हर विषय की तरह ज्योतिष शास्त्र व ज्योतिषी भी परंपरागत लकीर को लांघने में खौफ सा खाते दिखाई देते हैं.. दूध को दूध और पानी को पानी कहने वाले कई मिल सकते हैं...किन्तु पानी मिले दूध को पानी बताने के लिए कलेजा चाहिए..पीछे से चली आ रही लकीर को पीटने की प्रथा का अनुगामी जो ज्योतिषी होगा,वो नए सूत्र,नया विजन नहीं दे सकता...जो वर्जनाओं को नहीं त्याग सकता वो आकाश में नहीं उड़ सकता...
कमोबेश यही स्थिति शनि को लेकर चली आ रही है..और यही स्थिति है शनि से सम्बंधित रत्न माने जाने वाले नीलम की...परंपरागत रूप से ज्योतिषी भाई बंधु नीलम को शनि का रत्न बताते आये हैं,,,अपने अध्ययन के दौरान सामान्यतः हर गणक ऐसा ही पढता है,या समझाया जाता है...रत्नों के बारे में साधारण सी समझ रखने वाले पाठक भी ये बात तो जानते ही होंगे कि रत्न सम्बंधित ग्रह के मूल रंग को धारण करता हूं..उसकी आभा को परिभाषित करता हूं...सफ़ेद चंद्र के लिए सफ़ेद मोती का प्रावधान है,,लाल मंगल के लिए ऐसी ही आभा लिया मूंगा तय है.....हरे बुध के लिए हरा पन्ना तय किया गया है....पीले बृहस्पति के लिए पीला पुखराज शास्त्रोक्त है...ताम्बई सूर्य के लिए वैसी ही आभा वाला माणिक उपयुक्त माना जाता है....तो इस क्रम में भला परिवर्तन शनि को लेकर क्यों हो जाता है...
नीलम,, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है,,नीली आभा लिए एक रत्न है..जिसका सम्बन्ध शनि से जोड़ दिया गया है...पाठक भलीभांति अवगत हैं कि शनि का रंग काला है..तो इसका रत्न नीला कैसे हो सकता है...नीला राहु का रंग है मित्रों....ऊपर डिसकस किये सूत्र के अनुसार यर राहु का रत्न होना चाहिए....
अब शनि की शिफ़्त की तरफ ध्यान दीजिए..मार्गी शनि स्वयं के शरीर से काम लेता है तो वक्री अपनी बुद्धि व दूसरों के शरीर से काम लेता है...मार्गी शनि को एक मजदूर समझ लीजिए,,जो अपने दो हाथों से जितना काम करेगा,,उतना लाभ पायेगा....वक्री शनि को ठेकेदार समझ लीजिए,जो कई मजदूरों से काम करवा कर उनकी मेहनत का लाभ ले रहा है......आप मज़दूर व ठेकेदार दोनों को भला नीलम कैसे धारण करवा सकते हैं ....यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि वक्री शनि जहाँ भी होगा,वहाँ से लाभ के समीकरण बनाने का प्रयास करेगा...वक्री शनि ,कारक हो या अकारक,दोनों किरदारों में लाभ का ही फल उत्पन्न करता है..
नीलम धारण करवाने से आप मजदूर को उसकी प्रतिभा के विपरीत अधिक उकसा रहे हैं,जहाँ आगे हानि ही स्पष्ट दृष्टिगोचर है....वक्री शनि(ठेकेदार) को आप नीलम धारण करवा रहे हैं तो उसे निराशा के अंधकार में ले जा रहे हैं....जो व्यक्ति अच्छा भला दस मजदूरों से काम करवा ,लाभ प्राप्त कर रहा था,,वो अब अपने दोनों हाथों पर आश्रित हो गया है...
रत्न वास्तव में लग्न ,पंचम व नवम की मिश्रित आभा को पूरा करता हो तो ही अधिक लाभप्रद माना गया है...किन्तु नौशिखिये ज्योतिषियों के साथ यहाँ से ही समस्या आरम्भ हो जाती है,, अनुभव की कमी उन्हें सही निर्णय तक नहीं पहुँचने देती.......लग्न अगर खाली है तो आपको लग्नेश के आश्रित स्थान को लग्न बनाना पड़ता है,,तब जाकर आप सही निर्णय लेने की अवस्था में पहुँचते हैं....
उदहारण के लिए मान लीजिए कोई जातक वृश्चिक लग्न से सम्बंधित है....ऐसे में बुध यहाँ मारक हो जाता है,,...किन्तु लग्न कुंडली में यदि हम लग्न को रिक्त पा रहे हैं वे लग्नेश की पोजीशन एकादश भाव में बुध की कन्या राशि पर है,,,तो जातक को रत्न संबंधी सलाह देने के लिए हमें कन्या राशि को ही लग्न की तरह ट्रीट करना पड़ेगा..ऐसी अवस्था में सहज ही पन्ना धारण कराया जा सकता है.....अपनी दशा में बुध वृश्चिक लग्न के लिए मारकेश का कार्य ही करने वाला होगा,इसमें कोई संशय नहीं.....किन्तु पन्ना यहाँ आमदनी के साधनों को शीघ्र मजबूत करेगा इसमें भी कोई संशय नहीं....किताबी सूत्रों की तुलना में स्वयं के परिभाषित किये सूत्र ज्योतिषी को अधिक सहायक रहते हैं ,ऐसा मेरा व्यक्तिगत विश्वास है.....ज्योतिष किसी आसमानी चिड़िया का नाम नहीं है मित्रों....इसके लिए आपको संस्कृत घोटने की कतई आवश्यकता नहीं है....न ही मन्त्रों में आपका पारंगत न होना आपके ज्योतिषि बनने की राह में कोई रोड़ा है....बेसिक अध्ययन के बाद अपने आस पास तार्किक व विवेचनात्मक दृष्टिकोण रखना,, व पुराने सूत्रों को नए लिबास में देखने का हुनर ही आपको ज्योतिष की राह में आगे ले जाएगा,,ऐसा मेरा विश्वास है.....अतः आप भी अपने वातावरण पर समग्र दृष्टि रखें,,प्रकृति के परिवर्तनों को समझने का प्रयास करें,अपनी छठी इंद्री को जागृत करने का अभ्यास करें.....आपकी ज्योतिषी बनने की राह स्वतः ही सुगम हो जाती है....लेख के विषय में आपकी अमूल्य राय का इंतजार करूँगा....प्रणाम...
कमोबेश यही स्थिति शनि को लेकर चली आ रही है..और यही स्थिति है शनि से सम्बंधित रत्न माने जाने वाले नीलम की...परंपरागत रूप से ज्योतिषी भाई बंधु नीलम को शनि का रत्न बताते आये हैं,,,अपने अध्ययन के दौरान सामान्यतः हर गणक ऐसा ही पढता है,या समझाया जाता है...रत्नों के बारे में साधारण सी समझ रखने वाले पाठक भी ये बात तो जानते ही होंगे कि रत्न सम्बंधित ग्रह के मूल रंग को धारण करता हूं..उसकी आभा को परिभाषित करता हूं...सफ़ेद चंद्र के लिए सफ़ेद मोती का प्रावधान है,,लाल मंगल के लिए ऐसी ही आभा लिया मूंगा तय है.....हरे बुध के लिए हरा पन्ना तय किया गया है....पीले बृहस्पति के लिए पीला पुखराज शास्त्रोक्त है...ताम्बई सूर्य के लिए वैसी ही आभा वाला माणिक उपयुक्त माना जाता है....तो इस क्रम में भला परिवर्तन शनि को लेकर क्यों हो जाता है...
नीलम,, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है,,नीली आभा लिए एक रत्न है..जिसका सम्बन्ध शनि से जोड़ दिया गया है...पाठक भलीभांति अवगत हैं कि शनि का रंग काला है..तो इसका रत्न नीला कैसे हो सकता है...नीला राहु का रंग है मित्रों....ऊपर डिसकस किये सूत्र के अनुसार यर राहु का रत्न होना चाहिए....
अब शनि की शिफ़्त की तरफ ध्यान दीजिए..मार्गी शनि स्वयं के शरीर से काम लेता है तो वक्री अपनी बुद्धि व दूसरों के शरीर से काम लेता है...मार्गी शनि को एक मजदूर समझ लीजिए,,जो अपने दो हाथों से जितना काम करेगा,,उतना लाभ पायेगा....वक्री शनि को ठेकेदार समझ लीजिए,जो कई मजदूरों से काम करवा कर उनकी मेहनत का लाभ ले रहा है......आप मज़दूर व ठेकेदार दोनों को भला नीलम कैसे धारण करवा सकते हैं ....यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि वक्री शनि जहाँ भी होगा,वहाँ से लाभ के समीकरण बनाने का प्रयास करेगा...वक्री शनि ,कारक हो या अकारक,दोनों किरदारों में लाभ का ही फल उत्पन्न करता है..
नीलम धारण करवाने से आप मजदूर को उसकी प्रतिभा के विपरीत अधिक उकसा रहे हैं,जहाँ आगे हानि ही स्पष्ट दृष्टिगोचर है....वक्री शनि(ठेकेदार) को आप नीलम धारण करवा रहे हैं तो उसे निराशा के अंधकार में ले जा रहे हैं....जो व्यक्ति अच्छा भला दस मजदूरों से काम करवा ,लाभ प्राप्त कर रहा था,,वो अब अपने दोनों हाथों पर आश्रित हो गया है...
रत्न वास्तव में लग्न ,पंचम व नवम की मिश्रित आभा को पूरा करता हो तो ही अधिक लाभप्रद माना गया है...किन्तु नौशिखिये ज्योतिषियों के साथ यहाँ से ही समस्या आरम्भ हो जाती है,, अनुभव की कमी उन्हें सही निर्णय तक नहीं पहुँचने देती.......लग्न अगर खाली है तो आपको लग्नेश के आश्रित स्थान को लग्न बनाना पड़ता है,,तब जाकर आप सही निर्णय लेने की अवस्था में पहुँचते हैं....
उदहारण के लिए मान लीजिए कोई जातक वृश्चिक लग्न से सम्बंधित है....ऐसे में बुध यहाँ मारक हो जाता है,,...किन्तु लग्न कुंडली में यदि हम लग्न को रिक्त पा रहे हैं वे लग्नेश की पोजीशन एकादश भाव में बुध की कन्या राशि पर है,,,तो जातक को रत्न संबंधी सलाह देने के लिए हमें कन्या राशि को ही लग्न की तरह ट्रीट करना पड़ेगा..ऐसी अवस्था में सहज ही पन्ना धारण कराया जा सकता है.....अपनी दशा में बुध वृश्चिक लग्न के लिए मारकेश का कार्य ही करने वाला होगा,इसमें कोई संशय नहीं.....किन्तु पन्ना यहाँ आमदनी के साधनों को शीघ्र मजबूत करेगा इसमें भी कोई संशय नहीं....किताबी सूत्रों की तुलना में स्वयं के परिभाषित किये सूत्र ज्योतिषी को अधिक सहायक रहते हैं ,ऐसा मेरा व्यक्तिगत विश्वास है.....ज्योतिष किसी आसमानी चिड़िया का नाम नहीं है मित्रों....इसके लिए आपको संस्कृत घोटने की कतई आवश्यकता नहीं है....न ही मन्त्रों में आपका पारंगत न होना आपके ज्योतिषि बनने की राह में कोई रोड़ा है....बेसिक अध्ययन के बाद अपने आस पास तार्किक व विवेचनात्मक दृष्टिकोण रखना,, व पुराने सूत्रों को नए लिबास में देखने का हुनर ही आपको ज्योतिष की राह में आगे ले जाएगा,,ऐसा मेरा विश्वास है.....अतः आप भी अपने वातावरण पर समग्र दृष्टि रखें,,प्रकृति के परिवर्तनों को समझने का प्रयास करें,अपनी छठी इंद्री को जागृत करने का अभ्यास करें.....आपकी ज्योतिषी बनने की राह स्वतः ही सुगम हो जाती है....लेख के विषय में आपकी अमूल्य राय का इंतजार करूँगा....प्रणाम...