सोमवार, 22 अप्रैल 2013

Chandr Kundli क्या महत्व है चन्द्र कुंडली का








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  मनुष्य के जन्म समय में पूर्व दिशा में जिस राशि का उदय हो रहा होता है वह राशि जातक की जन्म लग्न राशि कहलाती है. प्रथम भाव में उसी राशि को लिख कर लग्न बनाया जाता है .उस समय विशेष में चंद्रमा जिस भी राशि में भ्रमण कर रहा होता है वो ही  जातक की जन्म राशि कहलाती है. लग्न कुंडली के बाद जिस राशि में चंद्रमा होता है उसे लग्न मानकर एक और कुंडली का निर्माण होता है जो चन्द्र कुंडली कहलाती है. अब लग्न कुंडली और चन्द्र कुंडली में क्या अंतर होता है ये एक ऐसा विषय है जिस पर विद्वान ज्योतिषियों को मतभेद रह सकता है. मेरा मत यह है की जन्म कुंडली जातक के लिए ईश्वर द्वारा निर्धारित फैसलों का प्रतिबिम्ब होती है .उन विशेष परिस्थितियों ,उन विशेष नियमों से जातक को मिलना ही होता है .इस पर जातक का कोई नियंत्रण नहीं होता .ये पूर्वार्ध है. आपके किये गए कर्मों का लेखा जोखा .किन्तु चन्द्र कुंडली वो है जिसकी सहायता से जातक  उन नियमों ,सिद्धांतों ,उन पूर्व निर्धारित फैसलों में लूप होल खोजने का प्रयास करता है. यहाँ से हम देखते हैं की कहाँ और कैसे किस ग्रह  के साथ कोई डील की जा सकती है.कैसे ले- दे कर अपना काम  चलाया जा सकता है .कैसे अपनी रुकी हुई गाडी को गतिवान किया जा सकता है. यकीन कीजिये मैंने कई बार समस्या को लग्न कुंडली से पकड़कर ,उपचार चन्द्र कुंडली द्वारा करने  का प्रयास किया और सफलता पाई .कई ज्योतिषियों को चन्द्र कुंडली को अनदेखा करते पाया है. यकीन मानिए  एक बार चन्द्र कुंडली को लग्न मान कर फलित करने का प्रयास कीजिये ,मजा आ जाता है. ऐसे ऐसे तथ्य जातक के बारे में मालूम होने लगते हैं जिसकी कल्पना भी नहीं की होगी आपने .
         आइये इसे दूसरी तरह से कहने का प्रयत्न करते हैं.किन्तु कहूंगा सामान्य भाषा में ही . बावजूद इसके कि  एक बार मेरी एक पाठिका ने और अभी कुछ दिन पहले मेरे एक क्लाइंट ने मुझसे एक ही शिकायत की .दोनों का कहना था की आप की भाषा शैली कहीं से भी पंडितों वाली नहीं है .मैं फिर स्पष्ट कर देना चाहूँगा की मेरा ब्लॉग उस आम जिज्ञासु पाठक के लिए है जो ज्योतिष का रुझान रखता है या जो अपनी किसी समस्या को मुझ से साझा करना चाहता है. मेरे किसी भी लेख को किसी प्रकार की प्रतियोगिता  में भेजने की मेरी कोई मंशा नहीं है .ये मात्र मेरे पाठकों के लिए है  .अपने इसी साधारण अंदाज से मैंने उनका स्नेह -आदर प्राप्त किया है।भाषा के भ्रमजाल में उलझाकर मैं अपने पांडित्य का झूठा आभामंडल तो रच सकता हूँ ,अपने गैरजरूरी हव्वे को भी  बुन सकता हूँ ,जिस  की आड़ में आराम से अपनी फीस बढ़ा सकता हूँ ,लेकिन अपने  पाठक  के स्नेह से वंचित हो जाउंगा ,उसके विश्वास को खो बैठूँगा ,उस आस को तोड़ दूंगा जिस आस के साथ वो बेहिचक मेरे पास अपनी व्यथा कहने का अधिकार पाता है,कुसमय में मेरे काँधे को तलासने के लिए चुपके से देखता है. मैं इस सुख से ,इस गर्व के एहसास से वंचित नहीं होना चाहता ,इसलिए अपना अंदाज अपनी भाषाशैली नहीं बदल सकता . थोडा भावुक हो गया तो विषय से ही भटक गया .क्या करूँ आखिर साधारण मनुष्य ही तो हूँ .खैर वापस विषय पर आता हूँ .
                    समस्त ग्रहों में सर्वाधिक अस्थिर या कहें गतिशील  चंद्रमा ही होते हैं .अततः जल्दी से किसी परिवर्तन की आस इन्ही के दरबार से की जा सकती है. अपनी समस्त सोलह कलाओं का जादू बिखेरकर ये नित्य नयी अवस्था, नए रूप में हमारे सामने होते हैं  .पूरे माह में हम किसी भी दिन इन्हें समान  रूप में नहीं पाते . अतः ये निरंतर बदलाव का प्रतीक हैं . इसी लिए तो मन के कारक हैं .ये सन्देश देते हैं की स्थितियों में परिवर्तन संभव है .यही कारण है की लग्न कुंडली के बाद चन्द्र कुंडली अपना विशेष स्थान रखती है.हर रोज अपने आश्रित स्थान से इनका प्रभाव हर ग्रह  पर अलग होता है.तत्व के जानकार जानते ही हैं की सारा खेल मन का है. मन यानि चंद्रमा .  नवग्रहों में चंद्रमा को धरती के सर्वाधिक निकट माना गया है .इसी कारण सबसे अधिक उपचार चन्द्र को लेकर ही किये जाते हैं .इसी कारण इसे माँ का कारक कहा गया है.जातक के जन्म से लेकर उसके जीवन भर सर्वाधिक निकट यदि कोई है तो माँ ही है. पहला स्पर्श ,पहला सम्बन्ध ,पहला प्रभाव इंसान के ऊपर माँ का ही है .माँ का है अर्थात चन्द्र का है. हर समस्या हर परेशानी का निदान माँ है. इसी प्रकार जातक के जीवन की हर समस्या का निदान चंद्रमा के पास है. तभी तो शिव के माथे का अलंकार है. कुछ सूत्र इसी क्रम में बताता हूँ जिस जातक की भी कुंडली में चंद्रमा दूषित हों वह इन्हें आजमाए व इनका चमत्कारिक असर देखें .
1 . सोमवार के व्रत करें 
2.  माँ से चांदी का कोई जेवर लेकर अपने पास रखें .
3 . यदि संभव हो तो पूर्णिमा की रात माँ के चरणों में सिर रखकर सोयें किन्तु ध्यान दें की आपके पैर माँ के सिर  को न छुएँ . दिशा में परिवर्तन करें .
4 . जिस भी दिन रोहिणी नक्षत्र हो उस दिन शिव मंदिर में एक मॊर पंख अर्पित करें .  
5 . गाय के दूध से बने घी की हलके हाथों से मालिश  माँ के सिर पर करें .
                  लेख के विषय पर आप की अमूल्य राय की आशा है 
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मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

Higher education ..... किस विषय से करें शिक्षा प्राप्त

  आजकल के प्रतिस्पर्धात्मक युग में हर माता पिता की कोशिश होती है कि अपनी संतान को ऐसे विषय की पढाई कराईं जाय जो कल उसके कर्रिएर में उसे सहायक हो.उसे कम लोगों के बीच में से कोम्पिटीसन् करना पड़े.सहज ही सफलता हासिल हो जाए.कई बार देखने में आता है कि अच्छे विषय अच्छे इंस्टिट्यूट से पढ़ने के बाद भी जब नौकरी की बात आती है तो जातक स्वयम्‌ को सहज महसूस नहीं कर पाता. उसे लगता है कि जो हुनर उसके पास है उस अंदाज़ में वह तरक्की नहीं कर पा रहा.या समाज को लगता है कि फलाना मन लगा कर काम नहीं कर रहा .दोनो हालातों में अमूमन देखने में आता है कि जातक ने अपने पंच्मेश के अनुसार शिक्षा हासिल नहीं की होती. हम जानते ही हैं कि पाँचवाँ भाव उत्पत्ति का भाव है,पैदा करने का भाव है .आय भाव से सातवाँ भाव अपने अनुसार दी गयी शिक्षा से आने वाले समय में आय प्राप्त कराता है.आजकल चारों ओर एक दूसरे कि देखा देखी होड़ सी लगी हुई है ऊँचे ऊँचे संस्थानों से ऊँची ऊँची डिग्रियाँ प्राप्त करने की.बिना ये देखे बिना ये जाने कि बच्चे का झुकाव किस विषय की ओर हो रहा है.
          याद होगी आपको कुछ समय पहले
अमीर खान जी कि इस विषय पर आयी फ़िल्म.अरे वही वाली जिस में यह गीत भी था "अन्धेरे से डरता हूँ मै माँ "
ये अंधेरा वो अंधेरा है जो उसके मन की आँखें भाँप पा रही हैं.आने वाले समय का अंधेरा.क्योंकि माता पिता बच्चे को अपनी पसंद के विषय की पढाई करना चाह रहे हैं लेकिन बच्चे का मन जनता है कि इस विषय से आने वाले समय में उस के लिए अंधेरा ही रहने वाला है ,इसीलिये वो डरता है और कहता है कि अन्धेरे से डरता हूँ माँ .शिक्षा ज्ञान में मूलभूत अंतर होता है.मैं दावे के साथ कहता हूँ कि जीवन में सदा उन्हीं लोगों ने अधिक सफलता प्राप्त कि है जिन्होने ज्ञान प्राप्त किया है.शिक्षा जिन्होंने पायी वो अपनी मंज़िल के लिए अधिकतर भटकते ही देखे गए.अन्तर ये रहा कि अपने मूलभूत ग्रह के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने वालों ने ज्ञान हासिल किया और बिना सोचे समझे समाज की देखा देखी करने वालों ने मात्र शिक्षा प्राप्त की .आज जो भी डिग्रियाँ प्रचलन में हैं वो आज से तीस साल पहले नहीं थीं.आज अपने अपने क्षेत्र में सफल जातको ने शायद ही इन में से कोइ डिग्री प्राप्त की है .वहीं दूसरी ओर आज से बीस साल बाद जो भी डिग्रियाँ जायेंगि वो आज के छात्रों के पास नहीं होंगी.तो क्या मान लिया जाय कि वो सफल नहीं होंगे?मान लीजिये कि यदि तेंडुलकर एक डॉक्टर होते तो क्या होता ,या बच्चन साहब कहीं प्रोफेसर होते ,मनमोहन जी ने यदि अर्थशाश्त्र के बजाय इतिहास पढ़ा होता.सहारा के राय जी यदि बैंक में क्लर्क होते?ये आज सफल है क्योंकि इन्होने अपना क्षेत्र उस ग्रह से संबंधित किया जो पंच्मेश दशमेश कि प्रवृत्ति से मेल खाता था.पंच्मेश यदि यदि किसी प्रकार से निर्बल या अस्त हो तो पंचम भाव पर दृष्टि रखने वाले ग्रह,पंच्मेश से युति वाले ग्रह ,लगान या लग्नेश से युति करने वाले सम स्वभाव के ग्रह के अनुसार भी शिक्षा प्राप्त की जा सकती है.नीचे बने चार्ट से आपको यह जानने में सुविधा होगी कि कौन सा विषय किस ग्रह से संबंधित हो सकता है ;----
1.सूर्य: लोक प्रशासन ,राजनीति ,अर्थशास्त्र,गणित ,मौसम ,वनस्पति विज्ञान ,पशु चिकित्सा ,दवा संबंधी युद्ध संबंधी विषय आदि.
2.चंद्र : गृह विज्ञान,साहित्य,पशुपालन ,मनोविज्ञान ,नर्सिंग ,जल संबंधी,साज़ सज्जा ,शहद , छोटे बच्चों की देखभाल संबंधी विषय भोज्य पदार्थ संबंधी विषय , वस्त्र आदि से संबंधित.
3.मंगल : खनिज संबंधी ,ऑटो मोबाइल ,सेना ,पुलिस ,धातु ,पेट्रोलियम ,शारीरिक शिक्षा,व्यायाम ,फिजियोथेरेपी,धरती के अंदर होने वाले कार्यों से संबंधी आदि विषय.
4.बुध : बैंकिंग ,
संचार , त्वचा संबंधी ,पत्र्कारिक्ता,शिक्षा,साँस संबंधी विषय,अर्थशास्त्रकर्मकांड,पैसे संबंधी ,टैक्स आदि से संबंधित विषय.
5.गुरु: शिक्षा ,ज्योतिष ,क़ानून ,चिकित्सा ,व्याकरण,देखभाल ,
प्रबंधन आदि संबंधित ..
6. शुक्र : फ़िल्म ,शरीर कि सुंदरता संबंधी ,नाटक ,एनिमेशन ,वस्त्र ,भोजन संबंधी वा लगभग वो सभी विषय जो चंद्र से भी जुड़े होते हैं .
7.शनि :इतिहास ,कृषि ,लेब टेस्ट आदि से संबंधी ,चमड़ा ,सिविल ,कंप्यूटर,अस्पताल ,एरोनाटिकल,विधि शाश्त्र ,कैंसर ,प्रबंधन ,मनोविज्ञान ,बाज़ार से संबंधी विषय.
8.राहूपुरातत्व ,विषाणु संबंधीदूरसंचार , इंजीनियरिंग ,जादू टोना ,रहश्य्मय विषय ,बॉयोटेक्नोलॉजी ,तकनीकी काम,रेडियोलॉजी  आदि

                 अपने विषय में आपको नए नए विचार सदा आते है जो आपको आम भीड़ से अलग कर सफलता के मुकाम तक पहुँचाते हैं,किन्तु अन्य विषयों पर आप रटी हुई थ्योरी पर चलते हैं.आपके विचारों को आकाश नहीं मिलता. अतः आपका हुनर ढका रह जाता है.अपने मौलिक विषय से ही आप सफलता का स्वाद चख सकते हैं. तब शायद ये गाना गाने कि आवश्यकता ही ना हो "अन्धेरे से डरता हूँ माँ "
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