गुरुवार, 5 नवंबर 2015

धनतेरस - आरोग्यता व स्वास्थ्य पाने का दिन

         दीपावली से दो दिन पूर्व अर्थात कार्तिक मॉस की त्रियोदशी को धनतेरस के रूप में मनाने की प्रथा  सनातन धर्म में है। पूर्व काल में धन के इतर स्वास्थ्य को सबसे बड़ी पूंजी माना जाता था ,उत्तम स्वास्थ्य ही सर्वोत्तम धन हुआ करता था। समय के साथ साथ भौतिकता व बाजारवाद हावी होता गया व नगदी तथा विलासता को महत्व दिया जाने लगा और यहीं से धनतेरस की पूजा का अर्थ व महत्व बदलता गया। कुछ रोल इसमें मेरे जैसे पंडितों व उनके जात भाइयों का भी रहा ,जिन्होंने समाज को वास्तविक राह से भटकाकर अपना हित साधने को ही धर्म मान लिया। इस प्रकार एक अति महत्वपूर्ण परंपरा व  उत्सव काल की ही भेंट चढ़ गए ,तथा उनका  एक अन्य विकृत रूप सामने आया।
           स्कन्द पुराण के अनुसार ये काल को जीतने का पर्व है . कार्तिक मॉस के कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी को देवताओं के वैद्य धन्वन्तरि जी  समुद्र मंथन के फल के रूप में हाथ में अमृत लिए प्रकट हुए। मंदराचल पर्वत पर बासुकी नाग की मथनी से देव दानवों ने मंथन किया जिसमें अमृत की प्राप्ति हुई। वो अमृत जो अकाल मृत्यु को टालने में पूर्णतः सक्षम था। अर्थात चिरंजीवी होने का वरदान देने वाला दिन। आज हम लोगों को इस दिन नए वाहन -मकान -जेवर आदि खरीदते देखते हैं। मानस चेतना में भाव यही रहता है कि आज खरीदी गई  कोई भी वस्तु  चिरकाल तक अमर रहेगी। वस्तुतः ये बाजारवाद की नई परिभाषाएं हैं जहाँ स्वास्थ्य को गौण कर दिया गया है ,व भोगविलास को ही महत्व प्राप्त हुआ है।
     धनतेरस वास्तव में अपने व अपनों के लिए स्वास्थ्य खरीदने का दिन है ,आरोग्य जमा करने का पर्व है ,निरोगता पाने का उत्सव है। कन्या के चन्द्रमा इस दिन अपनी ऊर्जाओं में व्याप्त संजीवनी को ,अमृत को, बुध के माध्यम से प्रेषित करते हैं। पाठक जानते हैं कि बुध से बड़ा चिकित्सक कोई नहीं। इसी कारण संजीवनियों में नीम व तुलसी सर्वश्रेष्ठ हैं , इसी कारण नवजात बच्चे को किन्नर का स्तन पान करवाने की प्रथा कई जातियों में प्रचलित है ,इसी कारण अस्पतालों में आप डाक्टरों को हरे मास्क पहने देखते हैं ,हरी चादरें उपयोग करते देखते हैं। हरा रंग बुध है ,हरा ही प्राण है , बुध ही आरोग्यता है अतः बुध ही जीवन है।
         पाठकों  को चाहिए कि इस दिन प्रातः दंतधावन व नित्यकर्म से निवृत हो ,स्नानादि कर दिन में व्रत करे।  प्रदोष काल में यमराज व धन्वन्तरि जी का आह्वान कर दीप व नैवैद्य समर्पित करे घर के मुख्य द्वार पर  दीपक जलाएं व निम्नलिखित मन्त्र का जाप करें           
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            मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह।
            त्रयोदश्यां दीपदानात सूर्यज: प्रीयतामिति॥
 इसके पश्चात आपामार्गा की लकड़ी (पत्तों सहित ) परिवार जनो के सिर पर तीन बार घुमाकर तुलसी के पौधे के निकट रख दें व कभी समय मिलने पर जल प्रवाहित करें। अपमार्गा सिर से घुमाते समय निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें "सीतलाश्त सीतलोष्टसमायुक्त्त सकण्ठकदलान्वित
                    हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाणः पुनः पुनः "
     प्रभु धन्वन्तरि सदा आपको व आपके प्रियजनों को स्वस्थ रखे व किसी भी अकाल दुर्घटना में आपके  रक्षक हों। … धनतेरस व दीपावली की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ … आपका अपना बंधु 
   
   
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