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__हाँ_ राम सीता ने की थी आत्महत्या........:::: समाज में आज हम इसे सीता
के पृथ्वी में समा जाने अथवा निराश होकर राम के जल समाधि लेने के रूप में
जानते हैं किन्तु इस वास्तविकता को नकार पाना असंभव है कि समाज की रूढ़ियों
से त्रस्त हो अंत में दैवीय गुण लेकर भी ये दोनों महान आत्माएं स्वयं अपना
जीवन समाप्त कर बैठीं..उस समय काल के अनुसार राम को वानप्रस्थ लेना चाहिए
था ..किन्तु सीता को अपनाने पर तथाकथित कुलीन समाज हाथ धो कर उनके पीछे पड़
गया था..कालान्तर में कई हाथों से गुजरे रामायण
के लेखों में अपने अपने अनुसार लेखको ने कई बदलाव किये..कुलीन समाज द्वारा
कसे तंज को धोबी की गलती बताया गया..इसी प्रकार प्रबुद्ध पाठक जानते हैं
कि वाल्मीकि रामायण में सीता स्वयंवर का जिक्र नहीं है..यहाँ विश्वामित्र
जी के साथ दोनों भाइयों के मिथिला आगमन पर विश्वामित्र स्वयं जनक से शिव
धनुष राम लक्ष्मण को दिखाने का आग्रह कर रहे हैं ..जहाँ राम के धनुष
निरिक्षण के दौरान वो स्वतः ही टूट गया और अपने प्रण के अनुसार कि जो शिव
धनुष भंग करेगा, सीता का वरण वही करेगा,जनक ने सीता राम को ब्याह दी..मानस
में तुलसीदास जी ने इस प्रसंग को बकायदा इमोशन्स का छौंक मार कर इस सीन की
TRP बढ़ा दी.. अपनी वेब साईट व ब्लॉग से प्राप्त कई प्रश्नो के संयुक्त
उत्तर में बताना चाहूँगा कि चतुर्थ में शनि का अकेले होना शुभ नहीं माना
जाता..जिसकी कुंडली में ये योग होता है उसके परिवार का कोई सदस्य मेडिकल
क्षेत्र से अवश्य जुड़ता है किन्तु उसका अपना बुढ़ापा स्वयं काफी तकलीफों से
बीतता है..राम स्पष्ट मांगलिक थे..आप लग्न के गुरु की उपस्थिति से उनके
सप्तम के मंगल को दोषमुक्त करने का सूत्र यहाँ नहीं लगा सकते..कारण एक तो
स्वयं मकर गुरु की नीच राशि है व गुरु षष्टेश हैं ....ऐसे में गुरु मंगल के
दोष को बैलेंस करने।के अधिकारी यहाँ नहीं हो सकते..फिर कर्क में शनि को
परम मारक माना गया है..ऐसे में मारकेश को चतुर्थ में उच्च होकर बलवान करने
से क्या भला हो सकता था..परिणाम स्वयं पाठक बंधू जानते हैं.. कर्क लग्न पर विराजमान चन्द्र पर शत्रु शनि की दृष्टि व मंगल का नीच राशि को देखना वस्तुतः दो पाप ग्रहों का लग्न व चन्द्र दोनों को प्रभावित करना अंततः डिप्रेशन की भूमिका में राम के लिए घातक कदम उठाने का कारक बने। धरती से उत्पन्न सीता धरती में समा गईं व समुद्र के देव होकर विष्णु वापस समुद्र में चले गए . मारक न होकर भी
मंगल के प्रभाव से सीता जी ने कितने कष्ट देखे...स्वयं राम की अवस्था पर
गौर कीजिये.,..स्त्री पास नहीं..बुढ़ापे में हुई संतान तक का सुख
नहीं...कुछ आंकड़ों के अनुसार २३५० ईसा पूर्व से १९५० ईसापूर्व का समय काल रघुकुल आर्यों के लिए दशरथ के शासन से राम के शासन का समय काल है ,ऐसे में यदि राम को पुष्य में गणना करने पर शनि की महादशा से आरम्भ करने पर हम लगभग ८० वर्ष की आयु में राहु में राहु के अंतर में राम के मृत्यु दिन की कल्पना कर सकते हैं। बाद में कुछ वर्षों तक रघुवंश के अन्य उत्तराधिकारियों के पश्चात यादव वंश द्वारा इश्वाकु वंश के साम्राज्य को प्राप्त कर लिया गया। तब द्वापर आ चुका था और यहीं हम विश्व के श्रेष्ट नायकों में शामिल कृष्ण का जन्म पाते हैं। .सूर्य शनि का समसप्तक होना स्पष्ट पितृ दोष माना गया है..यही दशरथ मरण का कारक बन ,स्वयं को आजीवन अस्थिर करता रहा.,,अतः पाठकों को सलाह है कि यथासंभव चतुर्थ शनि का निवारण करा लेना ही हितकर होता है..
Guruji kripa karke ye bataiye 4th saniki banana rashiko pahla maankar kiyakaye ya lagna Ki hisabse.meri lalkitabki hisabse 4 th Mein sanidev Hein.kya meri wohi calculation hoga
जवाब देंहटाएंप्रणाम पंडित जी !बहुत बहुत धन्यवाद आप के बहुमूल्य जानकारी के लिए !👍👌
जवाब देंहटाएंpranam gurudev
जवाब देंहटाएंजय हो ठाकुर जी की
हटाएंजय हो ठाकुर जी की
हटाएंmera nam sanjeev me koi bhi kaam karta hu sirf nukshan hi hota he krpaya koi upaye bataye
जवाब देंहटाएंराम राम जी.
जवाब देंहटाएंललित जी को सादर प्रणाम.प्रभु मेरी जन्म तिथि 22/4/1977 समय 4:25pm kanpur up है भगवम राहू की अनतरदशा अगस्त में चालू होरही है क्या गोमेद पहनना चाहिए. पन्ना पहना हुआ है. भगवन व्यापार बन्द होने को है कई काम बदल चुके हैं सफलता नही मिली. क्या करनाचाहिए क्या शेयर मार्केट में सफलता मिलेगी क्या भविष्य सुरक्षित है बताने का कष्ट करें प्रणाम
जवाब देंहटाएंआपको सादर प्रणाम रवि जी...इतना आदर न दें बंधु.. मैं एक सामान्य सा ज्योतिष विद्यार्थी हूँ बस..भगवान् कृष्ण के नक्षत्र रोहिणी में जन्म,ग्रहों के राजा सूर्य देव उच्च,शुक्र उच्च,भाग्य भाव में गजकेसरी योग ..तब भी हिम्मत हार रहे हैं..कृष्ण अपनी बुआ के बेटे जयद्रथ का शाप ढोते रहे ,आप अपनी बुआ की अल्पमृत्यु से उपजे दोष का समीकरण पक्ष में नहीं कर सके...मथुरा न त्यागते कृष्ण तो आज भगवान न होते...आप कानपुर नहीं त्यागे क्या अभी तक??जबकि विदेश की भूमि कब से आपके लिए पलकें बिछाए बैठी है..भाग्य में उच्च के चंद्र नवमांश में भी स्वग्रह -स्वराशि के हो गए हैं,,आय में विराजमान शनि पंचम रिस्क भाव को अपने ही घर को देख रहे हैं..शनि के व्यवहार से परिचित जातक भलीभांति जानते हैं कि किसी भी प्रकार की सट्टेबाजी इनके साथ नहीं चलती,,ऊपर से शेयर बाजार का स्वामी बुध अष्ठम में वक्री...अतः शेयर बाजार बहुत माफिक आएगा इसमें संदेह है..हाँ सलाह आपके पास जबर्दस्त हैं...उसका उपयोग करें...राहु विस्तार है व गुरु सलाह....संसार आपके विचारों की राह ताक रहा है..सफ़ेद मोती धारण करें...मोर मुकुट पूजा स्थान में रखें व कार्य स्थल पर रखें...तीसरी जीवित संतान भाग्योदय कराएगी..वकालत ,टूरिज्म संबंधी,अथवा कोई भी कार्य जो सलाह संबंधी हो,,आपके लिए उपयुक्त है..संशय न करें कभी स्वयं पर..कृष्ण भी भगोड़े कहलाये,चोरी का इल्जाम लगा.पर आत्मसंतुलन बनाये रखा उन्होंने..इसीलिए सफलता का नया इतिहास लिख पाये...केरलीय विधि से हरिवंश पुराण का पाठ योग्य ब्राह्मणों से करवायें...राहु अंतर्दशा लाभकारी रहेगी..चिंतित न हों....
हटाएंललित जी को सादर प्रणाम.प्रभु आपने हमारे लिये समय निकाला आपका बहुत-बहुत आभार. भगवन पन्ना पहना हुआ है तो मोती पन्ने के साथ पहन ले या पन्ना उतार के सिर्फ मोती पहने जरूर बताये. प्रणाम
जवाब देंहटाएंसामान्यतः दोनों आपस नें वर्जित रत्न हैं...वैसे चाहें तो अलग अलग हाथ ने धारण जड़ें
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