****** ...... शिव .....*****
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शिव को समझना उतना ही सरल है,,,जितना मनुष्य का स्वतः ये ज्ञात कर लेना कि जल ही प्यास बुझाने का एकमात्र साधन हैं..जल बिना जीवन नही है..ठीक उसी प्रकार शिव के बिना परिवार व संसार का सुख नही है..
और अगर आप शिव को रहस्यमयी बनाने पर विश्वास रखते हैं तो शिव को समझना उतना ही दुष्कर है जितना ब्रह्मांड को समझना...
हजारों लेख इस सावन के पवित्र माह में आपको शिव संबंधी देखने को मिल जाते हैं....अनगिनत श्रद्धालु,,अनगिनत शिवलिंगों में जल अर्पित करते हुए अपनी तस्वीरें खिंचवाने को ही सावन का महात्म्य समझ बैठते हैं... शिव की तस्वीरों से लोगों की प्रोफाइल्स जगमगाने लगती हैं....फिर भी एक रीतापन सा बिखरा हुआ रह जाता है... क्यों...क्योंकि हम शिव से परिचित नही हो पाते...हम उनमे आत्मसात नही हो पाते.....भक्तों की चेष्ठा मात्र ये ज्ञात करने तक सीमित रहती है कि शिव को क्या पसंद है...शिव को क्या चढ़ाना,, अर्पित करना चाहिए,,,,शिव कैसा श्रृंगार करते हैं..कौन से मंत्र शिव को प्रसन्न कर सकते हैं....शिव की इच्छा ,,अनिच्छा तक मनुष्य सीमित कर देता है स्वयं को.....किन्तु शिव का साक्षात्कार नही करता....शिव को नही खोजता,,, शिव को नही तलाशता,,,,ताकि स्वयं उनकी वाणी से ही उनकी वास्तविक इच्छा अनिच्छा ज्ञात कर पाता...जिस दिन ऐसा कर पाए ,,तब देखिये,, हर मास श्रावण मास है,प्रत्येक दिन सोमवार है,,,,प्रत्येक रात्रि शिव रात्रि है...प्रत्येक बूंद गंगाजल है...
शिव को मानिए मत,,शिव मानने की प्रक्रिया नही हैं....मानेंगे तो सदा उस भाव मे देख पाएंगे ,,जिसमे दूसरे ने देखा...,जो भाव पुस्तकों में लिखा पाएंगे...दूसरे की दृष्टि है ,, दूसरे का विजन है..... दूसरे के विचारों के शिव,,,दूसरे के शिव..आपके अपने नही...अतः शिव को मानिए मत.....अपितु शिव को जानिये...आपके शिव को जानिये...मानने न मानने का प्रश्न स्वयं लोप हो जाएगा...
शव ही प्राण का विलोम है....प्राण शिव है,,,प्राण नही तो शव है,,,स्पंदन हीन है,,उद्देश्यहीन है..निर्रथक है..उत्तरदायित्व की एक मात्रा "इ" को लगा लेने से शव ,,शिव का रूप ले लेता है..शिव उत्तरदायित्व की परिभाषा हैं...शिव जिम्मेदारी का एहसास हैं...शिव अपनी आकांक्षाओं,, इच्छाओं का हनन कर ,,,,परिवार हेतु,,समाज हेतु ,,मानवता हेतु ,,,,विषपान करने का नाम है....शिव नीलकंठ हैं...शिव हैं तो योगी हैं,,,अन्यथा भोगी हैं....शिव स्वयं को होम कर परिवार का पालन करने का नाम है,,,,
शिव वो संबल है जो आपके बुरे वक्त में आपका सारा बोझ, बिना किसी लालसा के,,बग़ैर किसी उलाहना के,,,बिना अपने स्थान-आयु-सामर्थ्य का भान किये ,,अपने कांधे पर लेकर आपको भार मुक्त कर देते हैं...वे स्वयं विषपान कर ,,आपको अमृत का प्याला थमा देते हैं...वे स्वयं वाघाम्बर ओढ़ कर ,,,राख का लेपन करके ही संतुष्ट हैं,,,,संसार की संपदा का भोग आप कीजिये,,,ये शिव आपके लिए त्याग दिए हैं..आप अपने गले मे स्वर्णजड़ित आभूषण धारण कीजिये...वे जिम्मेदारियों के बासुकी को अलंकार स्वेच्छा से बनाए बैठे हैं......
कभी पिता के गले के नीले रंग पर ध्यान गया है आपका.....नही ना....कभी उनमे अपने शिव तलाशने का प्रयास किया है आपने.....नहीं ना........कभी याद है कि आपकी नई कमीज खरीदने के लिए ,,स्वयं फटे पुराने वस्त्र वो पहनते रहे हैं.... आपको ताजी रोटी खाने को मिले ये सोचकर बिना किसी शिकायत के रात की बासी रोटी खाते देखा है आपने....नही न......
कभी आपकी असफलता पर उनके रौद्र रूप के पीछे छिपे उनके डर को देखा है आपने....आपके असुरक्षित भविष्य का डर,,,,आपकी जगहंसाई का डर,,,आपके संघर्ष का डर...नही ना...
कभी तुलना कीजिये शिव की अपने पिता से....आप देखेंगे कि जिस रूप को,,जिस आकृति को पाने के लिए आप बड़े बड़े स्वांग रचाये फिर रहे हैं,,,वो आपके ही सामने कदम कदम पर आपके साथ चल रहा है.. ,,,,प्रत्येक पल विष का पान आपके व अपने परिवार के रक्षार्थ कर रहा है....वो अपना सर्वस्व आपके हेतु त्याग कर चुका है....निराशा के पश्चात आशा ही जीवन का आधार है,,,पतझड़ के बाद बसंत ही नवजीवन का संदेश है,,,मृत्यु मिथ्या है ,,,मृत्यु के भय को काट जो जीवन के प्रति आस्था प्रज्वलित करे ,,वो शिव है...अगर अंधकार ही व्याप्त हो,,तो प्रकाश का क्या महत्व रह गया....कीमती तो प्रकाश है....मृत्यु पाखंड है ,,,,मात्र वस्त्र का बदलना है,,आत्मा शाश्वत है,,एकमात्र सत्य है,,,,जीवन ही ईश्वर के होने का प्रमाण है.....मुझे अपने जीवन से बहुत प्यार है ,,,ये जीवन न होता,,,तो मुझे माता -पिता,,भाई बहन,,मित्रों ,,पाठकों का स्नेह न मिलता.....जीवन न होता तो मैं भगवती की स्तुति नही कर पाता...जीवन न होता तो मैं प्रकृति की रचनाओं,,सुंदर पंछियों,, पहाड़ों ,,मंदिरों के दर्शन न कर पाता,,,,जीवन न होता तो युवावस्था के प्रथम प्रेम की याद में जो अनार मेरे मन मे फूटते हैं,,उनके अग्निप्रभाव में जो जलन रूपी शांति मुझे मिलती है,,वो कहाँ से आती....जीवन न होता तो मेरी जीवन संगिनी और भगवती का अवतार दो पुत्रियां मुझे कहाँ से मिलती...ये मनुष्य जीवन पाने के लिए देवता भी तरसते हैं ....मृत्यु मुझे परास्त नही कर सकती...क्योंकि मैं जानता हूँ उसके बाद पुनर्जन्म है...उस अंधकार के बाद वापस शिव रूपी प्रकाश है जीवन के रूप में...तभी कहा गया है,,भला मृत्यु से क्या भय,,,,क्योंकि वो तो क्षणिक है...जीवन निरंतर बहता जल है...निरंतर यात्रा है....अब ये हमारे ऊपर है कि मिथ्या मृत्यु को ध्यान में रखकर हम घुट घुट कर जियें,,या ये सत्य जान लें कि मृत्यु एक क्षणिक आभास है...जीवन पुनः हमे अपने आगोश में लेने को तत्पर है...जीवन ही शिव है,,,अतः शिव ही सत्य है..जीवन देने वाला पिता ही शिव है,,तभी महामृत्युंजय हैं..मुझे अपने जीवन से बहुत स्नेह है बन्धु,,,मैं जानता हूँ शिव बार बार अपना अंश देकर मुझे हर बार नए क्लेवर में उत्पन करेंगे ,,इस संसार की सुंदरता देखने के लिए,,इसका रसास्वादन करने के लिए,,,,इसी कारण मेरे मन ने सर्वथा विपरीत परिस्थितियों में भी मुझे निराश नही होने दिया कभी....क्योंकि जानता हूँ हर अंधकार के आगे प्रकाश है,,,हर असफलता के आगे सफलता है आलिंगन के लिए....हर मृत्यु के पश्चात शिव हैं नया जीवन देने के लिए....मैं हारता नही,,क्योंकि मैं जीवन हूँ...मैं ही शिव हूँ ,,,,,शिवोह्म.. शिवोह्म..
ये पिता को उसका आसन,,उसका मान देने का उपयुक्त समय है.....ये पिता को महसूस कराने का पर्व है कि आप ही मेरे शिव हैं ,,,आप ही की रचना हूँ मैं,,,आप ही पालक हैं मेरे.....आप ही रचियता हैं मेरे........मुझे भी शिव बनना है.....आपके बाद आपके रचनाक्रम का निर्वाह करना है.....आपकी ही भांति परिवार का पोषण करना है......आपके ही अंश की प्रकृति हूँ मैं......आप ही शिव हैं,,और मैं शिव बनने की प्रक्रिया में हूँ,,आपके पश्चात मैं स्वयं शिव हूँ.........शिवोह्म.....शिवोह्म ....
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शिव को समझना उतना ही सरल है,,,जितना मनुष्य का स्वतः ये ज्ञात कर लेना कि जल ही प्यास बुझाने का एकमात्र साधन हैं..जल बिना जीवन नही है..ठीक उसी प्रकार शिव के बिना परिवार व संसार का सुख नही है..
और अगर आप शिव को रहस्यमयी बनाने पर विश्वास रखते हैं तो शिव को समझना उतना ही दुष्कर है जितना ब्रह्मांड को समझना...
हजारों लेख इस सावन के पवित्र माह में आपको शिव संबंधी देखने को मिल जाते हैं....अनगिनत श्रद्धालु,,अनगिनत शिवलिंगों में जल अर्पित करते हुए अपनी तस्वीरें खिंचवाने को ही सावन का महात्म्य समझ बैठते हैं... शिव की तस्वीरों से लोगों की प्रोफाइल्स जगमगाने लगती हैं....फिर भी एक रीतापन सा बिखरा हुआ रह जाता है... क्यों...क्योंकि हम शिव से परिचित नही हो पाते...हम उनमे आत्मसात नही हो पाते.....भक्तों की चेष्ठा मात्र ये ज्ञात करने तक सीमित रहती है कि शिव को क्या पसंद है...शिव को क्या चढ़ाना,, अर्पित करना चाहिए,,,,शिव कैसा श्रृंगार करते हैं..कौन से मंत्र शिव को प्रसन्न कर सकते हैं....शिव की इच्छा ,,अनिच्छा तक मनुष्य सीमित कर देता है स्वयं को.....किन्तु शिव का साक्षात्कार नही करता....शिव को नही खोजता,,, शिव को नही तलाशता,,,,ताकि स्वयं उनकी वाणी से ही उनकी वास्तविक इच्छा अनिच्छा ज्ञात कर पाता...जिस दिन ऐसा कर पाए ,,तब देखिये,, हर मास श्रावण मास है,प्रत्येक दिन सोमवार है,,,,प्रत्येक रात्रि शिव रात्रि है...प्रत्येक बूंद गंगाजल है...
शिव को मानिए मत,,शिव मानने की प्रक्रिया नही हैं....मानेंगे तो सदा उस भाव मे देख पाएंगे ,,जिसमे दूसरे ने देखा...,जो भाव पुस्तकों में लिखा पाएंगे...दूसरे की दृष्टि है ,, दूसरे का विजन है..... दूसरे के विचारों के शिव,,,दूसरे के शिव..आपके अपने नही...अतः शिव को मानिए मत.....अपितु शिव को जानिये...आपके शिव को जानिये...मानने न मानने का प्रश्न स्वयं लोप हो जाएगा...
शव ही प्राण का विलोम है....प्राण शिव है,,,प्राण नही तो शव है,,,स्पंदन हीन है,,उद्देश्यहीन है..निर्रथक है..उत्तरदायित्व की एक मात्रा "इ" को लगा लेने से शव ,,शिव का रूप ले लेता है..शिव उत्तरदायित्व की परिभाषा हैं...शिव जिम्मेदारी का एहसास हैं...शिव अपनी आकांक्षाओं,, इच्छाओं का हनन कर ,,,,परिवार हेतु,,समाज हेतु ,,मानवता हेतु ,,,,विषपान करने का नाम है....शिव नीलकंठ हैं...शिव हैं तो योगी हैं,,,अन्यथा भोगी हैं....शिव स्वयं को होम कर परिवार का पालन करने का नाम है,,,,
शिव वो संबल है जो आपके बुरे वक्त में आपका सारा बोझ, बिना किसी लालसा के,,बग़ैर किसी उलाहना के,,,बिना अपने स्थान-आयु-सामर्थ्य का भान किये ,,अपने कांधे पर लेकर आपको भार मुक्त कर देते हैं...वे स्वयं विषपान कर ,,आपको अमृत का प्याला थमा देते हैं...वे स्वयं वाघाम्बर ओढ़ कर ,,,राख का लेपन करके ही संतुष्ट हैं,,,,संसार की संपदा का भोग आप कीजिये,,,ये शिव आपके लिए त्याग दिए हैं..आप अपने गले मे स्वर्णजड़ित आभूषण धारण कीजिये...वे जिम्मेदारियों के बासुकी को अलंकार स्वेच्छा से बनाए बैठे हैं......
कभी पिता के गले के नीले रंग पर ध्यान गया है आपका.....नही ना....कभी उनमे अपने शिव तलाशने का प्रयास किया है आपने.....नहीं ना........कभी याद है कि आपकी नई कमीज खरीदने के लिए ,,स्वयं फटे पुराने वस्त्र वो पहनते रहे हैं.... आपको ताजी रोटी खाने को मिले ये सोचकर बिना किसी शिकायत के रात की बासी रोटी खाते देखा है आपने....नही न......
कभी आपकी असफलता पर उनके रौद्र रूप के पीछे छिपे उनके डर को देखा है आपने....आपके असुरक्षित भविष्य का डर,,,,आपकी जगहंसाई का डर,,,आपके संघर्ष का डर...नही ना...
कभी तुलना कीजिये शिव की अपने पिता से....आप देखेंगे कि जिस रूप को,,जिस आकृति को पाने के लिए आप बड़े बड़े स्वांग रचाये फिर रहे हैं,,,वो आपके ही सामने कदम कदम पर आपके साथ चल रहा है.. ,,,,प्रत्येक पल विष का पान आपके व अपने परिवार के रक्षार्थ कर रहा है....वो अपना सर्वस्व आपके हेतु त्याग कर चुका है....निराशा के पश्चात आशा ही जीवन का आधार है,,,पतझड़ के बाद बसंत ही नवजीवन का संदेश है,,,मृत्यु मिथ्या है ,,,मृत्यु के भय को काट जो जीवन के प्रति आस्था प्रज्वलित करे ,,वो शिव है...अगर अंधकार ही व्याप्त हो,,तो प्रकाश का क्या महत्व रह गया....कीमती तो प्रकाश है....मृत्यु पाखंड है ,,,,मात्र वस्त्र का बदलना है,,आत्मा शाश्वत है,,एकमात्र सत्य है,,,,जीवन ही ईश्वर के होने का प्रमाण है.....मुझे अपने जीवन से बहुत प्यार है ,,,ये जीवन न होता,,,तो मुझे माता -पिता,,भाई बहन,,मित्रों ,,पाठकों का स्नेह न मिलता.....जीवन न होता तो मैं भगवती की स्तुति नही कर पाता...जीवन न होता तो मैं प्रकृति की रचनाओं,,सुंदर पंछियों,, पहाड़ों ,,मंदिरों के दर्शन न कर पाता,,,,जीवन न होता तो युवावस्था के प्रथम प्रेम की याद में जो अनार मेरे मन मे फूटते हैं,,उनके अग्निप्रभाव में जो जलन रूपी शांति मुझे मिलती है,,वो कहाँ से आती....जीवन न होता तो मेरी जीवन संगिनी और भगवती का अवतार दो पुत्रियां मुझे कहाँ से मिलती...ये मनुष्य जीवन पाने के लिए देवता भी तरसते हैं ....मृत्यु मुझे परास्त नही कर सकती...क्योंकि मैं जानता हूँ उसके बाद पुनर्जन्म है...उस अंधकार के बाद वापस शिव रूपी प्रकाश है जीवन के रूप में...तभी कहा गया है,,भला मृत्यु से क्या भय,,,,क्योंकि वो तो क्षणिक है...जीवन निरंतर बहता जल है...निरंतर यात्रा है....अब ये हमारे ऊपर है कि मिथ्या मृत्यु को ध्यान में रखकर हम घुट घुट कर जियें,,या ये सत्य जान लें कि मृत्यु एक क्षणिक आभास है...जीवन पुनः हमे अपने आगोश में लेने को तत्पर है...जीवन ही शिव है,,,अतः शिव ही सत्य है..जीवन देने वाला पिता ही शिव है,,तभी महामृत्युंजय हैं..मुझे अपने जीवन से बहुत स्नेह है बन्धु,,,मैं जानता हूँ शिव बार बार अपना अंश देकर मुझे हर बार नए क्लेवर में उत्पन करेंगे ,,इस संसार की सुंदरता देखने के लिए,,इसका रसास्वादन करने के लिए,,,,इसी कारण मेरे मन ने सर्वथा विपरीत परिस्थितियों में भी मुझे निराश नही होने दिया कभी....क्योंकि जानता हूँ हर अंधकार के आगे प्रकाश है,,,हर असफलता के आगे सफलता है आलिंगन के लिए....हर मृत्यु के पश्चात शिव हैं नया जीवन देने के लिए....मैं हारता नही,,क्योंकि मैं जीवन हूँ...मैं ही शिव हूँ ,,,,,शिवोह्म.. शिवोह्म..
ये पिता को उसका आसन,,उसका मान देने का उपयुक्त समय है.....ये पिता को महसूस कराने का पर्व है कि आप ही मेरे शिव हैं ,,,आप ही की रचना हूँ मैं,,,आप ही पालक हैं मेरे.....आप ही रचियता हैं मेरे........मुझे भी शिव बनना है.....आपके बाद आपके रचनाक्रम का निर्वाह करना है.....आपकी ही भांति परिवार का पोषण करना है......आपके ही अंश की प्रकृति हूँ मैं......आप ही शिव हैं,,और मैं शिव बनने की प्रक्रिया में हूँ,,आपके पश्चात मैं स्वयं शिव हूँ.........शिवोह्म.....शिवोह्म ....
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