(आपके एक क्लिक से ब्लॉग पर दिख रहे विज्ञापन द्वारा मुझे १० पैसे की आय होती है जिसे मेरे द्वारा आपलोगों को बिना शुल्क दिए जा रहे जवाब तथा धार्मिक कार्यों पर खर्च किया जाता है ,अतः आप भी अपरोक्ष रूप से पुण्य के भागीदार बने ,कृपया सहयोग करें व विज्ञापन पर क्लिक करें)
कुंडली के बारे में जानते -पढ़ते -सुनते समय नवमांश कुंडली का जिक्र आप लोगों ने कई बार सुना होगा। तब मन में ये प्रश्न आता होगा कि ये नवमांश कुंडली आखिर है क्या ? कई जिज्ञासु पाठक व कई मित्र जो ज्योतिष में रूचि रखते हैं वे कई बार आग्रह कर चुके हैं कि आप नवमांश कुंडली पर भी कुछ कहें। क्या होती है ?कैसे बनती है आदि ........
सामान्यतः आप सभी को ज्ञात है कि कुंडली में नवें भाव को भाग्य का भाव कहा गया है। यानि आपका भाग्य नवां भाव है। इसी प्रकार भाग्य का भी भाग्य देखा जाता है ,जिसके लिए नवमांश कुंडली की आवश्यकता होती है। जागरूक ज्योतिषी कुंडली सम्बन्धी किसी भी कथन से पहले एक तिरछी दृष्टि नवमांश पर भी अवश्य डाल चुका होता है।बिना नवमांश का अध्य्यन किये बिना भविष्यकथन में चूक की संभावनाएं अधिक होती हैं। ग्रह का बलाबल व उसके फलित होने की संभावनाएं नवमांश से ही ज्ञात होती हैं। लग्न कुंडली में बलवान ग्रह यदि नवमांश कुंडली में कमजोर हो जाता है तो उसके द्वारा दिए जाने वाले लाभ में संशय हो जाता है। इसी प्रकार लग्न कुंडली में कमजोर दिख रहा ग्रह यदि नवमांश में बली हो रहा है तो भविष्य में उस ओर से बेफिक्र रहा जा सकता है ,क्योंकि बहुत हद तक वो स्वयं कवर कर ही लेता है।अतः भविष्यकथन में नवमांश आवश्यक हो जाता है .
पाठक अब देखें की नवमांश कुंडली का निर्माण कैसे होता है व नवमांश में ग्रहों को कैसे रखा जाता है। हम जानते हैं कि एक राशि अथवा एक भाव 30 डिग्री का विस्तार लिए हुए होता है। अतः एक राशि का नवमांश अर्थात 30 का नवां हिस्सा यानी 3. 2 डिग्री। इस प्रकार एक राशि में नौ राशियों नवमांश होते हैं। अब 30 डिग्री को नौ भागों में विभाजित कीजिये
… पहला नवमांश ०० से 3.२०
दूसरा नवमांश 3. २० से ६.४०
तीसरा नवमांश ६. ४० से १०. ००
चौथा नवमांश १० से १३. २०
पांचवां नवमांश १३.२० से १६. ४०
छठा नवमांश १६. ४० से २०. ००
सातवां नवमांश २०. ०० से २३. २०
आठवां नवमांश २३. २० से २६. ४०
नवां नवमांश २६. ४० से ३०. ००
मेष -सिंह -धनु (अग्निकारक राशि) के नवमांश का आरम्भ मेष से होता है।
वृष -कन्या -मकर (पृथ्वी तत्वीय राशि ) के नवमांश का आरम्भ मकर से होता है।
मिथुन -तुला -कुम्भ (वायु कारक राशि ) के नवमांश का आरम्भ तुला से होता है।
कर्क -वृश्चिक -मीन (जल तत्वीय राशि ) के नवमांश आरम्भ कर्क से होता है।
इस प्रकार आपने देखा कि राशि के नवमांश का आरम्भ अपने ही तत्व स्वभाव की राशि से हो रहा है। अब नवमांश राशि स्पष्ट करने के लिए सबसे पहले लग्न व अन्य ग्रहादि का स्पष्ट होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए मानिए कि किसी कुंडली में लग्न ७:०३:१५:१४ है ,अर्थात लग्न सातवीं राशि को पार कर तीन अंश ,पंद्रह कला और चौदह विकला था (यानी वृश्चिक लग्न था ),अब हम जानते हैं कि वृश्चिक जल तत्वीय राशि है जिसके नवमांश का आरम्भ अन्य जलतत्वीय राशि कर्क से होता है। ०३ :१५ :१४ मतलब ऊपर दिए नवमांश चार्ट को देखने से ज्ञात हुआ कि ०३ :२० तक पहला नवमांश माना जाता है। अब कर्क से आगे एक गिनने पर (क्योंकि पहला नवमांश ही प्राप्त हुआ है ) कर्क ही आता है ,अतः नवमांश कुंडली का लग्न कर्क होगा। यहीं अगर लग्न कुंडली का लग्न ०७ :१८ :१२ :१२ होता तो हमें ज्ञात होता कि १६. ४० से २०. ०० के मध्य यह डिग्री हमें छठे नवमांश के रूप में प्राप्त होती। अतः ऐसी अवस्था में कर्क से आगे छठा नवमांश धनु राशि में आता ,इस प्रकार इस कुंडली का नवमांश धनु लग्न से बनाया जाता।
अन्य उदाहरण से समझें ....... मान लीजिये किसी कुंडली का जन्म लग्न सिंह राशि में ११ :१५ :१२ है (अर्थात लग्न स्पष्ट ०४ :११:१५ :१२ है )ऐसी अवस्था में चार्ट से हमें ज्ञात होता है कि ११ :१५ :१२ का मान हमें १०.०० से १३. २० वाले चतुर्थ नवमांश में प्राप्त हुआ। यानी ये लग्न का चौथा नवमांश है। अब हम जानते हैं कि सिंह का नवमांश मेष से आरम्भ होता है। चौथा नवमांश अर्थात मेष से चौथा ,तो मेष से चौथी राशि कर्क होती है ,इस प्रकार इस लग्न कुंडली की नवमांश कुंडली कर्क लग्न से बनती। इसी प्रकार अन्य लग्नो की गणना की जा सकती है।
इसी प्रकार नवमांश कुंडली में ग्रहों को भी स्थान दिया जाता है। मान लीजिये किसी कुंडली में सूर्य तुला राशि में २६ :१३ :०७ पर है (अर्थात सूर्य स्पष्ट ०६ :२६ :१३ :०७ है ) चार्ट देखने से ज्ञात कि २६ :१३ :०७ आठवें नवमांश जो कि २३. २० से २६. ४० के मध्य विस्तार लिए हुए है के अंतर्गत आ रहा है। इस प्रकार तुला से आगे (क्योंकि सूर्य तुला में है और हम जानते हैं कि तुला का नवमांश तुला से ही आरम्भ होता है ) आठ गिनती करनी है। तुला से आठवीं राशि वृष होती है ,इस प्रकार इस कुंडली की नवमांश कुंडली में सूर्य वृष राशि पर लिखा जाएगा। इसी प्रकार गणना करके अन्य ग्रहों को भी नवमांश में स्थापित किया जाना चाहिये।
ज्योतिष के विद्यार्थियों अथवा शौकिया इस शाश्त्र से जुड़ने वालों के लिए भी नवमांश का ज्ञान होना उन्हें अपने सहयोगी ज्योतिषी से एक कदम आगे रखने में बहुत मददगार साबित होगा ऐसा मेरा विश्वास है। बहुत सरल शब्दों में नवमांश का दिया गया ये उदाहरण आशा है आप सब जिज्ञासुओं को सहायक होगा। आपकी अमूल्य राय की बात जोहता .... …… आपका अपना ही .......बंधु……
( आपसे प्रार्थना है कि कृपया लेख में दिखने वाले विज्ञापन पर अवश्य क्लिक करें ,इससे प्राप्त आय मेरे द्वारा धर्मार्थ कार्यों पर ही खर्च होती है। अतः आप भी पुण्य के भागीदार बने )
कुंडली के बारे में जानते -पढ़ते -सुनते समय नवमांश कुंडली का जिक्र आप लोगों ने कई बार सुना होगा। तब मन में ये प्रश्न आता होगा कि ये नवमांश कुंडली आखिर है क्या ? कई जिज्ञासु पाठक व कई मित्र जो ज्योतिष में रूचि रखते हैं वे कई बार आग्रह कर चुके हैं कि आप नवमांश कुंडली पर भी कुछ कहें। क्या होती है ?कैसे बनती है आदि ........
सामान्यतः आप सभी को ज्ञात है कि कुंडली में नवें भाव को भाग्य का भाव कहा गया है। यानि आपका भाग्य नवां भाव है। इसी प्रकार भाग्य का भी भाग्य देखा जाता है ,जिसके लिए नवमांश कुंडली की आवश्यकता होती है। जागरूक ज्योतिषी कुंडली सम्बन्धी किसी भी कथन से पहले एक तिरछी दृष्टि नवमांश पर भी अवश्य डाल चुका होता है।बिना नवमांश का अध्य्यन किये बिना भविष्यकथन में चूक की संभावनाएं अधिक होती हैं। ग्रह का बलाबल व उसके फलित होने की संभावनाएं नवमांश से ही ज्ञात होती हैं। लग्न कुंडली में बलवान ग्रह यदि नवमांश कुंडली में कमजोर हो जाता है तो उसके द्वारा दिए जाने वाले लाभ में संशय हो जाता है। इसी प्रकार लग्न कुंडली में कमजोर दिख रहा ग्रह यदि नवमांश में बली हो रहा है तो भविष्य में उस ओर से बेफिक्र रहा जा सकता है ,क्योंकि बहुत हद तक वो स्वयं कवर कर ही लेता है।अतः भविष्यकथन में नवमांश आवश्यक हो जाता है .
पाठक अब देखें की नवमांश कुंडली का निर्माण कैसे होता है व नवमांश में ग्रहों को कैसे रखा जाता है। हम जानते हैं कि एक राशि अथवा एक भाव 30 डिग्री का विस्तार लिए हुए होता है। अतः एक राशि का नवमांश अर्थात 30 का नवां हिस्सा यानी 3. 2 डिग्री। इस प्रकार एक राशि में नौ राशियों नवमांश होते हैं। अब 30 डिग्री को नौ भागों में विभाजित कीजिये
… पहला नवमांश ०० से 3.२०
दूसरा नवमांश 3. २० से ६.४०
तीसरा नवमांश ६. ४० से १०. ००
चौथा नवमांश १० से १३. २०
पांचवां नवमांश १३.२० से १६. ४०
छठा नवमांश १६. ४० से २०. ००
सातवां नवमांश २०. ०० से २३. २०
आठवां नवमांश २३. २० से २६. ४०
नवां नवमांश २६. ४० से ३०. ००
मेष -सिंह -धनु (अग्निकारक राशि) के नवमांश का आरम्भ मेष से होता है।
वृष -कन्या -मकर (पृथ्वी तत्वीय राशि ) के नवमांश का आरम्भ मकर से होता है।
मिथुन -तुला -कुम्भ (वायु कारक राशि ) के नवमांश का आरम्भ तुला से होता है।
कर्क -वृश्चिक -मीन (जल तत्वीय राशि ) के नवमांश आरम्भ कर्क से होता है।
इस प्रकार आपने देखा कि राशि के नवमांश का आरम्भ अपने ही तत्व स्वभाव की राशि से हो रहा है। अब नवमांश राशि स्पष्ट करने के लिए सबसे पहले लग्न व अन्य ग्रहादि का स्पष्ट होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए मानिए कि किसी कुंडली में लग्न ७:०३:१५:१४ है ,अर्थात लग्न सातवीं राशि को पार कर तीन अंश ,पंद्रह कला और चौदह विकला था (यानी वृश्चिक लग्न था ),अब हम जानते हैं कि वृश्चिक जल तत्वीय राशि है जिसके नवमांश का आरम्भ अन्य जलतत्वीय राशि कर्क से होता है। ०३ :१५ :१४ मतलब ऊपर दिए नवमांश चार्ट को देखने से ज्ञात हुआ कि ०३ :२० तक पहला नवमांश माना जाता है। अब कर्क से आगे एक गिनने पर (क्योंकि पहला नवमांश ही प्राप्त हुआ है ) कर्क ही आता है ,अतः नवमांश कुंडली का लग्न कर्क होगा। यहीं अगर लग्न कुंडली का लग्न ०७ :१८ :१२ :१२ होता तो हमें ज्ञात होता कि १६. ४० से २०. ०० के मध्य यह डिग्री हमें छठे नवमांश के रूप में प्राप्त होती। अतः ऐसी अवस्था में कर्क से आगे छठा नवमांश धनु राशि में आता ,इस प्रकार इस कुंडली का नवमांश धनु लग्न से बनाया जाता।
अन्य उदाहरण से समझें ....... मान लीजिये किसी कुंडली का जन्म लग्न सिंह राशि में ११ :१५ :१२ है (अर्थात लग्न स्पष्ट ०४ :११:१५ :१२ है )ऐसी अवस्था में चार्ट से हमें ज्ञात होता है कि ११ :१५ :१२ का मान हमें १०.०० से १३. २० वाले चतुर्थ नवमांश में प्राप्त हुआ। यानी ये लग्न का चौथा नवमांश है। अब हम जानते हैं कि सिंह का नवमांश मेष से आरम्भ होता है। चौथा नवमांश अर्थात मेष से चौथा ,तो मेष से चौथी राशि कर्क होती है ,इस प्रकार इस लग्न कुंडली की नवमांश कुंडली कर्क लग्न से बनती। इसी प्रकार अन्य लग्नो की गणना की जा सकती है।
इसी प्रकार नवमांश कुंडली में ग्रहों को भी स्थान दिया जाता है। मान लीजिये किसी कुंडली में सूर्य तुला राशि में २६ :१३ :०७ पर है (अर्थात सूर्य स्पष्ट ०६ :२६ :१३ :०७ है ) चार्ट देखने से ज्ञात कि २६ :१३ :०७ आठवें नवमांश जो कि २३. २० से २६. ४० के मध्य विस्तार लिए हुए है के अंतर्गत आ रहा है। इस प्रकार तुला से आगे (क्योंकि सूर्य तुला में है और हम जानते हैं कि तुला का नवमांश तुला से ही आरम्भ होता है ) आठ गिनती करनी है। तुला से आठवीं राशि वृष होती है ,इस प्रकार इस कुंडली की नवमांश कुंडली में सूर्य वृष राशि पर लिखा जाएगा। इसी प्रकार गणना करके अन्य ग्रहों को भी नवमांश में स्थापित किया जाना चाहिये।
ज्योतिष के विद्यार्थियों अथवा शौकिया इस शाश्त्र से जुड़ने वालों के लिए भी नवमांश का ज्ञान होना उन्हें अपने सहयोगी ज्योतिषी से एक कदम आगे रखने में बहुत मददगार साबित होगा ऐसा मेरा विश्वास है। बहुत सरल शब्दों में नवमांश का दिया गया ये उदाहरण आशा है आप सब जिज्ञासुओं को सहायक होगा। आपकी अमूल्य राय की बात जोहता .... …… आपका अपना ही .......बंधु……
( आपसे प्रार्थना है कि कृपया लेख में दिखने वाले विज्ञापन पर अवश्य क्लिक करें ,इससे प्राप्त आय मेरे द्वारा धर्मार्थ कार्यों पर ही खर्च होती है। अतः आप भी पुण्य के भागीदार बने )