संसार का ऐसा विरला ही कोई कुंवारा या कुंवारी होगी जिसने यदि कभी किसी
ज्योतिषी को अपनी कुंडली दिखाई हो और अपने प्रेम विवाह के विषय में सवाल न
किया हो।सदियों से ये शब्द हर मनुष्य के मन को एक सुखद एहसास ,एक रूमानी
दशा से दो चार करता आया है।तो आइये आज इसी विषय पर चर्चा करने का प्रयास
करते हैं।
आम बोलचाल की भाषा के प्रेम विवाह व ज्योतिष शास्त्रानुसार प्रेम विवाह में फर्क होता है,होना भी चाहिए और अधिक आवश्यक है की जातक व ज्योतिषी दोनों को इस फर्क का पता होना चाहिए।कालांतर में प्रेमविवाह के अर्थ बदलते रहे हैं।आज जो हो रहा है वो प्रेम विवाह नहीं है,आपसी समझौता है अपने जीवन को सुगम बनाने के लिए।आज से तीस चालीस साल पहले जब जाती प्रथा का ठीक ठाक बोलबाला था ,तब दूसरी कौम ,दूसरी जाति के रीति रिवाजों के प्रति आकर्षण ही प्रेम था।राजा राम के समय काल में स्वयंवर का मौका मिल जाना ही प्रेम विवाह के दायरे में आ जाता था।मुगलकालीन दौर में कई रानियों में से विशेष का दर्जा पा लेना भी प्रेम विवाह माना जा सकता था.
वास्तव में जब से ज्योतिष शाश्त्र की रचना हुई है तब से अब तक हालत बहुत बदल गए हैं।चीजों को देखने का नजरिया ,उनका होना ,उनका अर्थ सब के मायने बदल गए हैं। अब आप यदि अपने जीवन साथी के साथ प्रेम कर पा रहे हैं ,उसके ह्रदय का प्रेम पा रहे हैं तो यही प्रेम विवाह है। यह एक विस्तृत चर्चा का विषय है ,किन्तु यहाँ पर मैं शाश्त्रों में बताये गए कुछ योग जो कुंडली में आपकी पसंद के व्यक्ति विशेष को आपके जीवन साथी के रूप में पाने के आपके मौकों के बारे में बताते हैं उनका जिक्र कर रहा हूं।
पंचम भाव कुंडली में प्रेम का भाव कहा गया है।वहीँ सप्तम भाव विवाह का भाव है।पंचम भाव जुआ ,सट्टा ,खेल और ऐसे सभी कामों का भाव भी है जिसके रिसल्ट के बारे में हम कुछ भी पक्का नहीं कह सकते।यहीं ध्यान देने वाली बात यह भी है की सप्तम भाव मारक भाव भी माना जाता है। व साझेदारी का भाव भी है।अब आप प्रेम विवाह को कुछ ऐसे भी मान सकते हैं की कोई ऐसी साझेदारी जिसमें आपसी प्रेम आपसी विचार सदा बने रहें।
कुंडली में सप्तमेश व पंचमेश दोनों का योग होना या किसी भी प्रकार से आपस में सम्बन्ध होना इस प्रकार की साझेदारियों के लिए उपयुक्त माना जाता है।
-पंचमेश ,सप्तमेश व शुक्र का की कुंडली में कहीं भी होना प्रेम विवाह की संभावनाओं को बताता है।
-शुक्र व सप्तमेश यदि पंचम भाव में हों तो जातक प्रेम विवाह की कोशिश करता देखा जा सकता है।
-पंचमेश व सप्तमेश का राशि परिवर्तन हो तो जातक चाहे प्रेम विवाह की संभावनाओं को बताता है .
-मंगल पर शुक्र की दृष्टि बार बार जातक को प्रेम करने को उकसाती है।वह कई बार जीवन में प्रेम करता है किन्तु विवाह हो या न हो इसकी कोई गारंटी नहीं होती।
-पंचम या सप्तम भाव पर सूर्य की उपस्थिति भी कई विद्वानों द्वारा प्रेम विवाह का सूचक मानी जाती है।(किन्तु यह सूत्र आज तक मेरी समझ में आया नहीं )
देश ,काल पात्र या परिस्तिथियों में भिन्नता ही शायद प्रेम विवाह कही जाती हो।भविष्य में इस विषय को आगे बढाने का प्रयास करूँगा।
विशेष :प्रतीक जी का आभार।नयी पोस्ट के इंतजार के लिए।
आम बोलचाल की भाषा के प्रेम विवाह व ज्योतिष शास्त्रानुसार प्रेम विवाह में फर्क होता है,होना भी चाहिए और अधिक आवश्यक है की जातक व ज्योतिषी दोनों को इस फर्क का पता होना चाहिए।कालांतर में प्रेमविवाह के अर्थ बदलते रहे हैं।आज जो हो रहा है वो प्रेम विवाह नहीं है,आपसी समझौता है अपने जीवन को सुगम बनाने के लिए।आज से तीस चालीस साल पहले जब जाती प्रथा का ठीक ठाक बोलबाला था ,तब दूसरी कौम ,दूसरी जाति के रीति रिवाजों के प्रति आकर्षण ही प्रेम था।राजा राम के समय काल में स्वयंवर का मौका मिल जाना ही प्रेम विवाह के दायरे में आ जाता था।मुगलकालीन दौर में कई रानियों में से विशेष का दर्जा पा लेना भी प्रेम विवाह माना जा सकता था.
वास्तव में जब से ज्योतिष शाश्त्र की रचना हुई है तब से अब तक हालत बहुत बदल गए हैं।चीजों को देखने का नजरिया ,उनका होना ,उनका अर्थ सब के मायने बदल गए हैं। अब आप यदि अपने जीवन साथी के साथ प्रेम कर पा रहे हैं ,उसके ह्रदय का प्रेम पा रहे हैं तो यही प्रेम विवाह है। यह एक विस्तृत चर्चा का विषय है ,किन्तु यहाँ पर मैं शाश्त्रों में बताये गए कुछ योग जो कुंडली में आपकी पसंद के व्यक्ति विशेष को आपके जीवन साथी के रूप में पाने के आपके मौकों के बारे में बताते हैं उनका जिक्र कर रहा हूं।
पंचम भाव कुंडली में प्रेम का भाव कहा गया है।वहीँ सप्तम भाव विवाह का भाव है।पंचम भाव जुआ ,सट्टा ,खेल और ऐसे सभी कामों का भाव भी है जिसके रिसल्ट के बारे में हम कुछ भी पक्का नहीं कह सकते।यहीं ध्यान देने वाली बात यह भी है की सप्तम भाव मारक भाव भी माना जाता है। व साझेदारी का भाव भी है।अब आप प्रेम विवाह को कुछ ऐसे भी मान सकते हैं की कोई ऐसी साझेदारी जिसमें आपसी प्रेम आपसी विचार सदा बने रहें।
कुंडली में सप्तमेश व पंचमेश दोनों का योग होना या किसी भी प्रकार से आपस में सम्बन्ध होना इस प्रकार की साझेदारियों के लिए उपयुक्त माना जाता है।
-पंचमेश ,सप्तमेश व शुक्र का की कुंडली में कहीं भी होना प्रेम विवाह की संभावनाओं को बताता है।
-शुक्र व सप्तमेश यदि पंचम भाव में हों तो जातक प्रेम विवाह की कोशिश करता देखा जा सकता है।
-पंचमेश व सप्तमेश का राशि परिवर्तन हो तो जातक चाहे प्रेम विवाह की संभावनाओं को बताता है .
-मंगल पर शुक्र की दृष्टि बार बार जातक को प्रेम करने को उकसाती है।वह कई बार जीवन में प्रेम करता है किन्तु विवाह हो या न हो इसकी कोई गारंटी नहीं होती।
-पंचम या सप्तम भाव पर सूर्य की उपस्थिति भी कई विद्वानों द्वारा प्रेम विवाह का सूचक मानी जाती है।(किन्तु यह सूत्र आज तक मेरी समझ में आया नहीं )
देश ,काल पात्र या परिस्तिथियों में भिन्नता ही शायद प्रेम विवाह कही जाती हो।भविष्य में इस विषय को आगे बढाने का प्रयास करूँगा।
विशेष :प्रतीक जी का आभार।नयी पोस्ट के इंतजार के लिए।