सोमवार, 13 जनवरी 2020

क्यों प्रभावित है रोजगार

*** ---क्यों प्रभावित है रोजगार..**
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       कर्म भाव से संबंधित सिद्धांत बहुत  से नियमों के अधीन होकर कार्य करते हैं..विवाह हेतु कुंडली मिलान करते समय ,जिम्मेदार गणक के लिए यह भी एक विशेष पहलू है,जिसे ध्यान में रखना अति आवश्यक है..सामामयतः देखा गया है कि जातक अपने कर्मेश(दशम भाव अधिपति),अथवा उसे प्रभावित कर रहे ग्रह के सहयोग से ही अपने कार्य व्यवसाय में सफलता पाता है..किन्तु यहां ध्यान दिए जाने वाला सूत्र यह है कि  जातक के जीवनसाथी का भाव अर्थात सप्तमेश अमूमन उसके नवमेश का शत्रु होता है..कितना अचंभा है कि विवाह हेतु सप्तम भाव को पुष्ट करने हेतु षोडशवर्ग के जिस भाव ,नवांश को इतना अधिक महत्व दिया जाता है,,जन्म लग्न चक्र में ये दोनों (सप्तमेश व नवमेश) सामान्यतः एक दूसरे के सहयोगी नही होते हैं...वहीं दूसरी ओर सप्तमेश व दशमेश(कर्म भाव का अधिपति) सामान्यतः एक दूजे को सहयोग करने को तैयार होते हैं...क्या यही कारण होता होगा कि जिन जातकों ने अपने जीवन साथी को अपने कार्यालय अथवा कार्य व्यवसाय में अधिक इन्वॉल्व कराया,,उन्होंने सफलता की सीढ़ियां सहजता से लांघी..और जिन्होंने जीवन साथी को भाग्य का पूरक मानकर ,,घर मे बैठाया,,,उन्हें किंचित संघर्ष अधिक सहना पड़ा...
             सामान्यतः मेरे देखने मे आया है कि जातक के विवाह के बाद जातक की दशमांश कुंडली के आपरेट करने के तरीक़े में आश्चर्यजनक बदलाव आने लगते हैं...ऐसे में कई बार प्रश्न आता है कि मेरा कार्य व्यवसाय ठीक से नही चल रहा,, अथवा मेरे धंधे में बरकत रुक गयी है,,,जबकि जातक की ग्रह दशा उसके अनुकूल चल रही होती है,,फौरी तौर पर देखने मे किसी प्रकार की कोई समस्या कुंडली मे नही दिखाई दे रही होती...ऐसे में जातक के जीवन साथी की कुंडली देखना आवश्यक हो जाता है...बहुत बार देखने मे आता है कि धर्मपत्नी जी के सप्तमेश को नेगेटिव रूप से प्रभावित कर रहे ग्रह की दशा अंतर्दशा में ,जातक के अपने धंधे प्रभावित होने लगते हैं,, जबकि उसकी अपनी दशाएं बहुत अधिक विपरीत संकेत नही दे रही होती हैं...ऐसे में अगर ज्योतिषी जातक के जीवन साथी की कुंडली प्राप्त नही कर पाता,, तो उसका संशय स्वयं की गणनाओं पर होने लगता है... वह अपने सूत्रों को बार बार खंगालता है,,,बार बार अपने क्लाइंट के लिए किए जा रहे उपायों में बदलाव करता है,,किन्तु मनमाफिक रिजल्ट नही पाता...परिणामस्वरूप क्लाइंट व ज्योतिषी,,दोनो का विश्वास ज्योतिष से डगमगाने लगता है..
     पुरुष व स्त्री विवाह के पश्चात अर्धनारेश्वर का रूप माने गए हैं...ऐसा संभव नही कि यदि स्त्री की कुंडली मे सप्तमेश गोचरवश पीड़ित हो रहा हो तो पुरूष का जीवन सहजता से चल रहा हो..ऐसा होना कतई संभव नही ...अतः ज्योतिष बंधुओं को चाहिए कि जातक के कर्म भाव को फलित करने से पूर्व ,,एक दृष्टि जातक के जीवनसाथी की कुंडली पर भी डाल लें..तब ये प्रश्न करने की आवश्यकता नही होगी कि जातक की कुंडली मे कोई समस्या पकड़ में नही आ रही,,तब भी उसका व्यवसाय क्यों चौपट हुआ जा रहा है...

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