(कुछ दोहे जो मनुष्य जीवन अनुकरणीय हैं,आपको भी कुछ याद आएं तो बाटें हमारे साथ ) ... ..... ....
मान सहित विष पी के शम्भू भयो जगदीश
बिना मान अमृत पियो ,राहू कटायो शीश
रहिमन बात अगम्य की ,कहन सुनन की नाहिं
जे जानत ते कहत नहीं ,कहत ते जानत नाही
जहाँ न जाके गुण लहें ,तहा न ताको ठाँव
धोबी बस के क्या करे ,दिगंबर के गाँव
सबहु सहायक सबल के , कोउ न निबल सहाउ
पवन जगावत आग तें अरु दीपक देत बुझाउ
मान सहित विष पी के शम्भू भयो जगदीश
बिना मान अमृत पियो ,राहू कटायो शीश
रहिमन बात अगम्य की ,कहन सुनन की नाहिं
जे जानत ते कहत नहीं ,कहत ते जानत नाही
जहाँ न जाके गुण लहें ,तहा न ताको ठाँव
धोबी बस के क्या करे ,दिगंबर के गाँव
सबहु सहायक सबल के , कोउ न निबल सहाउ
पवन जगावत आग तें अरु दीपक देत बुझाउ