शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

Silent killer...... Mercury and Ketu.... बुध और केतु :ज्योतिष के साइलेंट किलर

ज्योतिष में यदि सबसे कम चर्चा किन्ही ग्रहों की होती है तो वो हैं बुध व केतु. इनपर सबसे कम लिखा गया है,सबसे कम ध्यान  दिया जाता है , सबसे कम इन्ही से डरा जाता है.मंगल, राहू, शनि,अदि ग्रहों का नाम सुनकर ही आम आदमी की घिगी बंध जाती है,किन्तु बुध और केतु को बेचारे समझ कर इन्हें भाव ही नहीं दिया जाता.इस कारण ये अन्दर ही अन्दर कितना नुकसान कर जाते हैं  पता ही नहीं चल पाता.
                                                           आपने कभी किसी घुन्ने इंसान को देखा है?अरे वही जो बस मन ही मन जलना ,चिढना जानता है. पर कभी आपके सामने आपके लिए अपनी फितरत को प्रदर्शित नहीं करता.आपकी गाडी से लिफ्ट मांगकर आता है और मौका देखकर उसी की हवा निकाल देता है और वापसी में आपको बिना बताय किसी और के साथ निकल जाता है.या जाते जाते आपकी गाडी पर पत्थर से निशान मार जाता है.  जिसे बात बात पर आँख मारने की आदत होती है जैसे कह रहा हो की बेटा मुझे क्या समझा रहे हो,मुझे तो सब पहले से ही पाता है वो तो बस मैं तुम्हारी बातों से मजे ले रहा हूँ. `आप उसकी मीठी मीठी बातों से कभी कभी समझ तो सब जाते हैं लेकिन उसके चापलूसी भरे व्यवहार के कारण उसे कह कुछ नहीं पाते.और वह समय समय पर आपके ऊपर गुप्त प्रहार करने से नहीं चूकता.
                                           बस तो साहब यही हाल ज्योतिष में केतु और बुध का है.बुध की दोनों राशियाँ द्विस्वभाव हैं अततः नैसर्गिक रूप से इसका व्यवहार भी द्विस्वभाव है.जहाँ यह सूर्य को छोड़ कर आगे निकला ,या सूर्य की आँख बचाकर  उससे पीछे रह गया तो तब आप इसकी खुरापातों को ढंग से समझ लेंगे.यह आपको परेशान  करने से नहीं चूकेगा.जातक की या तो बुआ (पिता की बहन)होती नहीं है,या जातक के अपनी बुआ से सम्बन्ध ठीक नहीं रह पाते.जिस कारण वह व्यवसाय में सदा धोखा खाता है या पर्याप्त परिश्रम के  के बाद भी फल प्राप्त नहीं करता.
                                 केतु विश्वासघात करने वाला ग्रह है .ये जहाँ  अकेला होगा  उस भाव से आपको निश्चिन्त करने का प्रयास करेगा.आपको उस भाव से सम्बंधित कमी नहीं खलने देगा किन्तु जब उस भाव के फलित की आवश्यकता पड़ेगी तो आपको वहां से कोई सहायता प्राप्त नहीं होगी.  उदाहरण के लिए आपको घर से निकलते  हुए अपने बटुए के भरे होने का अहसास होगा किन्तु मौके पर आपका बटुआ खाली होगा.इसी प्रकार केतु यदि पंचम भाव में अकेला होगा तो आपको कभी अपनी शिक्षा का लाभ जीवन में नहीं मिल पायेगा . यह  आपको पहले तो खुद ही बेफिक्र करेगा उसके बाद आपकी लापरवाही का फायदा उठाकर आपको धोखा दे देगा,और आप अपनी ही आत्मुग्हता में डूबे रहेंगे . और इसी कारण सदा पीछे रह जायेंगे.कारण कभी आपकी समझ में नहीं आएगा.   आपको सदा विश्वास रहेगा की ससुराल से आपको बहुत मदद मिलने वाली है किन्तु समय पर आपको एक फुग्गा भी वहां से नहीं मिलेगा.कहा यह जायेगा की हम चाहते तो बहुत हैं तुम्हारी मदद करना किन्तु मजबूर हैं.ये खेल केतु महाराज का होता है.होकर भी वस्तु का न होना.मरीचिका,दृष्टिभ्रम कुछ भी कहिये.ज्योतिष शाश्त्र में बताये गए छह गंडमूल में से क्या आपने ध्यान दिया की तीन का स्वामी बुध है और तीन का केतु.  देखा इन के व्यवहार के कारण इस और ध्यान ही नहीं जाता न?इसी कारण मैं इन्हें साइलेंट किलर कहता हूँ .                                        
            कई स्थापित ज्योतिषियों को इस मामले में धोखा खाते देखता हूँ.सच कहूँ तो स्वयं भी कई बार इन दोनों ग्रहों की शरारत कुंडली में भांपने से चूका हूँ.आप उपाय बदनाम ग्रहों का कर रहे होते है जबकि उनका रोल उस समस्या में कहीं नहीं होता,अततः न ही सही रिजल्ट आता है न ही अगले की समस्या का हल निकलता है.
   जातक परेशान होता है,ज्योतिषी हैरान होता है और ये दोनों ग्रह दूर बैठे तिरछा मुंह करके हँसते हुए मजा ले रहे होते हैं. उम्मीद है की अगली बार आप इनसे धोखा नहीं खाओगे.   

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बुधवार, 18 जुलाई 2012

सीता स्वयंवर ,धनुष ,जनक और राम

वैदेह राज्य की राजधानी थी मिथिला.मिथिला का राजा था  कुशध्वज. आज के बिहार - नेपाल  के राजा थे कुशध्वज .वैदेह के राजाओं को जनक कहा जाता था.जिस जनक को हम सीता जी के पिता के रूप में जानते हैं वो एकीसवें जनक थे और उन्ही का नाम कुशध्वज था.सीता को वैदेह के नाम पर ही वैदेही और मिथिला की राजकुमारी होने के कारण मिथिला कुमारी भी कहा जाता था.जनक की पुत्री होने के कारण जानकी तो वे थी हीं.
               राजा जनक बहुत प्रभावी राजा थे जिनका शासन बहुत बड़े भूभाग पर था.चार पुत्रियों के पिता जनक का कोई पुत्र नहीं था.राजा बूढ़ा होता जा रहा था और अब दूर के इलाकों पर उसकी पकड़ कमजोर होती जा रही थी.उत्तर-पूर्व दिशाओं से चलने वाले उसके व्यापार को वहां के कुछ संगठित डाकुओं,व कुछ छोटे क्षत्रिय राजाओं के द्वारा (जो की अपने पूर्वजों के सम्मान की भी परवाह नहीं करते थे )लूटा जाने लगा था.चारों  तरफ अराजकता फैलने लगी थी.इसी अराजकता को कम करने के लिए फरसुराम कई बार इनका संहार कर चुके थे.लेकिन ये लोग फिर से उसी ढर्रे पर लौट आते थे. फरसुराम राजा जनक के कुल गुरु थे  व फरसुराम स्वयं अब अधिक आयु के होने लगे थे.जनक की चिंता बढती जा रही थी.राज्य का व्यापार बहुत प्रभावित होने लगा था,मेरे बाद मेरे राज्य व मेरी प्रजा का क्या होगा ये प्रश्न जनक को खाए जा रहा था.उपायस्वरूप सीता का स्वयंबर रखा गया.जिस क्षेत्र से लूट पाट की धटनाएं हो रही थी उसका भौगोलिक आकर एक धनुष की तरह था और वहां के निवासी शिव के परम भक्त थे.आज भी आप नेपाल के नक़्शे में तलाशने  का प्रयास करेंगे तो वो जगह धनुष नाम के जिले से  आज भी मौजूद है.  अपने  आकार  के नाम से ही उसका नाम है.
                     सीता के स्वयंवर में शिव के धनुष पर प्रत्यंचा चढाने की शर्त यही थी .सांकेतिक रूप से जनक ने ऐलान किया था की जो भी राजा शिव के भक्तों के बाहुल्य वाले इस क्षेत्र को नियंत्रित करने का वचन देता है तो जनक के राज्य के साथ साथ सीता को पाने का अधिकारी बनेगा.राम अयोध्या के भावी राजा थे.धनुष उनके राज्य से बहुत दूर नहीं था.वे सक्षम थे वहां हो रहे उपद्रवों पर लगाम लगाने पर.अततः उन्होंने यह शर्त सहर्ष स्वीकार की.बावजूद इसके की अपने स्तर के अनुकूल न मान कर जनक ने अयोध्या को स्वयंवर का निमंत्रण भी नहीं भेजा था.विश्वामित्र जनक के कुलगुरु भी थे.वे स्वयं वैदेह को लेकर चिंतित थे.जनक की मृत्यु के पश्चात कोई भी मिथिला पर आक्रमण करने का साहस कर सकता था.दक्षिण भारत के अनार्यों का प्रभाव भी इस क्षेत्र पर बढता जा रहा था,जिनसे रक्षा हेतु वे अवध के राजकुमारों को अपने साथ वन में लाये थे.वन में वो राम की दिव्य शक्तियों से परिचित हो चुके थे.जनक के राज्य के लिए  राम से बेहतर उत्तराधिकारी कोई नहीं हो सकता था. अततः वे स्वयं वन से दोनों भाइयों को लेकर मिथिला पधारे.
                           फरसुराम ने जब ये बात सुनी की राम ने धनुष पर प्रत्यंचा चढाने की सहमती दे दी है तो क्षत्रियों से सहज रूप से दुश्मनी रखने वाले ऋषि स्वयं मिथिला पहुँच गए.अपने परम भक्त जनक के प्रति उनकी चिंता उन्हें वहां खींच लायी.वहां विश्वामित्र के समझाने व स्वयं राम को परख लेने के पश्चात उन्हें विश्वास हो गया की ये कुलीन क्षत्रिय अवश्य उन उपद्रवियों को परास्त कर धर्म की पताका फहराएगा.
                 वास्तविक किस्सा तो मेरी क्षुद्र बुद्धि में यही आता है साहब.बाकि प्रभु की लीला है वो ही जाने.मैं तो आज तक यह ही नहीं जान पाया की मुझे रच कर भला उन्होंने कौन सी लीला रची है.भला संसार  का ऐसा कौन सा काम है जो मेरे  जन्म न लेने से रुक जाता.इस विराट संसार में भला किस लिए भेजा है उन्होंने मुझे?

सोमवार, 16 जुलाई 2012

ज्योतिष और धर्म

कई विद्वान गुरुजनों व अन्य लोगों को भी मेरी इस बात से असहमति हो सकती है किन्तु मैं सदा से धर्म व ज्योतिष को अलग अलग विषय मानता आया हूँ.धर्म व्यक्तिगत होता है,व्यक्ति विशेष के साथ इसका अर्थ, इसकी सीमायें इसकी कट्टरता बदलती रहती है.किन्तु ज्योतिष सब के लिए सामान है.इसका किसी विशेष धर्म,किसी विशेष जाति से  कोई सम्बन्ध नहीं है. सूर्य सबको समान प्रकाश देता है,चंद्रमा सभी को अपनी शीतलता प्रदान करता है.बुध गुरु आदि अन्य ग्रह भी समस्त प्राणियों को सामान रूप से प्रभावित करते हैं.
                            ज्योतिष किसी के साथ पक्षपाती नहीं होता इसका सामान्य सा उदाहरण है की स्वयं भगवान का अवतार होकर भी प्रभु श्री राम व श्री कृष्ण  ग्रहों से बने योगों से स्वयं को बचा नहीं पाए.मेरे गुरु जी कहा करते हैं की भाग्य में लिखा तो भोगना ही पड़ता है,चाहे मनुष्य हो चाहे मनुष्य भेष में भगवान.जिस प्रकार गणित में दो और दो हर जाति धर्म के लिए चार ही होता है,अथवा डेंगू या मलेरिया जैसे बीमारियाँ सभी प्राणियों के लिए एक समान ही कष्टकारी होती हैं,वैसे ही ज्योतिष से सम्बंधित योग सभी प्राणियों के लिए समान रूप से प्रभावी हैं.ये सूर्य के पूर्व में उगने के समान शाश्वत सत्य है.किसी धर्म या किसी देश से इसे जोड़कर इसके विस्तार को सीमित करना मूर्खता है.   
                                                    आपकी आस्था, आपकी शिक्षा आपका वातावरण धर्म का स्वरुप आपके लिए हर आयु में अलग अलग हो सकता है किन्तु यकीन मानिए ग्रहों का प्रभाव सदा एक ही रूप में रहने वाला है.अब आप शाश्त्रोसम्मत उपायों से इन्हें स्वयं के अनुकूल या कहूँ दुर्योगों से अपना बचाव उसी प्रकार कर सकते हैं जिस प्रकार किसी रोग के लिए आप दवा खाकर  राहत पाते हैं.दवा की वो गोली आपके पेट में घुसकर आपकी जाति ,आपके देश को टटोलने का प्रयास नहीं करती.वो सीधा वो कर्म करती है जिस हेतु बनी होती है.इसी प्रकार धूप से बचने के लिए छाता लगाना सब देशों में समान असर देता है.सर्दी भगाने के लिए गरम कपडे पहनना या अन्य उपाय सब देशों ,सब शरीरों ,सब जातियों को समान तौर से बचाव करता है ,ठीक उसी प्रकार सूर्यादि नवग्रहों से होने वाले अनुकूल-प्रतिकूल प्रभावों को उन्ही से सम्बंधित उपायों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है.इसके लिए किसी विशेष देश या धर्म में पैदा होने की आवश्यकता नहीं है.ज्योतिष के समान रूप से संसार के सभी हिस्सों में लोकप्रिय न होने का एक कारण यह भी रहा की इसे सदा हिन्दू धर्म से जोड़कर देखा जाता रहा है.
                                                    जिस प्रकार एक डाक्टर बनने के लिए किसी भी देश ,किसी भी जाति किसी भी धर्म की कोई बाध्यता नहीं होती उसी प्रकार एक ज्योतिषी बनने हेतु भी इस तरह की कोई नियमावली नहीं है.हर वो इंसान जो विधिवत इसकी शिक्षा ग्रहण कर सकता है,जो इस पर सम्पूर्ण श्रद्धा रखकर इसे जानने का प्रयास कर सकता है वो निसन्देह एक शानदार ज्योतिषी हो सकता है.प्राचीन ऋषियों द्वारा मनुष्य मात्र की भलाई हेतु इस शाश्त्र की रचना हुई है .अततः क्षुद्र  मानसिकता में न बंधकर  इसके रहस्य से परिचित हो इसका लाभ उठाने की कोशिश सर्वत्र होनी चाहिए.