मेरा जीवन साथी भला कैसा होगा ,क्या करता होगा ,ये सवाल कभी न कभी हर किसी
कन्या के दिमाग में अवश्य आता होगा।आइये देखते हैं की शाश्त्र भला इस विषय
पर क्या कहता है।लग्न से सप्तम भाव को विवाह से सम्बंधित भाव कहा जाता
है।मैं लग्न के हिसाब से आज ये बताने का प्रयास कर रहा हूँ की किस लग्न की
कन्या का जीवन साथी क्या खूबियाँ लिए हुआ हो सकता है। हालांकि ग्रहों की
अलग अलग अवस्थाओं की वजह से इसमें थोडा बहुत बदलाव संभव होता है ,किन्तु
फिर भी मूल सिद्धांत एक सामान ही होते हैं।
1. मेष लग्न की कन्या के सातवें भाव में शुक्र की वृष राशि होती है।अततः सामन्यतः कन्या का होने वाला जीवनसाथी हलके रंग ,थोड़ी लम्बी नाक,भारी शरीर,सुंदर आँखों का स्वामी व थोडा सा आराम तलब होता है।इसी के साथ यदि सप्तमेश की उपस्थिति दूसरे या बारहवें भाव में होती है तो वह कन्या से कम रूपवान किन्तु धनी हो सकता है। पारिवारिक जीवन सामान्य रहता है।
--शुक्र यदि 6 वें भाव में होता है तो पति कन्या को प्रयाप्त समय नहीं दे पाता है,परिणामस्वरूप दाम्पत्य जीवन बहुत अधिक सुखी नहीं हो पाता .
--शुक्र यदि 8 वें भाव मे हो तो जीवन साथी किसी ख़ास समस्या से ग्रस्त हो सकता है,दोनों में से किसी एक को किसी प्रकार का योन रोग हो सकता है।किन्तु से द्वितीय भाव में स्वराशी पर दृष्टी रखने के कारण जीवनसाथी धनवान अवश्य होता है।
--किसी भी त्रिकोण में शुक्र की उपस्थिति दाम्पत्य जीवन को मधुर बना देती है।
--सप्तमेश यदि शनि के साथ हो तो जीवन साथी रोगी या आयु में अधिक बढ़ा होना संभव होता है।अततः दांपत्य जीवन बहुत अधिक मधुर नहीं कहा जा सकता।किन्तु इस लग्न में शनि को दशमेश व आएश का दर्जा होता है अततः धन की कमी यहाँ देखने में नहीं आती।
--भाग्येश गुरु ,सूर्य या चन्द्र के साथ सप्तमेश शुक्र की युति होने से जीवन साथी सदाचारी व चरित्रवान होता है,अगर यह युति आठवें भाव में हो तो कन्या का अपने जीवन साथी पर पूर्ण अधिकार रहता है।
-- 6-7-8 वें भाव में यदि पाप ग्रह हों तो दाम्पत्य जीवन में बिखराव की स्थिति आने के संकेत मिलते हैं,अततः ऐसे में आवश्यक है की विवाह पूर्व कुंडली मिलान सही प्रकार से हो व विवाह के बाद भी आपसी तालमेल ठीक रखा जाय।
--कन्या के सातवें भाव में यदि केतु हों या गुरु के साथ कहीं भी केतु की युति हो तो विवाह के बाद कन्या को चाहिए की अपने पूर्व के किसी भी पुरुष मित्र से संपर्क न रखे।न ही घर में किसी के आने जाने का सिलसिला बने,क्योंकि ऐसे में जीवनसाथी को बेवजह शक शुबहा होता है व आपसी सम्बन्ध कमजोर हो जाता है। अततः किसी भी प्रकार की गैरजिम्मेदाराना हरकत से बचना शुभ रहता है।
-- लग्न ,दशम या एकादश भाव में शुक्र के होने से जीवनसाथी अच्छे व्यवसाय का मालिक होता है।कन्या का भाग्योदय विवाह के बाद ही होता है किन्तु ऐसी अवस्था में कन्या को पति के बहुत अधिक सानिध्य की आस नहीं करनी चाहिए।
--इसके अलावा किसी भी कुंडली में कन्या के लिए गुरु की स्थिति भी सही होना आवश्यक होता है।वहीँ 8 वें भाव के स्वामी पर भी नजर डालना आवश्यक है।सातवां भाव जहाँ पति के सुख का भाव होता है वहीँ आठवां भाव पति से सुख के रूप में देखा जाता है।
समय की सीमाओं के कारण आज इतना ही।व्यस्तताओं के कारण नियमित ब्लॉग नहीं लिख पा रहा हूँ।किन्तु फिर भी ब्लॉग के जरिये पूछे जाने वाले सवालों का जवाब तुरंत ही देने का प्रयास करता हूँ।अपने ब्लॉग के नियमित पाठकों व सदस्यों के लिए मेरी सेवाएं सदा हाजिर हैं .भविष्य में कोशिश करूँगा की इसी क्रम में वृष लग्न से सम्बंधित बातों पर प्रकाश डालें।
1. मेष लग्न की कन्या के सातवें भाव में शुक्र की वृष राशि होती है।अततः सामन्यतः कन्या का होने वाला जीवनसाथी हलके रंग ,थोड़ी लम्बी नाक,भारी शरीर,सुंदर आँखों का स्वामी व थोडा सा आराम तलब होता है।इसी के साथ यदि सप्तमेश की उपस्थिति दूसरे या बारहवें भाव में होती है तो वह कन्या से कम रूपवान किन्तु धनी हो सकता है। पारिवारिक जीवन सामान्य रहता है।
--शुक्र यदि 6 वें भाव में होता है तो पति कन्या को प्रयाप्त समय नहीं दे पाता है,परिणामस्वरूप दाम्पत्य जीवन बहुत अधिक सुखी नहीं हो पाता .
--शुक्र यदि 8 वें भाव मे हो तो जीवन साथी किसी ख़ास समस्या से ग्रस्त हो सकता है,दोनों में से किसी एक को किसी प्रकार का योन रोग हो सकता है।किन्तु से द्वितीय भाव में स्वराशी पर दृष्टी रखने के कारण जीवनसाथी धनवान अवश्य होता है।
--किसी भी त्रिकोण में शुक्र की उपस्थिति दाम्पत्य जीवन को मधुर बना देती है।
--सप्तमेश यदि शनि के साथ हो तो जीवन साथी रोगी या आयु में अधिक बढ़ा होना संभव होता है।अततः दांपत्य जीवन बहुत अधिक मधुर नहीं कहा जा सकता।किन्तु इस लग्न में शनि को दशमेश व आएश का दर्जा होता है अततः धन की कमी यहाँ देखने में नहीं आती।
--भाग्येश गुरु ,सूर्य या चन्द्र के साथ सप्तमेश शुक्र की युति होने से जीवन साथी सदाचारी व चरित्रवान होता है,अगर यह युति आठवें भाव में हो तो कन्या का अपने जीवन साथी पर पूर्ण अधिकार रहता है।
-- 6-7-8 वें भाव में यदि पाप ग्रह हों तो दाम्पत्य जीवन में बिखराव की स्थिति आने के संकेत मिलते हैं,अततः ऐसे में आवश्यक है की विवाह पूर्व कुंडली मिलान सही प्रकार से हो व विवाह के बाद भी आपसी तालमेल ठीक रखा जाय।
--कन्या के सातवें भाव में यदि केतु हों या गुरु के साथ कहीं भी केतु की युति हो तो विवाह के बाद कन्या को चाहिए की अपने पूर्व के किसी भी पुरुष मित्र से संपर्क न रखे।न ही घर में किसी के आने जाने का सिलसिला बने,क्योंकि ऐसे में जीवनसाथी को बेवजह शक शुबहा होता है व आपसी सम्बन्ध कमजोर हो जाता है। अततः किसी भी प्रकार की गैरजिम्मेदाराना हरकत से बचना शुभ रहता है।
-- लग्न ,दशम या एकादश भाव में शुक्र के होने से जीवनसाथी अच्छे व्यवसाय का मालिक होता है।कन्या का भाग्योदय विवाह के बाद ही होता है किन्तु ऐसी अवस्था में कन्या को पति के बहुत अधिक सानिध्य की आस नहीं करनी चाहिए।
--इसके अलावा किसी भी कुंडली में कन्या के लिए गुरु की स्थिति भी सही होना आवश्यक होता है।वहीँ 8 वें भाव के स्वामी पर भी नजर डालना आवश्यक है।सातवां भाव जहाँ पति के सुख का भाव होता है वहीँ आठवां भाव पति से सुख के रूप में देखा जाता है।
समय की सीमाओं के कारण आज इतना ही।व्यस्तताओं के कारण नियमित ब्लॉग नहीं लिख पा रहा हूँ।किन्तु फिर भी ब्लॉग के जरिये पूछे जाने वाले सवालों का जवाब तुरंत ही देने का प्रयास करता हूँ।अपने ब्लॉग के नियमित पाठकों व सदस्यों के लिए मेरी सेवाएं सदा हाजिर हैं .भविष्य में कोशिश करूँगा की इसी क्रम में वृष लग्न से सम्बंधित बातों पर प्रकाश डालें।
धन्यवाद सर जी आपने काफी इतनी सुंदर जानकारी देने के लिए ..
जवाब देंहटाएंजैन जी को धन्यवाद.
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