अर्थ का अनर्थ होते आप सभी ने कई बार देखा होगा। देवनागरी लिपि अल्प
विराम ,विराम ,हलन्त् ,विसर्ग ,मात्रा आदि के सहयोग से निर्मित है।जरा सी
चूक अर्थ का अनर्थ करने में सक्षम है। उदाहरण के लिए ....... 'बच्चे को
कमरे में बंद रखा गया '…… मात्र 'र' अक्षर का स्थान बदल देने से 'बच्चे
को कमरे में बन्दर खा गया ' बन जाता है. 'कुंती ' शब्द से मात्र बिंदी हटा
देने से ही जूते चलने की नौबत आ जाती है। सर और सिर में अंतर होता है।
चुटिया के मध्य 'ट' को 'त' से बदल देने पर अनुमान लगाइये कि क्या क्या हो
सकता है। अनुमान नहीं लगा सकते तो साक्षात कर के देखें। 'बादल' आ की
मात्रा हटा दें तो इसका अर्थ कुछ और ही हो जाएगा। अर्थात असंख्य उदाहरण मिल
सकते हैं खोजने पर।
रामचरितमानस के सुन्दर काण्ड अध्याय में प्रभु राम से दया व क्षमा की याचना करते हुए समुद्र द्वारा कही गयी बात का अर्थ कहाँ से कहाँ लगा लिया गया व इस कारण तुलसी जी को कहीं कहीं कोप का भाजन भी बनना पड़ा है। पता नहीं किसी के द्वारा लिखने की त्रुटि कहें अथवा समझने की ,किन्तु विवाद तो हुआ ही है ,होता ही है।
पाठकों को ज्ञात होगा ,सागर कहता है ………
"प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्ही ,मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही
ढोल गंवार सूद्र पसु नारी ,सकल ताड़ना के अधिकारी "
विद्वान लोगों में यहाँ सदा से तारना -ताड़ना के प्रति मतभेद है। उस समय विशेष व समुद्र की मानसिक स्थिति की कल्पना कीजिये। राम शर संधान कर चुके हैं। समुद्र को भय होता है व वह राम की चिरौरी करता है ,माफ़ी मांगता है ,स्वयं पर दया याचना कर रहा है।ऐसे में ताड़ना शब्द अगर उसका मंतव्य होता तो उस हेतु तो राम पहले ही तैयार हो चुके थे।
समुद्र भयभीत होकर प्राणो की रक्षा मांग रहा है। वह स्वयं को तारने हेतु याचना कर रहा है। अपने को दीन साबित करना चाह रहा है।
अतः समुद्र कहता है कि प्रभु "मैं गंवार (कम जानकार ) हूँ ,मुझ पर दया कीजिये ". जिस प्रकार ढोल चमड़े का बना हुआ है किन्तु नमी के संपर्क में आने से खराब हो जाता है। ढोल किसी की आजीविका का साधन है ,किसी के मनोरंजन का साधन है। किन्तु अपनी अवस्था के कारण अपनी देख रेख स्वयं करने में असमर्थ है।अतः इसकी अनदेखी हितकर नहीं है ,इस पर निरंतर दृष्टि बनाये रखना ही इसके लाभ प्राप्त करा सकता है। पाठक ध्यान दें की ताड़ना शब्द का अर्थ देखना भी होता है ,निगाह रखना भी होता है। गंवार शब्द कमजोर मनुष्य के लिए प्रयुत्त होने वाला शब्द है ,वो कमजोर है अतः दया का पात्र है। उस पर दृष्टि रखना आवश्यक है अन्यथा वह अपने अधिकारों से वंचित रह सकता है। वह आप समर्थ लोगों की दृष्टि का पात्र है। शूद्र शब्द उस समय काल में सर्वाधिक परिश्रमी प्रजाति के लिए उपयोग होता था (बाद में इसका गलत अर्थ ले लिया गया ) . खेतों में,पशुशालाओं में,कारखानो में निरंतर स्वयं को झोंक कर रखनेवाले लोग शूद्र थे। समाज हित में वे निरंतर कार्य करते थे ,व इस कारण अपने लिए उनके पास समय नहीं होता था। उनके स्वास्थ्य की ,उनके हितों की अनदेखी समाज के लिए घातक दुष्परिणाम प्रस्तुत कर सकती थी। अतः उनका ध्यान रखना ,उन पर निगाह बनाये रखना आवश्यक था। पशु दूध देने वाले ,चमड़ा देने वाले , ऊन देने वाले ,खेतों में हल चलाने वाले ,सामान व मनुष्य को परिवहन देने वाले जीव थे। घोड़े ,हाथी ,गायों आदि के बिना उस समय काल की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अतः इनकी सेवा आवश्यक थी। ये स्वयं अपनी देखभाल करने में असमर्थ हैं। इस कारण इन पर निगाह बनाये रखना आवश्यक है।
इसी प्रकार स्त्री को ईश्वर ने नैसर्गिक रूप से सेवा व त्याग के भाव से परिपूर्ण किया है।अपने घर में ही देखिये,माँ सबसे अंत में ही भोजन करती होगी। बहन खुद अपनी पढाई के साथ साथ आपके वस्त्र व खाने के बर्तन भी धोती होगी ,घर की सफाई भी उसी के जिम्मे होगी। धर्मपत्नी होगी तो स्वाभाविक रूप से ये सारे कार्य उसी के जिम्मे होंगे। नौकरी करे या न करे तब भी घर का खाना ,आपके, बच्चों के कपडे ,टिफ़िन ,घर की सफाई सब उसी के जिम्मे होगी। आपको जरा सा जुकाम भी हो तो आप रेस्ट पर होंगे किन्तु वह बुखार से तडप भी रही होगी तब भी आपको आफिस व बच्चों को स्कूल भेजना है। सर्दियों में जब आपकी हिम्मत रजाई से बाहर आने की नहीं हो रही होगी ,माँ तब भी गाय का दूध दुहकर ,दाना पानी कर आई होगी। अपने ठिठुरते हाथों की तरफ ध्यान देने की फुर्सत उस बेचारी के पास कहाँ है ?आपके रुमाल तक को प्रेस कर आपके जेब में डालने वाली श्रीमती जी के पास अपने सबसे महंगे सूट को स्त्री करने का समय नहीं है.सुबह ८ बजे आपको नाश्ता परोस देने वाली स्वयं ११ बजे तक भूखी है ,पता नहीं दवा खाई या नहीं। पता नहीं सिर दर्द कैसा है ?किन्तु जब तक काम चल रहा है तब तक सब ठीक है ,लेकिन अगर वो बिस्तर पर पड़ गयी तो बच्चू फिर पता चलेगा ,जब घर का सारा सिस्टम ही बिगड़ जाएगा। इसलिए उस पर निगाह रखो ,उसे ताड़ते रहो। कहीं हमारी सेवा के चक्कर में स्वास्थ्य से तो लापरवाही नहीं कर रही है हमारे घर की स्त्रियां ? इसीलिए वो अधिकारिणी है ,हमारी स्पेशल अटेंशन की।
तुलसी को स्त्री विरोधी मानने वाले उनके द्वारा रचित सीता जी ,मंदोदरी ,कौशल्या ,अहिल्या ,सबरी आदि चरित्रों पर टिप्पणी को अनदेखा कर जाते हैं.त्रुटि किस स्तर पर हुई है हमें नहीं पता ,किन्तु त्रुटि हुई है ,हो रही है इतना मुझे ज्ञात है। स्त्री सदा से आदरणीय है ,शाश्त्रों में उसे देवी कहा गया है। मानस बहुत बड़ा धर्मग्रन्थ है ,हिन्दू धर्म की आत्मा है। इसकी लिखी प्रत्येक पंक्ति अपने आप में एक ग्रन्थ की रचना कर सकती है। इसकी एक चौपाई, एक पूरी सभ्यता को संचालित करने में सक्षम है।
भविष्य में इसी प्रकार किसी अन्य विषय को लेने का प्रयास करेंगे। लेख के विषय पर आपकी अमूल्य राय की बाट जोहूंगा। दीपावली की अग्रिम शुभकामनाओं सहित ....... आपका साथी……
रामचरितमानस के सुन्दर काण्ड अध्याय में प्रभु राम से दया व क्षमा की याचना करते हुए समुद्र द्वारा कही गयी बात का अर्थ कहाँ से कहाँ लगा लिया गया व इस कारण तुलसी जी को कहीं कहीं कोप का भाजन भी बनना पड़ा है। पता नहीं किसी के द्वारा लिखने की त्रुटि कहें अथवा समझने की ,किन्तु विवाद तो हुआ ही है ,होता ही है।
पाठकों को ज्ञात होगा ,सागर कहता है ………
"प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्ही ,मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही
ढोल गंवार सूद्र पसु नारी ,सकल ताड़ना के अधिकारी "
विद्वान लोगों में यहाँ सदा से तारना -ताड़ना के प्रति मतभेद है। उस समय विशेष व समुद्र की मानसिक स्थिति की कल्पना कीजिये। राम शर संधान कर चुके हैं। समुद्र को भय होता है व वह राम की चिरौरी करता है ,माफ़ी मांगता है ,स्वयं पर दया याचना कर रहा है।ऐसे में ताड़ना शब्द अगर उसका मंतव्य होता तो उस हेतु तो राम पहले ही तैयार हो चुके थे।
समुद्र भयभीत होकर प्राणो की रक्षा मांग रहा है। वह स्वयं को तारने हेतु याचना कर रहा है। अपने को दीन साबित करना चाह रहा है।
अतः समुद्र कहता है कि प्रभु "मैं गंवार (कम जानकार ) हूँ ,मुझ पर दया कीजिये ". जिस प्रकार ढोल चमड़े का बना हुआ है किन्तु नमी के संपर्क में आने से खराब हो जाता है। ढोल किसी की आजीविका का साधन है ,किसी के मनोरंजन का साधन है। किन्तु अपनी अवस्था के कारण अपनी देख रेख स्वयं करने में असमर्थ है।अतः इसकी अनदेखी हितकर नहीं है ,इस पर निरंतर दृष्टि बनाये रखना ही इसके लाभ प्राप्त करा सकता है। पाठक ध्यान दें की ताड़ना शब्द का अर्थ देखना भी होता है ,निगाह रखना भी होता है। गंवार शब्द कमजोर मनुष्य के लिए प्रयुत्त होने वाला शब्द है ,वो कमजोर है अतः दया का पात्र है। उस पर दृष्टि रखना आवश्यक है अन्यथा वह अपने अधिकारों से वंचित रह सकता है। वह आप समर्थ लोगों की दृष्टि का पात्र है। शूद्र शब्द उस समय काल में सर्वाधिक परिश्रमी प्रजाति के लिए उपयोग होता था (बाद में इसका गलत अर्थ ले लिया गया ) . खेतों में,पशुशालाओं में,कारखानो में निरंतर स्वयं को झोंक कर रखनेवाले लोग शूद्र थे। समाज हित में वे निरंतर कार्य करते थे ,व इस कारण अपने लिए उनके पास समय नहीं होता था। उनके स्वास्थ्य की ,उनके हितों की अनदेखी समाज के लिए घातक दुष्परिणाम प्रस्तुत कर सकती थी। अतः उनका ध्यान रखना ,उन पर निगाह बनाये रखना आवश्यक था। पशु दूध देने वाले ,चमड़ा देने वाले , ऊन देने वाले ,खेतों में हल चलाने वाले ,सामान व मनुष्य को परिवहन देने वाले जीव थे। घोड़े ,हाथी ,गायों आदि के बिना उस समय काल की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अतः इनकी सेवा आवश्यक थी। ये स्वयं अपनी देखभाल करने में असमर्थ हैं। इस कारण इन पर निगाह बनाये रखना आवश्यक है।
इसी प्रकार स्त्री को ईश्वर ने नैसर्गिक रूप से सेवा व त्याग के भाव से परिपूर्ण किया है।अपने घर में ही देखिये,माँ सबसे अंत में ही भोजन करती होगी। बहन खुद अपनी पढाई के साथ साथ आपके वस्त्र व खाने के बर्तन भी धोती होगी ,घर की सफाई भी उसी के जिम्मे होगी। धर्मपत्नी होगी तो स्वाभाविक रूप से ये सारे कार्य उसी के जिम्मे होंगे। नौकरी करे या न करे तब भी घर का खाना ,आपके, बच्चों के कपडे ,टिफ़िन ,घर की सफाई सब उसी के जिम्मे होगी। आपको जरा सा जुकाम भी हो तो आप रेस्ट पर होंगे किन्तु वह बुखार से तडप भी रही होगी तब भी आपको आफिस व बच्चों को स्कूल भेजना है। सर्दियों में जब आपकी हिम्मत रजाई से बाहर आने की नहीं हो रही होगी ,माँ तब भी गाय का दूध दुहकर ,दाना पानी कर आई होगी। अपने ठिठुरते हाथों की तरफ ध्यान देने की फुर्सत उस बेचारी के पास कहाँ है ?आपके रुमाल तक को प्रेस कर आपके जेब में डालने वाली श्रीमती जी के पास अपने सबसे महंगे सूट को स्त्री करने का समय नहीं है.सुबह ८ बजे आपको नाश्ता परोस देने वाली स्वयं ११ बजे तक भूखी है ,पता नहीं दवा खाई या नहीं। पता नहीं सिर दर्द कैसा है ?किन्तु जब तक काम चल रहा है तब तक सब ठीक है ,लेकिन अगर वो बिस्तर पर पड़ गयी तो बच्चू फिर पता चलेगा ,जब घर का सारा सिस्टम ही बिगड़ जाएगा। इसलिए उस पर निगाह रखो ,उसे ताड़ते रहो। कहीं हमारी सेवा के चक्कर में स्वास्थ्य से तो लापरवाही नहीं कर रही है हमारे घर की स्त्रियां ? इसीलिए वो अधिकारिणी है ,हमारी स्पेशल अटेंशन की।
तुलसी को स्त्री विरोधी मानने वाले उनके द्वारा रचित सीता जी ,मंदोदरी ,कौशल्या ,अहिल्या ,सबरी आदि चरित्रों पर टिप्पणी को अनदेखा कर जाते हैं.त्रुटि किस स्तर पर हुई है हमें नहीं पता ,किन्तु त्रुटि हुई है ,हो रही है इतना मुझे ज्ञात है। स्त्री सदा से आदरणीय है ,शाश्त्रों में उसे देवी कहा गया है। मानस बहुत बड़ा धर्मग्रन्थ है ,हिन्दू धर्म की आत्मा है। इसकी लिखी प्रत्येक पंक्ति अपने आप में एक ग्रन्थ की रचना कर सकती है। इसकी एक चौपाई, एक पूरी सभ्यता को संचालित करने में सक्षम है।
भविष्य में इसी प्रकार किसी अन्य विषय को लेने का प्रयास करेंगे। लेख के विषय पर आपकी अमूल्य राय की बाट जोहूंगा। दीपावली की अग्रिम शुभकामनाओं सहित ....... आपका साथी……
आदरणीय पारिवारिक समस्याओं से बुरी तरह परेशान हूँ.... कोई उपाय जल्द बता दीजिये बड़ी कृपा होगी.... .... जन्मतिथि -26-02-1986 ,07:52 बजे सुबह ,झाबुआ ,मध्यप्रदेश
जवाब देंहटाएंSatya Niketan Delhi. Date of birth : 14th April 1988, 8:45 am
जवाब देंहटाएंhigher education and future career.
बालक को चाहिए की भविष्य बैंकिंग ,फाइनेंस अथवा संचार के क्षेत्र में तराशे। दशम में राहु का प्रभाव मैकेनिकल क्षेत्रों में आगे बढ़ने , यहीं से आगे की अवस्थाओं में ऐसे जातक राजनीति की और आते भी देखे गए हैं। दशम भाव में बनता ग्रहण योग व पंचमेश के नीचराशिस्थ होने से शिक्षा कर्रिएर निर्माण में देरी का सूचक है। किन्तु प्रयास करने पर कुंडली सरकारी नौकरी की पुष्टि करती है। विचारों पर नियंत्रण रखा जाय ,अहम व गुस्से को नियंत्रित रखा जाय तो कुंडली में मौजूद उच्च के सूर्य ,उच्च के भौम व स्वराशि के शुक्र इस कुंडली को सामान्य कुंडलियों से पृथक करती है। दूर की यात्राओं (विदेशादि ) के योग प्राप्त होंगे। नाक -सांस ,व मलद्वार से सम्बंधित रोगों सचेत रहें। ओपल रत्न धारण करें। बुधवार के व्रत करें।
हटाएंउक्त चौपाई के संबंध में आपकी व्याख्या अत्यंत सटीक है।अन्य चौपाइयों जैसे प्रात लेइ जो नाम हमारा तेहिं दिन ताहि न मिलहि अहारा ।।
जवाब देंहटाएं… तामस तनु कछु साधन नाहीं। प्रीति न पद सरोज मन माहीं।।अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता।।जौ रघुबीर अनुग्रह कीन्हा। तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा।।सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीती।।कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना।।प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा,,,,,,,, सुन्दर काण्ड मे हनुमान व विभिषण संवाद में इसका वर्णन आता है। यहाँ दो सन्दर्भों में इसे लिया जा सकता है ,,,,,हनुमान देख रहे हैं कि स्वयं के राक्षक कुल होने के कारण विभीषण ग्लानि में हैं,उन्हें संशय कि उन्हें राम कृपा प्राप्त हो अथवा नहीं ,,,,,अतः विनम्रता का परिचय देते हुए हनुमान स्वयं को विभीषण से छोटा साबित करते हुए उन्हें बताते हैं कि जब राम की कृपा मुझ जैसे वानर पर हो सकती है तो तुम पर क्यों नहीं ???यहाँ हम इसे प्रतीकात्मक रूप से हनुमान द्वारा विभीषण को दी गई सांत्वना मान सकते हैं,,,,, अर्थ का दूसरा पहलु पकड़ें तो हनुमान मंगल के प्रतिनिधि हैं ,,वे कहना चाहते हैं कि मेरे समान प्रभु कार्य में संलग्न रहने वाले को भूख प्यास की परवाह किये बैगैर निरंतर अपना लक्ष्य पाने हेतु तत्पर रहना चाहिए ....जिस प्रकार किसान प्रातः ही जागकर बिना कुछ खाये हल लेकर खेती में जुट जाता है, साधनो के अभाव बहाना न बना ,हमें निरंतर कार्य करते रहना चाहिए ... तभी ईश्वर अर्थात अपने लक्ष्य को पाया जा सकता है .... प्रणाम
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