अपने कई बुजुर्गों से सुना व कई जगह लिखा हुआ पढ़ा होगा की भादों की शुक्ल
चतुर्थी का चंद्रमा देखना निषेध होता है.आसमान में चमकते चतुर्थी के
चंद्रमा को देखना इस दिन वर्जित माना जाता है.क्या कारण है की जिस चंद्रमा
की उपासना को शास्त्रों में इतना महत्त्व दिया गया है,उसे ही देखने भर से
दोष माना जाता है. कहा जाता है की इस दिन जो भी चन्द्र को देख लेता है उस
पर जीवन में चोरी का झूठा आरोप लगता है.पौराणिक रूप से जो कथा सुनने में
आती है उसके अनुसार श्री कृष्ण पर इस दिन स्मयन्तक मणि चुराने का झूठा आरोप
लगा था.बाद में अपने प्रयासों से उन्होंने इस आरोप को गलत साबित कर दिया
था,किन्तु जीवन्पर्यन्त्र उन्हें अपने ऊपर लगे इस आरोप का दुःख टीसता रहा.
सूर्यदेव द्वारा राजा सत्राजित को उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर यह मणि दी गयी थी.जिसके बारे में प्रसिद्ध था की इस मणि से सोने निकलता था व जिस राजा के पास यह होती थी उसके राज्य में प्रजा निरोग व सुखी होती थी.यादवों की दशा को सुधारने के लिए कृष्ण ने सत्राजित से यह मणि यादवों के सबसे बड़े राजा उग्रसेन को देने की प्रार्थना की.स्वयं को ही यादवों का बड़ा राजा मानने वाले सत्राजित ने इस प्रार्थना को ठुकरा दिया.इस डर से की कहीं कृष्ण इस मणि को चोरी न करा दें,उसने अपने भाई प्रसेनजित को इस मणि के साथ जंगल भेज दिया और स्वयं मणि के चोरी होने की खबर फैला दी.चोरी का आरोप उसने भगवान पर मढ़ दिया.बाद में सत्यभामा की सहायता से कृष्ण ने वो मणि प्राप्त कर इस आरोप से स्वयं को मुक्त किया.जिस दिन कृष्ण पर चोरी का आरोप लगा उस दिन भादों के शुक्ल की चतुर्थी तिथि थी.इस कारण इस दिन चंद्रमा को निहारना वर्जित कहा गया है.यह तो हुआ धार्मिक पक्ष.अब ज्योतिषीय दृष्टि से कहने का प्रयास करूँ तो इस दिन सामान्यतः चंद्रमा तुला राशि के चित्रा व स्वाति नक्षत्र में भ्रमण करता है वहीँ सामान्यतः सूर्य की उपस्तिथि स्वयं की राशि में होती है.हम सब जानते हैं की चंद्रमा का स्वयं का कोई प्रकाश नहीं होता.यह सूर्यदेव के प्रकाश से दैपीयमान है.
सूर्य देव असंख्य गैसों से परिपूर्ण हैं.जिनमे से कुछ मानव जाती के लिए लाभ दायक व कुछ हानिकारक होती हैं.तुला सूर्य की नीच राशि मानी गयी है.कारण इस राशि में अपने भ्रमण के कुछ अंशों में सूर्य अपनी जहरीली गैसों व नकारात्मक उर्जा को प्रेषित करते हैं.अब इस तिथि को गोचर में अपने कोणों के प्रभावस्वरूप चंद्रमा सूर्य के उस हिस्से( ३६ डिग्री -४८ डिग्री ) के सामने आ जाते हैं जो सर्वाधिक नकारात्मक गैसों व उर्जाओं का दाता है. छत्तीस का आंकड़ा होना सुना ही होगा आपने.... इस कारण चंद्रमा इन जहरीली गैसों के प्रभाव से संक्रमित हो जाते हैं एवम इस दिन चंद्रमा को निहारने से उसकी रश्मियों के द्वारा यह नकारात्मक उर्जा व गैसों का प्रभाव उस व्यक्ति तक भी पहुँचने का भय बना रहता है जो चंद्रमा को देखता है. किन्तु इस तिथि से दो दिन पूर्व यानि द्वितीय तिथि को जो चन्द्रमा के दर्शन कर लेता है जिस कारण उसे कोई दोष नहीं लगता.साफ़ कारण है की इस दिन चंद्रमा उन नाकारात्मक उर्जाओं के विपरीत सूर्य से मिलने वाली शक्ति की सहायता से अपनी सर्वाधिक सकारात्मक रश्मियों को प्रेषित करता है.
भारतीय ज्योतिष सदा से ही पूर्णतः प्रमाणिक एवम वैज्ञानिक शाश्त्र है.शिक्षा के प्रसार की कमी होने के कारण इस शाश्त्र को कथाओं के माध्यम से कहने का प्रयास ऋषियों द्वारा हुआ.उद्देश्य मात्र मानव जाती की भलाई ही था.समस्या यह है की हम मात्र पुराणी कथाओं के आधार पर ही बात करते हैं किन्तु स्वयं की बुद्धि से जरा भी इसका वास्तविक पहलु जानने का प्रयास नहीं करते और इसे अंधविश्वास ठहराने लगते हैं.
सूर्यदेव द्वारा राजा सत्राजित को उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर यह मणि दी गयी थी.जिसके बारे में प्रसिद्ध था की इस मणि से सोने निकलता था व जिस राजा के पास यह होती थी उसके राज्य में प्रजा निरोग व सुखी होती थी.यादवों की दशा को सुधारने के लिए कृष्ण ने सत्राजित से यह मणि यादवों के सबसे बड़े राजा उग्रसेन को देने की प्रार्थना की.स्वयं को ही यादवों का बड़ा राजा मानने वाले सत्राजित ने इस प्रार्थना को ठुकरा दिया.इस डर से की कहीं कृष्ण इस मणि को चोरी न करा दें,उसने अपने भाई प्रसेनजित को इस मणि के साथ जंगल भेज दिया और स्वयं मणि के चोरी होने की खबर फैला दी.चोरी का आरोप उसने भगवान पर मढ़ दिया.बाद में सत्यभामा की सहायता से कृष्ण ने वो मणि प्राप्त कर इस आरोप से स्वयं को मुक्त किया.जिस दिन कृष्ण पर चोरी का आरोप लगा उस दिन भादों के शुक्ल की चतुर्थी तिथि थी.इस कारण इस दिन चंद्रमा को निहारना वर्जित कहा गया है.यह तो हुआ धार्मिक पक्ष.अब ज्योतिषीय दृष्टि से कहने का प्रयास करूँ तो इस दिन सामान्यतः चंद्रमा तुला राशि के चित्रा व स्वाति नक्षत्र में भ्रमण करता है वहीँ सामान्यतः सूर्य की उपस्तिथि स्वयं की राशि में होती है.हम सब जानते हैं की चंद्रमा का स्वयं का कोई प्रकाश नहीं होता.यह सूर्यदेव के प्रकाश से दैपीयमान है.
सूर्य देव असंख्य गैसों से परिपूर्ण हैं.जिनमे से कुछ मानव जाती के लिए लाभ दायक व कुछ हानिकारक होती हैं.तुला सूर्य की नीच राशि मानी गयी है.कारण इस राशि में अपने भ्रमण के कुछ अंशों में सूर्य अपनी जहरीली गैसों व नकारात्मक उर्जा को प्रेषित करते हैं.अब इस तिथि को गोचर में अपने कोणों के प्रभावस्वरूप चंद्रमा सूर्य के उस हिस्से( ३६ डिग्री -४८ डिग्री ) के सामने आ जाते हैं जो सर्वाधिक नकारात्मक गैसों व उर्जाओं का दाता है. छत्तीस का आंकड़ा होना सुना ही होगा आपने.... इस कारण चंद्रमा इन जहरीली गैसों के प्रभाव से संक्रमित हो जाते हैं एवम इस दिन चंद्रमा को निहारने से उसकी रश्मियों के द्वारा यह नकारात्मक उर्जा व गैसों का प्रभाव उस व्यक्ति तक भी पहुँचने का भय बना रहता है जो चंद्रमा को देखता है. किन्तु इस तिथि से दो दिन पूर्व यानि द्वितीय तिथि को जो चन्द्रमा के दर्शन कर लेता है जिस कारण उसे कोई दोष नहीं लगता.साफ़ कारण है की इस दिन चंद्रमा उन नाकारात्मक उर्जाओं के विपरीत सूर्य से मिलने वाली शक्ति की सहायता से अपनी सर्वाधिक सकारात्मक रश्मियों को प्रेषित करता है.
भारतीय ज्योतिष सदा से ही पूर्णतः प्रमाणिक एवम वैज्ञानिक शाश्त्र है.शिक्षा के प्रसार की कमी होने के कारण इस शाश्त्र को कथाओं के माध्यम से कहने का प्रयास ऋषियों द्वारा हुआ.उद्देश्य मात्र मानव जाती की भलाई ही था.समस्या यह है की हम मात्र पुराणी कथाओं के आधार पर ही बात करते हैं किन्तु स्वयं की बुद्धि से जरा भी इसका वास्तविक पहलु जानने का प्रयास नहीं करते और इसे अंधविश्वास ठहराने लगते हैं.
aapse jo bhi is sambandh me jankari prapt hui hai vah sangrahniy hai .aage bhi aisee gyanvardhak prastutiyon se hame labhanvit kijiye ham aapke aabhari rahenge.
जवाब देंहटाएंलेख पसंद करने हेतु आभार ,शालिनी जी
हटाएंpanditji mai aap se milna chahti hu mai aap se kaise sampark karu,mai abhi bahut pareshan chal rahi hu
जवाब देंहटाएंआप जब चाहें ,मुझे फ़ोन,ब्लॉग ,मेल किसी भी प्रकार से संपर्क कर सकती हैं.मैं सदा सेवा हेतु प्रस्तुत हूँ.
हटाएंguru ji pranam apka lekh padhker mujhe kafi rochak batain maloom hui.
जवाब देंहटाएंapse ek prashn hai ki maine ramlila k ek tvserial me dekha tha ki bhagwan shri ram ne bhi apne vivah k paschat aise hi ek raat chand ko dekha tha jiske karan unhe vanvaas hua tha or vanvaas k baad unhone sita ji ko kisi or k kehne pr tyag diya tha. kya ye sahi hai.
जय हो आपकी मिंटू जी,श्री राम जी का जन्म त्रेता युग की बात है जबकि वासुदेव कृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था .अततः जिस सन्दर्भ में आप राम जी द्वारा चंद्रमा देखे जाने की बात कर रहे हैं वह मुझे ज्ञात नहीं .। किन्तु जहाँ तक सीता जी को वन भेजने की बात है यह अलग अलग कारणों से होना संभव है।जैसे जिसकी विचारधारा है,जैसा जिसने राम को समझा -जाना वैसा उत्तर उसने पाया।एक आम धोबी की भी इतनी हिम्मत हुई की राजा के ऊपर ऊँगली उठाकर वापस अपने काम पर लग गया।उसके बाद न उस धोबी का जिक्र कहीं आया न किसी ने उसे कुछ कहा,किन्तु उसके एक वाक्य ने राजतंत्र को अन्दर तक हिला दिया।यही तो था राजा राम का रामराज्य मिंटू जी।जहाँ कोई छोटा बड़ा नहीं था।सब को सामान अधिकार प्राप्त थे।विचारों की स्वतंत्रता के अधिकार का इतना ज्वलंत उदाहरण भला कहीं और देखने में आया है कभी ?अपने सुख की परवाह न कर एक मामूली नागरिक की बात का महत्त्व रखना मात्र चक्रपाणी के बस में ही है भैय्या .
हटाएंपंडित जी प्रणाम कन्या लग्न की कुंडली में कर्क का गुरु ५ अंश का एकादश भाव में वक्री हो तो फल क्या होगा
हटाएंpandit Ji ko namskar
जवाब देंहटाएंmeri dob 01-12-1982 time 5.15am kanpur(u.p.) tula lagn hai guru 2nd house me hai. or guru me guru ki mahadasha-anter dasha chal rahi h, abhi tak koi shubh result nahi dikh. rog or karj mila h, kya aage shubh result milega ya nahi