श्रीखंड सम पावक प्रबेश कियो सुमरि प्रभु मैथिलि
जय कोशलेश महेश बंदित चरण रीति अति निर्मली
प्रतिबिम्ब अरु लौकिक कलंक प्रचंड पावक महुँ जरे
प्रभु चरित कहूं न लखें नभ सुर सिद्ध मुनि देखहिं खरे
इन पंक्तियों के साथ ही इस कथा का अगला अध्याय आरम्भ होता है जिसे हमने भाग १ http://rightsunshineforu.blogspot.in/2013/09/blog-post_20.html में अधूरा छोड़ा था।सीता की अग्नि परीक्षा के सन्दर्भ में उठने वाले प्रश्न के द्वारा श्री राम के चरित्र पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाले अज्ञानियों द्वारा हर समय ये संशय किया जाता रहा है कि मर्यादाओं कि रक्षा का प्रमाण प्रस्तुत करने वाले अवध नायक ने सीता को अग्नि परीक्षा के लिए कह कर सभ्य समाज में स्त्रियों की भूमिका को ,उनके महत्त्व को कम किया है। ऊपर कही पंक्तियों में तुलसीदास जी यही कह रहे हैं कि प्रभु के इस चरित्र (खेल)को किसी ने नहीं जाना। नहीं समझा।
वनवास के अंतिम वर्षों में राम कुछ अजीब सी संधिग्ध परछाइयों का अनुभव आश्रम के आस पास कर रहे थे। वनवास काल में अब वे बहुत कुछ राक्षसों के विषय में जानने समझने लगे थे। ऐसे में जब सुपर्णखा वाला हादसा हो चुका था ,राम सीता जी कि सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित थे। अपने विश्वस्त सूत्रों से राम को मालूम हुआ था कि राक्षस सीता जी को हानि पहुँचाने का प्रयास कर सकते हैं।
वो विद्या जिसका जनक स्वयं रावण था और अब अपने वनवास काल में ऋषियों के सहयोग से राम स्वयं इसमें निपुण हो चुके थे ,(जिसे आज हम क्लोन आदि के रूप में जानते हैं ) ये बात अपने सूत्रों से रावण को ज्ञात हो चुकी थी
कालान्तर में सीता जी का अपहरण रावण के द्वारा किया गया। सीता का अपहरण कर रावण जब सुरक्षित अपने क्षेत्र में प्रवेश कर गया तब उसे सीता पर कुछ संदेह हुआ। रावण दुविधा में था ,जल्दबाजी में कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं हो गयी उससे ? ऐसे में जैसे ही रावण ने ये आभास किया कि कहीं राम ने भी तो छल द्वारा उसे दूसरे ही क्लोन का अपहरण करने का मौका तो नहीं दिया जान बूझ कर। तो अब सीता को अपने साथ अपने महल में ले जाने का रिस्क लेना उचित नहीं था। ये शत्रु की किसी साजिश का हिस्सा हो सकता था। जब तक सीता के बारे में रावण आश्वश्त नहीं हो जाता तब तक उसे कहीं किसी और ठिकाने पर रखना उचित था।जब से मेघनाथ ने इंद्र को पराजित किया था तब से ही देवता इस मौके की प्रतीक्षा में थे कि कैसे रावण का दर्प चूर किया जाय। दशरथ कि देवताओं से निकट मित्रता रही थी और पूर्व में भी देवासुर संग्राम में दशरथ देवताओं की ओर से युद्ध में भाग ले चुके थे। ऐसे में राम का देवताओं से जाहिर तौर पर मित्रता के सम्बन्ध थे। अब बहुत सम्भव था कि देवताओं द्वारा रावण के खिलाफ किसी प्रकार के अभियान में राम भी उस षड्यंत्र का हिस्सा हों। ये बात दिमाग में आते ही रावण का मन संशय में डूब गया। पता नहीं क्या होने जा रहा है ,विभीषण द्वारा गुप्त रूप से रावण के खिलाफ प्रजा को भड़काया जा रहा है ऐसा समाचार भी उसे प्राप्त था ,मेघनाद के बढ़ते वर्चस्व से उसके अन्य पुत्र अब रावण से मतभेद रखने लगे थे ,और जब से मेघनाद ने इंद्र को पराजित किया है तब मंदोदरी भी रावण की हर नाजायज हरकत का खुलकर विरोध करने लगी है। अपने पिता से अधिक इंद्रजीत पर अपनी माँ का प्रभाव है। ऐसे में सीता को सीधे महल में ले जाने का साहस रावण का नहीं हुआ। अशोक वाटिका पर अभी पूरी तरह से रावण का ही प्रभाव था ,उसके विश्वास पात्र सैनिक ही वहाँ स्थापित थे ,अतः सीता के लिए फिलहाल वहाँ से सुरक्षित स्थान कोई नहीं है ,ऐसा विचार कर उसने सीता को लेकर अशोक वाटिका का रुख किया।
पाठक वृंद जानते हैं कि रावण विजय के पश्चात राम ने जब सीता को अग्नि परीक्षा के लिए कहा तो उसका वास्तविक अर्थ आग में बैठ कर जलना नहीं था ,असल में उस समय के अनुसार अग्नि देव उन शक्तियों से सुसज्जित थे जिसके द्वारा किसी के असल नक़ल का पूर्ण विश्लेषण वे कर सकते थे। संसार को ये साबित करने के लिए कि कहीं रावण ने असली सीता का वध कर उसके बदले अशोक वाटिका में नकली सीता तो स्थापित नहीं कर दी थी ,राम ने सीता कि अग्नि परीक्षा करा लेने उचित समझा।रावण कि खुरापाती खोपडी का कोई भरोसा नहीं था। अतः मजबूरन राम को अग्नि की सहायता लेनी ही पड़ी।
अग्नि देव ने अपनी विद्या के द्वारा ये साबित किया कि ये वो ही पहले की सीता है। ये परीक्षण सीता जी के अस्तित्व को लेकर हुआ था न कि उनके चरित्र को लेकर।मज़बूरी में उठाये गए इस कदम को बाद में इतिहासकारों ने दूसरे ही रूप में प्रस्तुत कर राम के चरित्र पर ही दाग लगा दिया।
आशा है आप लोग सहमत होंगे। भविष्य में इसी कड़ी को आगे जोड़कर बताने का प्रयास करूँगा कि सीता जी को बाद में वाल्मीकि के आश्रम में क्यों भेजना पड़ा ,और दोष राम व धोबी के सर पर आया। आप लोगों कि प्रतिक्रिया ही आगे लिखने का सम्बल प्रदान करेगी। होली कि शुभकामनाओं के साथ। … www.astrologerindehradun.com
जय कोशलेश महेश बंदित चरण रीति अति निर्मली
प्रतिबिम्ब अरु लौकिक कलंक प्रचंड पावक महुँ जरे
प्रभु चरित कहूं न लखें नभ सुर सिद्ध मुनि देखहिं खरे
इन पंक्तियों के साथ ही इस कथा का अगला अध्याय आरम्भ होता है जिसे हमने भाग १ http://rightsunshineforu.blogspot.in/2013/09/blog-post_20.html में अधूरा छोड़ा था।सीता की अग्नि परीक्षा के सन्दर्भ में उठने वाले प्रश्न के द्वारा श्री राम के चरित्र पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाले अज्ञानियों द्वारा हर समय ये संशय किया जाता रहा है कि मर्यादाओं कि रक्षा का प्रमाण प्रस्तुत करने वाले अवध नायक ने सीता को अग्नि परीक्षा के लिए कह कर सभ्य समाज में स्त्रियों की भूमिका को ,उनके महत्त्व को कम किया है। ऊपर कही पंक्तियों में तुलसीदास जी यही कह रहे हैं कि प्रभु के इस चरित्र (खेल)को किसी ने नहीं जाना। नहीं समझा।
वनवास के अंतिम वर्षों में राम कुछ अजीब सी संधिग्ध परछाइयों का अनुभव आश्रम के आस पास कर रहे थे। वनवास काल में अब वे बहुत कुछ राक्षसों के विषय में जानने समझने लगे थे। ऐसे में जब सुपर्णखा वाला हादसा हो चुका था ,राम सीता जी कि सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित थे। अपने विश्वस्त सूत्रों से राम को मालूम हुआ था कि राक्षस सीता जी को हानि पहुँचाने का प्रयास कर सकते हैं।
वो विद्या जिसका जनक स्वयं रावण था और अब अपने वनवास काल में ऋषियों के सहयोग से राम स्वयं इसमें निपुण हो चुके थे ,(जिसे आज हम क्लोन आदि के रूप में जानते हैं ) ये बात अपने सूत्रों से रावण को ज्ञात हो चुकी थी
कालान्तर में सीता जी का अपहरण रावण के द्वारा किया गया। सीता का अपहरण कर रावण जब सुरक्षित अपने क्षेत्र में प्रवेश कर गया तब उसे सीता पर कुछ संदेह हुआ। रावण दुविधा में था ,जल्दबाजी में कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं हो गयी उससे ? ऐसे में जैसे ही रावण ने ये आभास किया कि कहीं राम ने भी तो छल द्वारा उसे दूसरे ही क्लोन का अपहरण करने का मौका तो नहीं दिया जान बूझ कर। तो अब सीता को अपने साथ अपने महल में ले जाने का रिस्क लेना उचित नहीं था। ये शत्रु की किसी साजिश का हिस्सा हो सकता था। जब तक सीता के बारे में रावण आश्वश्त नहीं हो जाता तब तक उसे कहीं किसी और ठिकाने पर रखना उचित था।जब से मेघनाथ ने इंद्र को पराजित किया था तब से ही देवता इस मौके की प्रतीक्षा में थे कि कैसे रावण का दर्प चूर किया जाय। दशरथ कि देवताओं से निकट मित्रता रही थी और पूर्व में भी देवासुर संग्राम में दशरथ देवताओं की ओर से युद्ध में भाग ले चुके थे। ऐसे में राम का देवताओं से जाहिर तौर पर मित्रता के सम्बन्ध थे। अब बहुत सम्भव था कि देवताओं द्वारा रावण के खिलाफ किसी प्रकार के अभियान में राम भी उस षड्यंत्र का हिस्सा हों। ये बात दिमाग में आते ही रावण का मन संशय में डूब गया। पता नहीं क्या होने जा रहा है ,विभीषण द्वारा गुप्त रूप से रावण के खिलाफ प्रजा को भड़काया जा रहा है ऐसा समाचार भी उसे प्राप्त था ,मेघनाद के बढ़ते वर्चस्व से उसके अन्य पुत्र अब रावण से मतभेद रखने लगे थे ,और जब से मेघनाद ने इंद्र को पराजित किया है तब मंदोदरी भी रावण की हर नाजायज हरकत का खुलकर विरोध करने लगी है। अपने पिता से अधिक इंद्रजीत पर अपनी माँ का प्रभाव है। ऐसे में सीता को सीधे महल में ले जाने का साहस रावण का नहीं हुआ। अशोक वाटिका पर अभी पूरी तरह से रावण का ही प्रभाव था ,उसके विश्वास पात्र सैनिक ही वहाँ स्थापित थे ,अतः सीता के लिए फिलहाल वहाँ से सुरक्षित स्थान कोई नहीं है ,ऐसा विचार कर उसने सीता को लेकर अशोक वाटिका का रुख किया।
पाठक वृंद जानते हैं कि रावण विजय के पश्चात राम ने जब सीता को अग्नि परीक्षा के लिए कहा तो उसका वास्तविक अर्थ आग में बैठ कर जलना नहीं था ,असल में उस समय के अनुसार अग्नि देव उन शक्तियों से सुसज्जित थे जिसके द्वारा किसी के असल नक़ल का पूर्ण विश्लेषण वे कर सकते थे। संसार को ये साबित करने के लिए कि कहीं रावण ने असली सीता का वध कर उसके बदले अशोक वाटिका में नकली सीता तो स्थापित नहीं कर दी थी ,राम ने सीता कि अग्नि परीक्षा करा लेने उचित समझा।रावण कि खुरापाती खोपडी का कोई भरोसा नहीं था। अतः मजबूरन राम को अग्नि की सहायता लेनी ही पड़ी।
अग्नि देव ने अपनी विद्या के द्वारा ये साबित किया कि ये वो ही पहले की सीता है। ये परीक्षण सीता जी के अस्तित्व को लेकर हुआ था न कि उनके चरित्र को लेकर।मज़बूरी में उठाये गए इस कदम को बाद में इतिहासकारों ने दूसरे ही रूप में प्रस्तुत कर राम के चरित्र पर ही दाग लगा दिया।
आशा है आप लोग सहमत होंगे। भविष्य में इसी कड़ी को आगे जोड़कर बताने का प्रयास करूँगा कि सीता जी को बाद में वाल्मीकि के आश्रम में क्यों भेजना पड़ा ,और दोष राम व धोबी के सर पर आया। आप लोगों कि प्रतिक्रिया ही आगे लिखने का सम्बल प्रदान करेगी। होली कि शुभकामनाओं के साथ। … www.astrologerindehradun.com