..****** दशम का सूर्य****..
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पहले स्वास्थ्य ,,पश्चात कार्यालय की व्यस्तता के कारण बहुत समय से आप लोगों की सेवा में उपस्थित नहीं हो पाया ,,जिस हेतु क्षमा प्रार्थी हूँ .ज्योतिष निरंतर शोध का विषय है,,,आप पुराने सूत्रों पर कुंडली मारकर ,वर्तमान में उन सूत्रों को किसी कुंडली से फलित करने की कोशिश करेंगे ,तो गच्चा खाने की संभावनाएं अधिक प्रबल हो जाती हैं ..अतः सूत्रों को नए वातावरण में ,नए नजरिये से परिभाषित करना बेहद आवश्यक हो जाता है.....
ग्रहों के राजा सूर्य को लेकर अमूमन बहुत सी किवदंतियां व भ्रांतियां चलन में हैं ......कालपुरुष में ये लग्न में उच्च व पंचम में स्वराषि होकर बेहद सम्मान पाकर प्रभावी माना जाता है ,और अमूमन इसी सूत्र को लेकर फलित किया जाता है .......थोड़ा पीछे जाने का प्रयास कीजिये ,,,ज्योतिष का आरम्भ वैदिक राजतंत्र काल में हुआ है ..ये वो कालखंड था जब राजा का बेटा राजा होता था व सामान्यतः जातक का जन्म ही उसके कुल को तय करता था .....बृहस्पति के रूप में ब्राह्मणो को सम्मान तो बहुत प्राप्त था ,किन्तु परोक्ष रूप से सत्ता में उनका दखल नहीं था ...सीधे सीधे कहें तो अपने पालन पोषण के लिए गुरु स्वयं सूर्य पर निर्भर था ...ऐसे में लग्न का सूर्य ये निर्धारित करने में सक्षम था कि जातक अपने पूर्वजों के सम्मान से पोषित होकर राजकुल में जन्म ले रहा है ,,,तथा पंचम का सूर्य आपकी कुल परंपरा को आगे ले जाने वाला है ....यहाँ शिक्षा ,,नेतृत्व ,,ज्ञान आदि के बहुत मायने नहीं थे ....किसी सामान्य कुल के सस्दस्य द्वारा बहुत बड़ा आंदोलन कर ,,राजतंत्र को पलटने के किस्से सामान्यतः नहीं मिलते हैं ...अतः सूर्य निर्विध्न रूप से अपनी पितृसत्तामक सत्ता को कायम करके चलता था ....कालान्तर में [द्वापर बीत जाने के बाद ] हम बृहस्पति चाणक्य द्वारा नन्द सूर्य को सत्ताहीन करने का एक बड़ा उदाहरण पेश कर सकते हैं ,,ऐसे कई और उदाहरण मिल सकते हैं ...ये सूर्य के प्रभावहीन होने का समय काल था ..सूर्य स्वाभाविक रूप से पूर्व दिशा का स्वामी है ..सूर्य के कमजोर होते ही पूरब पर अन्य दिशाओं से आक्रमण बढ़ने लगे ...विशेष रूप से सूर्य के नैसर्गिक शत्रु शनि की पश्चिम दिशा से ऐसे आक्रमणों की अधिकता देखन में आती है ,,,वह यूनान से सिकंदर हो अथवा ब्रिटिश सेनाएं ...देश के विभाजन के बाद पश्चिम से किंचित राहत सूर्य को प्राप्त हुई तथा पूर्व तथा उत्तर के सपोर्ट से पुनः सूर्य को अपना सामार्ज्य स्थापित करने में सहायता प्राप्त हुईं .उत्तर से आये नेहरू व पूर्व से आये राजेंद्र प्रसाद जी के रूप में पूर्व स्थापित इस राष्ट्र को अपना संविधान प्राप्त हुआ ... किन्तु पश्चिम के इतने वर्षों के आक्रमण का फल ये हुआ की सूर्य अपना नैसर्गिक बल अथवा कहें कार्यप्रणाली भूल गया ..वह पश्चिम के क़दमों पर चलने लगा .....आज भी भारत की राजनीति को आप यूरोप ,,अमेरिका के पदचिन्हों पर चलने का प्रयास करते देखेंगे अथवा पश्चिमी दिशा में बसे पाकिस्तान के इर्द गिर्द ही इसे घूमता पाएंगे ...यहीं से सूर्य के कार्य करने के तरीके के अंतर आने लगा..धीरे धीरे भारत मे प्रजातंत्र मजबूत होने लगा व राजशाही का लगभग अंत हो गया,,,अब सूर्य तो राजा है,,राजशाही का अंत हुआ तो भला सूर्य स्वयं का वजूद कैसे स्थापित करता...अतः सूर्य राजतंत्र को त्याग राजनीति की ओर अग्रसर हुआ,,किन्तु एक राजा के रूप में नही,अपितु एक सेवक के रूप में..शनि का प्रभाव अभी तक सूर्य पर स्पष्ट देखा जा सकता है..जैसा कि ज्योतिष के जानकार जानते हैं कि शनि भृत्य(नौकर )का स्थान रखता है...ऐसे में जनसेवक कहलाने वाले नेता ही प्रजातंत्र के राजतंत्र में वास्तविक अधिकारी बन बैठे..सत्ता का केंद्र भी दिल्ली (पश्चिम) बन बैठा...ऐसे में सूर्य जो कि मेष में उच्च होते थे,,वे मेष के बदले मकर में बल पाने लगे..पाठकों को भली भांति ज्ञात है कि जो सम्मान मकर की संक्रांत को प्राप्त है वह मेष की संक्रांत को नही है..अतः लग्न व पंचम के सूर्य के मुकाबले दशम का सूर्य अधिक प्रभावी होने लगा...कुंडली विवेचन के दौरान नए अभ्यासी ज्योतिषियों बंधुओं को देखने मे आएगा कि दशम का सूर्य परोक्ष व अपरोक्ष रूप से सरकार से जातक को जोड़ता आया है..अगर इसी सूर्य को शनि का बल भी प्राप्त हो रहा हो,,तो छत्रभंग का निर्माण करते हुए यह तय करता है कि यदि जातक परिवार अथवा पिता से दूर रह पाएगा तो सत्ता में सीधे पैठ बना पाने के सक्षम होगा,,जितना जातक अपने भीतर भृत्य(सेवक) होने की भावना प्रबल करेगा,,उतनी तीव्रता से वह सत्ता की शक्ति प्राप्त करेगा...जितना अधिक वह अपने नैसर्गिक राजा होने के भाव को प्रदर्शित करेगा,,सत्ता व राजतंत्र से दूर होता जाएगा....इसी अनुपात में हम देखें तो पंचम पिता की हानि है..यह दशम से अष्ठम पड़ने वाला भाव है..पिता के लिए दुर्योग उत्पन करने वाला...ऐसे में पंचम का सूर्य पिता के साथ कोई बड़ी दुर्घटना तय कर देता है,,किन्तु स्वयं का भाव होने से ये भी देखने मे आता है कि जातक पिता के विभागों में पिता के बाद जुड़ जाता है..इस सूर्य पर किसी पाप ग्रह का प्रभाव हो तो पिता के साथ कई बार बड़ी दुर्घटनाएं भी होती देखी गयी हैं..
दशम से किसी भी प्रकार सूर्य का संबंध बन रहा हो तो सूर्य का रत्न माणिक धारण करने से बचना चाहिए..इसका प्रभाव शनि को प्रभावित करता है,,परिणास्वरूप जो लाभ शनि के भाव दशम में बैठा सूर्य दे रहा होता है वह गड़बड़ाने लगता है....पंचम में सूर्य हो तो माणिक धारण करना शुभ फलदायी होता है..
लेख के प्रति आपकी अमूल्य राय से अवश्य अवगत कराएं..शीघ्र नए लेख के साथ प्रस्तुत होने के वचन के साथ विदा लेते हुए आप सभी सुधि पाठकों के श्री चरणों मे मेरा प्रणाम पहुंचे..
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पहले स्वास्थ्य ,,पश्चात कार्यालय की व्यस्तता के कारण बहुत समय से आप लोगों की सेवा में उपस्थित नहीं हो पाया ,,जिस हेतु क्षमा प्रार्थी हूँ .ज्योतिष निरंतर शोध का विषय है,,,आप पुराने सूत्रों पर कुंडली मारकर ,वर्तमान में उन सूत्रों को किसी कुंडली से फलित करने की कोशिश करेंगे ,तो गच्चा खाने की संभावनाएं अधिक प्रबल हो जाती हैं ..अतः सूत्रों को नए वातावरण में ,नए नजरिये से परिभाषित करना बेहद आवश्यक हो जाता है.....
ग्रहों के राजा सूर्य को लेकर अमूमन बहुत सी किवदंतियां व भ्रांतियां चलन में हैं ......कालपुरुष में ये लग्न में उच्च व पंचम में स्वराषि होकर बेहद सम्मान पाकर प्रभावी माना जाता है ,और अमूमन इसी सूत्र को लेकर फलित किया जाता है .......थोड़ा पीछे जाने का प्रयास कीजिये ,,,ज्योतिष का आरम्भ वैदिक राजतंत्र काल में हुआ है ..ये वो कालखंड था जब राजा का बेटा राजा होता था व सामान्यतः जातक का जन्म ही उसके कुल को तय करता था .....बृहस्पति के रूप में ब्राह्मणो को सम्मान तो बहुत प्राप्त था ,किन्तु परोक्ष रूप से सत्ता में उनका दखल नहीं था ...सीधे सीधे कहें तो अपने पालन पोषण के लिए गुरु स्वयं सूर्य पर निर्भर था ...ऐसे में लग्न का सूर्य ये निर्धारित करने में सक्षम था कि जातक अपने पूर्वजों के सम्मान से पोषित होकर राजकुल में जन्म ले रहा है ,,,तथा पंचम का सूर्य आपकी कुल परंपरा को आगे ले जाने वाला है ....यहाँ शिक्षा ,,नेतृत्व ,,ज्ञान आदि के बहुत मायने नहीं थे ....किसी सामान्य कुल के सस्दस्य द्वारा बहुत बड़ा आंदोलन कर ,,राजतंत्र को पलटने के किस्से सामान्यतः नहीं मिलते हैं ...अतः सूर्य निर्विध्न रूप से अपनी पितृसत्तामक सत्ता को कायम करके चलता था ....कालान्तर में [द्वापर बीत जाने के बाद ] हम बृहस्पति चाणक्य द्वारा नन्द सूर्य को सत्ताहीन करने का एक बड़ा उदाहरण पेश कर सकते हैं ,,ऐसे कई और उदाहरण मिल सकते हैं ...ये सूर्य के प्रभावहीन होने का समय काल था ..सूर्य स्वाभाविक रूप से पूर्व दिशा का स्वामी है ..सूर्य के कमजोर होते ही पूरब पर अन्य दिशाओं से आक्रमण बढ़ने लगे ...विशेष रूप से सूर्य के नैसर्गिक शत्रु शनि की पश्चिम दिशा से ऐसे आक्रमणों की अधिकता देखन में आती है ,,,वह यूनान से सिकंदर हो अथवा ब्रिटिश सेनाएं ...देश के विभाजन के बाद पश्चिम से किंचित राहत सूर्य को प्राप्त हुई तथा पूर्व तथा उत्तर के सपोर्ट से पुनः सूर्य को अपना सामार्ज्य स्थापित करने में सहायता प्राप्त हुईं .उत्तर से आये नेहरू व पूर्व से आये राजेंद्र प्रसाद जी के रूप में पूर्व स्थापित इस राष्ट्र को अपना संविधान प्राप्त हुआ ... किन्तु पश्चिम के इतने वर्षों के आक्रमण का फल ये हुआ की सूर्य अपना नैसर्गिक बल अथवा कहें कार्यप्रणाली भूल गया ..वह पश्चिम के क़दमों पर चलने लगा .....आज भी भारत की राजनीति को आप यूरोप ,,अमेरिका के पदचिन्हों पर चलने का प्रयास करते देखेंगे अथवा पश्चिमी दिशा में बसे पाकिस्तान के इर्द गिर्द ही इसे घूमता पाएंगे ...यहीं से सूर्य के कार्य करने के तरीके के अंतर आने लगा..धीरे धीरे भारत मे प्रजातंत्र मजबूत होने लगा व राजशाही का लगभग अंत हो गया,,,अब सूर्य तो राजा है,,राजशाही का अंत हुआ तो भला सूर्य स्वयं का वजूद कैसे स्थापित करता...अतः सूर्य राजतंत्र को त्याग राजनीति की ओर अग्रसर हुआ,,किन्तु एक राजा के रूप में नही,अपितु एक सेवक के रूप में..शनि का प्रभाव अभी तक सूर्य पर स्पष्ट देखा जा सकता है..जैसा कि ज्योतिष के जानकार जानते हैं कि शनि भृत्य(नौकर )का स्थान रखता है...ऐसे में जनसेवक कहलाने वाले नेता ही प्रजातंत्र के राजतंत्र में वास्तविक अधिकारी बन बैठे..सत्ता का केंद्र भी दिल्ली (पश्चिम) बन बैठा...ऐसे में सूर्य जो कि मेष में उच्च होते थे,,वे मेष के बदले मकर में बल पाने लगे..पाठकों को भली भांति ज्ञात है कि जो सम्मान मकर की संक्रांत को प्राप्त है वह मेष की संक्रांत को नही है..अतः लग्न व पंचम के सूर्य के मुकाबले दशम का सूर्य अधिक प्रभावी होने लगा...कुंडली विवेचन के दौरान नए अभ्यासी ज्योतिषियों बंधुओं को देखने मे आएगा कि दशम का सूर्य परोक्ष व अपरोक्ष रूप से सरकार से जातक को जोड़ता आया है..अगर इसी सूर्य को शनि का बल भी प्राप्त हो रहा हो,,तो छत्रभंग का निर्माण करते हुए यह तय करता है कि यदि जातक परिवार अथवा पिता से दूर रह पाएगा तो सत्ता में सीधे पैठ बना पाने के सक्षम होगा,,जितना जातक अपने भीतर भृत्य(सेवक) होने की भावना प्रबल करेगा,,उतनी तीव्रता से वह सत्ता की शक्ति प्राप्त करेगा...जितना अधिक वह अपने नैसर्गिक राजा होने के भाव को प्रदर्शित करेगा,,सत्ता व राजतंत्र से दूर होता जाएगा....इसी अनुपात में हम देखें तो पंचम पिता की हानि है..यह दशम से अष्ठम पड़ने वाला भाव है..पिता के लिए दुर्योग उत्पन करने वाला...ऐसे में पंचम का सूर्य पिता के साथ कोई बड़ी दुर्घटना तय कर देता है,,किन्तु स्वयं का भाव होने से ये भी देखने मे आता है कि जातक पिता के विभागों में पिता के बाद जुड़ जाता है..इस सूर्य पर किसी पाप ग्रह का प्रभाव हो तो पिता के साथ कई बार बड़ी दुर्घटनाएं भी होती देखी गयी हैं..
दशम से किसी भी प्रकार सूर्य का संबंध बन रहा हो तो सूर्य का रत्न माणिक धारण करने से बचना चाहिए..इसका प्रभाव शनि को प्रभावित करता है,,परिणास्वरूप जो लाभ शनि के भाव दशम में बैठा सूर्य दे रहा होता है वह गड़बड़ाने लगता है....पंचम में सूर्य हो तो माणिक धारण करना शुभ फलदायी होता है..
लेख के प्रति आपकी अमूल्य राय से अवश्य अवगत कराएं..शीघ्र नए लेख के साथ प्रस्तुत होने के वचन के साथ विदा लेते हुए आप सभी सुधि पाठकों के श्री चरणों मे मेरा प्रणाम पहुंचे..
namaskar evam sadar pranam guruji,
जवाब देंहटाएंguruji me 2013 se berojgar hu.mere jivan me nahi koi utsah he na kuchh pane ki chah na koi hobby na telent.kisi ke sath jyada din rishte rahate nahi mera koi dost nahi he.bilkul nirashavadi aur ekantjivan,naastik,nisar jindgi ji raha hu.mere andar aatmavishvas aur himmat nahi he.bachapan me bahut bimar raha.padhai mushkil se kar paya bahut kamjor aur darpok hu.galat dosto ke sangat me bahut sari galatiya ki he.2019 me pitaji ka swargavas ho gaya.
2019 me ek semi goverment company se job offer mila tha. par mene gusse aur jaldbaji me galat nirnay le kar job nahi li.
BITTU
28/05/1991
16:06
AHMEDABAD
GUJARAT
-:QUESTION:-
1)kya ab sarakari job milegi?
2)job me safalata he ya business me?
koi ratna ya upay kar sakata hu
कुंडली कमजोर तो नही है मित्र आपकी..संभवतः गुरु मंगल के नीचभंग को नही थाम पाए आप..किंतु चिंतित न हों,,जितना सूर्य का पूरब से निकलना सत्य है,, उतना ही सत्य है कि आप सरकारी नौकरी प्राप्त करेंगे..जून 2021 के पश्चात कभी भी सरकारी अर्धसरकारी विभाग में मौका मिलेगा,,जो सन 2024 के पश्चात और अधिक बलवान होगा..आप एक ओपल सवा बारह रत्ती धारण करें व सूर्य को नियमित अर्घ्य दें..प्रत्येक रविवार सौ ग्राम गुड़ व सौ ग्राम गेहूं(भिगो कर) गाय को खिलाएं..
हटाएंSHAADI KAB HOGI ? PATNI KAISI HOGI AUR LAGNA JIVAN KAISA HOGA ?
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