विद्वान गुरुजनों एवम नए पुराने सभी ज्योतिषी बंधुओं के मध्य सदा ही इस विषय को लेकर मतभेद बना रहा है.एक उच्च और एक नीच ग्रह की कार्यप्रणाली में क्या फर्क आ जाता है,उनकी साधारनावस्ता के मुकाबले में? वास्तविकता क्या है ,ये तो ग्रह खुद ही जाने.किन्तु अपने अध्ययन व आज तक की गई कुंडलियों की विवेचना के आधार पर जो कुछ समझ पाया हूँ ,वो ये की अपनी उच्च व नीचावस्था के समय ग्रहों की शक्तियों में बदलाव आ जाता है.स्वभाव सामान ही रहता है.जो ग्रह अकारक होकर उच्च हो जाये वो तात्कालिक और नैसर्गिकर मैत्री के अनुसार अपने प्रभावों में तेजी दिखा सकने में समर्थ हो जाता है. वहीँ जब अकारक होकर नीच हो जाता है,तो अपने स्वयं के भाव को नकारात्मक तौर पर प्रभावित करता है. यदि कारक ग्रह उच्च हो जाये तो इसे थामना कठिन हो जाता है.व कारक होकर नीच हो तो भी अपने भाव को तो प्रभावित करता ही है. उदाहरण के लिए वृश्चिक लग्न में गुरु धनेश व पंचमेश हैं. अब मान ले की यहाँ ये नवम भाव में अपनी उच्च राशी में हैं.इनका क्या प्रभाव होगा अब?गुरु विद्या के नैसर्गिक ग्रह हैं.अपनी उच्च राशि में आने से इनके प्रभाव से जातक का मानसिक स्तर प्रबल हो जाता है.अपनी आयु के अन्य जातकों से वह एक कदम आगे चलने लगता है.हर समय अपने ज्ञान को प्रदर्शित करने व सबसे आगे रहने की मनोवृति जागृत होने लगती है और जातक एक साथ कई छेत्रों में वह हाथ आजमाने लगता है.अपने से अधिक आयु के लोगों विशेषकर स्त्रियों के संगत में रहने का प्रयास करता है.परिणामस्वरूप गुरु के तेज को नियंत्रित करना उसके बस से बाहर हो जाता है.१४-१५ वर्षायु के पश्चात वह बहकने लगता है और शिक्षा में (यदि किसी का सही मार्गदर्शन उसे नहीं प्राप्त होता) वह पीछे रह जाता है.यदि कहीं इस के साथ पंचम भाव किसी अन्य योग (काल्सर्पादी) के प्रभाव में भी हो तो उच्च गुरु के बावजूद जातक की शिक्षा अधूरी रह जाती है.
एक अन्य उदाहरण से समझने का प्रयत्न करते हैं .तुला लग्न में शनि पूर्ण प्रभावी होते हैं.ऐसे में यदि ये लग्न में अपनी उच्च राशी में हैं तो बहुत संभव है की सप्तम में अपनी नीच दृष्टि होने और स्वयं अधिक प्रभावी होने के कारण सप्तम भाव को पूर्ण फलित होने से रोकते हैं.जातक का विवाह देर से हो सकता है,नहीं भी हो सकता है.विवाह से एक दिन पहले तक भी सम्बन्ध को खराब करने का सामर्थ्य ये रखते हैं. दशम भाव पर दृष्टी के कारण जातक इलेक्ट्रोनिक्स ,वकालत ,जल से सम्बंधित मशीनों -ठेकों आदि के काम, करता है किन्तु शत्रु दृष्टि के कारण शनि सफल होने से रोकता है. अततः उच्च के ग्रह का फल सदा शुभ ही होने वाला है इसमें मुझे संशय रहता है.वहीँ दूसरी ओर तुला लग्न में ही विराजमान सूर्य देव नीच के होकर भी सामान्यतः शुभ फल देते देखे गए हैं.किन्तु अपने स्थान को थोडा नकारत्मक प्रभाव जरूर देते हैं.जातक इछानारूप आय वाली नौकरी पाने में असमर्थ रहता है,सम्मानित पद प्रठिस्ता वह अवश्य प्राप्त करता है,किन्तु आय उसके अनुरूप नहीं रहती.वहीँ उसका जीवन साथी हर मामले में उससे आगे हो सकता है.यही सूर्यदेव कुम्भ लग्न में नवम भाव में भी नीच हो जाते हैं ,किन्तु इन्ही के प्रभाव से जातक विवाह पश्चात विदेश यात्रा के योग पा सकता हैव यदि जातक के जीवन साथी की कुंडली में भी सहायक योग हों तो जीवन साथी सरकारी नौकरी पाने में सक्षम हो जाता है. लेख लम्बा खिंचने लगा है ,अततः आज इस चर्चा को यहीं पर नियंत्रित करते हैं.भविष्य में इस विषय पर आगे चर्चा का प्रयास करूँगा.