शनिवार, 29 सितंबर 2012

क्यों फल नहीं देते राजयोग.

ज्योतिष के क्षेत्र में अपने शरुआती दौर में कई बार शाश्त्रों में उल्लेखित किसी योग को जब किसी कुंडली में पाता था ,और उस कुंडली के जातक को साधारण अवस्था में देखता था तो सोच में पड़ जाता था.बाद में जब कई कुंडलियों को बांचने का सौभाग्य प्राप्त होने लगा तो यकीन मानिए एक ही योग को कई कई तरीकों से फलित होते देखा.दिमाग भन्ना जाता था कई दफा तो.
                   किन्तु समय के साथ साथ कुछ पॉइंट्स साफ़ होने लगे.आज बेहतर तरीके से जानता हूँ की कुंडली में मात्र किसी राज योग का होना ही उसके फलित होने की गारंटी नहीं है.अमूमन आज भी कई ज्योतिषियों को कुंडली में किसी योग को पाते ही फ़ौरन उस से सम्बंधित भविष्यवाणी करते देखता हूँ तो अफ़सोस होता है.जातक झूठी आस पर जीता है,और संभावित उपाय नहीं हो पाते..वास्तव में परंपरागत सूत्रों को दिमाग में रख कर भविष्यवाणी करने से कई बार गच्चा खाने की संभावनाएं बनी रहती हैं.जहाँ तक राजयोग की बात है ,बहुत कुछ निर्भर इस बात पर करता है की जन्म के समय महादशा किस ग्रह की थी. ,अपने शुरूआती दौर में मैं भी कई बार ऐसे सवालों में उलझा.पर बाद में ये अनुभव कर लिया(कई कुंडलियों के विश्लेषण के पश्चात )की जो ग्रह राजयोग बना रहा है जीवन में उस की दशा आ रही है या नहीं,और आ रही है तो किस आयु वर्ग में आ रही है सब कुछ निर्धारण इस आधार पर होता है.यदि सूर्य उच्च के हैं और किसी प्रकार का योग बना रहे हैं ,व जातक का जन्म मंगल की महादशा में हो रहा है ,तो बहुत संभव है की अपने जीवन काल में वह जातक सूर्य द्वारा बनने वाले  राजयोग का फल नहीं पायेगा.  दूसरी बात जो मैं समझ पाया वह ये  की  जन्म की शुरूआती महादशा यदि राजयोग में मुख्य बंनाने वाले ग्रह के  शत्रु ग्रह की है तो आधे से अधिक प्रभाव उस योग का वहीँ पर समाप्त हो जाता है. भले ही अब उस योग से सम्बंधित ग्रह की दशा जातक के जीवन में आये या नहीं.आप अपने किसी ऐसे मित्र के घर में गए जिसके यहाँ आम का बहुत बड़ा बगीचा था.किन्तु आप का वहां जाना नवम्बर के माह में हुआ तो अब उस आम के बगीचे का कोई महत्त्व नहीं रह जाता.आपका यह क्लेम करना की मुझे आम का सुख प्राप्त हो ,औचित्यहीन हो जाता है.वहीँ आपका एक दूसरा परिचित जो की वहां जून के महीने में गया होगा वह अपने मित्र के बगीचे के आमों का स्वाद ले कर आएगा.
                    
इसे एक और उदाहरण में लें की आप किसी ऐसे आदमी के घर जा रहे हैं  जिस के घर आम का बहुत बड़ा बगीचा है ,आम लगे हुए भी बहुत हैं,किन्तु वह व्यक्तिगत रूप से आपको पसंद नहीं करता बल्कि आपको अपना शत्रु ही समझता है,तो उन पेड़ पर लटके आमों का भला आपके लिए क्या अर्थ रह जाता है.वो आपको नहीं मिलने वाले.किन्तु मौसम आमों का तो चल ही रहा है तो अपने सामर्थ्यानुसार बाजार से आम खरीद कर खा सकते हैं किन्तु वहां आपको  जेब पर भी निर्भर रहना होगा.यानि जो मजा या मात्रा बगीचे के आमो से प्राप्त हो सकती थी वो खरीद कर नहीं हुई.आशा है आप सहमत होंगे.
 योग दो ग्रहों की युति से बनता है,अब जीवन में उस योग का फल इन्ही दो में से एक की दशा में प्राप्त होना होता है.इसे जानने का साधारण सा सूत्र बताता हूँ .इसे चार्ट द्वारा समझें.                                                                                         उच्च         स्व       मित्र
                                                              (५)          (४)       (३) 
                                                              नीच         शत्रु         सम
                                                               (-५)         (-४)        (-३)  
अर्थात मान लीजिये की कर्क लग्न में गजकेसरी योग बन रहा है,यहाँ गुरु अपनी उच्च राशि में हैं,यानि पांच अंक प्राप्त करते हैं ,साथ ही चंद्रमा गुरु के मित्र हैं तो गुरु को  तीन अंक और प्राप्त होते हैं,वहीँ दूसरी और चंद्रमा मात्र स्व राशि के होकर चार अंक प्राप्त करते हैं ,इस प्रकार समीकरण यूँ होता है... गुरु =८  व चंद्रमा =४ अंक.तो यह योग गुरु में चन्द्र के अंतर में फलित होगा.कुछ कम मात्रा का प्रभाव चंद्रमा में गुरु के अंतर में भी प्राप्त होगा.  अब अगर जातक के जीवन में गुरु की दशा नहीं आ रही है तो इस योग से जातक को बहुत अधिक आशा नहीं रखनी चाहिए.इसी प्रकार अन्य योगों की समीक्षा की जा सकती है.
                                                                     साथ ही ग्रहों का स्वयं के फलित होने का एक समय होता है.मंगल का समय काल सामान्यतः बीस से तीस वर्ष के मध्य होता है,अब यदि किसी के रूचक योग का फलित समय तीसरे वर्ष या पचासवें आयुवर्ष आ रहा है तो इस योग का भी अब कोई अर्थ नहीं रह जाता है.या कहें की किसी जातक को मालव्य योग का सुख तब मिलना है जब वह अपनी आयु के ८२ वें वर्ष में  है तो क्या इस योग का कोई औचित्य रह जाता है अब?  
                                                            कुंडली में  मात्र किसी योग का होना ही उस योग से सम्बंधित फल पा लेने की गारंटी नहीं है.कई कुंडलियों में सामान योग होते हुए भी उनके डिग्री ,अक्षांस ,देशांश ,वक्री ,मार्गी  से सम्बंधित आंकड़े यहाँ प्रभावित करते हैं.प्रधान मंत्री जी की गाडी का ड्राईवर भी उसी सरकारी वाहन का सुख भोग रहा है जिसका स्वयं प्रधानमन्त्री जी.एक ही सुख अलग अलग प्रभावों में है.थाने में एक सिपाही भी बैठा है,एक दारोगा भी व एक अधिकारी भी.सब लगभग एक ही योग के अलग अलग प्रभावों का सुख पाते है जिस प्रकार एक ही पेड़ में लगे आमों का आकार,स्वाद ,रंग अलग अलग होता है.साथ ही स्थान विशेष का भी अपना महत्त्व है.अफ्रीका के जंगलों में प्रबलतम राज योग का फल पाना अपनी जाति का मुखिया होना हो सकता है,किन्तु अमेरिका जैसे देश में अब उस मुखिया की कोई हैसियत नहीं होती.यहाँ आपका प्रबलतम राजयोग अपने फलित होने की दशा काल में आपको दुनिया का सबसे पावरफुल व्यक्ति बना सकता है.
                                                कहने का तात्पर्य यह है की किसी योग के फलित होने के लिए २०% उस योग का कुंडली में होना आवश्यक है,२०%पारिवारिक परिवेश महत्त्व रखता है,२०% आपका स्वयं का प्रयास,२०% आपसे जुड़े लोगों के ग्रहों का उस योग में योगदान,व २०% सामजिक दशा उसे प्रभावित करती है.दुनिया के सबसे छोटे देश का राजा होना भी राज योग है व दुनिया के सबसे बड़े देश का राजा होना भी राज योग है. अततः अब कभी भी जब अपनी कुंडली में किसी योग को लेकर भ्रमित हो रहे हों तो इन तथ्यों को अवश्य ध्यान दें...................आशा है आप सहमत होंगे.
                           शेष चर्चा फिर कभी आगे करेंगे.    

सोमवार, 3 सितंबर 2012

भगवान कृष्ण पर मिथ्या आरोप व भादों की शुक्ल चतुर्थी का चंद्रमा

अपने कई बुजुर्गों से सुना व कई जगह लिखा हुआ पढ़ा होगा की भादों की शुक्ल चतुर्थी का चंद्रमा देखना निषेध होता है.आसमान में चमकते चतुर्थी के चंद्रमा को देखना इस दिन वर्जित माना जाता है.क्या कारण है की जिस चंद्रमा की उपासना को शास्त्रों में इतना महत्त्व दिया गया है,उसे ही देखने भर से दोष माना जाता है.  कहा जाता है की इस दिन जो भी चन्द्र को देख लेता है उस पर जीवन में चोरी का झूठा आरोप लगता है.पौराणिक रूप से जो कथा सुनने में आती है उसके अनुसार श्री कृष्ण पर इस दिन स्मयन्तक मणि चुराने का झूठा आरोप लगा था.बाद में अपने प्रयासों  से उन्होंने इस आरोप को गलत साबित कर दिया था,किन्तु जीवन्पर्यन्त्र उन्हें अपने ऊपर लगे इस आरोप का दुःख टीसता रहा.
                                                              सूर्यदेव द्वारा राजा सत्राजित को उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर यह मणि दी गयी थी.जिसके बारे में प्रसिद्ध था की इस मणि से सोने निकलता था व जिस राजा के पास यह होती थी उसके राज्य में प्रजा निरोग व सुखी होती थी.यादवों की दशा को सुधारने के लिए कृष्ण ने सत्राजित से यह मणि यादवों के सबसे बड़े राजा उग्रसेन को देने की प्रार्थना की.स्वयं को ही यादवों का बड़ा राजा मानने वाले सत्राजित ने इस प्रार्थना को ठुकरा दिया.इस डर से की कहीं कृष्ण इस मणि को चोरी न करा दें,उसने अपने भाई प्रसेनजित   को इस मणि के साथ जंगल भेज दिया और स्वयं मणि के चोरी होने की खबर फैला दी.चोरी का आरोप उसने भगवान पर मढ़ दिया.बाद में सत्यभामा की सहायता से कृष्ण ने वो मणि प्राप्त कर इस आरोप से स्वयं को मुक्त किया.जिस दिन कृष्ण पर चोरी का आरोप लगा उस दिन भादों के शुक्ल की चतुर्थी तिथि थी.इस कारण इस दिन चंद्रमा को निहारना वर्जित कहा गया है.यह तो हुआ धार्मिक पक्ष.अब ज्योतिषीय दृष्टि से कहने का प्रयास करूँ तो इस दिन सामान्यतः चंद्रमा तुला राशि के चित्रा व स्वाति नक्षत्र में भ्रमण करता है वहीँ सामान्यतः सूर्य की उपस्तिथि स्वयं की राशि में होती है.हम सब जानते हैं की चंद्रमा का स्वयं का कोई प्रकाश नहीं होता.यह सूर्यदेव के प्रकाश से दैपीयमान है.
                                                  सूर्य देव असंख्य गैसों से परिपूर्ण हैं.जिनमे से कुछ मानव जाती के लिए लाभ दायक व कुछ हानिकारक होती हैं.तुला सूर्य की नीच राशि मानी गयी है.कारण इस राशि में अपने भ्रमण के कुछ अंशों में सूर्य अपनी जहरीली गैसों व नकारात्मक उर्जा को प्रेषित करते हैं.अब इस तिथि को गोचर में अपने  कोणों के प्रभावस्वरूप चंद्रमा सूर्य के उस हिस्से( ३६ डिग्री -४८ डिग्री ) के सामने आ जाते हैं जो सर्वाधिक नकारात्मक गैसों व उर्जाओं का दाता है. छत्तीस का आंकड़ा होना सुना ही होगा आपने....   इस कारण चंद्रमा इन जहरीली गैसों के प्रभाव से संक्रमित हो जाते हैं एवम इस दिन चंद्रमा को निहारने से उसकी रश्मियों के द्वारा यह नकारात्मक उर्जा व गैसों का प्रभाव उस व्यक्ति तक भी पहुँचने का भय बना रहता है जो चंद्रमा को देखता है.  किन्तु इस तिथि से दो दिन पूर्व यानि द्वितीय तिथि को जो चन्द्रमा के दर्शन कर लेता है जिस कारण उसे कोई दोष नहीं लगता.साफ़ कारण है की इस दिन चंद्रमा उन नाकारात्मक उर्जाओं के विपरीत सूर्य से मिलने वाली शक्ति  की सहायता से अपनी  सर्वाधिक सकारात्मक  रश्मियों को प्रेषित करता है.
                                               भारतीय ज्योतिष सदा से ही पूर्णतः प्रमाणिक एवम वैज्ञानिक शाश्त्र है.शिक्षा  के प्रसार की कमी होने के कारण इस शाश्त्र को कथाओं के माध्यम से कहने का प्रयास ऋषियों द्वारा हुआ.उद्देश्य मात्र मानव जाती की भलाई ही था.समस्या यह है की हम मात्र पुराणी कथाओं के आधार पर ही बात करते हैं किन्तु स्वयं की बुद्धि से जरा भी इसका वास्तविक पहलु जानने का प्रयास नहीं करते और इसे अंधविश्वास ठहराने लगते हैं.