कुछ भी लिखने से पहले स्पष्ट कर दूं की मैं न तो किसी पर आरोप लगा रहा हूँ न ही किसी को दोषी करार दे रहा हूँ .ज्योतिष का एक साधारण सा छात्र होने के नाते जो कुछ भी जाना है बस उसी आधार पर मन में संशय आ रहा है ,जिस को बयान कर रहा हूँ .थोडा बहुत यदि ज्योतिष की किसी शाखा में स्वयं को सहज पाता हूँ तो वह फलित है .अतः लगन -मुहूर्त आदि के विषय में किसी भी पंचांग गणक के सामने खुद को अज्ञानी की श्रेणी में रखता हूँ .
किन्तु इस विषय पर जहाँ तक समझ पाया हूँ १४ मई सन २०१३ को प्रातः काल ०७ :१५ पर विधिविधान के साथ ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग ,देश के महान तीर्थस्थलों में शामिल श्री केदारनाथ जी के कपाट आम जनता के लिए दर्शनार्थ खोल दिए गए .मिथुन राशि में चंद्रमा अपने परम शत्रु राहु के आद्रा नक्षत्र को भोग कर अपनी राशि से द्विदाशक बना रहा था।लग्न में मारक होकर गुरु विराजमान थे .कोई भी पंचांग में इस दिन को लेकर किसी प्रकार के शुभ मुहूर्त का जिक्र नहीं कर रहा था .सामान्य परिस्तिथियों में हम जानते हैं की देवादिदेव महादेव की पूजा अर्चना से सम्बंधित कोई भी कार्य आद्रा नक्षत्र में किया जा सकता है .किन्तु पंचांग अभी दिन के काफी समय तक भद्रा का काल इंगित कर रहा था .मुहूर्त शाश्त्र के जानकार जानते हैं की किसी भी शुभ कार्य हेतु सदा भद्रा से बच कर चलने का प्रमाण शाश्त्रों से मिलता है .फिर भला जब किसी भी प्रकार का मुहूर्त गणनाओं में नहीं था तो क्यों ऐसी चूक हो गयी समझ नहीं आया .फिर से स्पष्ट कर दूं की ये मात्र जिज्ञासा है ,कोई आरॊप नहीं .जिसका निवारण विद्वान गुरुजन ही कर सकते हैं .वार का स्वामी उस समय विशेष में द्वादश भाव पर था तो क्या इसका कोई महत्त्व मुहूर्त पर नहीं होता.सूर्यदेव स्वयं द्वादश में केतु से पीड़ित हो रहे थे ,क्या इस की गणनाओं का महत्त्व मंदिर के किवाट खुलने का समय तय करने वाले जिम्मेदार ज्ञाताओं की निगाह में कुछ नहीं था .ज्योतिष के सिद्धांतानुसार त्रिबल शोधन में लग्नं विशेष में सूर्य का द्वादश में होना भी शुभ संकेत नहीं माना जाता . मात्र ये प्रकृति का कहर है या वास्तव में मंदिर के द्वार खोलने को तय किये गए मुहूर्त को किसी विशेष कारण से बहुत हलके में ले लिया गया . क्या ये मात्र मेरा भ्रम है या वास्तव में कहीं कोई चूक हो गयी है .पाठकों की राय व गुरुजनों के मार्गदर्शन का इस विषय पर मैं प्रार्थी हूँ . जय भोले शंकर -जय नीलकंठ महादेव .