कई बार पाठकों ने प्रश्न किया है कि गुरुजी कौन से भगवान अधिक पावरफुल हैं,,मुझे किस देवता को अपना आराध्य मानना चाहिए,,,,,शास्त्र किसकी उपासना करता है...अब मेरे जैसे सनातनी वैदिक ब्राह्मण से इसका उत्तर पाने की उम्मीद करना यह पूछना हो गया कि जीने के लिए क्या जरूरी है...या राजमा अच्छी दाल है या मलका,,,,सेब अच्छा फल है कि केला...आप ही बताइए कि ये तुलनाएं कैसे संभव हैं,,,ऐसे ही भला देवताओं की तुलना कैसे संभव है,,,एक ही शक्ति है जो भिन्न भिन्न रूपों में पूजी जाती हैं,,,सब का स्त्रोत एक ही है..जिसका कोई आकार नही,,कोई रंग नही,,कोई व्याख्या नही..
बात जब वेदों की आती है तो हम देखते हैं कि ऋग्वेद अधिकतर इंद्र की स्तुति से भरा हुआ है,,,तीन चौथाई से अधिक मंत्र इंद्र को समर्पित हैं,,,बाकी में अग्नि वरुण व सूर्य का जिक्र है.…यजुर्वेद में भी कमोबेश यही स्थिति देखने को मिलती है.…व बाकी के अन्य वेद भी इसी स्थिति से गुजरते दिखाई देते हैं..फिर समय आता है पुराणों का...जहां शक्तियों को रूप में देखा गया है,,,पुराण में शिव,,विष्णु,,,कृष्ण,,आदि साकार रूप उपस्थित हैं,,तो एनेर्जी के रूप में सूर्य व अग्नि उपस्थित हैं...बड़ी हैरानी है कि वेदों में अग्रपूजनीय होने वाले इंद्र पुराणों में उपेक्षित हो चले हैं.... बाद के पुराणों में तो उनकी छवि भी कुछ दोषपूर्ण होती चली गयी है..ऐसा क्यों हुआ मेरे पास जवाब नही.….आज के पूजा पद्धति में हम कह सकते हैं कि लगभग इंद्र को भुला ही दिया गया है,,उनका जिक्र नही के बराबर ही होता है..किन्तु एक शक्ति ऐसी है जो जितना प्रभाव वेदकालीन दौर में रखती थी,,उतनी ही महत्ता उसे पुराणों में भी प्राप्त है,,व आज के कर्मकांडों में भी उन्होंने अपना महत्व बनाये रखा है,,,वो हैं अग्नि व सूर्य....इनमे भी प्रत्यक्ष दिखाई देने के कारण सूर्य का अपना महत्व है..वे बड़ी प्रतिष्ठा के साथ आकाश पटल पर कायम हैं,,,व ज्योतिष व संसार संबंधी बहुत से नियमो को संचालित करते हैं....ऐसे के सूर्य की उपासना बेहतर रिजल्ट देने में सक्षम है ऐसा मेरा मानना है....तो कहिये जय हो सूर्य महाराज की....आप सभी को नवरात्रे की शुभकामनाएं...भगवती आप सभी के परिवारों की रक्षक रहें..(आजकल बद्रीनाथ जी मे पाठ में व्यस्त हूँ अतः आप लोगों से संवाद नही बना पा रहा हूँ,,क्षमा करेंगे)
बात जब वेदों की आती है तो हम देखते हैं कि ऋग्वेद अधिकतर इंद्र की स्तुति से भरा हुआ है,,,तीन चौथाई से अधिक मंत्र इंद्र को समर्पित हैं,,,बाकी में अग्नि वरुण व सूर्य का जिक्र है.…यजुर्वेद में भी कमोबेश यही स्थिति देखने को मिलती है.…व बाकी के अन्य वेद भी इसी स्थिति से गुजरते दिखाई देते हैं..फिर समय आता है पुराणों का...जहां शक्तियों को रूप में देखा गया है,,,पुराण में शिव,,विष्णु,,,कृष्ण,,आदि साकार रूप उपस्थित हैं,,तो एनेर्जी के रूप में सूर्य व अग्नि उपस्थित हैं...बड़ी हैरानी है कि वेदों में अग्रपूजनीय होने वाले इंद्र पुराणों में उपेक्षित हो चले हैं.... बाद के पुराणों में तो उनकी छवि भी कुछ दोषपूर्ण होती चली गयी है..ऐसा क्यों हुआ मेरे पास जवाब नही.….आज के पूजा पद्धति में हम कह सकते हैं कि लगभग इंद्र को भुला ही दिया गया है,,उनका जिक्र नही के बराबर ही होता है..किन्तु एक शक्ति ऐसी है जो जितना प्रभाव वेदकालीन दौर में रखती थी,,उतनी ही महत्ता उसे पुराणों में भी प्राप्त है,,व आज के कर्मकांडों में भी उन्होंने अपना महत्व बनाये रखा है,,,वो हैं अग्नि व सूर्य....इनमे भी प्रत्यक्ष दिखाई देने के कारण सूर्य का अपना महत्व है..वे बड़ी प्रतिष्ठा के साथ आकाश पटल पर कायम हैं,,,व ज्योतिष व संसार संबंधी बहुत से नियमो को संचालित करते हैं....ऐसे के सूर्य की उपासना बेहतर रिजल्ट देने में सक्षम है ऐसा मेरा मानना है....तो कहिये जय हो सूर्य महाराज की....आप सभी को नवरात्रे की शुभकामनाएं...भगवती आप सभी के परिवारों की रक्षक रहें..(आजकल बद्रीनाथ जी मे पाठ में व्यस्त हूँ अतः आप लोगों से संवाद नही बना पा रहा हूँ,,क्षमा करेंगे)