सभी पाठकों को सादर नमस्कार। आज बहुत दिनों बाद आप सब से मुलाकात का सौभाग्य मिला। आशा है प्रभु की कृपा आप सभी पर होगी ।कई बार जिज्ञासुओं व आम सामान्य जन के मन में भी ये प्रश्न आता है की आखिर सीता जी की अग्नि परीक्षा का क्या कारण था और सदा अपने चरित्र के द्वारा मनुष्य मात्र को मर्यादाओं का पाठ पढ़ाने वाले अवध के राजा,ब्रह्माण्ड नायक प्रभु राम भला इस के द्वारा क्या सन्देश आम जन को देना चाह रहे थे?राम के अस्तित्व व राम के चरित्र की व्याख्या करने वाले भी कई बार इस प्रश्न पर उलझते दिखाई देते हैं ।
प्रश्न सर्वप्रथम ये उठता है की हम सीता जी के विषय में कितना जानते हैं ।कई स्थानों पर तलाशने के बावजूद कहीं भी सीता जी की जन्म तिथि का अंदाजा नहीं हो पाता। रामायण के कई रूप उपलब्ध हैं ।कहा भी गया है "नाना नाना भांति राम अवतारा -रामायण सतकोटि अपारा" कई किस्से हैं ,कई लोकोक्तियाँ हैं ,कई ग्रन्थ हैं जो इस महानतम ग्रन्थ का बखान करते हैं ।
श्रेष्ट ब्राह्मण व महान क्षत्रिय के सम्मिलित रूप को अगर एक साथ लें तो रावण का किरदार एक सर्वोत्तम उदाहरण के रूप में प्राप्त होता है ।जैसा की विदित है उस समय विशेष में सुरों व असुरों में युद्ध होते रहते थे ।समय के साथ साथ रावण अपनीं विद्या के प्रयोगों द्वारा नए नए अविष्कार करने लगा तथा इस प्रकार शक्तियां प्राप्त करते करते आखिरकार वो देवताओं से बली हो गया व समस्त ब्रह्मांड को अपने अधिकार में करने के प्रयास करने लगा ।यहाँ रावण का उदय एक महान वैज्ञानिक के रूप में हमारे सामने आता है। ब्रह्माण्ड विजय के अपने सपने को पूरा करने हेतु रावण को आवश्यकता थी की संसार की सात्विक शक्तियों पर भी उसका नियंत्रण हो ।फलस्वरूप अपने उदेश्य की पूर्ति के लिए उसने एक प्रयोगशाला का निर्माण किया ,जहाँ वह अपने सगे भाई कुम्भकर्ण की सहायता से सात्विक मनुष्यों के रक्त से ऐसे मनुष्यों के निर्माण हेतु प्रयासरत हो गया जो पूर्ण रूप से सात्विक प्राण हों किन्तु रावण की रचना होने के कारण उन पर अधिकार मात्र रावण का ही हो ।कुम्भकर्ण ,जैसा की नाम से ही ज्ञात हो जाता है अपने समय का कुम्भ यानी घड़े आदि के द्वारा नए अविष्कारों के लिए
विख्यात था ।इन घडो कुम्भों को आज हम परखनलियों टेस्ट ट्यूबों आदि प्रयोगशालाओं में उपयोग होने वाले उपकरणों के रूप में जानते हैं ।धरती पर एक अज्ञात स्थान पर बनी इस प्रयोगशाला में कुम्भकर्ण देवताओं की नजर से बच कर लगभग 6 महीने अपने प्रयोगों में व्यस्त रहता था ,जिसे जानकारी के अभाव में हम उसका शयन काल मानते आए हैं ।
रावण के भेजे सैनिक इस प्रयोग हेतु दूर उत्तर दिशाओं की तरफ तपस्याओं में लिप्त साधुओं का रक्त जमा कर लाते थे ।संभवतः इस प्रयोग में उनके शरीर की अणु या कुछ अन्य हिस्सों का उपयोग भी होता हो ,जिसे शरीर विज्ञानं से जुड़े लोग बेहतर परिभाषित कर सकते हैं ।
इंद्र आदि सभी देवताओं को आभास तो होने लगा था की रावण किसी ऐसे आविष्कार में जुटा हुआ है जिससे उसकी शक्ति अपराजित हो जायेगी। किन्तु उसका यह आविष्कार हो कहाँ रहा है ,अथवा उसकी प्रयोगशाला धरती पर कहाँ है इस पर अभी तक भी संशय था ।इसी बीच संसार के महान वैज्ञानिक। द्वारा अपनी महानतम खोज हो चुकी थी ।रावण अपनी प्रतिभा की सीमाओं का परिचय खुद को तो दे ही चूका था और अब संसार उसके अविष्कार से अचंभित होने वाला था ।
ऋषि मुनियों के शरीर से प्राप्त उर्जाओं से रावण अपनी गुप्त प्रयोगशाला में एक ऐसे परखनली शिशु का निर्माण कर चुका था जिसका बाद में हम जन्म घड़े से हुआ सुनते आये हैं। सुबुद्ध पाठक ताड़ गए होंगे की मेरा संकेत किधर जा रहा है ।यहाँ चाहें तो अपनीं कल्पना को थोड़ी छूट देकर आप इसमें कुम्भकरण का रोल तय कर सकते हैं ।यही कारण है की खोज कर भी सीता की जन्म तिथि प्राप्त नहीं होती व अधिकतर कथाकारों ने इस विषय पर चतुराई भरा रास्ता तय किया ।
कारण कुछ भी रहा हो किन्तु आखिरकार देवताओं को इस की खबर लग ही गयी व उन्होंने धरती पर इस प्रयोगशाला का पता लगा ही लिया ।जी हाँ पाठक वृंद आप बिलकुल सही अंदाजा लगा रहे हैं,यह कहीं और नहीं अपितु राजा जनक की नगरी मिथिला में थी ।जनक जो स्वयं बड़े प्रतापी राजा थे व अवध नरेश दशरथ के विपरीत सुरों -असुरों के झगडे में सम बने रहते थे ।दशरथ जी के विषय में तो कई बार प्रमाण मिलता है की वो देवताओं की तरफ से युद्ध हेतु जाते थे ।देवताओं ने जनक को बहुत कहा की रावण की इस प्रयोगशाला को नष्ट करें ,किन्तु जनक ने उनकी एक न सुनी । वर्षा रोककर इंद्र देव ने आखिरकार जनक को उनका कहा मानने के लिए मजबूर कर दिया ।तीन वर्षों तक अपनी प्रजा को पानी के लिए तरसता हुआ जनक न देख सके। उन्होने देवों को अपने राज्य में आकर रावण के सपने ,उसके मंसूबों पर आघात करने का मौका दे दिया किन्तु इस बीच रावण द्वारा किये गए उसके अविष्कार को समाप्त होने से बचा लिया ।जिसे बाद में धरती से प्राप्त होना बताया ।कालान्तर में पाठक अंदाजा लगा सकते हैं की क्यों आखिर सीता को धरती की गोद में समाना बताया गया ।जाहिर तौर पर वह सामान्य। मनुष्य नहीं थी तो सामान्य मृत्यु उन्हें प्राप्त नहीं थी ।सीता नाम से कुम्भ राशि का ही संकेत प्राप्त होता है (आखिर कुम्भ की ही तो संतान थीं वो )कुम्भ की होकर उन्होंने अपने लिए सप्तम दाम्पत्य भाव पर सूर्यवंश की राशी का चयन किया ,ऐसा प्रमाण स्पष्ट है ।
देवताओं ने रावण की प्रयोगशाला को नष्ट कर दिया व रावण स्वयं के अविष्कार को भी इसी में समाप्त मान चुका था ।वर्षों पश्चात जनकपुरी में स्वयंवर का आयोजन हुआ ।रावण भी मेहमान के रूप में इस आयोजन में उपस्थित था ।सीता को देखते ही रावण की ऑंखें सहसा इस दृश्य पर विश्वास न कर पाई।। भला कोई रचियता अपनी कृति को देखकर पहचानेगा नहीं ।ये धोखा था,उसका प्राण दिया हुआ जीवन आज कोई और कब्जाए बैठा था ।शायद कई बार पाठकों ने सीता को रावण की पुत्री के रूप में कथाओं में जाना होगा ।कृति का रचनाकार ही तो आखिर उसका वास्तविक जनक होता है ना ।
यहीं से रावण ने प्रण किया की जैसे भी हो मुझे सीता वापस चाहिए ।जनक के सामने कुछ न कर पाया रावण सही मौके की तलाश में लग गया ।इस समय काल में अवध में राम के जन्म की दैवीय घटना घट चुकी थी ।कालान्तर में स्वयं राम इसी विद्या के पारंगत हो चुके थे जिस के द्वारा रावण ने सीता का निर्माण किया था ।इतिहास अभी बनना बाकी था ......
शीर्षक को पूरा अगले भाग में किया जाये ऐसा प्रयास करूँगा ।किन्तु निर्भर पाठकों के रुझान पर ही है,ऐसा तय माने ।...फिलहाल इजाजत दें ।नमस्कार।
( आपसे प्रार्थना है कि कृपया लेख में दिखने वाले विज्ञापन पर अवश्य क्लिक करें ,इससे प्राप्त आय मेरे द्वारा धर्मार्थ कार्यों पर ही खर्च होती है। अतः आप भी पुण्य के भागीदार बने )
Official Website : http://www.astrologerinderhadun.com
.
प्रश्न सर्वप्रथम ये उठता है की हम सीता जी के विषय में कितना जानते हैं ।कई स्थानों पर तलाशने के बावजूद कहीं भी सीता जी की जन्म तिथि का अंदाजा नहीं हो पाता। रामायण के कई रूप उपलब्ध हैं ।कहा भी गया है "नाना नाना भांति राम अवतारा -रामायण सतकोटि अपारा" कई किस्से हैं ,कई लोकोक्तियाँ हैं ,कई ग्रन्थ हैं जो इस महानतम ग्रन्थ का बखान करते हैं ।
श्रेष्ट ब्राह्मण व महान क्षत्रिय के सम्मिलित रूप को अगर एक साथ लें तो रावण का किरदार एक सर्वोत्तम उदाहरण के रूप में प्राप्त होता है ।जैसा की विदित है उस समय विशेष में सुरों व असुरों में युद्ध होते रहते थे ।समय के साथ साथ रावण अपनीं विद्या के प्रयोगों द्वारा नए नए अविष्कार करने लगा तथा इस प्रकार शक्तियां प्राप्त करते करते आखिरकार वो देवताओं से बली हो गया व समस्त ब्रह्मांड को अपने अधिकार में करने के प्रयास करने लगा ।यहाँ रावण का उदय एक महान वैज्ञानिक के रूप में हमारे सामने आता है। ब्रह्माण्ड विजय के अपने सपने को पूरा करने हेतु रावण को आवश्यकता थी की संसार की सात्विक शक्तियों पर भी उसका नियंत्रण हो ।फलस्वरूप अपने उदेश्य की पूर्ति के लिए उसने एक प्रयोगशाला का निर्माण किया ,जहाँ वह अपने सगे भाई कुम्भकर्ण की सहायता से सात्विक मनुष्यों के रक्त से ऐसे मनुष्यों के निर्माण हेतु प्रयासरत हो गया जो पूर्ण रूप से सात्विक प्राण हों किन्तु रावण की रचना होने के कारण उन पर अधिकार मात्र रावण का ही हो ।कुम्भकर्ण ,जैसा की नाम से ही ज्ञात हो जाता है अपने समय का कुम्भ यानी घड़े आदि के द्वारा नए अविष्कारों के लिए
विख्यात था ।इन घडो कुम्भों को आज हम परखनलियों टेस्ट ट्यूबों आदि प्रयोगशालाओं में उपयोग होने वाले उपकरणों के रूप में जानते हैं ।धरती पर एक अज्ञात स्थान पर बनी इस प्रयोगशाला में कुम्भकर्ण देवताओं की नजर से बच कर लगभग 6 महीने अपने प्रयोगों में व्यस्त रहता था ,जिसे जानकारी के अभाव में हम उसका शयन काल मानते आए हैं ।
रावण के भेजे सैनिक इस प्रयोग हेतु दूर उत्तर दिशाओं की तरफ तपस्याओं में लिप्त साधुओं का रक्त जमा कर लाते थे ।संभवतः इस प्रयोग में उनके शरीर की अणु या कुछ अन्य हिस्सों का उपयोग भी होता हो ,जिसे शरीर विज्ञानं से जुड़े लोग बेहतर परिभाषित कर सकते हैं ।
इंद्र आदि सभी देवताओं को आभास तो होने लगा था की रावण किसी ऐसे आविष्कार में जुटा हुआ है जिससे उसकी शक्ति अपराजित हो जायेगी। किन्तु उसका यह आविष्कार हो कहाँ रहा है ,अथवा उसकी प्रयोगशाला धरती पर कहाँ है इस पर अभी तक भी संशय था ।इसी बीच संसार के महान वैज्ञानिक। द्वारा अपनी महानतम खोज हो चुकी थी ।रावण अपनी प्रतिभा की सीमाओं का परिचय खुद को तो दे ही चूका था और अब संसार उसके अविष्कार से अचंभित होने वाला था ।
ऋषि मुनियों के शरीर से प्राप्त उर्जाओं से रावण अपनी गुप्त प्रयोगशाला में एक ऐसे परखनली शिशु का निर्माण कर चुका था जिसका बाद में हम जन्म घड़े से हुआ सुनते आये हैं। सुबुद्ध पाठक ताड़ गए होंगे की मेरा संकेत किधर जा रहा है ।यहाँ चाहें तो अपनीं कल्पना को थोड़ी छूट देकर आप इसमें कुम्भकरण का रोल तय कर सकते हैं ।यही कारण है की खोज कर भी सीता की जन्म तिथि प्राप्त नहीं होती व अधिकतर कथाकारों ने इस विषय पर चतुराई भरा रास्ता तय किया ।
कारण कुछ भी रहा हो किन्तु आखिरकार देवताओं को इस की खबर लग ही गयी व उन्होंने धरती पर इस प्रयोगशाला का पता लगा ही लिया ।जी हाँ पाठक वृंद आप बिलकुल सही अंदाजा लगा रहे हैं,यह कहीं और नहीं अपितु राजा जनक की नगरी मिथिला में थी ।जनक जो स्वयं बड़े प्रतापी राजा थे व अवध नरेश दशरथ के विपरीत सुरों -असुरों के झगडे में सम बने रहते थे ।दशरथ जी के विषय में तो कई बार प्रमाण मिलता है की वो देवताओं की तरफ से युद्ध हेतु जाते थे ।देवताओं ने जनक को बहुत कहा की रावण की इस प्रयोगशाला को नष्ट करें ,किन्तु जनक ने उनकी एक न सुनी । वर्षा रोककर इंद्र देव ने आखिरकार जनक को उनका कहा मानने के लिए मजबूर कर दिया ।तीन वर्षों तक अपनी प्रजा को पानी के लिए तरसता हुआ जनक न देख सके। उन्होने देवों को अपने राज्य में आकर रावण के सपने ,उसके मंसूबों पर आघात करने का मौका दे दिया किन्तु इस बीच रावण द्वारा किये गए उसके अविष्कार को समाप्त होने से बचा लिया ।जिसे बाद में धरती से प्राप्त होना बताया ।कालान्तर में पाठक अंदाजा लगा सकते हैं की क्यों आखिर सीता को धरती की गोद में समाना बताया गया ।जाहिर तौर पर वह सामान्य। मनुष्य नहीं थी तो सामान्य मृत्यु उन्हें प्राप्त नहीं थी ।सीता नाम से कुम्भ राशि का ही संकेत प्राप्त होता है (आखिर कुम्भ की ही तो संतान थीं वो )कुम्भ की होकर उन्होंने अपने लिए सप्तम दाम्पत्य भाव पर सूर्यवंश की राशी का चयन किया ,ऐसा प्रमाण स्पष्ट है ।
देवताओं ने रावण की प्रयोगशाला को नष्ट कर दिया व रावण स्वयं के अविष्कार को भी इसी में समाप्त मान चुका था ।वर्षों पश्चात जनकपुरी में स्वयंवर का आयोजन हुआ ।रावण भी मेहमान के रूप में इस आयोजन में उपस्थित था ।सीता को देखते ही रावण की ऑंखें सहसा इस दृश्य पर विश्वास न कर पाई।। भला कोई रचियता अपनी कृति को देखकर पहचानेगा नहीं ।ये धोखा था,उसका प्राण दिया हुआ जीवन आज कोई और कब्जाए बैठा था ।शायद कई बार पाठकों ने सीता को रावण की पुत्री के रूप में कथाओं में जाना होगा ।कृति का रचनाकार ही तो आखिर उसका वास्तविक जनक होता है ना ।
यहीं से रावण ने प्रण किया की जैसे भी हो मुझे सीता वापस चाहिए ।जनक के सामने कुछ न कर पाया रावण सही मौके की तलाश में लग गया ।इस समय काल में अवध में राम के जन्म की दैवीय घटना घट चुकी थी ।कालान्तर में स्वयं राम इसी विद्या के पारंगत हो चुके थे जिस के द्वारा रावण ने सीता का निर्माण किया था ।इतिहास अभी बनना बाकी था ......
शीर्षक को पूरा अगले भाग में किया जाये ऐसा प्रयास करूँगा ।किन्तु निर्भर पाठकों के रुझान पर ही है,ऐसा तय माने ।...फिलहाल इजाजत दें ।नमस्कार।
( आपसे प्रार्थना है कि कृपया लेख में दिखने वाले विज्ञापन पर अवश्य क्लिक करें ,इससे प्राप्त आय मेरे द्वारा धर्मार्थ कार्यों पर ही खर्च होती है। अतः आप भी पुण्य के भागीदार बने )
Official Website : http://www.astrologerinderhadun.com
.
बहुत ही सुन्दर और सटीक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंbahumulya jankari !!! Hum abhi bhi is vigyan se anbhigya hain, yadi ise samajh paye to unnati ke naye marg awashay khole ja sakte hain
जवाब देंहटाएंanubhav shukla
आपसे पूर्णतः सहमत हूँ शुक्ला जी .
हटाएंPranam guruji, bahut sunder prastuti.bahumulya...apke dwara likha gaya ek ek shabd satya lagta hai. bharat ke etihaas ko itna grhan lagaya gaya ki hum apni identity bhul gae. apka margdarshan bahut zaruri. agle bhag ka intezaar rahega. Meenakshi
जवाब देंहटाएंमीनाक्षी जी को नमस्कार .असल में हमने अपने भारतवर्ष में जन्म लेने वाले कई महान आत्माओं को ईश्वर का दर्जा देकर उन्हें सम्मान तो दे दिया किन्तु उनकी उपलब्धियों को इस प्रयास के द्वारा कम कर दिया .एक बार भी सामान्य दृष्टी से देखा होता तो आज न जाने पूर्वजों के कितने अविष्कारों का लाभ ले रहे होते.राईट बंधुओं ने मात्र उड़ती चिड़िया का उदहारण लेकर जहाज बनाने की प्रेरणा प्राप्त कर ली ,किन्तु हम करोड़ों वर्ष पूर्व उड़नखटोले का विस्तृत वर्णन प्राप्त करने के बाद भी उसे देवताओं का ही यान मानते रहे व इसी कारण पीछे रह गए.राम के जन्म का सही अर्थ लगा पाते तो आज भारत क्या विश्व में कोई भी दंपत्ति निस्संतान नहीं होता. कृष्ण की गोवर्धन पर्वत लीला का अर्थ समझते तो आज केदारनाथ जैसी विपदा न आती .द्रौपदी के चीरहरण का मंतव्य भांप पाते तोअआज संसार में सभी के तन पर वस्त्र होता.उदहारण देने लगूं तो जगह कम पड़ जाएगी मीनाक्षी जी .....आशा है कुवैत में आपका रोजगार -व्यवसाय गति पकड़ गया होगा.
हटाएंबहुत ही सटीक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंAMULYA GYAN KA BHANDAR MIL GAYA
जवाब देंहटाएंप्रणाम पंडितजी एवं चरण स्पर्श, अगले भाग का इंतज़ार रहेगा .आपने सही कहा पंडितजी ऐसा बहुत स विज्ञानं है जो हमारे महान ग्रंथो में छिपा हुआ है ...महाभारत, में इतना विज्ञानं है की अगर हम ठीक से उसे समझे और उसका प्रसार और प्रचार करे तो दुनिया स्तब्द रह जाये ...लेकिन दुःख की बात यह है की वेदेशी इनपर खोज कर रहे है हम हाथ पर हाथ रखकर बैठे है ...टेस्ट ट्यूब बेबी माने घड़े से जन्म , इस विज्ञानं का महाभारत स्पष्ट बताया गया है ...हमारे पास हजारो लाखो वर्ष पुराणी अनु शक्ति का भी उल्लेख महाभारत में है और ऐसे हजारो बाते जो वैज्ञानिक है ...मेरे पास ऐसी लगभग ५०० से ७०० अच्छी जानकारी पूर्वक साइट्स की जानकारी है, बस बात है की भारत में इस पर बड़े पैमाने पर काम हो ...हमारे राष्ट्रपति रह चुके एपीजे अब्दुल कलम जी ने एक बार कहा था की अगर हम अपनी खोज और शिक्षा इन दिशाओं में सक्रिय करे तो १०० पीएचडी की नयी शाखाये हो सकती है ...धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंपंडितजी सदार प्रणाम और चरणस्पर्श ..पंडितजी मेरा जन्म २५/५/१९८२ को दोपहर २.१५ बजे हुआ है, नाम आनंद गुप्ता, स्थान पुणे . मैंने हाल ही में किराने की दुकान शुरू की है , दशहरे के दिन , १३ तर्रिख रविवार २०१३ को . पंडितजी काम कैसा चलेगा इस विषय को लेकर चिंतित हूँ ...कृपया मार्गदर्शन करे. धन्यवाद् ..उत्तर की प्रतीक्षा करूँगा ...चंरास्पर्ष
जवाब देंहटाएंआनंद जी ,आशीर्वाद व नए कार्य हेतु बहुत शुभकामनायें.प्रभु की कृपा आप पर हो ,ऐसी प्रार्थना है.कार्य व्यवसाय के लिए बहुत आवश्यक है की दशम भाव को प्रभावित करने वाले ग्रह के स्वभाव अथवा उत्पन्न समीकरणों का लाभ प्राप्त किया जाय.यहाँ राहु के नक्षत्र में विराजमान होकर आएश चंद्रमा स्वयं राहु के साथ मिथुन से बुध का प्रभाव लेकर जो समीकरण
हटाएंउत्पन्न करता है वो हमें आज के माहौल में मोबाइल -बिजली-कंप्यूटर आदि के रूप में प्राप्त होता है.अपने द्वादश भाव में विराजमान दशमेश शुरूआती संघर्ष की मांग करता है.किन्तु यहाँ भावनाओं पर नियंत्रण भविष्य में आपको समाज से सीधे तौर पर जोड़कर राजनीति की प्रचंड संभावनाएं दर्शाता है.आप मेरी बात को गाँठ बाँध लें,अपनी आयु के तीसरे दौर में आप अपने समाज के सम्मानित व्यक्ति होंगे.शनि देव की दशम दृष्टि इस लग्न में काम धंदे में इतनी प्रतिकूल मानी गयी है की जातक कई काम धंदे आजमाता है ,किन्तु असफल रहता है यहाँ तक की वो जिस की मदद भी करने जाता है ,उसका काम भी उल्टा प्रभावित होने लगता है.आप चाजें तो एक पन्ना धारण करें.किन्तु फिर भी स्पष्ट कर रहा हूँ की आपको सफलता आयु के 36 वें वर्ष के पश्चात ही प्राप्त होती दिखाई पड़ती है.तब तक आपको
संतुलन का हुनर सीखना होगा, संयम का जादू अपनाना होगा.ये कर लेते हैं तो भविष्य आपका होगा ये आश्वासन मैं आपको देता हूँ.गुरु मन्त्र दे रहा हूँ.गाँठ बाँध लीजिये.दो शब्द....
मात्र दो शब्द......संयम और संतुलन.
पंडितजी प्रणाम उर चरणस्पर्श , बहुत बहुत आभार और धन्यवाद् आपने जो आशीर्वाद और मार्गदर्शन दिया . आयु के तीसरा दौर के बारे में समझा नहीं ..कृपया हो सके तो बताये .धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंअगर कभी हरिद्वार आऊ तो आपसे मिलु ऐसी मन में इच्छा है .
पंडितजी सादर प्रणाम , मेरा नाम नविन अगरवाल है, जन्म ०३/०३/१९७९ का दोपहर २.१० मिनट का है . पंडित जी मै आर्थिक रूप से बहुत ही ज्यादा परेशान हूँ , कभी कभी बहुत ही ज्यादा मायूस हो जाता हूँ . खर्च ज्यादा हो रहा है जैसे डॉक्टर , दवाई आदि , माँ भी बीमार है २ वर्षो से बहुत ज्यादा समस्यायों से घिरा हूँ . फिलहाल काम किराने का है . नया क्या काम करना चाहिए यह भी सूज नहीं रहा ,कृपया मार्गदर्शन करे . दो भाई है बड़े भाई का भी कोई काम जम नहीं रहा . सभी का काम अभी एक ही व्यापार पर चल रहा है और सारी आर्थिक जिम्मेदारी मुझ पर ही है . क्या करू कृपया मार्ग दर्शन करे .आपसे बहुत आस है .बड़े भाई का नाम आनंद अगरवाल है जन्म २१/०४/१९६७ का है समय .इनको कौनसा काम जचेगा और कब करना चाहिए कृपया मार्गदर्शन करे यह विनती . धन्यवाद् पंडितजी
जवाब देंहटाएंपंडितजी सादर प्रणाम , मेरा नाम नविन अगरवाल है, जन्म ०३/०३/१९७९ का दोपहर २.१० मिनट का है . पंडित जी मै आर्थिक रूप से बहुत ही ज्यादा परेशान हूँ , कभी कभी बहुत ही ज्यादा मायूस हो जाता हूँ . खर्च ज्यादा हो रहा है जैसे डॉक्टर , दवाई आदि , माँ भी बीमार है २ वर्षो से बहुत ज्यादा समस्यायों से घिरा हूँ . फिलहाल काम किराने का है . नया क्या काम करना चाहिए यह भी सूज नहीं रहा ,कृपया मार्गदर्शन करे . दो भाई है बड़े भाई का भी कोई काम जम नहीं रहा . सभी का काम (खर्च आदि ) अभी एक ही व्यापार पर चल रहा है और सारी आर्थिक जिम्मेदारी मुझ पर ही है . क्या करू कृपया मार्ग दर्शन करे .आपसे बहुत आस है .बड़े भाई का नाम आनंद अगरवाल है जन्म २१/०४/१९६७ का है समय पक्का पता नहीं है लेकिन रात १० बजे के बाद का है .इनको कौनसा काम जचेगा और कब करना चाहिए कृपया मार्गदर्शन करे यह विनती . धन्यवाद् पंडितजी
जवाब देंहटाएंप्रणाम गुरुदेव। …
जवाब देंहटाएंसादर नमन। ……
बहुत दिनों से आपका सानिध्य प्राप्त नही हुवा प्रभु……
प्रणाम गुरुदेव। …
जवाब देंहटाएंसादर नमन। ……
बहुत दिनों से आपका सानिध्य प्राप्त नही हुवा प्रभु……
lilit ji Jai shri Shyam,
जवाब देंहटाएंSo impressive yours disclosers, and i thought these disclosers are really absulutely true. Can you have any disclosers about the devtas & danavs like i mean to say Who people and are which place to belongs to devtas & danav, please is per prakash or espastikarn kernay ka kasth kareay ?
dhanyawad
Dhiraj
लेख पसंद करने हेतु धीरज जी ,कोशिश करूँगा कि शीघ्र ही देव दानव विषय पर अपने विचार आपके सम्मुख रखूं।
जवाब देंहटाएं