बीते दिनों श्री कैलाश सत्यार्थी जी को नोबेल दिए जाने की घोषणा हुई। मेरी पुत्री मुझ से कहने लगी "ये हैं कौन ?आज तक इनका नाम तो कहीं नहीं सुना, ये करते क्या हैं " मैं पशोपेश में हूँ कि क्या जवाब दूँ ? सच बताइयेगा कि क्या आपने सुना है पहले इनका नाम। सरकारी नौकरी के सुख को सालों पहले त्यागकर एक शख्श ,भारत ही नहीं अपितु संसार भर के अनाथ बच्चों के लिए कुछ करने को जूझ रहा है ,और उसे अपने ही देश में ७५ प्रतिशत लोग नहीं पहचानते। संसार उसके जज्बे को सलाम कर उसे नोबेल देने की घोषणा करता है और उसके अपने देश के लोग पूछते हैं कि भाई ये कौन सी बला है.
असल में इन्हें पहचाने भी तो कैसे ?भाई वाकई आपकी हमारी कोई गलती नहीं है ,गलती इन्ही की है ,अगर पहचान ही चाहते थे तो राजनीति में आ सकते थे ,छिछोरे गाने गाकर कामुक अंदाज में कोई हरकत करते ,क्रिकेट खेलते ,विज्ञापन करते ,जंतर मंतर पर धरना देते ,स्टेटस (?) वाले लोगों के बीच उठते बैठते,ट्विटर पर चुटीले कमेंट्स करते ,कहीं आश्रम खोलकर प्रवचन करते तो कोई बात भी थी। कैसे नहीं आप हम इन्हे जानते -पहचानते ,इनके प्रशंशक बनते।भाई चुपचाप मीडिया -प्रचार की चकाचौंध से दूर निस्वार्थ भाव से अपने अंतर्मन की एक आवाज पर स्वयं को शोषितों -कमजोरों के लिए खपाने वाले की भला हमारे महान देश में क्या बिसात। सत्यार्थी जी इसमें हमारी आधुनिक और तेजी से आगे बढ़ने वाली नौजवान पीढ़ी की कोई गलती नहीं। उन्हें तो अपने पड़ोस में रहने वाले निस्संतान बुजुर्ग दंपत्ति का नाम नहीं पता, तो आप भला क्या चीज हैं ?उन्हें ये नहीं पता की पड़ोस में जिस शादी की दावत में भोजन की पंक्ति में सबसे आगे दिख रहे हैं ,वो लड़के वालों का घर है या वधु पक्ष का। आप भी क्या बात करते हैं साहब ?बेचारे लेटेस्ट apps का ध्यान रखें या इन बेकार की बातों पर सर खपाएं। हन्नी सिंह और बीबर का नया एल्बम आने वाला है ,इसकी जानकारी होना ही उन्हें कूल डूड बनाएगा न कि ये जानना कि बीते दिनों कश्मीर की बाढ़ से प्रभावित हुए लोगों का क्या हाल है ?ऑफिस की पार्टी के चक्कर में ,माँ की -पिता की दवा लाने की फुर्सत जिस कौम के पास नहीं ,उसने यदि आप का नाम नहीं सुना तो क्या गुनाह हो गया। फिर आशाराम बापू के छींकने तक की खबर जो मीडिया घंटों चैनल पर दिखाता है ,उसने आज तक कभी आप पर ध्यान देने की कृपा नहीं करी,तो हमें दोष क्यों।
सच कहूँ मित्रों ?मैंने भी सत्यार्थी जी का नाम पहले नहीं सुना था। किन्तु इसके लिए मैं इन दिनों में कई बार ग्लानि से भरकर खुद को कोस चुका हूँ। वास्तव में हम लोग खुद को ही छलकर एक झूठे माहौल में जीने के आदि हो चुके हैं। आत्मकेंद्रित होकर हम मात्र उसके बारे में ही सोचना जानना चाहते हैं जो किसी प्रकार हमारे लिए कोई लाभ के अवसर पैदा कर सकता है। वरना हमारी बला से कौन जीता है ,कौन मरता है ,ये जानने की न हमारी तबियत होती है न हमारे पास समय है। हम बहुत गफलत के माहौल में जी रहे हैं दोस्तों। ये रास्ता आगे हमें कहाँ ले जाकर छोड़ेगा ,ये सोचकर भी मैं थर्रा जाता हूँ। अपने बच्चों में attitude देखकर हम खुश हो रहे हैं ,छोटी आयु में उन्हें गाडी -फ़ोन -इंटरनेट देकर खुद को फॉरवर्ड होने का जो भ्रम हम पाल रहे हैं ,यही एक दिन हमें खून के आंसू रुलाएगा ,ये तय है।
संसार के बहुत लोगों को हमारी आवश्यकता है। अपना पेट तो जानवर भी भरता है ,अपने घर की देखभाल तो जंगली जानवर भी करता है। अपने बच्चों को दाना तो एक छोटी सी चिड़िया भी खिला देती है। अनपढ़ होकर और कभी विदेश न जाकर भी जानवर तक कई प्रकार के करतब सर्कस में दिखा सकता है ,फिर हम किस लिए प्रकृति की श्रेष्ट रचना हुए ,ये समझ से बाहर है।
समय है ,चेतिए और बदलिये स्वयं को। ये चारदीवारी हमारा घर नहीं है ,ये तो मात्र हमारे रहने का कमरा है। घर तो समस्त संसार है। दूर बसे हुए लाचार मजबूर लोग भी हमारे सम्बन्धी हैं। कल हमने भी बुजुर्ग होना है। बाढ़ -भूकम्प हमें भी एक झटके में राजा से रंक बना सकता है। बिना बताये ह्रदय की एक धड़कन चुटकी बजाकर हमारे कामदेव से रूप को एक तरफ़ा लकवा मार कर बदसूरत कर सकती है। कोई सा भी जहाज -रेल -कार एक्सीडेंट,सालों जिम में पसीना बहाकर सुडौल बनाये हमारे इस शरीर की धज्जियाँ उड़ा सकता है। सहज बनिये ,अपने आस पास नजर रखिये ,क्या पता कोई आपकी सहायता के लिए टकटकी लगाये हो ?स्वयं से बाहर निकालिये… फिर कभी न पूछना पड़े ……कौन कैलाश सत्यार्थी ?
असल में इन्हें पहचाने भी तो कैसे ?भाई वाकई आपकी हमारी कोई गलती नहीं है ,गलती इन्ही की है ,अगर पहचान ही चाहते थे तो राजनीति में आ सकते थे ,छिछोरे गाने गाकर कामुक अंदाज में कोई हरकत करते ,क्रिकेट खेलते ,विज्ञापन करते ,जंतर मंतर पर धरना देते ,स्टेटस (?) वाले लोगों के बीच उठते बैठते,ट्विटर पर चुटीले कमेंट्स करते ,कहीं आश्रम खोलकर प्रवचन करते तो कोई बात भी थी। कैसे नहीं आप हम इन्हे जानते -पहचानते ,इनके प्रशंशक बनते।भाई चुपचाप मीडिया -प्रचार की चकाचौंध से दूर निस्वार्थ भाव से अपने अंतर्मन की एक आवाज पर स्वयं को शोषितों -कमजोरों के लिए खपाने वाले की भला हमारे महान देश में क्या बिसात। सत्यार्थी जी इसमें हमारी आधुनिक और तेजी से आगे बढ़ने वाली नौजवान पीढ़ी की कोई गलती नहीं। उन्हें तो अपने पड़ोस में रहने वाले निस्संतान बुजुर्ग दंपत्ति का नाम नहीं पता, तो आप भला क्या चीज हैं ?उन्हें ये नहीं पता की पड़ोस में जिस शादी की दावत में भोजन की पंक्ति में सबसे आगे दिख रहे हैं ,वो लड़के वालों का घर है या वधु पक्ष का। आप भी क्या बात करते हैं साहब ?बेचारे लेटेस्ट apps का ध्यान रखें या इन बेकार की बातों पर सर खपाएं। हन्नी सिंह और बीबर का नया एल्बम आने वाला है ,इसकी जानकारी होना ही उन्हें कूल डूड बनाएगा न कि ये जानना कि बीते दिनों कश्मीर की बाढ़ से प्रभावित हुए लोगों का क्या हाल है ?ऑफिस की पार्टी के चक्कर में ,माँ की -पिता की दवा लाने की फुर्सत जिस कौम के पास नहीं ,उसने यदि आप का नाम नहीं सुना तो क्या गुनाह हो गया। फिर आशाराम बापू के छींकने तक की खबर जो मीडिया घंटों चैनल पर दिखाता है ,उसने आज तक कभी आप पर ध्यान देने की कृपा नहीं करी,तो हमें दोष क्यों।
सच कहूँ मित्रों ?मैंने भी सत्यार्थी जी का नाम पहले नहीं सुना था। किन्तु इसके लिए मैं इन दिनों में कई बार ग्लानि से भरकर खुद को कोस चुका हूँ। वास्तव में हम लोग खुद को ही छलकर एक झूठे माहौल में जीने के आदि हो चुके हैं। आत्मकेंद्रित होकर हम मात्र उसके बारे में ही सोचना जानना चाहते हैं जो किसी प्रकार हमारे लिए कोई लाभ के अवसर पैदा कर सकता है। वरना हमारी बला से कौन जीता है ,कौन मरता है ,ये जानने की न हमारी तबियत होती है न हमारे पास समय है। हम बहुत गफलत के माहौल में जी रहे हैं दोस्तों। ये रास्ता आगे हमें कहाँ ले जाकर छोड़ेगा ,ये सोचकर भी मैं थर्रा जाता हूँ। अपने बच्चों में attitude देखकर हम खुश हो रहे हैं ,छोटी आयु में उन्हें गाडी -फ़ोन -इंटरनेट देकर खुद को फॉरवर्ड होने का जो भ्रम हम पाल रहे हैं ,यही एक दिन हमें खून के आंसू रुलाएगा ,ये तय है।
संसार के बहुत लोगों को हमारी आवश्यकता है। अपना पेट तो जानवर भी भरता है ,अपने घर की देखभाल तो जंगली जानवर भी करता है। अपने बच्चों को दाना तो एक छोटी सी चिड़िया भी खिला देती है। अनपढ़ होकर और कभी विदेश न जाकर भी जानवर तक कई प्रकार के करतब सर्कस में दिखा सकता है ,फिर हम किस लिए प्रकृति की श्रेष्ट रचना हुए ,ये समझ से बाहर है।
समय है ,चेतिए और बदलिये स्वयं को। ये चारदीवारी हमारा घर नहीं है ,ये तो मात्र हमारे रहने का कमरा है। घर तो समस्त संसार है। दूर बसे हुए लाचार मजबूर लोग भी हमारे सम्बन्धी हैं। कल हमने भी बुजुर्ग होना है। बाढ़ -भूकम्प हमें भी एक झटके में राजा से रंक बना सकता है। बिना बताये ह्रदय की एक धड़कन चुटकी बजाकर हमारे कामदेव से रूप को एक तरफ़ा लकवा मार कर बदसूरत कर सकती है। कोई सा भी जहाज -रेल -कार एक्सीडेंट,सालों जिम में पसीना बहाकर सुडौल बनाये हमारे इस शरीर की धज्जियाँ उड़ा सकता है। सहज बनिये ,अपने आस पास नजर रखिये ,क्या पता कोई आपकी सहायता के लिए टकटकी लगाये हो ?स्वयं से बाहर निकालिये… फिर कभी न पूछना पड़े ……कौन कैलाश सत्यार्थी ?