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भ्रमण चक्र का चतुर्थ लग्न कर्क, विप्र वर्ण, स्त्री लिंगी ,जल तत्वीय एक शुभ लग्न है.ज्योतिष शास्त्र में इसे राजयोग लग्न माना गया है.हो भी क्यों नहीं चारों केंद्र स्थानों में किसी न किसी ग्रह की उच्च राशि है.और सबसे बड़ी बात ये की ये मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जन्म लग्न है.धरती के सर्वाधिक निकट व सर्वाधिक प्रभावित करने वाले चंद्रमा के आधिपत्य का लग्न है ये.अधिकतर राजनीति में उच्च स्थानों पर सुशोभित नेताओं का भी यही लग्न देखा गया है ये लग्न.उदाहरण के लिए इंदिरा जी,जवाहर जी ,वर्तमान में सोनिया जी आदि कई नेता हैं.
कर्क लग्न का सारा हिसाब किताब लगभग चंद्रमा व भूमि पुत्र मंगल के इर्द गिर्द घूमता है.कैसी विडंबना है की इस लग्न में राजयोग बनाने वाले मंगल की ही ये नीच राशि मानी गयी है.तमाम सिद्धांतों के बाद भी लग्न में मंगल नीच ही तो माना जाता है वो भी मित्र होकर,इससे नजर फेरना संभव नहीं.अपने दैनिक जीवन में राम की ही भांति कर्क लग्न के जातकों को मैंने 90%बार वनवास काटते देखा है.अब आप ये न कहें कि पंडित जी अब तो वन ही नहीं रहे.वनवास का भावार्थ कई रूपों में देखा जा सकता है.
यदि कर्क पर राम का प्रभाव मान लिया जाय तो ये भी मानना होगा की बिना हनुमान के कैसे राम.राम के जीवन में हनुमान ही संकटमोचन थे,स्वाभाविक रूप से कर्क में मंगल ही योगकारक होता है.किन्तु हनुमान तो शापित थे,बिना गुरु (जामवंत)के उन्हें अपनी शक्तियों का ध्यान कहाँ?ठीक अंदाजा लगाया आपने.जिस लग्न में मंगल नीच,देवगुरु वहां उच्च.लग्न का गुरु उच्च होकर हँसक योग व केंद्र त्रिकोण योग बनाता है.
सामान्यतः मंगल की दशा का इन्तजार तो इस लग्न को करना ही होता है.इस बीच जो अपने हनुमान को पहले ही ढून्ढ पाए ,वो पहले सीता(सफलता) को ढूँढ लेते हैं.हनुमान अर्थात हनु+मान,जिसने अपने मान का हनन करना सीखा.हाँ जी,.....आम जनों के मुकाबले इन जातकों में एटिटीयूड कुछ अधिक होता है.खुद को अधिक समझदार मानने का गुण.भावनाओं की अधिकता.तभी तो मंगल मित्र होकर भी कर्क में नीच है.भला भावनाओं में भरा हुआ जोश शुभ रिसल्ट कैसे दे सकता है.भावनाओं को तो विवेक चाहिए,जो सोच समझ कर उचित निर्णय कर सके.तभी तो गुरु उच्च हैं यहाँ पर.
योगकारक मंगल यदि उच्च होता है तो दाम्पत्य पर दोष करता है।रुचक योग बनाता है तो पंचम शिक्षा से षडास्टक बनाता है.शिक्षा का किसी अन्य विषय में और जीवन में रोजगार का प्रयास अन्य क्षेत्र में.संघर्ष बढता ही जाता है..इसीलिए तो शापित लग्न मानता हूँ इसे.इस लग्न में कार्य भाव का अधिपति भौम ,आय का शुक्र ,धन का सूर्य व भाग्य का अधिपति देव गुरु होते हैं। यहाँ शुक्र को छोड़कर बाकी तीनो ग्रह आपस में मित्र हैं तो ऐसे में जो भी ग्रह अधिक शक्तिशाली हो ,उससे सम्बंधित कार्य व्यवसाय उचित फल प्रदान करता है। मंगल का प्रभाव दशम भाव पर जातक को पावर देता है ,इसी समीकरण में यदि सूर्य व गुरु भी दशम को बल दे रहे हों तो जातक सरकारी क्षेत्र में उच्च पदस्थ हो सकता है। शनि या राहु दशम भाव या दशमेश को प्रभावित कर दें तो नौकरी आदि का स्तर कुछ हल्का हो जाता है
दक्षिण की यात्राएँ यहाँ सहायक होती हैं.दक्षिण बार बार संकेत करता है.जो समझ गया वो आगे बढ़ता जाता है.राम को दक्षिण की यात्राओं ने ही राम बनाया,वरना मात्र अवध के नायक थे.जरा से योग अन्य भी सहायक हों तो विदेश यात्राओं के सर्वाधिक योग इसी लग्न में बनते हैं.
धन की बात करें तो धनेश उच्च होगा तो अपने भाग्य भाव में होगा,आयेश उच्च होगा तो अपने से आय भाव में होगा..यानि दोनों ओर से मजबूत.तभी तो राजाओं का लग्न कहा गया है.बुध द्वादश व पराक्रम भाव का अधिपति है.सूत्र कहता है की ऐसे में बुध जरा भू मजबूत हो तो जातक के पराक्रम का लाभ बाहरी लोग लेते हैं.वहीँ भाग्येश उच्च होगा तो अपनी मूलत्रिकोण राशि से अष्टम में होगा..स्वाभाविक रूप से अपना भला न सोच कर दूसरों के हित में अपना सर्वस्व होम करना.इन्ही गुणों ने राम को पूज्य बनाया,किन्तु आज के परिवेश में यही गुण दुःख का कारण बनते हैं.सोच के देखें.बड़ा रोचक लग्न है व मुझे स्वयं विश्लेषण हेतु कर्क सर्वाधिक प्रिय लग्न है.एक बात और बताऊँ?????...मानेगे....? खूब आजमाया है मैंने.....कहूँ?90% मामलों में ऐसे जातकों का वैवाहिक जीवन सुखी नहीं होता.10% को अपवाद स्वरुप छोड़ देता हूँ किन्तु पाठक खुद सोचें की 90%आंकड़ा बहुत अधिक होता है.शनि यदि किसी भी प्रकार से दशम भाव को प्रभावित कर रहे हों तो सामान्यतः स्थिति संसार की दृष्टि में तो आदर्श रहती है किन्तु भीतर ही भीतर जातक दुखी रहता है। स्त्री स्वभाव की थोड़ा तेज हो सकती है किन्तु जातक उसके भाग्य से बहुत कुछ प्राप्त करता है इसमें कोई संशय नही. शनि के साथ मंगल अथवा गुरु की युति इस मामले में थोड़ा राहत देती है। अकेले देव गुरु यदि सप्तम में हो जाएँ तो दाम्पत्य भाव बिखरने लगता है। शनि के साथ बुध की युति शारीरिक दुर्बलता उत्पन्न करती है और अगर ये युति अष्टम भाव में हो तो हालात अधिक चिंता जनक होते हैं। ये लग्न वैसे भी अल्प संतान का कारक है अतः ऐसे में कुंडली मिलान के समय संतान भाव पर विशेष ध्यान दिया जाना आवश्यक है।
स्त्री की कुंडली में यदि शनि पंचम भाव में हो तो उसका जीवनसाथी अध्यात्म व दर्शन की और अधिक ध्यान देता है जिस कारण परिवार के लिए समय काम देता है. अकेला शनि अष्टम भाव में पति को दीर्घायु किन्तु रोगी शरीर का स्वामी कर सकता है। सप्तम भाव में अकेला गुरु दाम्पत्य भाव के लिए उलझने बढ़ाता है।
कुछ सामान्य से उपाय इस लग्न में काफी असरदार सिद्ध होते हैं.भविष्य में उन पर भी चर्चा करेंगे.लेख के प्रति आपकी अमूल्य राय की प्रतीक्षा में .....
( आपसे प्रार्थना है कि कृपया लेख में दिखने वाले विज्ञापन पर अवश्य क्लिक करें ,इससे प्राप्त आय मेरे द्वारा धर्मार्थ कार्यों पर ही खर्च होती है। अतः आप भी पुण्य के भागीदार बने )
भ्रमण चक्र का चतुर्थ लग्न कर्क, विप्र वर्ण, स्त्री लिंगी ,जल तत्वीय एक शुभ लग्न है.ज्योतिष शास्त्र में इसे राजयोग लग्न माना गया है.हो भी क्यों नहीं चारों केंद्र स्थानों में किसी न किसी ग्रह की उच्च राशि है.और सबसे बड़ी बात ये की ये मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जन्म लग्न है.धरती के सर्वाधिक निकट व सर्वाधिक प्रभावित करने वाले चंद्रमा के आधिपत्य का लग्न है ये.अधिकतर राजनीति में उच्च स्थानों पर सुशोभित नेताओं का भी यही लग्न देखा गया है ये लग्न.उदाहरण के लिए इंदिरा जी,जवाहर जी ,वर्तमान में सोनिया जी आदि कई नेता हैं.
कर्क लग्न का सारा हिसाब किताब लगभग चंद्रमा व भूमि पुत्र मंगल के इर्द गिर्द घूमता है.कैसी विडंबना है की इस लग्न में राजयोग बनाने वाले मंगल की ही ये नीच राशि मानी गयी है.तमाम सिद्धांतों के बाद भी लग्न में मंगल नीच ही तो माना जाता है वो भी मित्र होकर,इससे नजर फेरना संभव नहीं.अपने दैनिक जीवन में राम की ही भांति कर्क लग्न के जातकों को मैंने 90%बार वनवास काटते देखा है.अब आप ये न कहें कि पंडित जी अब तो वन ही नहीं रहे.वनवास का भावार्थ कई रूपों में देखा जा सकता है.
यदि कर्क पर राम का प्रभाव मान लिया जाय तो ये भी मानना होगा की बिना हनुमान के कैसे राम.राम के जीवन में हनुमान ही संकटमोचन थे,स्वाभाविक रूप से कर्क में मंगल ही योगकारक होता है.किन्तु हनुमान तो शापित थे,बिना गुरु (जामवंत)के उन्हें अपनी शक्तियों का ध्यान कहाँ?ठीक अंदाजा लगाया आपने.जिस लग्न में मंगल नीच,देवगुरु वहां उच्च.लग्न का गुरु उच्च होकर हँसक योग व केंद्र त्रिकोण योग बनाता है.
सामान्यतः मंगल की दशा का इन्तजार तो इस लग्न को करना ही होता है.इस बीच जो अपने हनुमान को पहले ही ढून्ढ पाए ,वो पहले सीता(सफलता) को ढूँढ लेते हैं.हनुमान अर्थात हनु+मान,जिसने अपने मान का हनन करना सीखा.हाँ जी,.....आम जनों के मुकाबले इन जातकों में एटिटीयूड कुछ अधिक होता है.खुद को अधिक समझदार मानने का गुण.भावनाओं की अधिकता.तभी तो मंगल मित्र होकर भी कर्क में नीच है.भला भावनाओं में भरा हुआ जोश शुभ रिसल्ट कैसे दे सकता है.भावनाओं को तो विवेक चाहिए,जो सोच समझ कर उचित निर्णय कर सके.तभी तो गुरु उच्च हैं यहाँ पर.
योगकारक मंगल यदि उच्च होता है तो दाम्पत्य पर दोष करता है।रुचक योग बनाता है तो पंचम शिक्षा से षडास्टक बनाता है.शिक्षा का किसी अन्य विषय में और जीवन में रोजगार का प्रयास अन्य क्षेत्र में.संघर्ष बढता ही जाता है..इसीलिए तो शापित लग्न मानता हूँ इसे.इस लग्न में कार्य भाव का अधिपति भौम ,आय का शुक्र ,धन का सूर्य व भाग्य का अधिपति देव गुरु होते हैं। यहाँ शुक्र को छोड़कर बाकी तीनो ग्रह आपस में मित्र हैं तो ऐसे में जो भी ग्रह अधिक शक्तिशाली हो ,उससे सम्बंधित कार्य व्यवसाय उचित फल प्रदान करता है। मंगल का प्रभाव दशम भाव पर जातक को पावर देता है ,इसी समीकरण में यदि सूर्य व गुरु भी दशम को बल दे रहे हों तो जातक सरकारी क्षेत्र में उच्च पदस्थ हो सकता है। शनि या राहु दशम भाव या दशमेश को प्रभावित कर दें तो नौकरी आदि का स्तर कुछ हल्का हो जाता है
दक्षिण की यात्राएँ यहाँ सहायक होती हैं.दक्षिण बार बार संकेत करता है.जो समझ गया वो आगे बढ़ता जाता है.राम को दक्षिण की यात्राओं ने ही राम बनाया,वरना मात्र अवध के नायक थे.जरा से योग अन्य भी सहायक हों तो विदेश यात्राओं के सर्वाधिक योग इसी लग्न में बनते हैं.
धन की बात करें तो धनेश उच्च होगा तो अपने भाग्य भाव में होगा,आयेश उच्च होगा तो अपने से आय भाव में होगा..यानि दोनों ओर से मजबूत.तभी तो राजाओं का लग्न कहा गया है.बुध द्वादश व पराक्रम भाव का अधिपति है.सूत्र कहता है की ऐसे में बुध जरा भू मजबूत हो तो जातक के पराक्रम का लाभ बाहरी लोग लेते हैं.वहीँ भाग्येश उच्च होगा तो अपनी मूलत्रिकोण राशि से अष्टम में होगा..स्वाभाविक रूप से अपना भला न सोच कर दूसरों के हित में अपना सर्वस्व होम करना.इन्ही गुणों ने राम को पूज्य बनाया,किन्तु आज के परिवेश में यही गुण दुःख का कारण बनते हैं.सोच के देखें.बड़ा रोचक लग्न है व मुझे स्वयं विश्लेषण हेतु कर्क सर्वाधिक प्रिय लग्न है.एक बात और बताऊँ?????...मानेगे....? खूब आजमाया है मैंने.....कहूँ?90% मामलों में ऐसे जातकों का वैवाहिक जीवन सुखी नहीं होता.10% को अपवाद स्वरुप छोड़ देता हूँ किन्तु पाठक खुद सोचें की 90%आंकड़ा बहुत अधिक होता है.शनि यदि किसी भी प्रकार से दशम भाव को प्रभावित कर रहे हों तो सामान्यतः स्थिति संसार की दृष्टि में तो आदर्श रहती है किन्तु भीतर ही भीतर जातक दुखी रहता है। स्त्री स्वभाव की थोड़ा तेज हो सकती है किन्तु जातक उसके भाग्य से बहुत कुछ प्राप्त करता है इसमें कोई संशय नही. शनि के साथ मंगल अथवा गुरु की युति इस मामले में थोड़ा राहत देती है। अकेले देव गुरु यदि सप्तम में हो जाएँ तो दाम्पत्य भाव बिखरने लगता है। शनि के साथ बुध की युति शारीरिक दुर्बलता उत्पन्न करती है और अगर ये युति अष्टम भाव में हो तो हालात अधिक चिंता जनक होते हैं। ये लग्न वैसे भी अल्प संतान का कारक है अतः ऐसे में कुंडली मिलान के समय संतान भाव पर विशेष ध्यान दिया जाना आवश्यक है।
स्त्री की कुंडली में यदि शनि पंचम भाव में हो तो उसका जीवनसाथी अध्यात्म व दर्शन की और अधिक ध्यान देता है जिस कारण परिवार के लिए समय काम देता है. अकेला शनि अष्टम भाव में पति को दीर्घायु किन्तु रोगी शरीर का स्वामी कर सकता है। सप्तम भाव में अकेला गुरु दाम्पत्य भाव के लिए उलझने बढ़ाता है।
कुछ सामान्य से उपाय इस लग्न में काफी असरदार सिद्ध होते हैं.भविष्य में उन पर भी चर्चा करेंगे.लेख के प्रति आपकी अमूल्य राय की प्रतीक्षा में .....
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आचार्य जी आपका लेख पदने के बाद मै भी अपने जीवन में आने वाली परेशानियों का निवारण जानना चाहता हू क्यों की मेरी भी लग्न कर्क है और आपने आज के लेख में इसके विभिन पहलुओं पर प्रकाश डाला है अतएव मुझे भी मार्गदर्शन प्रदान करे मेरा विवरण इस प्रकार है
जवाब देंहटाएंगौरव पाण्डेय 14 /04/1985 TIME 1.05 PM SUNDAY DASHMI PLACE REWA M.P.
मेरे जीवन में स्थायित्व कब तक आ पायेगा . क्या मुझे सरकारी नौकरी मिलने के योग है या फिर स्वयं के व्यवसाय में जीवन यापन होगा और आने वाला समय कठिनायियो से मुक्त करने वाला होगा या नहीं , आपके मार्गदर्शन की प्रतीक्षा में......
Pandit shri prnam...mera naam anurag Tiwari hai dob 16-10-1989 Hai samay rata ke 12 Baje janm sthan sultanpur hai...mera janm lagn kark hai jivan me sthirta nhe hai ..sarkari nokri ki ichchha hai pr kafi pryas ke baad abhi tak mili nhe hai...kuchh upay batayn..
जवाब देंहटाएंPandit Shri Prnam.. mera naam Anurag Tiwari hai mera dob 16-10-1989 hai.janm sthan Sultanpur UP hai..janm samay ratri 12 baje ka hai..pandit ji mera bhi janm lagn kark hai...jivan me sthirta nhe hai. sarkari nokri me uchy pad prapt karne ki ichchha hai pr abhi tak kuchh bhi prapt nhe ho saka...pandit ji krpya kundli ki vivechna kriye..kya mai kuchh kar paunga ki bas aise hi jivan rahega...
जवाब देंहटाएंPranam Accharyaji.....Thanks a lot for your insight on these topics.
जवाब देंहटाएंKripya apna asshirwaad den.!!!
Pandit ji, Namaskar, Maine aapke sabhi blogs padhe, aapke vicharo se me bahut prabhavit hu. aapke vichar puri tarah se scientific lage. Kripya mujhe aage ke samay ke liye kuch tips digiye. Politics ya koi business jo mere liye shubh ho batayen. marriage related jankari de. please suggest gems if necessary. DOB 13/08/1971, 10:25am, Dantewara (CJ)
जवाब देंहटाएंpramam guruji, krupaya meri bhi kundli k bare main bataiye.
जवाब देंहटाएं18-04-1985
06-00pm
Nagpur,mahrashtra,india
Dear Sir,
जवाब देंहटाएंNamaskar! I hope and pray god that this my request you will find in the best of health and happiness.
Approximately after working two years in Iraq, I finished my assignment job-contract on 31 January 2014.
At present, I am waiting for another good offer. How soon can I get another good job? What is store for me in the near future?
I would like to request you, please give me your suggestions and advice. I recite GAYATRI MANTRAM 108 times every day.
My data: Male, dob 08 April 1956, tob 11.55 AM(NOON), pob Rohtak/India
Thank you very much and with best regards,
Prem Sharma
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जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंguruji kark lagna ke baare main jo bhi apne kaha hai bilkul sahi hai 100%
जवाब देंहटाएंगूरु जी मेरा जन्म 7-8-1993 के सूबह छ बजे को हुआ है गोपालगज मे , मेरे पास पैसे आयेगे की नही ,क्रिपा करके मुझे बतलाइये
जवाब देंहटाएंपृभु जी प्रणाम लग्नेश शुक्र राहु की युति अस्टम मे होना घर के सामने नकारात्मक ऊरजा और गन्दे पानी की नाली माना जाये सही है तो पृभु उपाय की कृपा करे
जवाब देंहटाएंघर में नमक मिले पानी से पोछा मारकर तथा नाली में महीने में दो बार एक किलो नमक डालकर इसे नियंत्रित किया जा सकता है ,
हटाएंकोटि कोटि धन्यवाद सत्सत नमन।
जवाब देंहटाएंप्रभुजी सादर प्रणाम बिटिया 10 वीं की परीक्षा दे रही है आगे डाक्टर बनना चाहती है। किस विषय को आगे लेना ठीक है। जन्म 29/04/2001 समय 05/20 सुबह स्थान मंडला मध्य प्रदेश
जवाब देंहटाएंगुरूजी प्रणाम मेरी बिटिया 10 कक्षा की परीक्षा दे रही है। आगे वह डाक्टर बनना चाहती है। कृपया मार्गदर्शन करने का कस्ट करें। जन्म 29/04/2001 समय सुबह 05/20 स्थान मंडला मध्य प्रदेश आगे कैरीयर के लिए कौन सा विषय लेकर बढ़ना अच्छा होगा।
जवाब देंहटाएंपंडितजी प्रणाम बिटिया 10की परीक्षा दे रहीं है डाक्टर बनने की इच्छा है।जन्म 29/04/2001 समय सुबह 05/20 स्थान मंडला मध्य प्रदेश ।कृपया मार्गदर्शन करें आगे किस विषय लेकर पढ़ाई करना उचित रहेगा।
जवाब देंहटाएं