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कई बार पाठकों ने अनुरोध किया है की आप ग्रहण दोष पर भी कुछ कहें .इसी क्रम में आज कुछ चर्चा करते हैं .सामान्यतः ग्रहण का शाब्दिक अर्थ है अपनाना ,धारण करना ,मान जाना आदि .ज्योतिष में जब इसका उल्लेख आता है तो सामान्य रूप से हम इसे सूर्य व चन्द्र देव का किसी प्रकार से राहु व केतु से प्रभावित होना मानते हैं . .पौराणिक कथाओं के अनुसार अमृत के बंटवारे के समय एक दानव धोखे से अमृत का पान कर गया .सूर्य व चन्द्र की दृष्टी उस पर पड़ी और उन्होंने मोहिनी रूप धरे विष्णु जी को संकेत कर दिया ,जिन्होंने तत्काल अपने चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया .इस प्रकार राहु व केतु दो आकृतियों का जन्म हो गया . अब राहु व केतु के बारे में एक नयी दृष्टी से सोचने का प्रयास करें .राहु इस क्रम में वो ग्रह बन जाता है जिस के पास मात्र सिर है ,व केतु वह जिसके अधिकार में मात्र धड़ है .
कई बार पाठकों ने अनुरोध किया है की आप ग्रहण दोष पर भी कुछ कहें .इसी क्रम में आज कुछ चर्चा करते हैं .सामान्यतः ग्रहण का शाब्दिक अर्थ है अपनाना ,धारण करना ,मान जाना आदि .ज्योतिष में जब इसका उल्लेख आता है तो सामान्य रूप से हम इसे सूर्य व चन्द्र देव का किसी प्रकार से राहु व केतु से प्रभावित होना मानते हैं . .पौराणिक कथाओं के अनुसार अमृत के बंटवारे के समय एक दानव धोखे से अमृत का पान कर गया .सूर्य व चन्द्र की दृष्टी उस पर पड़ी और उन्होंने मोहिनी रूप धरे विष्णु जी को संकेत कर दिया ,जिन्होंने तत्काल अपने चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया .इस प्रकार राहु व केतु दो आकृतियों का जन्म हो गया . अब राहु व केतु के बारे में एक नयी दृष्टी से सोचने का प्रयास करें .राहु इस क्रम में वो ग्रह बन जाता है जिस के पास मात्र सिर है ,व केतु वह जिसके अधिकार में मात्र धड़ है .
अब ग्रहण क्या होता है ?राहु व केतु का सूर्य या चन्द्र के साथ युति करना आमतौर पर ग्रहण मान लिया जाता है .किन्तु वास्तव में सूर्य ग्रहण मात्र राहु से बनता है व चन्द्र ग्रहण केतु द्वारा .ज्योतिष में बड़े जोर शोर से इसकी चर्चा होती है .बिना सोचे समझे इस दोष के निवारण बताये जाने लगते हैं .बिना यह जाने की ग्रहण दोष बन रहा है तो किस स्तर का और वह क्या हानि जातक के जीवन में दे रहा है या दे सकता है .बात अगर आकड़ों की करें तो राहु केतु एक राशि का भोग १८ महीनो तक करते हैं .सूर्य एक माह एक राशि पर रहते हैं .इस हिसाब से वर्ष भर में जब जब सूर्य राहु व केतु एक साथ पूरा एक एक महीना रहेंगे तब तब उस समय विशेष में जन्मे जातकों की कुंडली ग्रहण दोष से पीड़ित होगी .इसी में चंद्रमा को भी जोड़ लें तो एक माह में लगभग चन्द्र पांच दिन ग्रहण दोष बनायेंगे .वर्ष भर में साठ दिन हो गए .यानी कुल मिलाकर वर्ष भर में चार महीने तो ग्रहण दोष हो ही जाता है .यानी दुनिया की एक तिहाई आबादी ग्रहण दोष से पीड़ित है .अब कई ज्योतिषियों द्वारा राहु केतु की दृष्टि भी सूर्य चन्द्र पर हो तो ग्रहण दोष होता है .हम जानते हैं की राहु केतु अपने स्थान से पांच सात व नौवीं दृष्टि रखते हैं .यानी आधे से अधिक आबादी ग्रहण दोष से पीड़ित है .अब ये आंकड़ा कम से कम मुझे तो विश्वसनीय नहीं लगता भैय्या .इसी लिए फिर से स्पष्ट कर दूं की मेरी नजर में ग्रहण दोष वहीँ तक है जहाँ राहु सूर्य से युति कर रहे हैं व केतु चंद्रमा से .इस में भी जब दोनों ग्रह एक ही अंश -कला -विकला पर हैं तब ही उस समय विशेष पर जन्म लेने वाला जातक वास्तव में ग्रहण दोष से पीड़ित है ,और इस टर्मिनोलॉजी के अनुसार संसार के लगभग दस प्रतिशत से कम जातक ही ग्रहण दोष का कुफल भोगते हैं .हाँ आंकड़ा अब मेरी पसंद का बन रहा है. अन्य प्रकार की युतियाँ कुछ असर डाल सकती है जिनके बारे में आगे जिक्र करूँगा।किन्तु किसी भी भ्रमित करने वाले ज्योतिषी से सावधान रहें जो ग्रहण दोष के नाम पर आपको ठग रहा है .दोष है तो उपाय अवश्य है किन्तु यह बहुत संयम के साथ करने वाला कार्य है .मात्र तीस सेकंड में टी .वी पर बिना आपकी कुंडली देखे ग्रहण दोष सम्बन्धी यंत्र आपको बेचने वाले ठगों से सचेत रहें ,शब्दों पर पाठकों से थोडा रिआयत चाहूँगा ,बेचने वाले नहीं अपितु भेड़ने वाले महा ठगों से बचना भैय्या .एक पाठक का पैसा भी बचा तो जो भी प्रयास आज तक ब्लॉग के जरिये कर रहा हूँ ,समझूंगा काम आया . जैसा की हमें ज्ञात है सूर्य हमारी कार्य करने की क्षमता का ग्रह है,हमारे सम्मान ,हमारी प्रगति का कारक है .राहु के साथ जब भी यह ग्रहण दोष बनाता है तो देखिये इसके क्या परिणाम होते हैं .राहु जाहिर रूप से बिना धड का ग्रह है ,जिस के पास स्वाभाविक रूप से दिमाग का विस्तार है .यह सोच सकता है,सीमाओं के पार सोच सकता है .बिना किसी हद के क्योंकि यह बादल है ..जिस कुंडली में यह सूर्य को प्रभावित करता है वहाँ जातक बिना कोई सार्थक प्रयास किये ,कल्पनाओं के घोड़े पर सवार रहता है .बार बार अपनी बुद्धि बदलता है .आगे बढने के लिए हजारों तरह की तरकीबों को आजमाता है किन्तु एक बार भी सार्थक पहल उस कार्य के लिए नहीं करता, कर ही नहीं पाता क्योंकि प्लान को मूर्त रूप देने वाला धड उसके पास नहीं है .अब वह खिसियाने लगता है .पैतृक धन बेमतलब के कामों में लगाने लगता है .आगे बड़ने की तीव्र लालसा के कारण चारों तरफ हाथ डालने लगता है और इस कारण किसी भी कार्य को पूरा ही नहीं कर पाता .हाथ में लिए गए कार्य को (किसी भी कारण) पूरा नहीं कर पाता ,जिस कारण कई बार अदालत आदि के चक्कर उसे काटने पड़ते हैं .सूर्य की सोने जैसी चमक होते हुए भी धूम्रवर्णी राहु के कारण उसकी काबिलियत समाज के सामने मात्र लोहे की रह जाती है. उसकी क्षमताओं का उचित मूल्यांकन नहीं हो पाता .अब अपनी इसी आग को दिल में लिए वह इधर उधर झगड़ने लगता है.पूर्व दिशा उसके लिए शुभ समाचारों को बाधित कर देती है .पिता से उसका मतभेद बढने लगता है .स्वयं को लाख साबित करने की कोशिश भी उसे परिवार की निगाह में सम्मान का हक़दार नहीं होने देती .घर बाहर दोनों जगह उसकी विश्वसनीयता पर आंच आने लगती है .वहीँ दूसरी और केतु (जिस के पास सिर नहीं है ) से सूर्य की युति होने पर जातक बिना सोचे समझे कार्य करने लगता है .यहां वहां मारा मारा फिरता है .बिना लाभ हानि की गणना किये कामों में स्वयं को उलझा देता है .लोगों के बहकावे में तुरंत आ जाता है . मित्र ही उसका बेवक़ूफ़ बनाने लगते हैं
इसी प्रकार जब चंद्रमा की युति राहु या केतु से हो जाती है तो जातक लोगों से छुपाकर अपनी दिनचर्या में काम करने लगता है . किसी पर भी विश्वास करना उसके लिए भारी हो जाता है .मन में सदा शंका लिए ऐसा जातक कभी डाक्टरों तो कभी पण्डे पुजारियों के चक्कर काटने लगता है .अपने पेट के अन्दर हर वक्त उसे जलन या वायु गोला फंसता हुआ लगता हैं .डर -घबराहट ,बेचैनी हर पल उसे घेरे रहती है .हर पल किसी अनिष्ट की आशंका से उसका ह्रदय कांपता रहता है .भावनाओं से सम्बंधित ,मनोविज्ञान से सम्बंधित ,चक्कर व अन्य किसी प्रकार के रोग इसी योग के कारण माने जाते हैं . चंद्रमा यदि अधिक दूषित हो जाता है तो मिर्गी ,पागलपन ,डिप्रेसन,आत्महत्या आदि के कारकों का जन्म होने लगता हैं .चंद्रमा भावनाओं का प्रतिनिधि ग्रह होता है .इसकी राहु से युति जातक को अपराधिक प्रवृति देने में सक्षम होती है ,विशेष रूप से ऐसे अपराध जिसमें क्षणिक उग्र मानसिकता कारक बनती है . जैसे किसी को जान से मार देना , लूटपाट करना ,बलात्कार आदि .वहीँ केतु से युति डर के साथ किये अपराधों को जन्म देती है . जैसे छोटी मोटी चोरी .ये कार्य छुप कर होते है,किन्तु पहले वाले गुनाह बस भावेश में खुले आम हो जाते हैं ,उनके लिए किसी ख़ास नियम की जरुरत नहीं होती .यही भावनाओं के ग्रह चन्द्र के साथ राहु -केतु की युति का फर्क होता है. ध्यान दीजिये की राहु आद्रा -स्वाति -शतभिषा इन तीनो का आधिपत्य रखता है ,ये तीनो ही नक्षत्र स्वयं जातक के लिए ही चिंताएं प्रदान करते हैं किन्तु केतु से सम्बंधित नक्षत्र अश्विनी -मघा -मूल दूसरों के लिए भी भारी माने गए हैं .राहु चन्द्र की युति गुस्से का कारण बनती है तो चन्द्र - केतु जलन का कारण बनती है .(यहाँ कुंडली में लग्नेश की स्थिति व कारक होकर गुरु का लग्न को प्रभावित करना समीकरणों में फर्क उत्पन्न करने में सक्षम है).जिस जातक की कुंडली में दोनों ग्रह ग्रहण दोष बना रहे हों वो सामान्य जीवन व्यतीत नहीं कर पाता ,ये निश्चित है .कई उतार-चड़ाव अपने जीवन में उसे देखने होते हैं .मनुष्य जीवन के पहले दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रहों का दूषित होना वास्तव में दुखदायी हो जाता है .ध्यान दें की सूर्य -चन्द्र के आधिपत्य में एक एक ही राशि है व ये कभी वक्री नहीं होते . अर्थात हर जातक के जीवन में इनका एक निश्चित रोल होता है .अन्य ग्रह कारक- अकारक ,शुभ -अशुभ हो सकते हैं किन्तु सूर्य -चन्द्र सदा कारक व शुभ ही होते हैं .अतः इनका प्रभावित होना मनुष्य के लिए कई प्रकार की दुश्वारियों का कारण बनता है . अतः एक ज्योतिषी की जिम्मेदारी है की जब भी किसी कुंडली का अवलोकन करे तो इस दोष पर लापरवाही ना करे .उचित मार्गदर्शन द्वारा क्लाइंट को इस के उपचारों से परिचित कराये .किस दोष के कारण जातक को सदा जीवन में किन किन स्थितियों में क्या क्या सावधानियां रखनी हैं ताकि इस का बुरा प्रभाव कम से कम हो , इन बातों से परिचित कराये . कोशिश करूँगा की कभी भविष्य में इन योगों को कुंडलियों का उदाहरण देकर बताऊँ .....आशा है लेख आपको पसंद आएगा ..... नमस्कार ....
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एक बेबाक व्यक्तित्व, लेखनी पर नियंत्रण और ज्योतिष का सुलझा हुआ ज्ञान आपको भीड़ से पृथक करता है। कुछ पुस्तकों व स्वयंभू ज्ञाताओं के भ्रामक एवं उलझाने वाले 'ज्ञान' पर राइटसनशाइन है।
जवाब देंहटाएंग्रहण योग कुन्डली के किस भाव में है, क्या उसका भी कहीं अंतर होना चाहिये।
अतंहीन ज्ञान व उसकी पिपासा रखने वालों को मेरा प्रणाम्।
कुलदीप रोहिला
पंडित जी फलित ज्योतिष में राशी का ज्यादा महत्त्व हे या नक्षत्र का? यदि कोई सुभ गृह अपने उच्च या स्वय के राशी में होते पाप गृह के नक्षत्र में स्थित हो कैसा फल देगा सुभ या असुभ
जवाब देंहटाएंगुरूजी प्रणाम, गुरूजी ये लड़की अपने विवाह को लेकर बहुत चिंतित रहती हे बहुत प्रयास
जवाब देंहटाएंकरने का बाद भी कही रिश्ता तय नहीं हो प् रहा कृपया बताये विवाह का योग कब बनेगा.
नाम रेखा डोब: १७.१२१९८४ समय ५.०० पम डेल्ही
गुरूजी प्रणाम, गुरूजी ये लड़की अपने विवाह को लेकर बहुत चिंतित रहती हे बहुत प्रयास
जवाब देंहटाएंकरने का बाद भी कही रिश्ता तय नहीं हो प् रहा कृपया बताये विवाह का योग कब बनेगा.
नाम रेखा डोब: १७.१२१९८४ समय ५.०० पम डेल्ही
गुरूजी प्रणाम
जवाब देंहटाएंगुरूजी बहुत समय गुजर गया कोई पोस्ट नहीं आई !
आपके वजेसे ग्रहण दोष के बड़े में बोहोत ज्ञान प्राप्ती हुई. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंguru ji namaskar ,guru ji meri goverment job kab lagegi? DOB.17november 1979 TIME.09:03pm BIRTH PALACE.banda(u.p.)
जवाब देंहटाएंbahot acha ghyan diya dhanyad guruji
जवाब देंहटाएंbahot acha ghyan diya h apne sukriya
जवाब देंहटाएंनमस्ते पंडितजी मेरा नाम रूचि है मेरी जन्म तिथि 28/07/1980 समय 5:27 सुबह के समय मेरठ में हुआ है मेरे जन्म के समय भी ग्रहण था एक दिन पहले. कृपा करके मुझे कोई उपाय बताएँ और मेरा भविष्य भी क्यूंकी मेरा कर्क लग्न है आपका कर्क लग्न पर आलेख पढ़ा तो लगा शायद मेरे जीवन में क्या कुछ अच्छा होगा या नही.
जवाब देंहटाएंप्रश्न स्पष्ट नहीं है आपका
हटाएंपंडितजी मैं अपना भविष्य जानना चाहती हूँ. किसी ने मुझे बताया था की मेरी कुंडली में ग्रहण योग, केंद्रूम योग, और शनि मंगल की युति के कारण ही जीवन में सारे कष्ट हैं. मेरे पति के लिए भी मेरी कुंडली ठीक नही है. क्या इन दोषों का कोई उपाय होता है.
हटाएंफिर जब मैने आपका आर्टिकल पढ़ा ( कर्क लग्न एक अभिशाप ) तो मुझे लगा शायद ये सारे कष्ट इसी कारण हैं. मुझे भी अपनी लाइफ मैं कोई चीज़ बिना रुकावटों के नही मिली है. संतान तो शादी के 9 सालों के बाद भी नही है कर्ज़ा हमेशा रहता है मेरे ट्रीटमेंट पर भी बहुत पैसा खर्च होता है . प्लीस कृपा करके कोई उपाय बताइए.
राम का लग्न है, पंचम पर शनि की दृष्टि है तो सहज रूप से भला कहाँ संतान प्राप्त होती है। राम का चरित्र उठा कर पढ़ें ,विवाह के कितने वर्ष पश्चात उन्हें संतान की प्राप्ति हुई। आप कृत्रिम गर्भधारण द्वारा एक नहीं अपितु दो संतान प्राप्त कर सकती हैं । कुंडली वाकई प्रभावित है। लेकिन समस्याओं की मुख्य वजह जानना चाहती हैं ? .... … नहीं कहता ,जाने दीजिये … ....मानेंगी ही नहीं या कह देंगी कि शाश्त्र बेकार की वस्तु है। दोष लेकर आप जन्मी अवश्य थीं ,किन्तु आपके व्यवहार ने आपके आगे के रास्ते भी कंटीले कर दिए। हमारे कहने, हमारे सोचने ,हमारे व्यवहार से जो शक्तियां उत्पन्न होती हैं वही हमारे आगे के जीवन को तय करती हैं। शापित जन्म लेकर भी व्यवहार से राम सबके प्रिय थे ,अपने दिल पर हाथ रखकर कहें की क्या आपका व्यवहार ऐसा नहीं रहा की जाने अनजाने औरों का दिल ही दुखाती रही आप। उपाय नहीं बताऊंगा ,उस दिन ,उस आयु में जब वाकई आप पीछे मुड़कर ईमानदारी से अपना स्वयं का विवेचन कर पायीं ,तब मुझ से उपाय पूछियेगा। अभी बता भी देने से ,आपके कर भी देने से ,शरीर की नकारत्मक ऊर्जाओं के कारण कोई लाभ नहीं मिलेगा। जहाँ तक भविष्य का प्रश्न है ये विस्तार का प्रश्न है अतः खारिज करने योग्य है।
हटाएंpandit ji mera janam 5 dec 1971 ko rat 11.35minat me hua hi mujhe kon sa ston sut karega
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा पंडित जी की बिना किसी गहन अध्ययन के किसी भी ज्योतिषाचार्य जी को इस प्रकार की भविष्यवाणी नहीं करनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंमहोदय मुझे इस जन्म पत्रिका पर मार्गदर्शित करे। की इस कुंडली में ग्रहण दोष है अथवा नहीं।
25/09/1986
समय शाम 8 बजके 10 मिनिट
स्थान गुना मध्यप्रदेश।
कृपया मार्गदर्शन दे।
मेरा मेल आई डी है।
Visnam21@gmail.com
आंशिक रूप से ग्रहण दोष की कुंडली मानी जा सकती है ,जिसका पहले प्रभाव माँ के वंश अर्थात नाना पक्ष के लोगों पर पढ़ने के बाद आपके संतान व दाम्पत्य भाव पर पड़ना सम्भव है किन्तु यही दोष आपके लिए किसी कोटे के तहत सरकारी प्राप्त करने का कारण बनेगा,साथ ही लग्नेश का भाग्य भाव में होना संकेत देता है कि ग्रहण शान्ति का विधिवत पाठकेरलीय विधि से गंगा के तट पर योग्य ब्राह्मणो द्वारा करा लेने से आसानी से इस दोष से मुक्ति पाई जा सकती है ,चिंता की अधिक आवश्यकता नहीं है
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