अनुसार उनके रूप एवम चमत्कारों में भिन्नता आती जाती है.जैसे अग्नि का एक रूप हमें चूल्हे में भोजन बनाते समय दिखता है तो एक रूप दावानल में.ईंट के भट्टों में भी अग्नि है व बिजली के अन्दर से भी निकलने वाली अग्नि है.पेट्रोल अग्नि का ही परिवर्तित रूप है व मोमबत्ती को गलाने वाली भी अग्नि ही है.इसी प्रकार ईश्वर अलग अलग रूपों में है किन्तु उसका मूल एक ही तो है.जैसे माचिस की अलग अलग तीलियों में भी अग्नि का अंश मौजूद है ,और दूर कहीं जलने वाली कोयले की भट्टियों में भी अग्नि मौजूद है ठीक इसी प्रकार प्रभु भी एक साथ अलग अलग रूपों में हर स्थान पर हैं.बस उनका रूप ,उनकी शक्तियां ,उनके द्वारा किये जाने वाली लीलाएं ,उनके चमत्कार अलग अलग हैं.इनमे कोई चमत्कार एक-दूसरे से छोटा या बड़ा नहीं है न ही कोई रूप किसी से कमजोर या शक्तिमान.भगवान् को छोटा बड़ा साबित करने की कोशिश करने वाले लोग उन्ही मूर्खों के समान हैं जो इस गुत्थी को सुलझाने में व्यस्त है की चार चवन्नियों से बना हुआ रूपया बड़ा है की दो अठन्नियों से बना हुआ.
हिमालय से सटे प्रदेशों में हमें शिव के उपासकअधिक मिलते हैं .शिव की ही उपासनाएं व शिव के ही मंदिरों की बहुतायत यहाँ मिलती है.कारण इन प्रदेशों के लोगों का अधिकतर जीवनयापन पहाड़ो की कृपा पर ही निर्भर है .शिव का निवास पहाड़ों पर ही बताया गया है.अततः इन क्षेत्रों में शिव की आराधना का अर्थ अपरोक्ष रूप से प्रकृति के उस अंश को बचाना ही है जिस पर इनका जीवन टिका है. इनके जानवरों के लिए भोजन,इनके लिए ईंधन और लगभग हर वो वास्तु जिस पर इनका जीवन निर्भर है,वो पहाड़ों से ही प्राप्त है. सांकेतिक रूप से पहाड़ों की उपासना यानि शिव की उपासना ही जीवन को बचाए रखने के लिए सर्वप्रथम शर्त है.
इसी प्रकार आप दक्षिण का रुख करें.शायद ही किसी को इस पर संदेह होगा की दक्षिणभारतीय लोगों के जीवन का मुख्य आधार समुद्र ही है.इसके बिना इनके जीवन की कल्पना करना ही असंभव है.यही कारण है की क्षीर सागर में शेषनाग की शय्या पर विराजमान विष्णु जी यहाँ सर्वत्र पूजित हैं. आशय यही रहा होगा की जितना तुम समुद्र का ध्यान रखोगे उतना वह तुम्हारी आजीविका का ,तुम्हारी सम्पन्नता का ध्यान रखेगा. विष्णु के ही भिन्न भिन्न अवतारों की उपासना यहाँ देखने को मिलती है.
राजस्थान गुजरात आदि प्रदेशों में धरती अधिकतर रेतीली होती है जिसमे बहुत अधिक फसल आदि नहीं उगाई जा सकती.वहां के लोगों का मुख्य आहार ,जीवन रस दूध व दूध से बने पदार्थ ही हैं.क्या हैरानी है की वहां गली गली में बांसुरी बजाते कृष्ण मुरारी के मंदिर मिलते हैं.गैय्या के सेवा करोगे,दूध देने वाले जानवरों की सेवा करोगे तो अपनी और अपनी संतानों का पालन पोषण ढंग से कर पाओगे.यही प्रकृति यही जरुरत कृष्ण को वहां पूजनीय बनाती है.
बस भावों का अंतर है भैया वरना कुदरत के लिए तो सभी देव बराबर है ,ये तो हम अज्ञानी मनुष्य हैं जो ईश्वर को बड़ा छोटा कहते हैं.सदा से ही उत्तर भारत की धरती ने बाढ़ आदि के कारण अपने लोगों का पलायन रोजगार की तलाश में अन्य दिशाओं की ओर होते देखा है.यही लोग जब दक्षिण दिशा की ओर गए तो अनजान देश में अपने अस्तित्व की पहचान बचाए रखने के लिए विभिन्न भाषाओँ में ,विभिन्न देशों में ,इन्ही लोगों के द्वारा उत्तर के एक नायक अवध के श्री राम की दक्षिण के एक राजा पर विजय का किस्सा अत्याधिक लोकप्रिय हुआ .समय के साथ साथ वहां के लोगों की श्रद्धा भी इस पर जगाने के लिए राम को विष्णु का अवतार मान लिया गया.अब कोई ताकत रामायण को भारत का सर्वाधिक विश्वसनीय व लोकप्रिय ग्रन्थ बनने से नहीं रोक सकती थी.अब अगर वहां की आबादी उस राजा की पक्षधर होती तो कथाओं में उस राजा को शिव का अनन्य भक्त बता दिया गया .वो शिव जो वहां से सुदूर उत्तर दिशा में ही अधिक लोकप्रिय थे.अब उनका बोलबाला दक्षिण में भी हो गया. उत्तर के लोगों का प्रतिनिधि किन्तु दक्षिण के लोगों के अराध्य विष्णु के अवतार श्री राम के किस्से बाली,सुमात्रा, जावा,मालद्विप आदि कई देशों में कई रूपों में समान रूप से प्रिय हैं.बाद में अपने अपने आराध्यों के प्रति अपनी भावना के तहत शिव के उपासकों ने राम को रामेश्वरम में शिव की उपासना कर ज्योतिर्लिंग की स्थापना करते हुए दर्शा दिया,तो विष्णु के उपासकों ने राम के परम भक्त व सदा उनके चरणों में विराजने वाले हनुमान जी को शिव का अवतार बताया. किन्तु इस एक अकेले चरित्र जिसने की समान रूप से सर्वदा भिन्न संस्कृतियों को ,दो भिन्न दिशाओं को जिस मजबूती से एक सूत्र में पिरोया ,उतना कोई अन्य पौराणिक चरित्र नहीं कर पाया.यही कारण है की राम समान रूप से सबके हैं .सभी के अराध्य व सभी के प्रिय हैं .
मेरी मनसा किसी की भावनाओं को दुखाना या किसी के विश्वास को किसी भी प्रकार की चुनौती देने की नहीं है.मैं स्वयं एक धर्मभीरु इंसान हूँ,जिसकी श्रद्धा सभी देवों पर समान है.मैं जितना आनंद कृष्ण के भजनों में प्राप्त करता हूँ उतना ही आनंद मुझे मानस की चौपाइयों में आता है.मैं शिव रात्री,जन्माष्टमी व राम नवमी के व्रत समान श्रद्धा से लेता हूँ.
कहने का तात्पर्य यह है की ईश्वर की महिमा को को कम ज्यादा कर के आंकने की कोशिश हमें उस मार्ग से दूर कर देती है जिस पर चलकर हम परमात्मा के प्रिय बनते हैं. धर्म के प्रति समान आस्था और सभी की आस्थाओं के प्रतीकों को समान मानने की भावनाओं के कारण ही धर्म रंग,भाषा,भौगोलिक परिस्तिथियों की इतनी असमानता होते हुए भी आज हम एकता के तौर पर दुनिया के लिए एक मिसाल हैं.यही कारण है की हमारी ही भूमि से निकले बौद्ध धर्म का आज सुदूर उत्तर के देशों में अनुशरण किया जाता है. यही कारण है की अपने को हम से श्रेष्ट कहने वाले आज यहाँ आकर राम और कृष्ण के रंगों में ढले मिलते हैं.हजारों सालों से बाहरी ताकतों द्वारा हमारा शोषण करने ,हमें मिटा देने की कोई कसर नहीं छोड़ी गयी.फिर भी क्या कारण है की इतने सदियों की गुलामी के बाद भी आज हम पर राज करने वाले देश मिटने की कगार पर है और हम दिनोदिन महाशक्ति बनते जा रहे हैं.दुनिया की निगाह आज हम पर है.कारण वही है बंधुओ ,अपने धर्म पर अपने देवताओं पर हमारा अखंड विश्वास .इन्ही शक्तियों ने हमारे अस्तित्व को बचाए रखा और यदि हमें आगे भी खुद को यूँ ही श्रेष्ट बनाये रखना है तो उसकी एक मात्र शर्त धर्म के नाम पर हमें बांटने वालों,भाषा के नाम पर, रंग रूप के नाम पर हमें गुमराह कर अपना उल्लू सीधा करने वालों से सावधान रहना है.
कहाँ से लिखना शुरू किया था और सूत्र कहाँ आकर पहुंचा.आप कहेंगे की मुद्दे से भटक गया,किन्तु मैं जानता हूँ की मैं बह गया.प्रभु का स्मरण ही मुझे कहीं से कहीं ले गया.लेख के विषय में आप की राय की प्रतीक्षा रहेगी.