सदैव से ये द्वन्द समाज में चला आया है की इंसान का कर्म बड़ा होता है या उसका भाग्य.कर्म के धुर समर्थक एवं कई बुद्धिजीवी सदा से कर्म के महत्त्व को बताते रहे हैं.शायद सही भी हों.गीता का एक श्लोक इनका बड़ा पसंदीदा श्लोक मन जाता है."कर्मण्ये वाधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन ,माँ कर्म ..................'अर्थात कर्म मैं ही गति है.कहते हैं की एक दिन यही श्लोक कृष्ण भगवन ने कुंती जी को सुना दिया.उस समय पांडव वनवास भोग रहे थे.कुंती ने पलट कर कृष्ण को जवाब दिया" भाग्यम फलती सर्वत्र,न विद्या न च पौरुषम ,शुराशकृत विद्याशच वने तिस्तंथी में सुता"अर्थात हे कृष्ण भाग्य ही हर जगह फलित होता है,विद्या और पराक्रम उसके आगे तुच्छ हैं .सारी विद्याओं में परिपूर्ण व बल में सर्वश्रेष्ट मेरे पुत्र जंगल की खाक छान रहे हैं और दुर्योधन हस्तिनापुर का राज्य भोग रहा है.भला भाग्य का इससे बड़ा उदहारण और क्या होगा? बात तो सही है भाई.कभी सोचा है की अभी कुछ दिनों पहले अमिताभ जी के घर पोती का जन्म हुआ.ऐश्वर्या जी माँ बनी,उसी समय दुनिया के अलग अलग हिस्सों में कई बच्चों ने जन्म लिया होगा .अब उनमे से कई को श्याम को पेट भर दूध भी नसीब नहीं हुआ होगा.कोई झोपड़ी में हुआ होगा.कही किसी ने ऐसे ही अरबपति घराने में जन्म लिया होगा.जिसे शायद जीवन में कभी विपन्नता का मुह न देखना पड़े और किसी के जीवन का अंतहीन संघर्ष पैदा होते ही शुरू हो गया होगा.क्या नए जन्मे बच्चे का कोई बस है इस अवस्था को नियंत्रित करने में .क्या अपने जन्म के लिए इच्छित समाज,वातावरण,परिवार चुनने में कोई ताकत हासिल है उसे?नहीं,कदापि नहीं,बल्कि कुदरत ने उसके पूर्वजन्म के कर्मों के आधार पर उसके लिए ये सब बातें निश्चित की हैं .इसे ही प्रारब्ध या भाग्य कहा जाता है ज्योतिष की भाषा में. पैदायशी रूप से शरीर में कोई विषमता होना,आँखों ,हाथ पैर से लाचार होना सब विधि का लेखा है भैया .तो यहाँ मैं ये निष्कर्ष निकल पाता हूँ की होता सब भाग्य से ही है.और आपका भाग्य आपको कैसा मिलने वाला है,इसका निर्णय आपके द्वारा किये कर्म करते हैं.विधि किसी के साथ पक्षपात नहीं करती.उसके हाथ तो बंधे होते हैं कर्मानुसार भाग्य का निर्धारण करने को.अत: कर्मों की शुद्धता रखें एवम कुदरत की नवाजिशें पायें.आज नहीं तो कल,कल नहीं तो परसों, परसों नहीं तो अगले जन्म में ,भाग्य मेहरबान जरूर होगा. आमीन.
santosh pusadkar
जवाब देंहटाएंआप ने जो बताया सही है. आप को धन्यवाद करता हू.शुक्र की महादशा १३ ऑक्ट २००९ सुरु हो गायी है.कन्या लग्न कुंडली है. केतू दिव्तीय मै , शनी तृतीय ,गुरु पंचम बुध शुक्र.चंद्र सप्तम मै , रवी राहू अष्टम मै. मंगल नअवं मै है . कृपया मागदर्शन करे
Lagn me Mithun aur Chandrama ho tab kya hota hai
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