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अपने ब्लॉग व वेब साइट की जरिये प्राप्त होने वाले प्रश्नो में सर्वाधिक प्रश्न आजकल वैवाहिक सम्बंधित प्राप्त हो रहे हैं मुझे … सगाई होकर टूट गई है ,विवाह होने के बाद सम्बन्ध ठीक नहीं चल रहे हैं ,विचार नहीं मिल पा रहे ,तलाक की नौबत आ पहुंची है आदि आदि। हमारे पंडित जी ने तो कुंडली बहुत अच्छी जुड़ाई थी ,गुण भी काफी मिल रहे थे,फिर अचानक ऐसा क्यों हो रहा है /क्या कुंडली मिलान उचित प्रकार से नहीं हुआ ?चारों ओर से इसी प्रकार के प्रश्नो की बौछार कभी कभी हो जाती है। विश्वास कीजिये प्रतिदिन कम से कम २५ प्रश्न इसी विषय पर हो जाते हैं। आइये आज बताने का प्रयास करता हूँ कि आखिर इसकी जड़ में क्या समस्या है ?किन कारणों से ऐसा हो रहा है ?
वास्तव में पारम्परिक ज्योतिष व सामान्य कर्म काण्ड को आपस में घाल- मेल कर देना ब्राह्मण व यजमान दोनों के लिए असुविधा का कारण बन रहा है। वैदिक साहित्य ,कर्म काण्ड व ज्योतिष स्पष्ट रूप से भिन्न विषय हैं। चन्द्रमा के एक नक्षत्र मात्र पर दृष्टि डालकर ,तुरंत पंचांग से वर - वधु गुण मेलापक सारिणी खोल देना व २५ गुण मिल गए ,२८ गुण मिल गए ये शोर मचाकर तुरंत विवाह तय कर देना इसका मूल कारण है। जानकार ज्योतिषी जानते हैं कि इस प्रक्रिया द्वारा कुंडली मिलान में डेढ़ से दो मिनट का समय मात्र ही लगता है।कितनी हैरानी का विषय है कि शर्ट का रंग पसंद करने में आपको आधा घंटा लग जाता है ,एक साड़ी पसंद करने में एक स्त्री चालीस दुकानो की ख़ाक छान कर आने के बाद भी पसंदीदा साड़ी को एक घंटे उलट पलट देखती है ,तब जाकर निर्णय पर पहुंचती है और विडम्बना देखिये कि विवाह का निर्णय मात्र डेढ़ मिनट में हो रहा है। भला पूछा जाय उन पंडित जी से कि दो मिनट में आपने लग्न कुंडली देखकर संतान सम्बन्धी विषय पर विचार कर लिया है ,इसके लिए उपलब्ध सप्तमांश कुंडली पर (दोनों की)दृष्टि डाल दी है… विवाह के लिए लग्न कुंडली से कई गुणा अधिक महत्वपूर्ण नवमांश कुंडली पर भी विचार कर लिया है ?? आजकल की परिपाटी में अमूमन देखने में आ रहा है कि षोढशवर्ग कुंडलियों का निर्माण नहीं हो रहा है ,ऐसे में ज्योतिषी के पास मात्र लग्न व चन्द्र कुंडली ही उपलब्ध होती है। ज्योतिषी अगर नए जमाने के उपकरणों से लैस है तो भी नवमांश व सप्तमांश बनाने में दस मिनट लगने ही वाले हैं व अगर वह मात्र पंचांग लेकर बैठा है तो ये घंटों का काम तो है ही। अतः ऐसे में बिना पूर्ण विचार किये ,किया गया मिलान कितना प्रमाणिक है ये विचार का प्रश्न है।
कहना व्यर्थ है कि आजकल के नौशिखिया पंडितों की जमात में आधे ऎसे भी हैं कि जिन्हे योनि (जिससे कि चार गुणों का मिलान किया जाता है ) के विषय में सोचने का ख्याल तक मन में नहीं आता ,जबकि दो अनजान प्राणियों के एक छत के नीचे आने के लिए ,एक दूसरे के निकट आने के लिए ,स्वयं को एक दूसरे की मौजूदगी में सहज पाने के लिए,सर्वाधिक रूप से महत्वपूर्ण यही गुण होता है। १२ राशियों के २७ नक्षत्रों को ऋषियों द्वारा उनके स्वभाव के आधार पर क्रमशः गरुड़ ,मार्जार ,सिंह ,स्वान ,सर्प ,मूषक ,मृग व मेढ़ा, इन आठ वर्गों में विभाजित किया गया है। जहाँ से स्वयं से पंचम को शत्रु व चतुर्थ को मित्र माना जाता है। मृग की नैसर्गिक प्रवृत्ति होती है कि सिंह को देखते ही वह स्वयं को असुरक्षित महसूस करता है। गिद्ध के साथ सांप मित्रता चल पाएगी ये असंभव है।
ऐसे ही जातक सर्वाधिक आकर्षण सदा स्वयं के विपरीत व्यक्तित्व या कहें शत्रु राशि के लिए करता है। स्वयं के मित्र राशि अथवा स्व राशि के लिए उसका रिएक्शन नेगेटिव ही होता है। अमूमन पहली नजर में प्यार अथवा किसी के प्रति आकर्षण सदा आपसे विपरीत व्यक्तित्व के लिए ही महसूस होता है किन्तु यकीन मानिए ये क्षणिक होता है। चंद मुलाकातों के पश्चात ही सारा खुमार उतरने लगता है। आखिर आप आकर्षित ही इसलिए हुए थे क्योंकि आपने अपने से इतर कुछ नया देखा था ,वो देखा था जो आपके व्यक्तित्व में नहीं था। अतः आकर्षण लाजिमी था। किन्तु आखिर वो आपके व्यक्तित्व के विपरीत था तो आप उसके साथ सहज नहीं रह पाये ,परिणामस्वरूप अलगाव होता है। योनियों का यही दोष कई संबंधों को खिलने से पूर्व ही मुरझा देता है।
यहीं से एक अन्य महत्वपूर्ण सूत्र ये होता है कि भले ही कितने गुणों का मिलान पाया जाय किन्तु अपने से २३ वें नक्षत्र को वैनाशिक नक्षत्र माना जाता है। इसमें मिलान नहीं करना चाहिए। ये सूत्र कई नए नए सिर मुंडवाए पंडितों के सिर के ऊपर से निकलता हुआ देखा है मैंने।
ग्रह मैत्री को भी इसी प्रकार अष्टकूट मिलान में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त होता है। किन्तु भ्रमवश अधिकतर पंडितों को मैंने राशि के स्वामियों द्वारा मैत्री चक्र का मिलान करते पाया है ,जो क़ि पूर्णरूपेण अवैज्ञानिक है। हम जानते हैं कि ३० कोण की एक राशि १३ अंश व २० कला के सवा दो नक्षत्रों के (इसी क्रम में नौ चरणो से )मिलन का परिणाम है। ऐसे में कई बार हमें एक ही राशि विशेष को आपरेट करवाने वाले चार चार ग्रह मिलने लगते हैं। ऐसे में राशि स्वामी मात्र को ही मुख्य ग्रह मान लेना कहाँ की समझदारी है जबकि अष्टकूट मिलान में तुम स्वयं नक्षत्र को आधार मान कर चल रहे हो भैय्या ? उदाहरण के लिए आप रोहिणी नक्षत्र की कन्या व आद्रा नक्षत्र के वर का कुंडली मिलान करें तो लगभग २३ गुणों का मिलान होता है। परम्परागत रूप से वृष के स्वामी शुक्र व मिथुन के बुध नैसर्गिक मैत्री चक्र में परम मित्रता को प्राप्त होते हैं व इसी कारण मैत्री सूत्र के आधार पर मित्र द्विदाशक माने जाते हैं व भकूट दोष का निवारण स्वतः ही कर देते हैं। बाकी गण व नाड़ी यहाँ उचित प्रकार से मिलती है। किन्तु हम भूल जाते हैं कि नक्षत्र स्वामियों में रोहिणी को भोगने का अधिकार चन्द्रमा के पास है वहीँ दूसरी ओर आद्रा का स्वामित्व राहु के पास है ,अब अपने मिलन मात्र से ग्रहण का निर्माण कर देने वाले ये दोनों ग्रह ,कुंडली मिलान में पास होने के बावजूद कैसे जीवन में अपने विचारों के मध्य सामंजस्य लाएंगे ,ये विचारणीय है ,(आशा है प्रबुद्ध पाठक सहमत होंगे )
दोनों कुंडलियों में गुरु इस विषय में मुख्य किरदार होता है …ऐसे में दोनों ही कुंडलियों में गुरु का प्रभावित होना शुभ रिज़ल्ट नहीं देता। शुक्र मंगल की युति जातक को शौक़ीन मिजाज बना देती है ,ऐसे में किसी एक कुंडली में ये समस्या हो व लग्नादि को गुरु आदि शुभ ग्रह का सपोर्ट न मिल रहा हो तो नेगेटिव परिणाम प्राप्त होते हैं। इसके अलावा बहुत से पहलु हैं जो कुंडली मिलान में ध्यान दिए जाने आवश्यक हैं। दो मिनट में मैगी तैयार हो सकती है पाठको किन्तु जीवन के निर्णय नहीं।(मुझे स्वयं कुंडली मिलान में एक घंटा लग जाता है ) अतः अगली बार आप अपने अथवा अपने किसी प्रिय के वैवाहिक जीवन का निर्णय ले रहे हैं तो कृपया योग्य ज्योतिषी की सलाह लेकर आगे बढ़ें। पाठ के विषय में आपकी अमूल्य राय के इन्तजार में. ....
आपसे प्रार्थना है कि कृपया लेख में दिखने वाले विज्ञापन पर अवश्य क्लिक करें ,इससे प्राप्त आय मेरे द्वारा धर्मार्थ कार्यों पर ही खर्च होती है। अतः आप भी पुण्य के भागीदार बने …
अपने ब्लॉग व वेब साइट की जरिये प्राप्त होने वाले प्रश्नो में सर्वाधिक प्रश्न आजकल वैवाहिक सम्बंधित प्राप्त हो रहे हैं मुझे … सगाई होकर टूट गई है ,विवाह होने के बाद सम्बन्ध ठीक नहीं चल रहे हैं ,विचार नहीं मिल पा रहे ,तलाक की नौबत आ पहुंची है आदि आदि। हमारे पंडित जी ने तो कुंडली बहुत अच्छी जुड़ाई थी ,गुण भी काफी मिल रहे थे,फिर अचानक ऐसा क्यों हो रहा है /क्या कुंडली मिलान उचित प्रकार से नहीं हुआ ?चारों ओर से इसी प्रकार के प्रश्नो की बौछार कभी कभी हो जाती है। विश्वास कीजिये प्रतिदिन कम से कम २५ प्रश्न इसी विषय पर हो जाते हैं। आइये आज बताने का प्रयास करता हूँ कि आखिर इसकी जड़ में क्या समस्या है ?किन कारणों से ऐसा हो रहा है ?
वास्तव में पारम्परिक ज्योतिष व सामान्य कर्म काण्ड को आपस में घाल- मेल कर देना ब्राह्मण व यजमान दोनों के लिए असुविधा का कारण बन रहा है। वैदिक साहित्य ,कर्म काण्ड व ज्योतिष स्पष्ट रूप से भिन्न विषय हैं। चन्द्रमा के एक नक्षत्र मात्र पर दृष्टि डालकर ,तुरंत पंचांग से वर - वधु गुण मेलापक सारिणी खोल देना व २५ गुण मिल गए ,२८ गुण मिल गए ये शोर मचाकर तुरंत विवाह तय कर देना इसका मूल कारण है। जानकार ज्योतिषी जानते हैं कि इस प्रक्रिया द्वारा कुंडली मिलान में डेढ़ से दो मिनट का समय मात्र ही लगता है।कितनी हैरानी का विषय है कि शर्ट का रंग पसंद करने में आपको आधा घंटा लग जाता है ,एक साड़ी पसंद करने में एक स्त्री चालीस दुकानो की ख़ाक छान कर आने के बाद भी पसंदीदा साड़ी को एक घंटे उलट पलट देखती है ,तब जाकर निर्णय पर पहुंचती है और विडम्बना देखिये कि विवाह का निर्णय मात्र डेढ़ मिनट में हो रहा है। भला पूछा जाय उन पंडित जी से कि दो मिनट में आपने लग्न कुंडली देखकर संतान सम्बन्धी विषय पर विचार कर लिया है ,इसके लिए उपलब्ध सप्तमांश कुंडली पर (दोनों की)दृष्टि डाल दी है… विवाह के लिए लग्न कुंडली से कई गुणा अधिक महत्वपूर्ण नवमांश कुंडली पर भी विचार कर लिया है ?? आजकल की परिपाटी में अमूमन देखने में आ रहा है कि षोढशवर्ग कुंडलियों का निर्माण नहीं हो रहा है ,ऐसे में ज्योतिषी के पास मात्र लग्न व चन्द्र कुंडली ही उपलब्ध होती है। ज्योतिषी अगर नए जमाने के उपकरणों से लैस है तो भी नवमांश व सप्तमांश बनाने में दस मिनट लगने ही वाले हैं व अगर वह मात्र पंचांग लेकर बैठा है तो ये घंटों का काम तो है ही। अतः ऐसे में बिना पूर्ण विचार किये ,किया गया मिलान कितना प्रमाणिक है ये विचार का प्रश्न है।
कहना व्यर्थ है कि आजकल के नौशिखिया पंडितों की जमात में आधे ऎसे भी हैं कि जिन्हे योनि (जिससे कि चार गुणों का मिलान किया जाता है ) के विषय में सोचने का ख्याल तक मन में नहीं आता ,जबकि दो अनजान प्राणियों के एक छत के नीचे आने के लिए ,एक दूसरे के निकट आने के लिए ,स्वयं को एक दूसरे की मौजूदगी में सहज पाने के लिए,सर्वाधिक रूप से महत्वपूर्ण यही गुण होता है। १२ राशियों के २७ नक्षत्रों को ऋषियों द्वारा उनके स्वभाव के आधार पर क्रमशः गरुड़ ,मार्जार ,सिंह ,स्वान ,सर्प ,मूषक ,मृग व मेढ़ा, इन आठ वर्गों में विभाजित किया गया है। जहाँ से स्वयं से पंचम को शत्रु व चतुर्थ को मित्र माना जाता है। मृग की नैसर्गिक प्रवृत्ति होती है कि सिंह को देखते ही वह स्वयं को असुरक्षित महसूस करता है। गिद्ध के साथ सांप मित्रता चल पाएगी ये असंभव है।
ऐसे ही जातक सर्वाधिक आकर्षण सदा स्वयं के विपरीत व्यक्तित्व या कहें शत्रु राशि के लिए करता है। स्वयं के मित्र राशि अथवा स्व राशि के लिए उसका रिएक्शन नेगेटिव ही होता है। अमूमन पहली नजर में प्यार अथवा किसी के प्रति आकर्षण सदा आपसे विपरीत व्यक्तित्व के लिए ही महसूस होता है किन्तु यकीन मानिए ये क्षणिक होता है। चंद मुलाकातों के पश्चात ही सारा खुमार उतरने लगता है। आखिर आप आकर्षित ही इसलिए हुए थे क्योंकि आपने अपने से इतर कुछ नया देखा था ,वो देखा था जो आपके व्यक्तित्व में नहीं था। अतः आकर्षण लाजिमी था। किन्तु आखिर वो आपके व्यक्तित्व के विपरीत था तो आप उसके साथ सहज नहीं रह पाये ,परिणामस्वरूप अलगाव होता है। योनियों का यही दोष कई संबंधों को खिलने से पूर्व ही मुरझा देता है।
यहीं से एक अन्य महत्वपूर्ण सूत्र ये होता है कि भले ही कितने गुणों का मिलान पाया जाय किन्तु अपने से २३ वें नक्षत्र को वैनाशिक नक्षत्र माना जाता है। इसमें मिलान नहीं करना चाहिए। ये सूत्र कई नए नए सिर मुंडवाए पंडितों के सिर के ऊपर से निकलता हुआ देखा है मैंने।
ग्रह मैत्री को भी इसी प्रकार अष्टकूट मिलान में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त होता है। किन्तु भ्रमवश अधिकतर पंडितों को मैंने राशि के स्वामियों द्वारा मैत्री चक्र का मिलान करते पाया है ,जो क़ि पूर्णरूपेण अवैज्ञानिक है। हम जानते हैं कि ३० कोण की एक राशि १३ अंश व २० कला के सवा दो नक्षत्रों के (इसी क्रम में नौ चरणो से )मिलन का परिणाम है। ऐसे में कई बार हमें एक ही राशि विशेष को आपरेट करवाने वाले चार चार ग्रह मिलने लगते हैं। ऐसे में राशि स्वामी मात्र को ही मुख्य ग्रह मान लेना कहाँ की समझदारी है जबकि अष्टकूट मिलान में तुम स्वयं नक्षत्र को आधार मान कर चल रहे हो भैय्या ? उदाहरण के लिए आप रोहिणी नक्षत्र की कन्या व आद्रा नक्षत्र के वर का कुंडली मिलान करें तो लगभग २३ गुणों का मिलान होता है। परम्परागत रूप से वृष के स्वामी शुक्र व मिथुन के बुध नैसर्गिक मैत्री चक्र में परम मित्रता को प्राप्त होते हैं व इसी कारण मैत्री सूत्र के आधार पर मित्र द्विदाशक माने जाते हैं व भकूट दोष का निवारण स्वतः ही कर देते हैं। बाकी गण व नाड़ी यहाँ उचित प्रकार से मिलती है। किन्तु हम भूल जाते हैं कि नक्षत्र स्वामियों में रोहिणी को भोगने का अधिकार चन्द्रमा के पास है वहीँ दूसरी ओर आद्रा का स्वामित्व राहु के पास है ,अब अपने मिलन मात्र से ग्रहण का निर्माण कर देने वाले ये दोनों ग्रह ,कुंडली मिलान में पास होने के बावजूद कैसे जीवन में अपने विचारों के मध्य सामंजस्य लाएंगे ,ये विचारणीय है ,(आशा है प्रबुद्ध पाठक सहमत होंगे )
दोनों कुंडलियों में गुरु इस विषय में मुख्य किरदार होता है …ऐसे में दोनों ही कुंडलियों में गुरु का प्रभावित होना शुभ रिज़ल्ट नहीं देता। शुक्र मंगल की युति जातक को शौक़ीन मिजाज बना देती है ,ऐसे में किसी एक कुंडली में ये समस्या हो व लग्नादि को गुरु आदि शुभ ग्रह का सपोर्ट न मिल रहा हो तो नेगेटिव परिणाम प्राप्त होते हैं। इसके अलावा बहुत से पहलु हैं जो कुंडली मिलान में ध्यान दिए जाने आवश्यक हैं। दो मिनट में मैगी तैयार हो सकती है पाठको किन्तु जीवन के निर्णय नहीं।(मुझे स्वयं कुंडली मिलान में एक घंटा लग जाता है ) अतः अगली बार आप अपने अथवा अपने किसी प्रिय के वैवाहिक जीवन का निर्णय ले रहे हैं तो कृपया योग्य ज्योतिषी की सलाह लेकर आगे बढ़ें। पाठ के विषय में आपकी अमूल्य राय के इन्तजार में. ....
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इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंGuruji prnam, mera dob-22-12-1967, time-2:30, place-basundhra(etah) (u.p.) guruji merit rahu ki mhadsha 27-1-2015 se start ho rhi he,me bhut bhybheet noon. Mere bare me kuch btayea.mere pati, bachho me bare me bhi btaeye. Dhanyvad.
जवाब देंहटाएंभयभीत होने की आवश्यकता नहीं है ,आप सोमवार के व्रत करें व शिव का अभिषेक करें। गरीब बच्चों को दूध का दान दें
जवाब देंहटाएंGuruji apko bhut bhut dhanyvad .apne hint kiya he rahu se bhybhit na hone ke liyea. Guruji please mere bachhon aur pati ke bare me bhi kuch btaea.apki at I krpa hogi. Me but chintit rhti hoon.
जवाब देंहटाएंGuruji Parnam.... mera naam gaurav dob 21-02-1993 time 11:45 am place jaipur (rajasthan).. ladki ka nam shipra dob 26-09-1992 time 10:50 am place CHOMUN (Jaipur) (rajasthan)...
जवाब देंहटाएंKripya milan kar uchit margdarshan kare.... aaapki kripa ke injaar me...
बहुत आवश्यक न हो तो इस सम्बन्ध पक्ष में मैं नहीं हूँ ,आवश्यक हो तो योग्य ब्राह्मणो द्वारा उपचार करा कर आगे विवाह कर सकते हैं।
हटाएंhighly scientific article.
जवाब देंहटाएंआभार आपका दीपक जी
हटाएंलेख की तारीफ़ के लिए सबद नही हैं फिर भी बहुत धन्यबाद
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