राजनीति,नौकरी,व्यापार ,जीवन में सफलता चाहते हैं ....तो राहु को जानिये.......
आज की आपाधापी के पीछे अगर ज्योतिषीय कारण जानने की कोशिश करें तो सबसे पहले और मुख्य रूप से राहु का रूप सामने आता है..आप जीवन के किसी भी क्षेत्र की कल्पना राहु के बिना नहीं कर सकते...राहु आकाश है....विस्तार है ,सीमायें है..व मुख्य रूप से नशा है..जूनून है .....किसी भी वस्तु का किसी भी चीज का नशा..धन का,रूप का,ताकत का,राजनीति का,गुस्से का,हवस का,दिखावे का....नशा नियंत्रित न किया जा सके तो नाश का रूप ले लेता है ..कर्म की अपनी एक गति होती है या कहें एक एक्शन होता है...एक्शन होता है तो जाहिर रूप से उसका एक रिएक्शन होता है..रिएक्शन केतु को माना जा सकता है..अतः सामान्य रूप से कहें तो केतु राहु द्वारा किये कर्म का रिजल्ट है....
मन को चंद्रमा माना गया है....अगर मन में विचार नहीं तो वो किसी काम का नहीं..विचार अगर हों भी और उन्हें
एक सीमा विशेष में बाँध दिया जाय तब भी उस मन की कोई हैसियत नहीं..अब सीमा तो राहु है...आम गणना के अनुसार तो राहु चंद्र ग्रहण योग बना लेंगे,फिर मन अर्थात चंद्रमा को अपनी गति, अपना विस्तार बिना राहु के कैसे हासिल होगा??ऊपर आपको बताया कि राहु आकाश है...फिर भला बिना आकाश के चंद्रमा की क्या बिसात??बुध पैसा कहा गया है...अब अगर पैसे को विस्तार नहीं मिल पाये तो बरकत कैसे होगी..व्यापार अगर राहु का विस्तार हासिल नहीं करेगा तो पनपेगा कैसे??
सूर्य नाम है,यश है,पद है,सम्मान है,....लेकिन चमकेगा तो आकाश में ही न...आकाश राहु की श्रेणी में आता है...राहु सूर्य तो आपस में सामान्य गणना के अनुसार सूर्य ग्रहण बना लेंगे...किन्तु बिना आकाश के सूर्य की क्या औकात भला??
पाठक जानते हैं कि राहु व केतु आपस में सदा 180 डिग्री का अंतर बना कर कार्य करते हैं..राहु सोच है तो केतु उस सोच को अमली जामा पहनाने वाला धड़.....इसी सम्बन्ध को कायम रख ये मनुष्य के कर्मो को गति प्रदान करते हैं..
सम का अर्थ है समान,व बंध का अर्थ होता है बंधन...अर्थात जिस डोर से एक बंधा है उसके दूसरे छोर पर दूसरा..जोर दोनों पर बराबर लगने वाला है...आप सामने वाले से जितना कटना चाहेंगे,वो भी उसी गति से आपसे दूर भागेगा...आप किसी के प्रति द्वेष की भावना रखेंगे,वो नकारात्मक ऊर्जा उतनी तेजी से आपका नाश करेगी..आप जितना सम्मान दूसरे को देंगे उतना वो आपके लिए समाज से और अर्जित करेगा...
राहु को आप धनुष मानिए तो केतु उसमे लगा तीर है....जितना धनुष की कमान खिंचेगी उतना दूर तक तीर जाएगा...किन्तु ध्यान दीजिये कि कमान ने तीर को अपने से दूर फेंकने (असल में अपने स्वयं के कारक प्रभाव को बढ़ाने के लिए,अपनी शक्ति दिखाने के लिए इस्तेमाल किया ) के लिए तीर को अपनी तरफ अंदर खींचा था..अपना घनिष्ट ,अपना प्रेम का पात्र बनाने का प्रयास किया था (या कहें ऐसा आभास दिया था)..जितना अधिक से सम्बन्ध बना उतना दूर तक तीर गया...उतनी वाहवाही धनुष को मिली,उन्हें थामने वाले हाथों को मिली,किन्तु दूरी तो तीर ने तय करी थी बन्धु..उस तीर ने जिसका कोई नामलेवा भी नहीं होता..अपना सर्वस्व झोंक दिया तीर ने ,दूरी को अधिक से अधिक नापने के लिए अपनी अंतिम सांस तक समर्पित कर दी,ताकि उसे फेंकने वाले के समक्ष ब्रह्माण्ड शीश नवाये...उसके सामर्थ्य के गीत गाए...उसकी जयजयकार हो...इस प्रयत्न में तीर स्वयं के प्राणों का बलिदान कर देता है..क्यों कर देता है भला??ये प्रश्न आया होगा आपके दिमाग में???
जवाब सीधा है मित्रो...उस खिंचाव के लिए जिसके द्वारा धनुष ने तीर को अपने निकट खींचा था..उस प्रेम के लिए जिससे डोर ने अंतिम चुम्बन तीर को किया था...हाँ प्रेम ही तो है सब त्याग का कारण...
नशा करो मित्रो..सफलता का करो,किन्तु इस सफलता के नशे में उन्हें मत भूलो जो आपके लिए समर्पित हो गए.... राजनीति का करो....किन्तु इस नशे में उन संबंधों का नाश मत करो जो आपके पीछे आपके नाम पर अपना वोट डाल आये थे.. ज्ञान का करो किन्तु अपने ज्ञान के नशे में उस गुरु का अपमान न करो जिसने तुम्हारे मासूम हाथों में कलम पकड़ना सिखाया है...हुनर का करो ..किन्तु इस नशे में उस अनजान केतु का मत करो जो तुम्हारे एक एक करतब पर तालियां बजा बजा कर तुम्हारा उत्साह बढ़ा रहा था.. धन का नशा करो किन्तु उन मजदूरों को मत बिसराओ जिन्होंने तुम्हारे लिए अपना खून पसीना एक किया है...रूप का करो किन्तु उन माँ पिता को न भूलो जिनके कारण तुम्हारा अस्तित्व है..नशे को खुमारी बने रहने दो नाश मत बनने दो..
ग्रहों का अस्तित्व हमारे शरीर के भीतर ही है....अगर राहु को सही गति, सही दिशा मिलती है तो ये सब कुछ आपमें सामर्थ्य में करता है ,अन्यथा नाश करता है...बिना राहु के किसी ग्रह की कोई हैसियत नहीं, किन्तु बिना केतु राहु कुछ भी नहीं...
होली आने को है...राहु इस समय काल में अपने पूर्ण रूप से अवतरित हो जाता है..चारों ओर नशा है..खेतों में पकने को तैयार फसल मदमस्त होकर झूम रही है... नए फूल नए पत्ते अपने आगमन से पेड़ों को नशे में डुबो रहे हैं...फाल्गुन का नशा सम्पूर्ण सृष्टि को मदहोश किये देता है..बिद्यार्थी नयी कक्षाओं के नशे में हैं....व्यापारी साल के अंत (मार्च अंत को फाइनेंसियल इयर के रूप )में लाभ गिनने के नशे में हैं...आप भी मन का मैल त्यागकर उन्हें गले लगाइये जिनसे किसी कारण मनमुटाव चल रहा है....किसी कारण कोई द्वेष पल रहा है...सबसे अपने स्नेह का प्रमाण दीजिये..उन्हें अपनी ओर खींचिए...देखिये भविष्य में ये तीर आपके लिए कितनी दूर तक जाएगा ..आप स्वयं यकीन नहीं कर पाएंगे....लेख के प्रति आपकी बहुमूल्य राय अवश्य दें...मात्र लाइक कर देने से लगता है कि आप बिना पढ़े केवल संबंधों की खातिर फॉर्मेलिटी कर रहे हैं...खींचिए..शायद कभी मैं भी आपकी खातिर स्वयं को प्रस्तुत कर दूँ....स्नेह सहित... राजनीति,नौकरी,व्यापार ,जीवन में सफलता चाहते हैं ....तो राहु को जानिये.......
आज की आपाधापी के पीछे अगर ज्योतिषीय कारण जानने की कोशिश करें तो सबसे पहले और मुख्य रूप से राहु का रूप सामने आता है..आप जीवन के किसी भी क्षेत्र की कल्पना राहु के बिना नहीं कर सकते...राहु आकाश है....विस्तार है ,सीमायें है..व मुख्य रूप से नशा है..जूनून है .....किसी भी वस्तु का किसी भी चीज का नशा..धन का,रूप का,ताकत का,राजनीति का,गुस्से का,हवस का,दिखावे का....नशा नियंत्रित न किया जा सके तो नाश का रूप ले लेता है ..कर्म की अपनी एक गति होती है या कहें एक एक्शन होता है...एक्शन होता है तो जाहिर रूप से उसका एक रिएक्शन होता है..रिएक्शन केतु को माना जा सकता है..अतः सामान्य रूप से कहें तो केतु राहु द्वारा किये कर्म का रिजल्ट है....
मन को चंद्रमा माना गया है....अगर मन में विचार नहीं तो वो किसी काम का नहीं..विचार अगर हों भी और उन्हें
एक सीमा विशेष में बाँध दिया जाय तब भी उस मन की कोई हैसियत नहीं..अब सीमा तो राहु है...आम गणना के अनुसार तो राहु चंद्र ग्रहण योग बना लेंगे,फिर मन अर्थात चंद्रमा को अपनी गति, अपना विस्तार बिना राहु के कैसे हासिल होगा??ऊपर आपको बताया कि राहु आकाश है...फिर भला बिना आकाश के चंद्रमा की क्या बिसात??बुध पैसा कहा गया है...अब अगर पैसे को विस्तार नहीं मिल पाये तो बरकत कैसे होगी..व्यापार अगर राहु का विस्तार हासिल नहीं करेगा तो पनपेगा कैसे??
सूर्य नाम है,यश है,पद है,सम्मान है,....लेकिन चमकेगा तो आकाश में ही न...आकाश राहु की श्रेणी में आता है...राहु सूर्य तो आपस में सामान्य गणना के अनुसार सूर्य ग्रहण बना लेंगे...किन्तु बिना आकाश के सूर्य की क्या औकात भला??
पाठक जानते हैं कि राहु व केतु आपस में सदा 180 डिग्री का अंतर बना कर कार्य करते हैं..राहु सोच है तो केतु उस सोच को अमली जामा पहनाने वाला धड़.....इसी सम्बन्ध को कायम रख ये मनुष्य के कर्मो को गति प्रदान करते हैं..
सम का अर्थ है समान,व बंध का अर्थ होता है बंधन...अर्थात जिस डोर से एक बंधा है उसके दूसरे छोर पर दूसरा..जोर दोनों पर बराबर लगने वाला है...आप सामने वाले से जितना कटना चाहेंगे,वो भी उसी गति से आपसे दूर भागेगा...आप किसी के प्रति द्वेष की भावना रखेंगे,वो नकारात्मक ऊर्जा उतनी तेजी से आपका नाश करेगी..आप जितना सम्मान दूसरे को देंगे उतना वो आपके लिए समाज से और अर्जित करेगा...
राहु को आप धनुष मानिए तो केतु उसमे लगा तीर है....जितना धनुष की कमान खिंचेगी उतना दूर तक तीर जाएगा...किन्तु ध्यान दीजिये कि कमान ने तीर को अपने से दूर फेंकने (असल में अपने स्वयं के कारक प्रभाव को बढ़ाने के लिए,अपनी शक्ति दिखाने के लिए इस्तेमाल किया ) के लिए तीर को अपनी तरफ अंदर खींचा था..अपना घनिष्ट ,अपना प्रेम का पात्र बनाने का प्रयास किया था (या कहें ऐसा आभास दिया था)..जितना अधिक से सम्बन्ध बना उतना दूर तक तीर गया...उतनी वाहवाही धनुष को मिली,उन्हें थामने वाले हाथों को मिली,किन्तु दूरी तो तीर ने तय करी थी बन्धु..उस तीर ने जिसका कोई नामलेवा भी नहीं होता..अपना सर्वस्व झोंक दिया तीर ने ,दूरी को अधिक से अधिक नापने के लिए अपनी अंतिम सांस तक समर्पित कर दी,ताकि उसे फेंकने वाले के समक्ष ब्रह्माण्ड शीश नवाये...उसके सामर्थ्य के गीत गाए...उसकी जयजयकार हो...इस प्रयत्न में तीर स्वयं के प्राणों का बलिदान कर देता है..क्यों कर देता है भला??ये प्रश्न आया होगा आपके दिमाग में???
जवाब सीधा है मित्रो...उस खिंचाव के लिए जिसके द्वारा धनुष ने तीर को अपने निकट खींचा था..उस प्रेम के लिए जिससे डोर ने अंतिम चुम्बन तीर को किया था...हाँ प्रेम ही तो है सब त्याग का कारण...
नशा करो मित्रो..सफलता का करो,किन्तु इस सफलता के नशे में उन्हें मत भूलो जो आपके लिए समर्पित हो गए.... राजनीति का करो....किन्तु इस नशे में उन संबंधों का नाश मत करो जो आपके पीछे आपके नाम पर अपना वोट डाल आये थे.. ज्ञान का करो किन्तु अपने ज्ञान के नशे में उस गुरु का अपमान न करो जिसने तुम्हारे मासूम हाथों में कलम पकड़ना सिखाया है...हुनर का करो ..किन्तु इस नशे में उस अनजान केतु का मत करो जो तुम्हारे एक एक करतब पर तालियां बजा बजा कर तुम्हारा उत्साह बढ़ा रहा था.. धन का नशा करो किन्तु उन मजदूरों को मत बिसराओ जिन्होंने तुम्हारे लिए अपना खून पसीना एक किया है...रूप का करो किन्तु उन माँ पिता को न भूलो जिनके कारण तुम्हारा अस्तित्व है..नशे को खुमारी बने रहने दो नाश मत बनने दो..
ग्रहों का अस्तित्व हमारे शरीर के भीतर ही है....अगर राहु को सही गति, सही दिशा मिलती है तो ये सब कुछ आपमें सामर्थ्य में करता है ,अन्यथा नाश करता है...बिना राहु के किसी ग्रह की कोई हैसियत नहीं, किन्तु बिना केतु राहु कुछ भी नहीं...
होली आने को है...राहु इस समय काल में अपने पूर्ण रूप से अवतरित हो जाता है..चारों ओर नशा है..खेतों में पकने को तैयार फसल मदमस्त होकर झूम रही है... नए फूल नए पत्ते अपने आगमन से पेड़ों को नशे में डुबो रहे हैं...फाल्गुन का नशा सम्पूर्ण सृष्टि को मदहोश किये देता है..बिद्यार्थी नयी कक्षाओं के नशे में हैं....व्यापारी साल के अंत (मार्च अंत को फाइनेंसियल इयर के रूप )में लाभ गिनने के नशे में हैं...आप भी मन का मैल त्यागकर उन्हें गले लगाइये जिनसे किसी कारण मनमुटाव चल रहा है....किसी कारण कोई द्वेष पल रहा है...सबसे अपने स्नेह का प्रमाण दीजिये..उन्हें अपनी ओर खींचिए...देखिये भविष्य में ये तीर आपके लिए कितनी दूर तक जाएगा ..आप स्वयं यकीन नहीं कर पाएंगे....लेख के प्रति आपकी बहुमूल्य राय अवश्य दें...मात्र लाइक कर देने से लगता है कि आप बिना पढ़े केवल संबंधों की खातिर फॉर्मेलिटी कर रहे हैं...खींचिए..शायद कभी मैं भी आपकी खातिर स्वयं को प्रस्तुत कर दूँ....स्नेह सहित...
आज की आपाधापी के पीछे अगर ज्योतिषीय कारण जानने की कोशिश करें तो सबसे पहले और मुख्य रूप से राहु का रूप सामने आता है..आप जीवन के किसी भी क्षेत्र की कल्पना राहु के बिना नहीं कर सकते...राहु आकाश है....विस्तार है ,सीमायें है..व मुख्य रूप से नशा है..जूनून है .....किसी भी वस्तु का किसी भी चीज का नशा..धन का,रूप का,ताकत का,राजनीति का,गुस्से का,हवस का,दिखावे का....नशा नियंत्रित न किया जा सके तो नाश का रूप ले लेता है ..कर्म की अपनी एक गति होती है या कहें एक एक्शन होता है...एक्शन होता है तो जाहिर रूप से उसका एक रिएक्शन होता है..रिएक्शन केतु को माना जा सकता है..अतः सामान्य रूप से कहें तो केतु राहु द्वारा किये कर्म का रिजल्ट है....
मन को चंद्रमा माना गया है....अगर मन में विचार नहीं तो वो किसी काम का नहीं..विचार अगर हों भी और उन्हें
एक सीमा विशेष में बाँध दिया जाय तब भी उस मन की कोई हैसियत नहीं..अब सीमा तो राहु है...आम गणना के अनुसार तो राहु चंद्र ग्रहण योग बना लेंगे,फिर मन अर्थात चंद्रमा को अपनी गति, अपना विस्तार बिना राहु के कैसे हासिल होगा??ऊपर आपको बताया कि राहु आकाश है...फिर भला बिना आकाश के चंद्रमा की क्या बिसात??बुध पैसा कहा गया है...अब अगर पैसे को विस्तार नहीं मिल पाये तो बरकत कैसे होगी..व्यापार अगर राहु का विस्तार हासिल नहीं करेगा तो पनपेगा कैसे??
सूर्य नाम है,यश है,पद है,सम्मान है,....लेकिन चमकेगा तो आकाश में ही न...आकाश राहु की श्रेणी में आता है...राहु सूर्य तो आपस में सामान्य गणना के अनुसार सूर्य ग्रहण बना लेंगे...किन्तु बिना आकाश के सूर्य की क्या औकात भला??
पाठक जानते हैं कि राहु व केतु आपस में सदा 180 डिग्री का अंतर बना कर कार्य करते हैं..राहु सोच है तो केतु उस सोच को अमली जामा पहनाने वाला धड़.....इसी सम्बन्ध को कायम रख ये मनुष्य के कर्मो को गति प्रदान करते हैं..
सम का अर्थ है समान,व बंध का अर्थ होता है बंधन...अर्थात जिस डोर से एक बंधा है उसके दूसरे छोर पर दूसरा..जोर दोनों पर बराबर लगने वाला है...आप सामने वाले से जितना कटना चाहेंगे,वो भी उसी गति से आपसे दूर भागेगा...आप किसी के प्रति द्वेष की भावना रखेंगे,वो नकारात्मक ऊर्जा उतनी तेजी से आपका नाश करेगी..आप जितना सम्मान दूसरे को देंगे उतना वो आपके लिए समाज से और अर्जित करेगा...
राहु को आप धनुष मानिए तो केतु उसमे लगा तीर है....जितना धनुष की कमान खिंचेगी उतना दूर तक तीर जाएगा...किन्तु ध्यान दीजिये कि कमान ने तीर को अपने से दूर फेंकने (असल में अपने स्वयं के कारक प्रभाव को बढ़ाने के लिए,अपनी शक्ति दिखाने के लिए इस्तेमाल किया ) के लिए तीर को अपनी तरफ अंदर खींचा था..अपना घनिष्ट ,अपना प्रेम का पात्र बनाने का प्रयास किया था (या कहें ऐसा आभास दिया था)..जितना अधिक से सम्बन्ध बना उतना दूर तक तीर गया...उतनी वाहवाही धनुष को मिली,उन्हें थामने वाले हाथों को मिली,किन्तु दूरी तो तीर ने तय करी थी बन्धु..उस तीर ने जिसका कोई नामलेवा भी नहीं होता..अपना सर्वस्व झोंक दिया तीर ने ,दूरी को अधिक से अधिक नापने के लिए अपनी अंतिम सांस तक समर्पित कर दी,ताकि उसे फेंकने वाले के समक्ष ब्रह्माण्ड शीश नवाये...उसके सामर्थ्य के गीत गाए...उसकी जयजयकार हो...इस प्रयत्न में तीर स्वयं के प्राणों का बलिदान कर देता है..क्यों कर देता है भला??ये प्रश्न आया होगा आपके दिमाग में???
जवाब सीधा है मित्रो...उस खिंचाव के लिए जिसके द्वारा धनुष ने तीर को अपने निकट खींचा था..उस प्रेम के लिए जिससे डोर ने अंतिम चुम्बन तीर को किया था...हाँ प्रेम ही तो है सब त्याग का कारण...
नशा करो मित्रो..सफलता का करो,किन्तु इस सफलता के नशे में उन्हें मत भूलो जो आपके लिए समर्पित हो गए.... राजनीति का करो....किन्तु इस नशे में उन संबंधों का नाश मत करो जो आपके पीछे आपके नाम पर अपना वोट डाल आये थे.. ज्ञान का करो किन्तु अपने ज्ञान के नशे में उस गुरु का अपमान न करो जिसने तुम्हारे मासूम हाथों में कलम पकड़ना सिखाया है...हुनर का करो ..किन्तु इस नशे में उस अनजान केतु का मत करो जो तुम्हारे एक एक करतब पर तालियां बजा बजा कर तुम्हारा उत्साह बढ़ा रहा था.. धन का नशा करो किन्तु उन मजदूरों को मत बिसराओ जिन्होंने तुम्हारे लिए अपना खून पसीना एक किया है...रूप का करो किन्तु उन माँ पिता को न भूलो जिनके कारण तुम्हारा अस्तित्व है..नशे को खुमारी बने रहने दो नाश मत बनने दो..
ग्रहों का अस्तित्व हमारे शरीर के भीतर ही है....अगर राहु को सही गति, सही दिशा मिलती है तो ये सब कुछ आपमें सामर्थ्य में करता है ,अन्यथा नाश करता है...बिना राहु के किसी ग्रह की कोई हैसियत नहीं, किन्तु बिना केतु राहु कुछ भी नहीं...
होली आने को है...राहु इस समय काल में अपने पूर्ण रूप से अवतरित हो जाता है..चारों ओर नशा है..खेतों में पकने को तैयार फसल मदमस्त होकर झूम रही है... नए फूल नए पत्ते अपने आगमन से पेड़ों को नशे में डुबो रहे हैं...फाल्गुन का नशा सम्पूर्ण सृष्टि को मदहोश किये देता है..बिद्यार्थी नयी कक्षाओं के नशे में हैं....व्यापारी साल के अंत (मार्च अंत को फाइनेंसियल इयर के रूप )में लाभ गिनने के नशे में हैं...आप भी मन का मैल त्यागकर उन्हें गले लगाइये जिनसे किसी कारण मनमुटाव चल रहा है....किसी कारण कोई द्वेष पल रहा है...सबसे अपने स्नेह का प्रमाण दीजिये..उन्हें अपनी ओर खींचिए...देखिये भविष्य में ये तीर आपके लिए कितनी दूर तक जाएगा ..आप स्वयं यकीन नहीं कर पाएंगे....लेख के प्रति आपकी बहुमूल्य राय अवश्य दें...मात्र लाइक कर देने से लगता है कि आप बिना पढ़े केवल संबंधों की खातिर फॉर्मेलिटी कर रहे हैं...खींचिए..शायद कभी मैं भी आपकी खातिर स्वयं को प्रस्तुत कर दूँ....स्नेह सहित... राजनीति,नौकरी,व्यापार ,जीवन में सफलता चाहते हैं ....तो राहु को जानिये.......
आज की आपाधापी के पीछे अगर ज्योतिषीय कारण जानने की कोशिश करें तो सबसे पहले और मुख्य रूप से राहु का रूप सामने आता है..आप जीवन के किसी भी क्षेत्र की कल्पना राहु के बिना नहीं कर सकते...राहु आकाश है....विस्तार है ,सीमायें है..व मुख्य रूप से नशा है..जूनून है .....किसी भी वस्तु का किसी भी चीज का नशा..धन का,रूप का,ताकत का,राजनीति का,गुस्से का,हवस का,दिखावे का....नशा नियंत्रित न किया जा सके तो नाश का रूप ले लेता है ..कर्म की अपनी एक गति होती है या कहें एक एक्शन होता है...एक्शन होता है तो जाहिर रूप से उसका एक रिएक्शन होता है..रिएक्शन केतु को माना जा सकता है..अतः सामान्य रूप से कहें तो केतु राहु द्वारा किये कर्म का रिजल्ट है....
मन को चंद्रमा माना गया है....अगर मन में विचार नहीं तो वो किसी काम का नहीं..विचार अगर हों भी और उन्हें
एक सीमा विशेष में बाँध दिया जाय तब भी उस मन की कोई हैसियत नहीं..अब सीमा तो राहु है...आम गणना के अनुसार तो राहु चंद्र ग्रहण योग बना लेंगे,फिर मन अर्थात चंद्रमा को अपनी गति, अपना विस्तार बिना राहु के कैसे हासिल होगा??ऊपर आपको बताया कि राहु आकाश है...फिर भला बिना आकाश के चंद्रमा की क्या बिसात??बुध पैसा कहा गया है...अब अगर पैसे को विस्तार नहीं मिल पाये तो बरकत कैसे होगी..व्यापार अगर राहु का विस्तार हासिल नहीं करेगा तो पनपेगा कैसे??
सूर्य नाम है,यश है,पद है,सम्मान है,....लेकिन चमकेगा तो आकाश में ही न...आकाश राहु की श्रेणी में आता है...राहु सूर्य तो आपस में सामान्य गणना के अनुसार सूर्य ग्रहण बना लेंगे...किन्तु बिना आकाश के सूर्य की क्या औकात भला??
पाठक जानते हैं कि राहु व केतु आपस में सदा 180 डिग्री का अंतर बना कर कार्य करते हैं..राहु सोच है तो केतु उस सोच को अमली जामा पहनाने वाला धड़.....इसी सम्बन्ध को कायम रख ये मनुष्य के कर्मो को गति प्रदान करते हैं..
सम का अर्थ है समान,व बंध का अर्थ होता है बंधन...अर्थात जिस डोर से एक बंधा है उसके दूसरे छोर पर दूसरा..जोर दोनों पर बराबर लगने वाला है...आप सामने वाले से जितना कटना चाहेंगे,वो भी उसी गति से आपसे दूर भागेगा...आप किसी के प्रति द्वेष की भावना रखेंगे,वो नकारात्मक ऊर्जा उतनी तेजी से आपका नाश करेगी..आप जितना सम्मान दूसरे को देंगे उतना वो आपके लिए समाज से और अर्जित करेगा...
राहु को आप धनुष मानिए तो केतु उसमे लगा तीर है....जितना धनुष की कमान खिंचेगी उतना दूर तक तीर जाएगा...किन्तु ध्यान दीजिये कि कमान ने तीर को अपने से दूर फेंकने (असल में अपने स्वयं के कारक प्रभाव को बढ़ाने के लिए,अपनी शक्ति दिखाने के लिए इस्तेमाल किया ) के लिए तीर को अपनी तरफ अंदर खींचा था..अपना घनिष्ट ,अपना प्रेम का पात्र बनाने का प्रयास किया था (या कहें ऐसा आभास दिया था)..जितना अधिक से सम्बन्ध बना उतना दूर तक तीर गया...उतनी वाहवाही धनुष को मिली,उन्हें थामने वाले हाथों को मिली,किन्तु दूरी तो तीर ने तय करी थी बन्धु..उस तीर ने जिसका कोई नामलेवा भी नहीं होता..अपना सर्वस्व झोंक दिया तीर ने ,दूरी को अधिक से अधिक नापने के लिए अपनी अंतिम सांस तक समर्पित कर दी,ताकि उसे फेंकने वाले के समक्ष ब्रह्माण्ड शीश नवाये...उसके सामर्थ्य के गीत गाए...उसकी जयजयकार हो...इस प्रयत्न में तीर स्वयं के प्राणों का बलिदान कर देता है..क्यों कर देता है भला??ये प्रश्न आया होगा आपके दिमाग में???
जवाब सीधा है मित्रो...उस खिंचाव के लिए जिसके द्वारा धनुष ने तीर को अपने निकट खींचा था..उस प्रेम के लिए जिससे डोर ने अंतिम चुम्बन तीर को किया था...हाँ प्रेम ही तो है सब त्याग का कारण...
नशा करो मित्रो..सफलता का करो,किन्तु इस सफलता के नशे में उन्हें मत भूलो जो आपके लिए समर्पित हो गए.... राजनीति का करो....किन्तु इस नशे में उन संबंधों का नाश मत करो जो आपके पीछे आपके नाम पर अपना वोट डाल आये थे.. ज्ञान का करो किन्तु अपने ज्ञान के नशे में उस गुरु का अपमान न करो जिसने तुम्हारे मासूम हाथों में कलम पकड़ना सिखाया है...हुनर का करो ..किन्तु इस नशे में उस अनजान केतु का मत करो जो तुम्हारे एक एक करतब पर तालियां बजा बजा कर तुम्हारा उत्साह बढ़ा रहा था.. धन का नशा करो किन्तु उन मजदूरों को मत बिसराओ जिन्होंने तुम्हारे लिए अपना खून पसीना एक किया है...रूप का करो किन्तु उन माँ पिता को न भूलो जिनके कारण तुम्हारा अस्तित्व है..नशे को खुमारी बने रहने दो नाश मत बनने दो..
ग्रहों का अस्तित्व हमारे शरीर के भीतर ही है....अगर राहु को सही गति, सही दिशा मिलती है तो ये सब कुछ आपमें सामर्थ्य में करता है ,अन्यथा नाश करता है...बिना राहु के किसी ग्रह की कोई हैसियत नहीं, किन्तु बिना केतु राहु कुछ भी नहीं...
होली आने को है...राहु इस समय काल में अपने पूर्ण रूप से अवतरित हो जाता है..चारों ओर नशा है..खेतों में पकने को तैयार फसल मदमस्त होकर झूम रही है... नए फूल नए पत्ते अपने आगमन से पेड़ों को नशे में डुबो रहे हैं...फाल्गुन का नशा सम्पूर्ण सृष्टि को मदहोश किये देता है..बिद्यार्थी नयी कक्षाओं के नशे में हैं....व्यापारी साल के अंत (मार्च अंत को फाइनेंसियल इयर के रूप )में लाभ गिनने के नशे में हैं...आप भी मन का मैल त्यागकर उन्हें गले लगाइये जिनसे किसी कारण मनमुटाव चल रहा है....किसी कारण कोई द्वेष पल रहा है...सबसे अपने स्नेह का प्रमाण दीजिये..उन्हें अपनी ओर खींचिए...देखिये भविष्य में ये तीर आपके लिए कितनी दूर तक जाएगा ..आप स्वयं यकीन नहीं कर पाएंगे....लेख के प्रति आपकी बहुमूल्य राय अवश्य दें...मात्र लाइक कर देने से लगता है कि आप बिना पढ़े केवल संबंधों की खातिर फॉर्मेलिटी कर रहे हैं...खींचिए..शायद कभी मैं भी आपकी खातिर स्वयं को प्रस्तुत कर दूँ....स्नेह सहित...