सोमवार, 14 दिसंबर 2015

राम जन्म का नक्षत्र क्या था,पुनर्वशु या पुष्य


        एक पाठिका के इस प्रश्न ने कि आप राम के जन्म नक्षत्र को पुष्य क्यों कह रहे हैं जबकि सामान्यतः इसे कई ज्ञानियों द्वारा पुनर्वशु बताया गया है ,मुझे इस विषय पर कलम घसीटने को विवश कर दिया ....काफी समय से विद्वानो में ये मतभेद रहा है कि राम का वास्तविक जन्म नक्षत्र व तिथि क्या थी। आज तक मुख्य मतभेद पुष्य व पुनर्वशु को लेकर है। तुलसीदास जी कहते हैं   ..........
       नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता।।
       मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा।।   
               तथा वाल्मीकि रामायण में आता है
"ततो य्रूो समाप्ते तु ऋतुना षट् समत्युय: ।
ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ॥
नक्षत्रेsदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पंचसु ।
ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह॥
प्रोद्यमाने जनन्नाथं सर्वलोकनमस्कृतम् ।
कौसल्याजयद् रामं दिव्यलक्षसंयुतम् "॥
                     हम जानते  हैं कि पुनर्वशु नक्षत्र तालिका में सातवें क्रम में आता है ,जिसपर देवगुरु  का आधिपत्य है  जिसके प्रथम तीन चरणो को भोगने का अधिकार मिथुन व चतुर्थ का कर्क को हासिल है। पाठक जानते हैं कि एक नक्षत्र १३ अंश २० कला का होकर ०३ अंश २० कला के चार चरणो से निर्मित है।वहीँ दूसरी ओर एक तिथि सूर्य व चन्द्र की दैनिक गतियों व दूरी के परिणामस्वरूप १२ अंश  की मानी जाती है।ऐसे में हम रामनवमी चैत की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाते हैं .कई विद्वान इस बात पर भी संशय में आते हैं कि चैत्र मॉस में सूर्य मीन राशि में विचरण करते हैं जबकि राम की कुंडली में सूर्य सहित पांच ग्रह उच्च थे। ... मेष सूर्य की उच्च राशि है... .चन्द्र स्वयं  की राशि कर्क में होकर उच्च के देवगुरु के साथ ज्योतिष शाश्त्र के श्रेष्ठं गजकेसरी योग का निर्माण कर रहे थे। मंगल सप्तम में मकर में पंचमहापुरुष में से रूचक व शनि चतुर्थ में शश योग बनाते हुए दशम में उच्च के सूर्य के समसप्तक होकर पितृ दोष का निर्माण भी कर रहे थे।तकनीकी रूप से बुध व शुक्र में से एक बार में एक ही ग्रह उच्च हो सकते हैं व चैत्र -बैशाख में बुध का उच्च होना असंभव है, तो भाग्य भाव में दैत्याचार्य ही अपनी उच्च राशि मीन में गोचर कर रहे थे।जैसा आज भी प्रचलन है ,कि हमारे उत्तर पूर्वी राज्यों में सूर्य माह की अपेक्षा चन्द्र मॉस की प्रधानता है ,अतः सौर्य  गणना के अनुसार भले ही सूर्य मेष में उच्च हो चुके थे किन्तु यहाँ जिक्र तिथि का हुआ है न कि गते का। जैसा कि हम जानते हैं तिथि निर्धारित करने का अधिकार चन्द्रमा के पास है व  राम जन्म सन्दर्भ में अभी पूर्णिमा आनी बाकी थी(जहाँ मास बदला जाना अभी बाकी था )। जिस कारण चन्द्र चैत्र मॉस ही चल रहा था  भले ही सूर्य, बैशाख की घोषणा कर चुका था।साधारण गणना  आधार पर ही देखें तो पुनर्वशु ८० अंश से ९३ अंश २० कला तक विस्तार लिए हुए है., वहीँ दूसरी ओर नवमी तिथि ९६ अंश से १०८ अंश मध्य प्रभावी है ....कर्क में अपने चतुर्थ चरण के दौरान पुनर्वशु ९० अंश से ९३ अंश २० कला तक अस्तित्व में है। ऐसे में अभिजीत काल दिन के लगभग मध्य में ४५ मिनट का माना गया है।  ९३ अंश २० कला में समाप्त हो रहा  पुनर्वशु नक्षत्र भला कैसे ९६ अंश से आरम्भ हो रही नवमी तिथि में अपनी भागेदारी कर  सकता है। नहीं कर सकता। ..... अतः स्पष्ट रूप से ९३ अंश २० कला के बाद आरम्भ हो रहा पुष्य नक्षत्र अपने विस्तार १०६ अंश ४० कला के अधिकार क्षेत्र में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को पाने का अधिकारी है। आशा है प्रबुद्ध पाठक सहमत होंगे। ....   
                                 

  

1 टिप्पणी:

  1. जय श्री राम पंडित जी!आज सुबह ही मैं राम और कृष्ण जी के जन्म नक्षत्र के बारे में सोंच रही थी।कृष्ण जी के नक्षत्र तो रोहिणी है,राम के नक्षत्र पुष्य होना चाहिए पुनर्वसु नहीं,मन में बार बार यही बात मेरे मन को परेशान कर रहा था।क्यों ये दोनों भगवान् के कुंडली अपने अभ्यास के वक्त देख चुकी थी और आज और अभी जब गुगल खोला ही था आप के लेख इसी विषय पर था तो मैं हैरान हो गयी और बहुत खुश भी हो गयी कि कुछ क्षण में मेरा असमंजस दूर हो गयी।ऐसा संयोग किसी का हो सकता है क्या!आभार पंडित जी।

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