सनातन धर्म में यज्ञ का बड़ा महत्व माना गया है ,सदियों से ऋषि मुनि ग्रहों व देवताओं को प्रसन्न करने हेतु यज्ञ किया करते थे ,ऐसा वर्णन कई ग्रंथों में आया है। महर्षि याञवल्क्य जी ने कहा है कि हे मुनियो लक्ष्मी एवं सुखशांति के इच्छुक तथा ग्रहों की दृष्टि से दुखित जनो को ग्रह शान्ति के लिए तत्सम्बन्धी यज्ञ करना चाहिए। यज्ञ के दौरान मंत्रोचारण के साथ ग्रह से सम्बंधित समिधा (लकड़ी -सामग्री आदि ) आहुति देना शुभ फलदायी होता है। सामान्यतः यज्ञ हवन आदि में आपने पंडित जी को आम व पीपल की लकड़ी ही डालते हुए देखा होगा ,किन्तु वास्तव में हवन के दौरान हर ग्रह की अपनी अलग समिधा है,जिनके उपयोग से ग्रह को प्रसन्न किया जाता है।
सूर्य देव के लिए अर्क (मदार) की लकड़ी की आहुति देना… इसी क्रम में चन्द्रमा के लिए पलाश (ढाक ) ,मंगल हेतु खदिर (खैर ), बुध हेतु अपामार्गा ,देवगुरु हेतु अस्वत्थ (पीपल) ,शुक्र हेतु उदुम्बर (गुढ़ल ),शनि हेतु शमि ,राहु हेतु दूर्वा तथा लिए कुश की आहुति देना श्रेष्ट माना गया है।
इन्हे क्रमशः व्याधि नाश ,सर्वकामना सिद्धि ,धनलाभ , ईष्ट को बढ़ाने ,संतान प्राप्ति ,स्वर्ग प्राप्ति ,अदृष्ट दोषों के निवारण हेतु ,दीर्घायु व आयु- बल -तेज को बढ़ाने वाली आहुतियां भी कहा गया है।
वशिष्ट यज्ञ पद्धति में इसका सुन्दर संकेत प्राप्त होता है … यथा
"आर्की नाश्यते व्याधि पलाशी सर्वकामदा
खादरी त्वर्थ लाभायापामार्गी चेष्टवर्धिनी
प्रजालाभाय चाश्वती स्वर्गयोदुम्बरी भवेत
शमी शमी शमयते पापं दूर्वा दीर्घायुरेव च
कुशा:सर्वकामार्थमानां परम रक्षणं विदुः "
आशा है ये जानकारी आपके लिए लाभप्रद हो ,व अगली बार जब भी आपके घर में हवन यज्ञ आदि हो तो आप अपने पंडित जी से नवग्रह समिधा के बारे में अवश्य पूछें .......
सूर्य देव के लिए अर्क (मदार) की लकड़ी की आहुति देना… इसी क्रम में चन्द्रमा के लिए पलाश (ढाक ) ,मंगल हेतु खदिर (खैर ), बुध हेतु अपामार्गा ,देवगुरु हेतु अस्वत्थ (पीपल) ,शुक्र हेतु उदुम्बर (गुढ़ल ),शनि हेतु शमि ,राहु हेतु दूर्वा तथा लिए कुश की आहुति देना श्रेष्ट माना गया है।
इन्हे क्रमशः व्याधि नाश ,सर्वकामना सिद्धि ,धनलाभ , ईष्ट को बढ़ाने ,संतान प्राप्ति ,स्वर्ग प्राप्ति ,अदृष्ट दोषों के निवारण हेतु ,दीर्घायु व आयु- बल -तेज को बढ़ाने वाली आहुतियां भी कहा गया है।
वशिष्ट यज्ञ पद्धति में इसका सुन्दर संकेत प्राप्त होता है … यथा
"आर्की नाश्यते व्याधि पलाशी सर्वकामदा
खादरी त्वर्थ लाभायापामार्गी चेष्टवर्धिनी
प्रजालाभाय चाश्वती स्वर्गयोदुम्बरी भवेत
शमी शमी शमयते पापं दूर्वा दीर्घायुरेव च
कुशा:सर्वकामार्थमानां परम रक्षणं विदुः "
आशा है ये जानकारी आपके लिए लाभप्रद हो ,व अगली बार जब भी आपके घर में हवन यज्ञ आदि हो तो आप अपने पंडित जी से नवग्रह समिधा के बारे में अवश्य पूछें .......
mera Ankit jain 28/08/1985 18;10 birht date naukri aut dhan me problem hai
जवाब देंहटाएंPt Ji Sadar Pranam.Aap ke purane pitr dosh ke article se bahut jaankari mile lekin agar aap unke upay bhi batate to bahut kaam aayenge
जवाब देंहटाएंआभार आपका ,आगे अवश्य प्रयास रहेगा
हटाएंpanditji aajkal jo havan hota hai wo itni jaldi khatam ho jati hai ki ye nahin pata chalta ki ye naam matrake havan the ya sahi mein jo likhigayi sastronse kiya huahai . tipani de
जवाब देंहटाएंक्या किया जाय सुजीत जी स्वयं मेरी समझ नहीं आता ,वास्तव में पंडित जी और यजमान दोनों जल्दी में हैं ,
हटाएंGood Information, I agree with you. if you are looking for Navagraha Samidha and Havan Samagri online at the most competitive price .we offers best quality product with fastest delivery
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