जब एक पिता और एक ज्योतिषी आमने सामने हों तो दोनों में से किसी एक की विजय
की कामना करना उस शख्स के लिए कैसा धर्मसंकट उत्पन्न करता है जो स्वयं ही
होने वाला पिता है और स्वयं ही एक कर्ता ज्योतिषी,इसका एहसास परसों ०२
अगस्त की रात (अंग्रेजी मतानुसार ०३ अगस्त की सुबह)०४ बजकर १५ मिनट पर मुझे
हुआ.ह्रदय में बैठा पिता साधारण मनुष्य के सामान भावों से भरा स्वयं को
समझा रहा था की नहीं ऐसा कुछ नहीं होगा ,ईश्वर तेरे बच्चे की रक्षा
करेगा.किन्तु दिमाग पर हावी ज्योतिषी अपने अध्ययन व पढ़े हुए शास्त्र के आधार
पर दिल में बैठे पिता से कहता की यदि स्वयं साक्षात ब्रह्मा भी आ जाएँ तो
तेरी संतान की रक्षा नहीं कर सकते.
दो अगस्त की रात्री बारह बजकर दस मिनट पर मेरी धर्मपत्नी को प्रसव पीड़ा का आभास हुआ और पंद्रह मिनट बाद मैं उसे लेकर मेरे शहर के नामी मैटरनिटी सेंटर में उपस्थित था.प्रशिक्षित डाक्टरों ,नर्सों व सुविधाओं से भरपूर ये जगह अपने काम के लिए प्रसिद्ध है व कई बच्चों की किलकारियों से यहाँ का लेबर रूम गुंजायमान हुआ है.
रात के ढाई बजे डॉक्टर ने बताया की मेरी धर्मपत्नी को वास्तविक प्रसव पीड़ा होने लगी है (जिसे आम भाषा में पक्का दर्द भी कहते हैं )अततः उसे लेबर रूम में भेजा जा रहा है.मेरी माताजी जो मेरे साथ आई थीं वो लेबर रूम के बाहर बैठ गयीं व मैं सहज जिज्ञासा से अपनी कार की और लपका जिस में मेरा लैपटॉप रखा था.उस समय काल की जल्दी से मैंने कुंडली बनायीं.मेरी संतान मिथुन लग्न में धनिष्ठा नक्षत्र में जन्म लेने जा रही थी.मिथुन लग्न साढ़े चार बजे तक थी.कुंडली देखते ही दिमाग में बैठे ज्योतिषी ने कह दिया की यदि जन्म मिथुन लग्न में ही हो जाता है तो सब कुछ इतना सामान्य नहीं हो सकता जैसा दिखाई दे रहा है.चंद्रमा अष्टम में व सूर्य वक्री लग्नेश के साथ द्वितीय भाव में था.जीवन का पहला सूत्र थामने वाले दोनों ग्रह मारक स्थानों में विराजमान थे.व्ययेश शुक्र लग्न में, साँसों को नियंत्रित करने वाले देव गुरु द्वादश में व चतुर्थ में मंगल शनि की युति हो रही थी.अन्दर बैठा ज्योतिषी जानता था की चतुर्थ भाव में दो पाप ग्रहों की युति,व उन पर केन्द्रधिपति दोष से पीड़ित शत्रु राशि बैठे गुरु की दृष्टि श्वास सम्बन्धी समस्यों का कारण बनती है.उचित प्राण वायु न मिलने से ह्रदय काम करना बंद कर सकता है.अष्ठम में विराजे चंद्रमा को गुरु नीच राशि में देख रहा है. अन्दर बैठे ज्योतिषी ने अन्दर बैठे पिता को शंकित कर दिया.ज्योतिषी कह रहा था की योग शुभ नहीं हैं क्योंकि दशा भी मंगल में गुरु के अंतर की है(ज्योतिष के जानकार जानते है की मिथुन लग्न में मंगल में गुरु की अन्तर्दशा मारक होती है) किन्तु पिता इस सब बेकार की बात को मानने से इनकार कर रहा था.वो ज्योतिषी को परे धकेल रहा था .ज्योतिषी की दृष्टि नवमांश कुंडली पर पड़ी तो अन्दर बैठा ज्योतिषी और अधिक कन्फर्म हो गया.नहीं सब कुछ नोर्मल नहीं हो सकता.यदि नोर्मल है तो नोर्मल रहने वाला नहीं है. ज्योतिषी जितना ज्यादा कन्फर्म हो रहा था पिता उतना ही ज्यादा घबराने लगा था. खैर सब कुछ बंद कर वापस लेबर रूम की और दौड़ा.
सामने की और देखता हूँ तो दो औरतें व दो आदमी(जैसे सड़क किनारे रहने वाले बंजारे होते हैं) एक छोटी बच्ची को गोद में उठाकर इमरजेंसी वार्ड की और भागे जा रहे हैं.बच्ची शायद बेहोश थी.इमरजेंसी वार्ड व लेबर रूम एक साथ लगे हुए थे.मैं बाहर बैठी अपनी माताजी के पास पहुंचा और पूछा की क्या हुआ?इतने में इमरजेंसी का दरवाजा खुला और उन दो औरतों में से एक ने (जो शायद बच्ची की दादी रही हो) बाहर कदम रखा.कमर तक खुले हुए काले बाल,काला मोटा शरीर ,नंगे पैर और लाल आँखें.वो स्त्री साक्षात मृत्यु और संहार की देवी काली के सामान लग रही थी.सवाल जो की एक होने वाले पिता ने अपनी माँ से पूछा था,उसका जवाब माँ से पहले प्रकृति ने संकेत के द्वारा ज्योतिषी को दे दिया था.शकुन शाश्त्र के ज्ञाता इस संकेत का अर्थ तुरंत लगा सकने में सक्षम होते हैं.काली बलि मांगती है और उस पर रक्त का अभिषेक होता है.बाहर अँधेरा श्याह होता जा रहा था और पिता का दिल अनजानी आशंकाओं से डरने लगा था.
अचानक लेबर रूम का दरवाजा खुलता है और एक नर्स आकर बताती है की नोर्मल डिलीवरी होते होते अचानक बच्चा फंस गया है.वजन में भारी और सिर बड़ा होने के कारण डिलीवरी में दिक्कत आ रही है.तीन बजकर चालीस मिनट हो गए थे .मेरी माता जी घबराने लगी की सब कुछ नोर्मल हो रहा था तो अचानक क्या परेशानी आने लगी है अब.मैं उन्हें हिम्मत बंधाने लगा.दस मिनट बाद फिर एक डाक्टर बाहर आई और बोली की बच्चा फंस गया है और उसने अन्दर ही मल त्याग दिया है.आपरेशन की नौबत आ गयी है और अब बच्चे की माँ को भी खतरा बढ गया है(ज्योतिषी तुरंत सचेत हुआ,चतुर्थ में अष्ठामेश की मारक मंगल से युति व माता के नैसर्गिक ग्रह चन्द्रमाँ का स्वयं अष्ठम में चला जाना) नर्स आकर मुझ से आपरेशन की सहमती पर हस्ताक्षर करा कर ले गयी.
आपरेशन की तैयारी चल ही रही थी की चार बजकर सोलह मिनट पर स्वत: ही प्रसव हो गया.बेटा हुआ था किन्तु मृत.बच्चे के गले में नाल लिपट गयी थी जिस कारण वो सांस नहीं ले सका और अन्दर ही मल त्याग दिया.श्वांस के रास्ते वही मल उसके अन्दर चला गया,और उसका दम घुंट गया.उचित ऑक्सीजन न मिलने से ह्रदय ने काम करना बंद कर दिया और बालक मृत्यु का ग्रास बन गया था (ज्योतिषी फिर जागा.मंगल जो आहार नाली का सूचक भी है व ब्रहस्पति जो स्वशन क्रिया का कारक है ,दोनों ने मिलकर मेरे पुत्र को काल के हाथों सौंप दिया.)धर्मपत्नी की जान किसी तरह बच गयी.किन्तु मृत्यु के कारक शनि की लग्न पर दृष्टि कई हाथ पैर चला कर जीने का अंतिम प्रयास तक करने वाले मेरे पुत्र को आखिर में निगल गयी.
अन्दर जाकर अपने मृत पुत्र को देखा.क्या खूबसूरत था कैसे कहूँ ? जीवत रहता तो कामदेव का अवतार लगता.कितनी प्रभावी आँखें ,पलकें बंद होकर भी जिनकी चमक को भीतर नहीं थाम पा रही थीं. सुनहरे बाल जो रेशम के बने मालूम होते थे,शरीर जो सांस घुटने से नीला पड़ने के बावजूद अपने अंग्रेजों जैसी दूधिया रंगत का आभास करा रहा था.क्या लम्बाई ,कैसा रूप?कहते हैं की अपना बच्चा तो बंदरिया को भी प्यारा लगता है किन्तु कसम खाकर कह रहा हूँ बंधुओ ,वो वास्तव में बेमिसाल था. "बहुत खूबसूरत था मेरा बेटा", पिता ने कहा."होता क्यों नहीं लग्न में शुक्र जो विराजमान थे ,नवग्रहों में सबसे तेज चमकता सितारा ",ज्योतिषी ने जवाब दिया.पिता रो रहा था और ज्योतिषी अपने ज्ञान पर इतरा रहा था. शायद अपनी गणनाओं को सफल होते देख अन्दर ही अन्दर कहीं खुश भी हो रहा था.
एक पिता और एक ज्योतिषी की जंग में आखिर बाज़ी ज्योतिषी के हाथ रही.पिता खाली हाथ रह गया था.
मैदान मारकर विजयी गणक इतराता हुआ जा चुका है और पीछे मात्र अपने सीने में दर्द का तूफ़ान समेटे हुए युद्ध भूमि पर गिरा पिता रह गया है.ये तो नियम है की चाहे युद्ध हो,चाहे कोई प्रतिस्पर्धा ,चाहे कोई दौड़ ,एक हारता है तभी दूसरा जीतता है.किन्तु मैं जानना चाहता हूँ की इस खेल में मैं कहाँ रहा.दो जनों की इस प्रतियोगिता में किसी का ध्यान मेरी और नहीं गया.मेरा बच्चा मर गया पर मेरा ज्ञान जीत गया.मैं अपना दर्द किसी को नहीं बता पाया.मेरे ह्रदय पर क्या गुजरी न मेरे माता पिता समझ पाए,न मेरे भाई बहन ,न मेरी धर्मपत्नी और न ही मेरे ईष्ट मित्रगण. और अब इस पीड़ा को पता नहीं मेरी ब्लॉग बिरादरी के साथी समझ पायें या नहीं.
पर हाँ किसी को तो एहसास जरूर हुआ है.ये बारिश जो दो अगस्त की रात को शुरू हुई थी अभी तक अनवरत जारी है.मेरे गम में शरीक होकर कोई तो है जो लागातार रो रहा है.क्या मेरे सर्वप्रिय दादाजी जिनकी ही गोद में शायद मेरा पुत्र बैठ हुआ हो. एक सवाल जो रह रह कर ह्रदय में उतर आता है की मेडिकल साईंश की इतनी डिग्रियां पाने वाले डाक्टर्स ,इतने अभ्यस्त हाथ,लाखों रुपयों की मशीने भी मिलकर मेरे पुत्र को क्यों नहीं बचा सकीं.क्यों चाँद पर पहुँचने का दम भरने वाला विज्ञानं और ज्योतिष को अंधविश्वास व ज्योतिषियों को पाखंडी बताने वाले ये लोग बच्चे के साथ होने वाली जिस समस्या को दस मिनट पहले तक भी नहीं समझ पाए और सब कुछ नोर्मल होने का दावा करते रहे, उसे कैसे मेरे जैसा एक मामूली सा ज्योतिषी लगभग दो घंटे पहले भांप चुका था.लाखों रुपैये की मशीने समय रहते जो बता पाने में असमर्थ रही ग्रहों के योगों और प्रकृति के संदेशों से एक ज्योतिष शाश्त्र का तुच्छ सा जानकार उसकी भविष्यवाणी काफी पहले कर चुका था.तो क्या ज्योतिषी ठीक कहता था की साढ़े चार बजे लग्न बदल रहा था,मात्र चौदह मिनट मेरा पुत्र संघर्ष कर जाता तो काल के निर्मम हाथों से बच कर आज अपने पिता की गोद में खेल रहा होता.क्या वाकई कोई उपाय समय रहते कर देने से मेरे पुत्र के प्राण बच जाते.अब पिता हावी हो चुका है मेरे मानस पर अततः कोई जवाब नहीं सूझ सकता.आह कठोर हृदयी मृत्यु तुझे तनिक भी दया नहीं आई मेरे भाग्य पर.अब ज्योतिषी कही नहीं है आस पास दिलासा भरे वचन देने को .अब मात्र पिता है.जो भावुक है.आँखों में आनायास आता पानी ,उसे अंतिम गति देते समय जी भरकर उसका दीदार किये समय को मानो रोक देता है.कितनी सुन्दर आँखें जो सृष्टि का एक भी नजारा नहीं कर पायीं जो पलकों के पीछे बंद ही रह गयीं.कितने सुन्दर कान ,किन्तु बेचारा एक बार अपने लिए कैसा भी संबोधन नहीं सुन पाया.कितनी प्यारी हथेलियाँ ,पर एक बार भी जो अपने अभागे पिता के चेहरे का स्पर्श न कर सकीं. आवाज ...........आवाज पता नहीं कैसी रही होगी,क्योंकि वो बेचारा तो अपना प्रथम रुद्रन तक नहीं कर पाया. फिर मैं कहाँ से अंदाजा लगा पाऊं उस आवाज ?कैसी रही होगी उसकी आवाज? " बड़ी प्यारी रही होगी उसकी आवाज,और बड़ा सुरीला होता उसका कंठ".दूर से कहीं फिर अन्दर बैठे ज्योतिषी की पुकार सुनाई देती है मुझे. "कैसे कह सकते हो ऐसा "पिता सवाल करता है. "देखा नहीं बेवक़ूफ़ लग्न में शुक्र विराजमान था". ज्योतिषी का जवाब है
दो अगस्त की रात्री बारह बजकर दस मिनट पर मेरी धर्मपत्नी को प्रसव पीड़ा का आभास हुआ और पंद्रह मिनट बाद मैं उसे लेकर मेरे शहर के नामी मैटरनिटी सेंटर में उपस्थित था.प्रशिक्षित डाक्टरों ,नर्सों व सुविधाओं से भरपूर ये जगह अपने काम के लिए प्रसिद्ध है व कई बच्चों की किलकारियों से यहाँ का लेबर रूम गुंजायमान हुआ है.
रात के ढाई बजे डॉक्टर ने बताया की मेरी धर्मपत्नी को वास्तविक प्रसव पीड़ा होने लगी है (जिसे आम भाषा में पक्का दर्द भी कहते हैं )अततः उसे लेबर रूम में भेजा जा रहा है.मेरी माताजी जो मेरे साथ आई थीं वो लेबर रूम के बाहर बैठ गयीं व मैं सहज जिज्ञासा से अपनी कार की और लपका जिस में मेरा लैपटॉप रखा था.उस समय काल की जल्दी से मैंने कुंडली बनायीं.मेरी संतान मिथुन लग्न में धनिष्ठा नक्षत्र में जन्म लेने जा रही थी.मिथुन लग्न साढ़े चार बजे तक थी.कुंडली देखते ही दिमाग में बैठे ज्योतिषी ने कह दिया की यदि जन्म मिथुन लग्न में ही हो जाता है तो सब कुछ इतना सामान्य नहीं हो सकता जैसा दिखाई दे रहा है.चंद्रमा अष्टम में व सूर्य वक्री लग्नेश के साथ द्वितीय भाव में था.जीवन का पहला सूत्र थामने वाले दोनों ग्रह मारक स्थानों में विराजमान थे.व्ययेश शुक्र लग्न में, साँसों को नियंत्रित करने वाले देव गुरु द्वादश में व चतुर्थ में मंगल शनि की युति हो रही थी.अन्दर बैठा ज्योतिषी जानता था की चतुर्थ भाव में दो पाप ग्रहों की युति,व उन पर केन्द्रधिपति दोष से पीड़ित शत्रु राशि बैठे गुरु की दृष्टि श्वास सम्बन्धी समस्यों का कारण बनती है.उचित प्राण वायु न मिलने से ह्रदय काम करना बंद कर सकता है.अष्ठम में विराजे चंद्रमा को गुरु नीच राशि में देख रहा है. अन्दर बैठे ज्योतिषी ने अन्दर बैठे पिता को शंकित कर दिया.ज्योतिषी कह रहा था की योग शुभ नहीं हैं क्योंकि दशा भी मंगल में गुरु के अंतर की है(ज्योतिष के जानकार जानते है की मिथुन लग्न में मंगल में गुरु की अन्तर्दशा मारक होती है) किन्तु पिता इस सब बेकार की बात को मानने से इनकार कर रहा था.वो ज्योतिषी को परे धकेल रहा था .ज्योतिषी की दृष्टि नवमांश कुंडली पर पड़ी तो अन्दर बैठा ज्योतिषी और अधिक कन्फर्म हो गया.नहीं सब कुछ नोर्मल नहीं हो सकता.यदि नोर्मल है तो नोर्मल रहने वाला नहीं है. ज्योतिषी जितना ज्यादा कन्फर्म हो रहा था पिता उतना ही ज्यादा घबराने लगा था. खैर सब कुछ बंद कर वापस लेबर रूम की और दौड़ा.
सामने की और देखता हूँ तो दो औरतें व दो आदमी(जैसे सड़क किनारे रहने वाले बंजारे होते हैं) एक छोटी बच्ची को गोद में उठाकर इमरजेंसी वार्ड की और भागे जा रहे हैं.बच्ची शायद बेहोश थी.इमरजेंसी वार्ड व लेबर रूम एक साथ लगे हुए थे.मैं बाहर बैठी अपनी माताजी के पास पहुंचा और पूछा की क्या हुआ?इतने में इमरजेंसी का दरवाजा खुला और उन दो औरतों में से एक ने (जो शायद बच्ची की दादी रही हो) बाहर कदम रखा.कमर तक खुले हुए काले बाल,काला मोटा शरीर ,नंगे पैर और लाल आँखें.वो स्त्री साक्षात मृत्यु और संहार की देवी काली के सामान लग रही थी.सवाल जो की एक होने वाले पिता ने अपनी माँ से पूछा था,उसका जवाब माँ से पहले प्रकृति ने संकेत के द्वारा ज्योतिषी को दे दिया था.शकुन शाश्त्र के ज्ञाता इस संकेत का अर्थ तुरंत लगा सकने में सक्षम होते हैं.काली बलि मांगती है और उस पर रक्त का अभिषेक होता है.बाहर अँधेरा श्याह होता जा रहा था और पिता का दिल अनजानी आशंकाओं से डरने लगा था.
अचानक लेबर रूम का दरवाजा खुलता है और एक नर्स आकर बताती है की नोर्मल डिलीवरी होते होते अचानक बच्चा फंस गया है.वजन में भारी और सिर बड़ा होने के कारण डिलीवरी में दिक्कत आ रही है.तीन बजकर चालीस मिनट हो गए थे .मेरी माता जी घबराने लगी की सब कुछ नोर्मल हो रहा था तो अचानक क्या परेशानी आने लगी है अब.मैं उन्हें हिम्मत बंधाने लगा.दस मिनट बाद फिर एक डाक्टर बाहर आई और बोली की बच्चा फंस गया है और उसने अन्दर ही मल त्याग दिया है.आपरेशन की नौबत आ गयी है और अब बच्चे की माँ को भी खतरा बढ गया है(ज्योतिषी तुरंत सचेत हुआ,चतुर्थ में अष्ठामेश की मारक मंगल से युति व माता के नैसर्गिक ग्रह चन्द्रमाँ का स्वयं अष्ठम में चला जाना) नर्स आकर मुझ से आपरेशन की सहमती पर हस्ताक्षर करा कर ले गयी.
आपरेशन की तैयारी चल ही रही थी की चार बजकर सोलह मिनट पर स्वत: ही प्रसव हो गया.बेटा हुआ था किन्तु मृत.बच्चे के गले में नाल लिपट गयी थी जिस कारण वो सांस नहीं ले सका और अन्दर ही मल त्याग दिया.श्वांस के रास्ते वही मल उसके अन्दर चला गया,और उसका दम घुंट गया.उचित ऑक्सीजन न मिलने से ह्रदय ने काम करना बंद कर दिया और बालक मृत्यु का ग्रास बन गया था (ज्योतिषी फिर जागा.मंगल जो आहार नाली का सूचक भी है व ब्रहस्पति जो स्वशन क्रिया का कारक है ,दोनों ने मिलकर मेरे पुत्र को काल के हाथों सौंप दिया.)धर्मपत्नी की जान किसी तरह बच गयी.किन्तु मृत्यु के कारक शनि की लग्न पर दृष्टि कई हाथ पैर चला कर जीने का अंतिम प्रयास तक करने वाले मेरे पुत्र को आखिर में निगल गयी.
अन्दर जाकर अपने मृत पुत्र को देखा.क्या खूबसूरत था कैसे कहूँ ? जीवत रहता तो कामदेव का अवतार लगता.कितनी प्रभावी आँखें ,पलकें बंद होकर भी जिनकी चमक को भीतर नहीं थाम पा रही थीं. सुनहरे बाल जो रेशम के बने मालूम होते थे,शरीर जो सांस घुटने से नीला पड़ने के बावजूद अपने अंग्रेजों जैसी दूधिया रंगत का आभास करा रहा था.क्या लम्बाई ,कैसा रूप?कहते हैं की अपना बच्चा तो बंदरिया को भी प्यारा लगता है किन्तु कसम खाकर कह रहा हूँ बंधुओ ,वो वास्तव में बेमिसाल था. "बहुत खूबसूरत था मेरा बेटा", पिता ने कहा."होता क्यों नहीं लग्न में शुक्र जो विराजमान थे ,नवग्रहों में सबसे तेज चमकता सितारा ",ज्योतिषी ने जवाब दिया.पिता रो रहा था और ज्योतिषी अपने ज्ञान पर इतरा रहा था. शायद अपनी गणनाओं को सफल होते देख अन्दर ही अन्दर कहीं खुश भी हो रहा था.
एक पिता और एक ज्योतिषी की जंग में आखिर बाज़ी ज्योतिषी के हाथ रही.पिता खाली हाथ रह गया था.
मैदान मारकर विजयी गणक इतराता हुआ जा चुका है और पीछे मात्र अपने सीने में दर्द का तूफ़ान समेटे हुए युद्ध भूमि पर गिरा पिता रह गया है.ये तो नियम है की चाहे युद्ध हो,चाहे कोई प्रतिस्पर्धा ,चाहे कोई दौड़ ,एक हारता है तभी दूसरा जीतता है.किन्तु मैं जानना चाहता हूँ की इस खेल में मैं कहाँ रहा.दो जनों की इस प्रतियोगिता में किसी का ध्यान मेरी और नहीं गया.मेरा बच्चा मर गया पर मेरा ज्ञान जीत गया.मैं अपना दर्द किसी को नहीं बता पाया.मेरे ह्रदय पर क्या गुजरी न मेरे माता पिता समझ पाए,न मेरे भाई बहन ,न मेरी धर्मपत्नी और न ही मेरे ईष्ट मित्रगण. और अब इस पीड़ा को पता नहीं मेरी ब्लॉग बिरादरी के साथी समझ पायें या नहीं.
पर हाँ किसी को तो एहसास जरूर हुआ है.ये बारिश जो दो अगस्त की रात को शुरू हुई थी अभी तक अनवरत जारी है.मेरे गम में शरीक होकर कोई तो है जो लागातार रो रहा है.क्या मेरे सर्वप्रिय दादाजी जिनकी ही गोद में शायद मेरा पुत्र बैठ हुआ हो. एक सवाल जो रह रह कर ह्रदय में उतर आता है की मेडिकल साईंश की इतनी डिग्रियां पाने वाले डाक्टर्स ,इतने अभ्यस्त हाथ,लाखों रुपयों की मशीने भी मिलकर मेरे पुत्र को क्यों नहीं बचा सकीं.क्यों चाँद पर पहुँचने का दम भरने वाला विज्ञानं और ज्योतिष को अंधविश्वास व ज्योतिषियों को पाखंडी बताने वाले ये लोग बच्चे के साथ होने वाली जिस समस्या को दस मिनट पहले तक भी नहीं समझ पाए और सब कुछ नोर्मल होने का दावा करते रहे, उसे कैसे मेरे जैसा एक मामूली सा ज्योतिषी लगभग दो घंटे पहले भांप चुका था.लाखों रुपैये की मशीने समय रहते जो बता पाने में असमर्थ रही ग्रहों के योगों और प्रकृति के संदेशों से एक ज्योतिष शाश्त्र का तुच्छ सा जानकार उसकी भविष्यवाणी काफी पहले कर चुका था.तो क्या ज्योतिषी ठीक कहता था की साढ़े चार बजे लग्न बदल रहा था,मात्र चौदह मिनट मेरा पुत्र संघर्ष कर जाता तो काल के निर्मम हाथों से बच कर आज अपने पिता की गोद में खेल रहा होता.क्या वाकई कोई उपाय समय रहते कर देने से मेरे पुत्र के प्राण बच जाते.अब पिता हावी हो चुका है मेरे मानस पर अततः कोई जवाब नहीं सूझ सकता.आह कठोर हृदयी मृत्यु तुझे तनिक भी दया नहीं आई मेरे भाग्य पर.अब ज्योतिषी कही नहीं है आस पास दिलासा भरे वचन देने को .अब मात्र पिता है.जो भावुक है.आँखों में आनायास आता पानी ,उसे अंतिम गति देते समय जी भरकर उसका दीदार किये समय को मानो रोक देता है.कितनी सुन्दर आँखें जो सृष्टि का एक भी नजारा नहीं कर पायीं जो पलकों के पीछे बंद ही रह गयीं.कितने सुन्दर कान ,किन्तु बेचारा एक बार अपने लिए कैसा भी संबोधन नहीं सुन पाया.कितनी प्यारी हथेलियाँ ,पर एक बार भी जो अपने अभागे पिता के चेहरे का स्पर्श न कर सकीं. आवाज ...........आवाज पता नहीं कैसी रही होगी,क्योंकि वो बेचारा तो अपना प्रथम रुद्रन तक नहीं कर पाया. फिर मैं कहाँ से अंदाजा लगा पाऊं उस आवाज ?कैसी रही होगी उसकी आवाज? " बड़ी प्यारी रही होगी उसकी आवाज,और बड़ा सुरीला होता उसका कंठ".दूर से कहीं फिर अन्दर बैठे ज्योतिषी की पुकार सुनाई देती है मुझे. "कैसे कह सकते हो ऐसा "पिता सवाल करता है. "देखा नहीं बेवक़ूफ़ लग्न में शुक्र विराजमान था". ज्योतिषी का जवाब है
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जवाब देंहटाएंpuri post padte-padte aankh bhar aayi....
जवाब देंहटाएंhum sab us param pita parmeshwar ke samne kuch bhi nahi hain...........
प्रतीक साहब ,ये वो दर्द है जिसको मैं आज तक किसी के साथ साझा नहीं कर सका ,आपने इस पीढ़ा को महसूस किया मैं आपका आभारी हूँ।
हटाएंguru ji pranam apeke hriday ki peeda ko hum nahi samajh sakte, par meri samvedna apke saath hai.grahon or prakirti ko samjhna aasan nahi hota . us samay ek jyotish bhale hi jeeta ho magar bhagwaan nyay jaroor karega or ek pita jarur jitega.mai to itna hi kahunga ki bhale hi kaal kitno ki kaal graas banale lekin bhagwaan shri krishn jarur janm lenge. Dhnywaad
जवाब देंहटाएंaabhar
हटाएंguru ji
जवाब देंहटाएंmai atyant shokakul ho gaya ye paristhiti ki soch kar.mai ye to nahi kah sakta ki mai aapka dukh samajhta hun,par maine apne pita ko khoya hai aur ab mere bade bhai jo ki 29 saal ke hai kidney ki beemari se joojh rahe hai to kitni peeda aapko hui hogi mujhe ahsaas hai.
aap ke chamatkari putra ko pranaam.
bhai ka janmtithi 21/12/1983 samay 6:50 pm varanasi
हटाएंkripya margdarshan karen.
पंडितजी सादर प्रणाम, कुछ दिनों पहेले ही आपका ब्लॉग सामने आया , जब गूगल पर ग्रहों के बारे में कुछ खोज रहा था. आज आपके आर्टिकल्स पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ....दिल से कह रहा हूँ बहुत अच्छा लगा ..लेकिन यह घटना (पिता और ज्योतिषी ) पढ़कर दुःख हुआ. भगवानजी आपके साथ ज़रूर अच्छा और शुभ करेगा. धन्यवाद् ..
जवाब देंहटाएंPandit Ji pranaam,
जवाब देंहटाएंSabse pehle to aapke hausle ko salaam hai..Jis dard ko khud samajhna mushkil ho..use aise share kar paane ka sahas...kehte hain na ki parmatma dukh use heWO deta hai jisme seh sakne ki shakti hoti hai..
Aap dukhi na hon...WO chahe Kali roop hee dhar le... par bachche ko kya matlab... jisne darna hai WO dare...humari to har roop mai mata hee hai..aur vishvas rakhiye.. wo kai haathon se dene wali hai...
Jai maa kali
यह हकीकत है तो इससे पता चलता है की ज्योतिषी में कितनी ताकत है जो समय की आहट को पढ़ सकती है ।
जवाब देंहटाएंराकेश कुमार , दिल्ली (८४७०९५१०१०)
pandit g ye post padh kar sach me aankh bhar aai aapko likhte samy v kesa anubhv ho raha hoga ye soch kar vyathth hoo jaati hu......
जवाब देंहटाएंबंधू पिछले वर्ष मेरे एक क्लाइंट शैलेन्द्र कोठियाल जी जो कि बैंक मेनेजर हैं, वे अपनी धर्म पत्नी के प्रसव हेतु जब अस्पताल पहुंचे तो चिकित्सकों ने जटिल ऑपरेशन द्वारा प्रसव होने व बच्चे तथा माता के लिए हालात को कठिन बताकर उन्हें समय पूर्व ही सिजेरियन का हुकुम सुनाया व कागजी कार्यवाही करने के लिए दो दिन का समय दिया..इस बीच शैलेन्द्र जी ने मुझे मजबूर कर दिया कि गुरूजी जब हमने ऑपरेशन करना ही है तो इसका समय आप निर्धारित करें..अल्ट्रासाउंड में ठीक उसी प्रकार बच्चे के गले में नाल फंसी थी जैसे मेरे पुत्र के गले में थी..मेरे बहुत मना करने के पश्चात भी वे नहीं माने..खैर अपने ईष्ट को साक्षी मानकर मैंने बहुत सावधानी से लग्न का निर्धारण किया..इस बार विजय फिर ज्योतिषी के हाथ रही...कोठियाल जी को पुत्र रत्न प्राप्त हुआ..अभी कुछ दिन पहले जब उसके प्रथम जन्मदिवस के बड़े जलसे में बालक को गोद में उठाये दंपत्ति ने मेरे मना करते करते भी पैर छूकर प्रणाम किया तो यकीन मानिए मन के भीतर छिपे पिता ने असीमित गर्व की अनुभूति की..आज भी अपने ब्लॉग में संतान सम्बन्धी प्रश्न को प्रमुखता से लेने का प्रयास करता हूँ..एक जिद सी हो गई है इस विषय पर..किन्तु देखिये न एक भी पाठक बाद में हौसलाफजाई के लिए फीड बैक नहीं देता..
जवाब देंहटाएंgod bless you ,
जवाब देंहटाएंbaat purani ho gyi hai per Maine aaj dekha hai , kya mahaan atmavishvas , aur adbhut sahas hai aapke andar, aapki jyotishi gyaan ke andar aur aapki lekhni me .
dil se to waah nikalta hai ek jyotish k liye
aur Usi dil se ek aah bhi nikalti hai ek pita k liye .
main kuldeep singh mera ek jyotish ko pranaam aur ek pita ko marmik samvedna.
Jai MAHAKAAL
god bless you ,
जवाब देंहटाएंbaat purani ho gyi hai per Maine aaj dekha hai , kya mahaan atmavishvas , aur adbhut sahas hai aapke andar, aapki jyotishi gyaan ke andar aur aapki lekhni me .
dil se to waah nikalta hai ek jyotish k liye
aur Usi dil se ek aah bhi nikalti hai ek pita k liye .
main kuldeep singh mera ek jyotish ko pranaam aur ek pita ko marmik samvedna.
Jai MAHAKAAL