शाश्त्रों में नर्मदा नदी को कितना महत्व प्राप्त है इसका उदाहरण पद्मपुराण के आदिखंड १३:०७ में देखने में आया है ………………" त्रिभिः सारस्वतं तोयं सप्ताहेन तु यामुनम् ,सद्यः पुनाति गांगेयं दर्शनादेव नर्मदाम् "
अर्थात सरस्वती का जल तीन दिनों के स्नान से पवित्र करता है ,यमुना का सात दिनों में.… गंगा का पुण्य स्नान करते ही प्राप्त हो जाता है ,किन्तु नर्मदा का जल दर्शन मात्र से ही आपको पुण्य की प्राप्ति करा मोक्ष दान कर देता है…
ऐसी मान्यता है कि नर्मदा जी अकेली ऐसी नदी हैं जो पश्चिम दिशा की ओर बहती हैं ,साथ ही इन्हें कुंवारी नदी कहा गया है ,जिसका जल घर ले जाना निषेध है..... कुंवारी से मेरा अंदाजा इस बात से है कि संभवतः अपने उदगम से सागर में अपने मिलन तक नर्मदा जी रास्ते भर किसी अन्य नदी से मेल नहीं करती हैं।
ऐसे ही तीर्थों के बारे में अलग अलग सूत्रों से अलग जानकारी प्राप्त होती है ....अग्नि पुराण के ११२ :०३ खंड में काशी को सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थ बताते हुए कहा गया है कि यहाँ पहुँचने के पश्चात मनुष्य को अपने पैरों को स्वयं पत्थरों से कुचल देना चाहिए ताकि यहाँ से जा न सके........ यथा "अश्मना चरणौ हत्वा वसेत्काशीम न हि त्येजेत "
वहीँ दूसरी ओर पुष्कर के महत्त्व को बताते हुए वनपर्व ८२ :२६:२७ में कहा कि जो अपने पितरों का पूजन यहाँ करता है वो अश्वमेघ का दस गुना फल पाता है…… …… पद्मपुराण के ५ वें खंड के २७ और ७८ वें श्लोक में पुष्कर ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थ कहा गया है .... ....
इस विषय में ब्रह्मपुराण २५ :०४-०६ में कहा गया है कि जितेन्द्रिय जहाँ भी रहे वहीँ कुरुक्षेत्र ,प्रयाग व पुष्कर हैं.… .जो दुष्ट है ,जिसका मन कपटी है व जिसका अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण नहीं ,उस व्यक्ति को कोई भी तीर्थ ,दान व जप पवित्र नहीं कर सकते … संक्षेप में मन चंगा तो कठौती में गंगा ही है.……
( आपसे प्रार्थना है कि कृपया लेख में दिखने वाले विज्ञापन पर अवश्य क्लिक करें ,इससे प्राप्त आय मेरे द्वारा धर्मार्थ कार्यों पर ही खर्च होती है। अतः आप भी पुण्य के भागीदार बने )
अर्थात सरस्वती का जल तीन दिनों के स्नान से पवित्र करता है ,यमुना का सात दिनों में.… गंगा का पुण्य स्नान करते ही प्राप्त हो जाता है ,किन्तु नर्मदा का जल दर्शन मात्र से ही आपको पुण्य की प्राप्ति करा मोक्ष दान कर देता है…
ऐसी मान्यता है कि नर्मदा जी अकेली ऐसी नदी हैं जो पश्चिम दिशा की ओर बहती हैं ,साथ ही इन्हें कुंवारी नदी कहा गया है ,जिसका जल घर ले जाना निषेध है..... कुंवारी से मेरा अंदाजा इस बात से है कि संभवतः अपने उदगम से सागर में अपने मिलन तक नर्मदा जी रास्ते भर किसी अन्य नदी से मेल नहीं करती हैं।
ऐसे ही तीर्थों के बारे में अलग अलग सूत्रों से अलग जानकारी प्राप्त होती है ....अग्नि पुराण के ११२ :०३ खंड में काशी को सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थ बताते हुए कहा गया है कि यहाँ पहुँचने के पश्चात मनुष्य को अपने पैरों को स्वयं पत्थरों से कुचल देना चाहिए ताकि यहाँ से जा न सके........ यथा "अश्मना चरणौ हत्वा वसेत्काशीम न हि त्येजेत "
वहीँ दूसरी ओर पुष्कर के महत्त्व को बताते हुए वनपर्व ८२ :२६:२७ में कहा कि जो अपने पितरों का पूजन यहाँ करता है वो अश्वमेघ का दस गुना फल पाता है…… …… पद्मपुराण के ५ वें खंड के २७ और ७८ वें श्लोक में पुष्कर ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थ कहा गया है .... ....
इस विषय में ब्रह्मपुराण २५ :०४-०६ में कहा गया है कि जितेन्द्रिय जहाँ भी रहे वहीँ कुरुक्षेत्र ,प्रयाग व पुष्कर हैं.… .जो दुष्ट है ,जिसका मन कपटी है व जिसका अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण नहीं ,उस व्यक्ति को कोई भी तीर्थ ,दान व जप पवित्र नहीं कर सकते … संक्षेप में मन चंगा तो कठौती में गंगा ही है.……
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